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भारत की लड़की ने यूक्रेन छोड़ने से किया मना, कहा- युद्ध में इन्हें छोड़कर नहीं जा सकती

सैनिक की बेटी ने कहा, 'युद्ध में गए मकान मालिक के बच्चों की देखभाल करूंगी.'

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नेहा के पिता भारतीय सेना में थे और कुछ साल पहले उनकी मृत्यु हो गई थी.(तस्वीर - रायटर्स/ट्विटर)
रूस और यूक्रेन के बीच तनाव का आज चौथा दिन है. यूक्रेन से आने वाली तस्वीरों में भयंकर अफरा-तफरी दिख रही है. बाजारों से सामान लेकर भागते लोग, एटीएम के सामने लंबी लाइनें और सड़कों पर लंबा जाम. UN के मुताबिक़, रूस से युद्ध शुरू होने के बाद यूक्रेन से अबतक डेढ़ लाख से अधिक लोग अपना देश छोड़ पलायन कर चुके हैं. इस बीच हर देश यूक्रेन में फंसे अपने नागरिकों को बचाने की यथासंभव कोशिश कर रहा है. भारत भी कर रहा है. भारत सरकार यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को वापस लाने के लिए 'ऑपरेशन गंगा' नाम से अभियान चला रही है. अभी तक की मिली जानकारी के अनुसार, ऑपरेशन गंगा के तहत 800 से ज़्यादा छात्रों को वापस ले आया गया है. जब सब अपनी सुरक्षा के लिए भाग-भाग कर अपने देश जा रहे हैं, तब हरियाणा की एक 17 साल की लड़की एक यूक्रेनियन परिवार के लिए भारत आने से मना कर रही है. 'मैं ऐसे नहीं जा सकती' हरियाणा के चरखी दादरी ज़िले की रहने वाली नेहा सांगवान यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई के लिए गई थीं. युद्ध शुरू हुआ तो घरवालों ने एंबेसी से बात कर भारत वापस लाने का प्रबंध किया. लेकिन नेहा ने यूक्रेन छोड़ने से इनकार कर दिया. कहा कि जिस मकान में वह रहती है, उसका मालिक युद्ध लड़ने गया है. उसकी पत्नी और उसके तीन छोटे बच्चे हैं. घर पर अकेले हैं और इस मुश्किल वक़्त में वह उन्हें छोड़कर नहीं आएगी. आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार, नेहा के पिता भारतीय सेना में थे और कुछ साल पहले उनकी मृत्यु हो गई थी. पिछले साल ही उसे यूक्रेन (Kyiv) के एक मेडिकल कॉलेज में दाख़िला मिला था. हॉस्टल अकोमोडेशन नहीं मिला, तो नेहा कीव के एक कंस्ट्रक्शन इंजीनियर के घर में पेइंग गेस्ट के रुप में रहने लगीं. कोपनहेगन में रहने वाली एक भारतीय सविता जाखड़ ने, जिन्होंने अब फ्रांस की नागरिकता ले ली है, अपने फेसबुक पर पोस्ट कर बताया कि नेहा उनके क़रीबी मित्र की बेटी हैं. सविता ने अपनी पोस्ट में लिखा कि नेहा की मां ने किसी तरह एंबेसी से कॉन्टेक्ट कर रोमानिया तक के सुरक्षित पैसेज का इंतज़ाम किया था. नेहा की मां उससे भारत वापस आ जाने की लगातार विनती कर रही हैं, लेकिन नेहा ने कहा,
"मैं रहूं या ना रहूं, लेकिन जब तक युद्ध ख़त्म नहीं होता, मैं इन बच्चों और उनकी मां को ऐसी स्थिति में छोड़कर नहीं आऊंगी."
सविता ने आगे लिखा,
"मैं सोच रही हूं वो क्या है जो उस बच्ची को ऐसे मुश्किल वक्त में भी उस परिवार के साथ खड़े होने का हौंसला दे रहा है?"
आपदा के समय अक्सर ऐसा होता है कि हम 'कम अपना' और 'ज़्यादा अपना' का हिसाब लगाने लगते हैं. पूरी दुनिया हमारा परिवार एक है जैसी बातें युटोपिया लगने लगती हैं. इंसानों की सामान्य सर्वाइवल इंस्टिंक्ट है. लेकिन आपदा में भी हरियाणा की इस लड़की ने 'यूनिवर्सल सिस्टरहुड' की जो मिसाल क़ायम की है, उसे याद रखा जाना चाहिए.