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कॉन्डम बेचने वाली कंपनी का ये ऐड देखकर आप सिहर जाएंगे

डरावना है, लेकिन जरूरी है.

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प्रोटेक्ट चाइल्डहुड कैंपेन के तहत बनाए गए इस ऐड को देखकर आप अनकम्फर्टेबल हो जाएंगे, और ये जरूरी है. (तस्वीर; ऐड का यूट्यूब से एक स्क्रीनशॉट)
एक छोटी-सी लड़की. लैपटॉप के सामने बैठी है. घरवाले उसे प्यार से देखते हैं. बच्ची आजकल ऑनलाइन क्लासेज कर रही है. लेकिन कैमरा लैपटॉप पर ज़ूम करता है. और वहां एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति बनियान में बैठा है. आठ साल की इस लड़की से कह रहा है, किस देकर बताओ. मेरे लिए. और वो भोली बच्ची स्क्रीन की तरफ एक किस उछाल देती है.
झकझोरने वाला सीन है न?
कहने को एक विज्ञापन का हिस्सा है. लेकिन सच्चाई इससे भी ज्यादा डरावनी है. आप ऐड देख लें पहले:

अब आते हैं इस ऐड के पीछे की कहानी पर
मैनकाइंड फार्मा. फार्मास्यूटिकल कंपनी है. इसी का एक ब्रैंड है मैनफ़ोर्स कॉन्डम. इन्होंने ही ये ऐड निकाला है. #protectchildhood यानी बचपन को सुरक्षित रखो, नाम की पहल के साथ. इसी ऐड में जानकारी आती है,
इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड के मुताबिक़, जब से कोविड महामारी की वजह से लॉकडाउन हुआ है, चाइल्ड पॉर्नोग्राफी से जुड़े मटीरियल की डिमांड बेइंतहा बढ़ गई है.
ये ऐड क्यों?
इसके पीछे की वजह कंपनी के CEO राजीव जुनेजा ने मीडिया को बताई. कहा,
हम पैरेंट्स को बताना चाहते हैं कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी का कॉन्टेंट तेजी से बढ़ा है. हम बचपन को बचाने के लिए एक स्ट्रांग मैसेज देना चाहते हैं. इस कैम्पेन के जरिए हमारी पैरेंट्स से दरख्वास्त है कि अपने बच्चों को बिना देखभाल के ना छोड़ें. उनकी ऑनलाइन गतिविधियों पर पूरा कंट्रोल रखें. अपने बच्चों से लगातार बातचीत करें. उनसे दोस्ताना संबंध बनाएं, और मौजूदा हालात से उन्हें वाकिफ कराते रहें.
क्या खतरे हैं बच्चों के लिए?
लॉकडाउन के दौरान स्कूलों ने ऑनलाइन क्लासेज़ शुरू की हैं. कम उम्र के बच्चे भी अब ऑनलाइन पढ़ाई करने लगे हैं. इससे इंटरनेट की दुनिया में उनका एक्सपोजर बढ़ा है. जहां पढ़ने-लिखने के लिए और जानकारी हासिल करने के लिए इंटरनेट एक बेहतरीन जरिया है, वहीं इसके अंधियारे कोनों में ऐसे लोग भी हैं, जो बच्चों को टार्गेट करने की ताक में रहते हैं. इनको पीडोफाइल्स (Pedophiles) कहा जाता है. ये ऐसे लोग होते हैं, जो बच्चों की तरफ सेक्शुअली आकर्षित होते हैं. बच्चों से बातें करना, दोस्ती गांठना, अपने भरोसे में लेना. फिर उनका फायदा उठाना.
ये सभी चीज़ें इंटरनेट पर पहले से होती आ रही हैं. इसी वजह से पैरेंट्स को सलाह दी जाती है कि अपने कम उम्र के बच्चों के स्कूल इत्यादि के बारे में या उनकी निजी जानकारी सोशल मीडिया पर शेयर न करें. लेकिन अभी तो कम उम्र के बच्चे खुद ही इंटरनेट पर मौजूद हैं, इसलिए ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है.
Manfor 1 ऐड में दिख रही बच्ची अपनी उम्र से बड़ी हरकतें कर रही है, लेकिन किसी का ध्यान नहीं जाता. (तस्वीर: यूट्यूब स्क्रीनशॉट)


ग्रूमिंग
ज़रूरी नहीं कि कोई व्यक्ति किसी बच्चे या बच्ची का यौन शोषण ही करे, या फिर सीधे तौर पर हिंसा करे. कई बार पीडोफाइल्स बच्चों को अपने भरोसे में लेने के लिए शुरू में उनके साथ दोस्ताना व्यवहार करते हैं. उनका ख्याल रखने की बातें करते हैं. खुद को उनके प्रोटेक्टिव ‘फादर फिगर’ की तरह भी पेश करते हैं.
इसे ऐसे समझिए.
मान लीजिए, किसी व्यक्ति की 12-13 साल की बेटी है. उसकी सहेली उससे मिलने घर आती है. अब वो व्यक्ति उससे मीठी-मीठी बातें करके उसे अपने करीब लाने की कोशिश करे. उसे ये महसूस कराये कि वो कभी भी उसके पास आ सकती है. उससे खुलकर बातें कर सकती है. उस पर भरोसा कर सकती है. अकेले भी बैठ सकती है. ये भी हो सकता है कि वो व्यक्ति बच्ची के परिवार वालों से भी दोस्ती कर ले. उनके साथ उठना-बैठना शुरू कर दे, ताकि उस पर किसी को शक न हो.
धीरे-धीरे वो व्यक्ति उस बच्ची से सेक्शुअल नेचर की बातें भी करना शुरू कर सकता है. हो सकता है बदले में गिफ्ट्स दे. पैसे दे. घुमाने ले जाए. अब भी कानूनी भाषा में देखें तो यौन शोषण नहीं हुआ है. लेकिन वो बच्ची अनजाने में ही इसके लिए तैयार की जा रही है. इसे ग्रूमिंग कहा जाता है. जब वो लड़की थोड़ी बड़ी होगी, तो उसे इस व्यक्ति के साथ समय बिताने या उस पर भरोसा करने में परेशानी नहीं होगी. और तब यौन शोषण करना उस व्यक्ति के लिए ज्यादा आसान होगा. कई बार तो बच्चे कई सालों तक ये समझ भी नहीं पाते कि उन्हें ग्रूम किया जा रहा है.
इसलिए इंटरनेट पर बच्चे क्या देख रहे हैं, और किससे बात कर रहे हैं, इस पर नजर रखना ज़रूरी है. अंग्रेजी में कहावत है, a stitch in time saves nine (अ स्टिच इन टाइम सेव्स नाइन). यानी समय रहते कदम उठा लें तो बाद में दिक्कत नहीं होगी.