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फिल्म स्टार्स कुत्ता-घुमाना लुक, जिम लुक, एयरपोर्ट लुक में अपनी फोटो खिंचवाने के लिए पैसे देते हैं?

कहां से शुरू हुआ फिल्म स्टार्स की घड़ी-घड़ी फोटो खींचने का चलन?

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ताप्सी पन्नू ने पिछले साल एक इंटरव्यू में कहा था कि पापराज़्ज़ी फिक्स होते हैं
रुबीना दिलैक. टीवी एक्ट्रेस हैं. रुबीना ने हाल में एक सोशल मीडिया पोस्ट किया. अपनी एक तस्वीर के साथ कैप्शन लिखा. कैप्शन में अपने वेट-गेन के बारे में बात की. और इसे लेकर अपने फैंस की प्रतिक्रिया पर भी बात की. जो लोग उनके वेट-गेन को लेकर उन्हें ट्रोल कर रहे हैं, उन्हें 'फेक प्रशंसक' तक बता दिया. एक्ट्रेसेज़ की बॉडी शेमिंग एक पुराना मसला है, जिसे हम समय-समय पर कवर करते रहते हैं. लेकिन इसके कैप्शन में एक और दिलचस्प बात निकल कर सामने आई. रुबीना ने लिखा कि वह पीआर नहीं रखतीं और पैपरात्ज़ी को पैसे नहीं देतीं, इस वजह से सोशल मीडिया पर लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं.
रुबीना के इस बयान ने पैपरात्ज़ीडिबेट को फिर से ताज़ा कर दिया है.

क्या है यह पैपरात्ज़ी डिबेट?

पैपरात्ज़ी या पैप्स. पत्रकारिता का एक तथाकथित प्रकार. दरअसल, यह कल्चर अपने पसंदीदा कलाकारों के निजी जीवन के बारे में जानने की तर्ज़ पर शुरू हुआ था. तब सोशल मीडिया नहीं था. तो चीज़ें इतनी तेज़ी से नहीं फैलती थीं. और एक सीमित ऑडियंस तक ही पहुंचती थीं, जो प्रिंट मीडिया की ऑडियंस थी.
सोशल मीडिया के आने के बाद इस कल्चर में एक बड़ा विस्फोट हुआ. बहुत बड़ा. किसने अपने बच्चे का क्या नाम रखा, कौन कितने बजे कहां की फ़्लाइट ले रहा है, कौन अपने कुत्ते को घुमाने किस पार्क में जा रहा है, कौन कब खाना खा रहा है, यह सब कुछ प्रशंसकों के लिए फर्स्ट-हैंड उपलब्ध हो गया है. अब इससे कलाकारों और सेलिब्रिटीज़ की निजी जिंदगी पर असर पड़ने लगा.
अनुष्का शर्मा की इंस्टाग्राम स्टोरी
अनुष्का शर्मा की इंस्टाग्राम स्टोरी

तो मूल डिबेट 'निजता' और 'पॉपुलैरिटी' के बीच है. भारत के कई फिल्म अदाकारों ने इस बात पर आपत्ति जताई है कि पैपरात्ज़ी उनका कहीं पीछा नहीं छोड़ते. इसी साल जनवरी में अनुष्का शर्मा ने अपनी निजी जिंदगी में दख़ल पर आपत्ति जताई थी. वह और उनके पति विराट कोहली लंच करने किसी रेस्टोरेंट में गए हुए थे और एक फोटोग्राफर ने जूम करके उनकी फोटो खींच ली. फोटो वायरल होने लगी, जिसके बाद अनुष्का ने अपने इंस्टाग्राम के माध्यम से कहा था,
"यह एक टॉक्सिक कल्चर है और इसे तुरंत बंद कर देना चाहिए."
फिल्म अभिनेत्री काजोल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्होंने तो पब्लिक लाइफ का चयन किया है. लेकिन उनके बच्चे शायद इसके लिए तैयार ना हों. पैपरात्ज़ी को इसका कोई फर्क नहीं पड़ता. वह उनकी रोज़मर्रा की गतिविधियों को बिना उनकी अनुमति के पब्लिक कर देते हैं.

दूसरा पक्ष क्या कहता है?

फ़िल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने इस कल्चर को डिफेंड किया था. उन्होंने कहा था कि पब्लिक लाइफ़ हमारा चयन है और हमें इससे परहेज़ नहीं करना चाहिए.
हाल ही में अमेज़ॉन प्राइम पर करन जौहर का एक स्टैंडअप कॉमेडी सेट आया. अपने सेट में उन्होंने कहा कि हम पैप्स को टिप करते हैं. मतलब हमारी निजी ज़िंदगियों को कवर करने के लिए और ख़बरों में बने रहने के लिए हम पत्रकारों को अपने आने-जाने की सूचना पहले ही दे देते हैं. अब यह तो एक स्टैंडअप सेट है. तो इसकी इस बात को मज़ाक में लिया जाए या गंभीरता से, कह नहीं सकते.
गंभीरता से ले सकते हैं तापसी पन्नू को. जिन्होंने पिछले साल एक इंटरव्यू में कहा था कि पैपरात्ज़ी फिक्स होते हैं. कौन कब कितने बजे आ रहा है, इसकी सूचना पहले ही दे दी जाती है. ताकि 'एयरपोर्ट लुक' सबके बीच आ जाए.
अपनी बेटी की तस्वीर वायरल होने पर काजोल ने कहा था, "हमने, सेलिब्रिटीज़ के रूप में, इस पेशे के लिए साइन-अप किया है. हमारे बच्चों ने नहीं."
अपनी बेटी की तस्वीर वायरल होने पर काजोल ने कहा था, "हमने, सेलिब्रिटीज़ के रूप में, इस पेशे के लिए साइन-अप किया है. हमारे बच्चों ने नहीं."

क्या फिल्म अदाकार पैपरात्ज़ी को पैसे भी देते हैं?

इस मसले पर ठीक-ठीक जानकारी के लिए हमने बात की सीनियर फिल्म पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज से. अजय कहते हैं,
"पैपरात्ज़ी फिक्स होते हैं. यह कोई राज़ की बात नहीं है. रात में 3 बजे कौन सा स्टार, कहां जा रहा है, यह ख़बर कैसे किसी को मिल सकती है? ख़बर दी जाती है. ख़ुद स्टार्स के द्वारा. लेकिन इसके लिए स्टार या पैपरात्ज़ीको जज करने का कोई मतलब नहीं है.
दरअसल, यह कल्चर वेस्ट से आया, लेकिन वेस्ट का रेवेन्यू-मॉडल यहां से बहुत बेहतर था. पैपरात्ज़ीको बाक़ायदा तनख़ाह मिलती थी. बड़े बड़े अख़बार और पत्रिकाएं पैपरात्ज़ी रखती थीं, जो फ़िल्म अदाकारों और सेलिब्रिटीज़ की 'ऑफ़-द-स्क्रीन ज़िंदगी' प्रशंसकों के सामने ला सकें.
भारत में ऐसा कोई पब्लिशर नहीं है जो पैपरात्ज़ी को पैसे देता है. इस वजह सेलिब्रिटीज़ और पैपरात्ज़ीके बीच एक म्यूच्यूअल सौदा हुआ है. पैपरात्ज़ी उनकी तस्वीरें लेते हैं और इस वजह से वह ख़बरों में बने रहते हैं. यह एक ट्रांज़ैक्शन है, जिसमें दोनों का फ़ायदा है."

कब और कहां से शुरू हुआ पैपरात्ज़ी कल्चर?

फेडेरिको फेलिनी नाम के एक इटैलियन फिल्म निर्माता ने 1960 में एक फ़िल्म बनाई, जिसका नाम था 'ला डोलचे विटा' जिसका मतलब होता है 'प्यारी ज़िंदगी'. फ़िल्म उस समय रोम की हाई सोसाइटी के बारे में थी. फेलिनी ने फ़िल्म में एक समाचार फोटोग्राफर का किरदार तैयार किया और उसे 'पैपरात्ज़ो' कहा. अब उन्होंने यह नाम क्यों दिया, इसकी कई थियरीज़ हैं. टाइम मैगजीन के मुताबिक़, फेलिनी ने उन्हें बताया था कि यह शब्द उन्हें 'एक भिनभिनाते हुए कीड़े' की याद दिलाता है.
दूसरी थियरी यह कहती है कि यह शब्द इटली के कैटानज़ारो में एक होटल चलाने वाले व्यक्ति के नाम से आया है, जिसका नाम कोरियालानो पैपरात्ज़ो था. यह नाम अंग्रेजी लेखक जॉर्ज गिसिंग ने अपने यात्रा वृतांत में दर्ज किया था. और वहीं से फ़िल्म के पटकथा लेखक ने पढ़ा था.
भारत में पैपरात्ज़ी ऐक्ट्रेसेज़ के 'ऊप्स मोमेंट्स' को कैप्चर करने में ख़ासी महनत करते हैं
भारत में पैपरात्ज़ी ऐक्ट्रेसेज़ के 'ऊप्स मोमेंट्स' को कैप्चर करने में ख़ासी महनत करते हैं

हालांकि इसका ताज़ा रूप क्या है, आप देख ही सकते हैं. कभी एक्ट्रेस की लो एंगल तस्वीर ली जाती है जिसमें उनका अंडरवियर ढूंढा जाता है. तो कभी किसी सेलेब की नाबालिग बेटी को कुरूप पुकारा जाता है. आपकी इसपर क्या है? नीचे कमेंट बॉक्स में दर्ज करें.