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किसी लड़के से कभी न कहें ये 5 बातें

पुरुषों के स्ट्रगल्स का क्या हैं ?

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लड़कों को कभी न कहें ये बातें (प्रतिक्रियात्मक छवि )
आए दिन हमारे पास ऐसे कमेंट्स आते हैं कि लड़कों की प्रॉब्लम्स पर भी बात कर लिया करो. पुरुष तो आपको इंसान ही नहीं लगते न? पुरुषों के स्ट्रगल्स का क्या?  कुछ दिनों पहले हमने बताया था कि कौन सी वो बातें हैं जिन्हें जो एक लड़की के मां - बाप को या किसी को भी उन्हें नहीं कहनी चाहिए. अब हम बताएंगे वो बातें जो किसी को भी लड़कों से नहीं कहनी चाहिए. इसके लिए हमने टीम के कुछ पुरुष साथियों से बात की. उन्होंने हमें बताया कि बचपन में बहुत सारी ऐसी बातें लड़कों से भी की जाती हैं जो उनके लिए परेशानी का कारण बन जाती हैं. वो कौन-कौन सी बातें हैं? चलिए जानते हैं.  लड़कियों जैसे रोना बंद करो! Cry Boy लड़के तो बहादुर होते हैं, लड़के रोते नहीं हैं. रोते हुए लड़के को चुप कराने के लिए अक्सर इसी तरह की बातें कही जाती हैं. बच्चों-बच्चों की लड़ाई में भी अगर बच्चा पिट जाए और रोने लगे तो उससे कहते हैं- लड़के होकर मार खा आए, हाथ में मेंदही लगी थी क्या. बार-बार कही गई इस तरह की बात लड़के के दिमाग में मैस्कुलिनिटी का एक ऐसा ढांचा बनता है जो उसे रोने से रोकता है. अगर वो रोता है तो उसे लगता है कि उसमें कुछ कमी है. इस तरह की बातें कहते हुए आप लड़के के दिमाग में एक जेंडर डिवाइड बना रहे होते हैं. वो मानने लगता है कि लड़कियां कमज़ोर होती हैं, इसलिए वो रो देती हैं. मर्द सख्त होते हैं, बहादुर होते हैं इसलिए वो रोते नहीं बल्कि लड़ते हैं, अपनी ताकत दिखाते हैं. रोने को वो कमज़ोरी की निशानी मानने लगते हैं. ये नहीं समझ पाते हैं कि रोना मन हल्का करने का कितना बेहतरीन तरीका है. रोना कोई कमज़ोरी नहीं है बल्कि हंसने जितना ही नैचुरल और नॉर्मल ह्यूमन टेंडेंसी है. इन फैक्ट, कई स्टडीज़ ये बता चुकी हैं कि रोना पुरुषों के लिए भी उतना ही ज़रूरी है जितना महिलाओं के लिए. खाना बनाना तुम्हारा काम नहीं है Men Cookkk लड़कों के दिमाग में शुरुआत से ही डाला जाता है कि खाना बनाना उनका काम नहीं है. कि खाना उनकी मां बनाएंगी, या बहन बनाएंगी या शादी के बाद पत्नी बनाएंगी. अगर कोई बच्चा रसोई का काम सीखने में इंटरेस्ट दिखाता भी है तो तुमसे नहीं होगा या क्या करोगे सीखकर या ये तुम्हारा काम नहीं जैसी बातें कहकर उसे टाल दिया जाता है. जबकि घरों में लड़कियों को खाना बनाने की खास ट्रेनिंग दी जाती है. लड़कों के दिमाग में ये नैरेटिव यहीं से सेट होने लगता है कि रसोई-घर संभालने का काम लड़कियों का है. दूसरी चीज़ ये कि जब लड़का पढ़ाई के लिए या नौकरी के लिए घर से बाहर निकलता है तो उसकी डिपेंडेंसी पूरी तरह बाहर के खाने पर होती है, नतीजा लाइफस्टाइल बीमारियों के रूप में सामने आता है  या फिर वो मैगी या खिचड़ी बनाने तक सीमित होकर रह जाता है. और इसी से सामने आती एक और तरह की बात- कब तक बाहर का खाएगा, शादी कर ले. जो लड़कों के दिमाग में इस बात को और ज्यादा एन्फोर्स करती हैं कि पत्नी जो कुछ भी करे, खाना बनाना भी उसका ही काम है.   लड़कियों की तरह घर में क्यों घुसे रहते हो? B8   बच्चों के बेहतर विकास और उनकी फिटनेस के लिए आउटडोर गेम्स ज़रूरी हैं. लेकिन कई लड़के ऐसे होते हैं जो इनडोर गेम्स पसंद करते हैं, बाहर खेलने की बजाए घर में रहना, किताबें पढ़ना प्रिफर करते हैं. ऐसे लड़कों को खेलने के लिए बाहर भेजने के लिए अक्सर इस तरह की बातें की जाती हैं. ये एक तो उनके दिमाग में ये छवि बनाता है कि विमेन बिलॉन्ग टू इंडोर्स और दूसरा ये कि लड़कों को आउटगोइंग होना चाहिए. कई बार पियर प्रेशर में इच्छा न होने के बावजूद वो बाहर निकलते हैं. इसमें एक तरह से वो खुद को टॉर्चर कर रहे होते हैं.,बच्चे को आउटडोर गेम्स के लिए मोटिवेट करने के लिए किसी और तरीके का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.   लड़के होकर ये नहीं आता? Boys Cycling बचपन में साइकिल चलाने की बात हो या बाद में बाइक चलाने की या फिर किसी चीज़ की मरम्मत की बात. लड़कों को बल्ब बदलना तो आना ही चाहिए टाइप की बातें. लेकिन, बल्ब बदलना और इस तरह के छोटे-मोटे काम जेंडर स्पेसिफिक नहीं हैं. साइकिल या बाइक चलाना भी जेंडर स्पेसिफिक नहीं है. इसलिए ये काम नहीं आने पर किसी पुरुष को जज करने या कमेंट करने की बजाए आपको ये समझना चाहिए कि कोई काम आना या न आना उनकी अपब्रिंगिंग का हिस्सा होता है. हो सकता है कि इन चीज़ों की कभी उन्हें ज़रूरत ही न पड़ी हो. कोई स्किल न आने पर कोई कम या ज्यादा मर्द नहीं हो जाता. कोई काम सिखाने के पीछे आपका intention कितना ही अच्छा क्यों ना हो, जबतक आप सही शब्दों में उसे नहीं सिखाते, उसका कोई मतलब नहीं रह जाता. बड़े होकर तुम्हे ही खानदान की जिम्मेदारी उठानी है Mann Jobb लड़कों पर जिम्मेदारी का गैरज़रूरी बोझ काफी कम उम्र में ही डाल दिया जाता है. ये जिम्मेदारियां कैसी? ये बहन की सेफ्टी से शुरू होकर घर की फाइनेंशियल जिम्मेदारी तक जाता है. मेरा कलीग आयुष कहता है कि इंडियन मिडिल क्लास घर के लड़कों को स्टॉक एक्सचेंज  की तरह देखता है.  उनपर ये सोचकर इन्वेस्ट किया जाता है कि वो आगे जाकर रिटर्न देंगे.  उनकी हर चॉइस को इसी आधार पर question किया जाता है. बचपन में सब्जेक्ट इंटरेस्ट की बात हो या आगे जाकर करियर के डिसिजन की.  हमेशा कहा जाएगा, ज़िम्मेदार बनो.  हमने बचपन से सब किया ताकि तुम सहारा बनो. बहन की शादी होनी है, ज़िम्मेदार बनो. जल्दी पढ़ाई पूरी करो. जल्दी नौकरी करो.   एक तो हमारा सोशल स्ट्रक्चर ऐसा है कि सारी जमा पूंजी या तो बेटी की शादी में जाएगी या बेटे की पढ़ाई में. और रिटर्न के नाम पर बेटी पर प्रेशर होता है 'शादी के लायक' बनने, घर के काम सीखने का और लड़कों पर प्रेशर होता है पढ़ाई पूरी करते ही नौकरी करने और घर की जिम्मेदारी उठाने का. लेकिन ज़िम्मेदारी के नाम पर आप जो प्रेशर क्रिएट करते हैं उसका असर बहुत बुरा होता है. इस वजह से ना वो उस काम को एन्जॉय कर पते हैं जो वो कर रहे हैं और ना ही खुलकर अपने इंटरेस्ट के हिसाब से कुछ चूज़ कर पाते हैं. बार-बार ज़िम्मेदारी के नाम पर आप बच्चों के इंटरेस्ट को नज़रंदाज़ मत करिए. उसे ज़रूर बताइए कि उसे पढ़ाने के लिए आपने  कितने सैक्रिफ़ाइस , एफर्ट और अपनी लिमिट को पुश कर रहे हैं लेकिन उस पर अननेसेसरी प्रेशर मत क्रिएट करिए.य क्या राय है आपकी मुझे कमेन्ट में बताइयेगा.