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रूस-यूक्रेन युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान इन बच्चों का हो रहा है

युद्ध के बीच सरोगेसी से पैदा हुए कई नवजात बिना मां-बाप, बिना किसी पहचान के फंसे हुए हैं.

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बेसमेंट में बम शेल्टर के अंदर मेकशिफ्ट नर्सरी बनाकर सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों को रखा गया है, नर्सेस बताती हैं कि बम शेल्टर होने के बावजूद यहां धमाकों की तेज़ आवाज़ आती है. फोटो- रॉयटर्स
एक वक्त था जब भारत को दुनिया का सरोगेसी हब माना जाता था. नवंबर, 2015 में भारत ने विदेशी जोड़ों के सरोगेट के जरिए बच्चा पैदा करने पर पूरी तरह बैन लगा दिया. भारत न ही किसी विदेशी नागरिक या भारत के ओवरसीज़ नागरिक को सरोगेसी के लिए भारत आने की इजाज़त देता है, न ही सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों को उनके विदेशी पेरेंट्स के साथ भारत छोड़ने की इजाज़त दी जाती है.
भारत के अलावा नेपाल और थाइलैंड सरोगेसी के लिए पसंदीदा डेस्टिनेशन माने जाते थे. वजह थी खर्चे का कम होना. लेकिन इन दोनों देशों ने कमर्शियल सरोगेसी पर बैन लगा दिया. इन तीनों के बाद जिन देशों में सरोगेसी से सबसे ज्यादा बच्चे पैदा होते हैं उनमें अमेरिका, यूक्रेन और रूस शामिल हैं. इनमें से रूस ने यूक्रेन पर युद्ध छेड़ा हुआ है.
यूक्रेन अब एक वॉर ज़ोन है, ऐसे में वहां मौजूद हर शख्स के जीवन पर खतरा मंडरा रहा है. वहां की सरोगेट्स, उनकी कोख में पल रहे बच्चे और सरोगेसी से हाल ही में पैदा हुए बच्चे भी. कैसी है यूक्रेन की सरोगेसी इंडस्ट्री Ukraine Surrogacy यूक्रेन में एक बेसमेंट में सरोगेट मदर्स और बच्चों को रखने के लिए मेकशिफ्ट अस्पताल बनाया गया है. फोटो- रॉयटर्स

यूक्रेन सरोगेसी का एक बड़ा सेंटर है. अल ज़जीरा की 2018 की एक रिपोर्ट
बताती है कि यूक्रेन में हर साल सरोगेसी से 2000 से 2500 बच्चे पैदा होते हैं. सरोगेसी के लिए यूक्रेन के पॉपुलर डेस्टिनेशन बनने की बड़ी वजह कीमत है. यूक्रेन में सरोगेसी का औसत खर्च 22 लाख रुपये के करीब आता है, जो कि अमेरिका में सरोगेसी में होने वाले 60 से 75 लाख रुपये के खर्च से लगभग तीन गुना कम है.
द अटलांटिक की रिपोर्ट
के मुताबिक, यूक्रेन में अमेरिका, चीन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के कपल्स सरोगेसी से बच्चा पैदा करने के लिए जाते हैं. यूक्रेन के कानून के मुताबिक, वहां सरोगेसी से बच्चा पैदा करने के लिए कपल का स्ट्रेट होना और शादीशुदा होना ज़रूरी है. इसके साथ ही माता-पिता बनने के इच्छुक कपल्स को बच्चा पैदा न कर पाने के मेडिकल कारण बताने होते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, यूक्रेन में सरोगेसी को लेकर कानून पेचीदा नहीं है और यही उसे एक पॉपुलर डेस्टिनेशन बनाता है. वॉर ज़ोन में surrogacy Ukraine Surrogacy1 रूस ने यूक्रेन पर युद्ध छेड़ा हुआ है. युद्ध के बीच सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों को बेसमेंट में मेकशिफ्ट अस्पताल बनाकर रखा गया है. फोटो- रॉयटर्स

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट
के मुताबिक, राजधानी कीएव के एक बेसमेंट में सरोगेसी के जरिए पैदा हुए 19 बच्चे फंसे हुए हैं. युद्ध के बीच इन बच्चों के बायोलॉजिकल पेरेंट्स यूक्रेन जाने में असमर्थ हैं, उन बच्चों का कानूनी अभिभावक कौन होगा ये भी तय नहीं है, न ही उनकी नैशनलिटी तय है. क्योंकि यूक्रेन के कानून के मुताबिक, ये सब तय करने के लिए बच्चों के बायोलॉजिकल पेरेंट्स का फिजिकली प्रेजेंट होना ज़रूरी होता है.
कनाडा के एक शख्स ने न्यूयॉर्क टाइम्स से बात की. वो सरोगेसी के जरिए पिता बने हैं और उनका बेटा यूक्रेन में है. उन्होंने कहा,
"मुझे नहीं पता क्या करना है या कहां जाना है. बच्चा होने की खुशी अब डर में बदल गई है कि शायद अब हम उसे कभी गोद में ले नहीं पाएंगे और उसे हमेशा के लिए खो देंगे."
यूक्रेन में लगभग 14 एजेंसियां सरोगेसी सर्विस प्रोवाइड करती हैं. इनमें से BioTexCom सबसे बड़ा सरोगेसी प्रोवाइडर माना जाता है. BioTexCom ने युद्ध छिड़ने के बाद यूट्यूब पर एक वीडियो जारी किया, बताया कि उन्होंने सरोगेट्स को एक बंकर में रखा है. उस बंकर में सारी मेडिकल सुविधाएं हैं और वहां 200 सरोगेट्स को रखने की जगह है. ज्यादातर सरोगेट्स ने जान पर खतरे के बावजूद यूक्रेन छोड़ने से मना कर दिया है, अपने गर्भ में पल रहे बच्चों की ज़िम्मेदारी का हवाला देकर.
यूक्रेन के कई सरोगेसी सेंटर्स ने बेसमेंट में मेकशिफ्ट शेल्टर बनाए हैं. इन सेंटर्स में काम करने वाली नर्सेज़ भी शेल्टर में ही फंसी हुई हैं. क्योंकि बच्चों और सरोगेट मांओं को स्पेशल केयर की ज़रूरत है और इन नर्सों के लिए रोज़ अपने घर से आना-जाना खतरे से खाले नहीं है.
Ukrain inews के एस्टिमेट के मुताबिक, यूक्रेन में इस वक्त लगभग 800 सरोगेट्स प्रेग्नेंट हैं. फोटो- रॉयटर्स

ल्यूडमिलिया याशचेंको नाम की एक नर्स ने न्यूज़ एजेंसी असोसिएटेड प्रेस
से कहा,
“हम यहां अपनी और बच्चों की ज़िंदगी बचाने के लिए रुके हुए हैं. हम यहां बम और इस डरावने हालात से बचने के लिए छिपे हुए हैं. हम नहीं के बराबर सो रहे हैं, पूरे वक्त काम कर रहे हैं.”
उन्होंने बताया कि वो बेहद कम वक्त के लिए बाहर निकल पाती हैं.
बीबीसी की एक रिपोर्ट
के मुताबिक, यूके के लुटॉन में रहने वाला भारतीय मूल का एक कपल अपने जुड़वां बच्चों के साथ यूक्रेन से बाहर निकलने में सफल हुआ है. रिपोर्ट के मुताबिक, मनीषा और मितेश परमार 8 फरवरी को कीएव पहुंचे थे. वो अपने बच्चों को लेकर जाने के लिए पेपरवर्क पूरा होने का इंतज़ार कर रहे थे, इसी दौरान युद्ध शुरू हो गया.
इस कपल ने बच्चों के लिए IVF और बाकी तरीकों का इस्तेमाल किया था, लेकिन उन्हें किसी भी तरीके से सफलता नहीं मिली. ऐसे में उन्होंने यूक्रेन में सरोगेसी का ऑप्शन चुना था. शादी के 13 साल बाद सरोगेसी की मदद से वो जुड़वां बच्चों के पेरेंट्स बने हैं. इस कपल ने कहा,
'हमने बच्चों के लिए लंबा इंतज़ार किया था और जब हमारा सपना पूरा होने के करीब था तो हम एक डरावने सपने को जी रहे थे.'
इस कपल ने बताया कि आसपास हो रहे धमाकों से वो डरे हुए थे. वो बच्चों के साथ शेल्टर में छुपे हुए थे. उन्हें बड़ी मुश्किल से एक ड्राइवर मिला जिसने उन्हें पोलैंड बॉर्डर तक पहुंचाया और वो फाइनली अपने घर लौट सके.
ब्रिटिश न्यूज़ वेबसाइट आई न्यूज़ के एक एस्टिमेट के मुताबिक, इस वक्त यूक्रेन में करीब 800 सरोगेट्स प्रेग्नेंट हैं. इस हिसाब से देखें तो 800 सरोगेट्स, उनके गर्भ में पल रहे कम से कम 800 बच्चे और वो 1600 लोग के माता-पिता बनने का इंतज़ार कर रहे हैं. इसके अलावा वो बच्चे भी हैं जो जन्म तो ले चुके हैं लेकिन युद्ध की वजह से बम शेल्टर्स में रखे गए हैं, विदेशों में रहने वाले उनके माता-पिता उनकी सेफ्टी को लेकर चिंतित हैं. ये संख्या हज़ारों में है. इस वक्त हम केवल उम्मीद कर सकते हैं कि युद्ध थम जाए, इन बच्चों को उनका घर मिल जाए, सरोगेट्स अपने परिवारों से मिल पाएं.