(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
हमारे पास अनीता नाम की व्यूअर का एक मेल आया. उन्होंने एक ऐसी बीमारी के बारे में बताया, जिसमें खून में पाए जाने वाले रेड ब्लड सेल्स और व्हाइट ब्लड सेल्स या प्लेटलेट्स कम बनते हैं. इस बीमारी को अप्लास्टिक अनीमिया कहते हैं. अनीता चाहती हैं कि हम सेहत पर इसके बारे में विस्तार से बताएं. ये क्यों होती है? इसका इलाज कैसे होता है?
इसके बारे में जानने के लिए हमने बात की डॉ रोशन दीक्षित से.
डॉ रोशन दीक्षित, सीनियर कंसल्टेंट, हेमटॉलजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट, आकाश हेल्थकेयर, द्वारका, दिल्ली
अप्लास्टिक अनीमिया क्या होता है?
- अप्लास्टिक अनीमिया एक तरह की बीमारी है.
- इसमें हमारे अस्थि-मज्जा यानी बोन मैरो के अंदर जो स्टेम सेल्स होती हैं, उनमें प्रॉब्लम होती है.
- इसकी वजह से खून में जो कण होते हैं.
- जैसे लाल रक्त कण, श्वेत रक्त कण या प्लेटलेट्स जो ब्लीडिंग रोकती हैं.
- इनका प्रोडक्शन कम हो जाता है.
- ये बीमारी आमतौर पर युवा वयस्कों को होती है.
- 30 से 40 साल की उम्र में या फिर 10 से 20 साल की एज ग्रुप के अंदर होती है.
लक्षण
- इस बीमारी में मरीज में इन रक्त कणों की कमी के कारण लक्षण सामने आते हैं.
- इसमें बुखार हो सकता है.
- इन्फेक्शन हो सकते हैं.
- अनीमिया यानी खून की कमी की वजह से कमजोरी, जल्दी थक जाना और सांस फूल सकती है.
अप्लास्टिक अनीमिया में खून के कणों का प्रोडक्शन कम हो जाता है
- प्लेटलेट्स की कमी की वजह से ब्लीडिंग हो सकती है.
- ये ब्लीडिंग नाक से, मुंह से, पेशाब में या मोशन के टाइम पर हो सकता है.
- ये बीमारी आमतौर पर कुछ हफ्ते या कुछ महीनों के अंदर डेवलप होती है.
टेस्ट
- जब मरीज का ब्लड टेस्ट किया जाता है.
- तब आमतौर पर रक्त कणों में कमी देखी जाती है.
- इसका मतलब इनका हीमोग्लोबिन कम होता है.
- श्वेत रक्त कण कम हो सकता है.
- प्लेटलेट कम हो सकता है.
- इन तीनों में एक साथ भी कमी देखी जा सकती है.
- इसका कन्फर्मेशन करने के लिए बोन मैरो का टेस्ट किया जाता है.
- बोन मैरो हमारे हड्डी के अंदर जो सॉफ्ट पदार्थ होता है, जिससे ब्लड बनता है.
- बोन मैरो के टेस्ट में ये कन्फर्म किया जाता है कि ये अप्लास्टिक अनीमिया है या नहीं.
- फिर इसकी वजह जानने की कोशिश की जाती है.
कारण
- 50 फीसदी मामलों में अप्लास्टिक अनीमिया का कोई कारण पता नहीं चलता है.
- बाकी 50 फीसदी मामलों में कुछ डिसऑर्डर हो सकते हैं.
- किसी ड्रग या केमिकल का एक्सपोजर जैसे- पेंट के बिजनेस में जो लोग काम करते हैं.
- या फिर कोई हेवी मेटल्स फैक्ट्रीज में जो लोग काम करते हैं.
- इन चीजों के संपर्क में आने से हो सकता है.
- कोई एंटीबायोटिक, कोई दवा जिसका साइड इफेक्ट बैनो मैरो पर पड़ता है.
- इनसे भी ये समस्या हो सकती है.
- किसी वायरस या किसी इन्फेक्शन के चलते जैसे- डेंगू वायरस, चिकनगुनिया वायरस.
- ये सब चीजें भी बोन मैरो को सप्रेस कर सकती हैं.
- जब ये डायग्नोसिस किया जाता है, उसके बाद ये सोचना पड़ता है कि इनका इलाज कैसे किया जाए.
इलाज
- पहले जिस कण की कमी होती है, उसको सप्लीमेंट किया जाता है.
- अगर हीमोग्लोबिन कम है, तो लाल रक्त चढ़ाते हैं.
- व्हाइट ब्लड सेल्स कम हैं और मरीज को इन्फेक्शन है, तो एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं.
- अगर मरीज में प्लेटलेट्स कम हैं, जिससे ब्लीडिंग हो सकती है, तो प्लेटलेट्स दिए जाते हैं.
- इन मरीजों का ट्रांसफ्यूजन आमतौर पर इररेडियेटेड ब्लड मतलब ब्लड को रेडिएशन एक्सपोजर देने के बाद दिया जाता है.
- ताकि इनमें साइड इफेक्ट कम हों.
- इन मरीजों की इम्यूनिटी बहुत ज्यादा कम होती है.
- इन्फेक्शन का खतरा बहुत ज्यादा होता है.
- इसमें सेफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन बहुत जरूरी है.
- अगला मैनेजमेंट बीमारी को ठीक करने से जुड़ा होता है.
- अगर मरीज की उम्र 40 साल से कम है और फिट है.
- साथ ही उनके पास कोई मैच डोनर है.
- तब बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जाता है.
अप्लास्टिक अनीमिया में बोन मैरो के अंदर जो स्टेम सेल्स होती हैं, उनमें प्रॉब्लम होती है
- बोन मैरो ट्रांसप्लांट से इस बीमारी का इलाज संभव है.
- अगर किसी वजह से बोन मैरो ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सकता है.
- जैसे अगर मरीज की उम्र ज्यादा है या कोई एक्टिव इन्फेक्शन है या फिर पेशेंट अगर फिट नहीं है.
- किसी हार्ट, किडनी या लिवर की समस्या है, तब उन्हें दवाइयां दी जाती हैं.
- जिनमें एक इंजेक्शन होता है, एटीजी.
- इसके साइड इफेक्ट भी होते हैं, जिसकी वजह से पेशेंट की मॉनिटरिंग चलती रहती है.
- कभी-कभी शरीर का इम्यून सिस्टम सप्रेस करने के लिए दवाई देते हैं.
- इसके साथ ही बहुत सारे नये मॉलिक्यूल्स हैं, जैसे रेवोलेड.
- इसे बोन मैरो को स्टिमुलेट करने के लिए दिया जाता है ताकि जो कण कम हैं, वो ज्यादा बनें.
- इन सबसे अप्लास्टिक अनीमिया के ठीक होने की उम्मीद की जा सकती है.
- सबसे जरूरी होता है इन मरीजों को इन्फेक्शन से बचाना.
- इन्हें सुरक्षित वातावरण में रखना चाहिए क्योंकि इनकी इम्यूनिटी बहुत कम होती है.
अगर आपको अप्लास्टिक अनीमिया के लक्षण महसूस होते हैं, तो देरी न करें. डॉक्टर से कंसल्ट करें ताकि अगर लक्षणों की सही वजह का पता लगाया जा सके. और सही समय पर सही इलाज हो सके.