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प्रियंका जिन महिलाओं का हौसला बुलंद करती रहीं, उन्होंने अपना वोट बीजेपी को क्यों दिया?

क्या वजह है कि महिलाओं की वफ़ादारी मोदी-योगी से है?

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बाराबंकी के रामस्नेही घाट के पास एक मैदान में अभी-अभी आधा दर्जन हेलिकॉप्टर उतरे हैं. मैदान और मैदान के बाहर जमा हुई भीड़ धूल के उठते गुबार में आंखें मिचमिचाते हुए हेलिकॉप्टर्स की तरफ हाथ हिला रही है. भीड़ इतनी है कि दूर दराज के गांवों से आए लोग हेलिकॉप्टर्स से उतरे प्रधानमंत्री मोदी को ठीक से देख भी नहीं पा रहे. योगी- मोदी की जयकार से पूरा माहौल गूंज रहा है. मैदान तक जाने वाले रास्ते के किनारे चाय की एक पक्की दुकान है, जिसकी छत पर कुछ औरतें जमा हैं. इन्हीं में से एक सरोज कुमारी हैं जो पास के गांव से अपनी सहेलियों के साथ बीजेपी की चुनावी रैली में चली आईं.
Saroj Kumari Pm Modi
सरोज आश्वस्त हैं कि उनका वोट किस पार्टी को जाएगा

सरोज आश्वस्त हैं कि उनका वोट किस पार्टी को जाएगा. उनके पास इसके कारण भी हैं, वो कहती हैं,
"मोदी जी और योगी जी ने हमाए
सबके लिए बहुत काम किया है. लॉकडाउन में हम लोग भूखे नहीं मरे, खाने के लिए फ्री में राशन दिया. खाते में 1000 रुपए आ रहा है, किसानों को भी सम्मान मिल रहा है. हमाए
लिए मोदी और योगी जी अच्छे हैं, हम उन्हीं को वोट देंगे."
बात मोदी-योगी तक ही सीमित नहीं, बल्कि वो स्थानीय बीजेपी विधायक से भी संतुष्ट हैं. भले ही काम पूछने पर वो थोड़ा अटकती हैं लेकिन फिर संभलकर कहती हैं,
‘’रोड वगैरह बनवा रहे हैं, पिछले पांच साल में तो नहीं बनवाए, पर अब काम शुरू किया है. लेकिन हमें विधायक से मतलब नहीं है, हमारा वोट तो मोदी- योगी को ही जाएगा.’’
यूपी का नतीजा आने के बाद अब पता चल रहा है कि सरोज कुमारी सिर्फ अपने मन की बात नहीं कर रही थीं बल्कि यूपी की लाभार्थी महिलाओं का मूड ज़ाहिर कर रही थीं. थोड़ी देर बाद मंच से पीएम मोदी ने 15 करोड़ लोगों को फ्री राशन और कोरोना के 28 करोड़ मुफ्त टीकों की बात कह भी दी.
Women In Bjp Rally
योगी आदित्यनाथ की चुनावी रैली में पहुंची महिलाऐं

एक रोज़ पहले बाराबंकी में ही सीएम योगी आदित्यनाथ की चुनावी रैली में पहुंचे महिलाओं के एक हुजूम ने भी वही बातें कहीं जो रामस्नेही घाट में सुनने को मिली थीं. वो पूरे विश्वास से रैली कवर करने आए पत्रकारों को जवाब दे रही थीं. स्थानीय विधायक की शिकायत भले करें मगर अपना वाक्य मोदी-योगी को वोट देने की बात से ही खत्म करती थीं.
ठेकुआ गांव से रैली में शामिल होने पहुंचीं कलावती देवी ने उम्मीद भरी आवाज़ में कहा,
"हम योगी जी को देखने आए हैं. विधायक ने तो हमारे लिए कुछ नहीं किया, 5 साल में हमने उन्हें देखा तक नहीं. अभी वोट मांगने आए थे, खाली वोट मांगने ही आते हैं. पर हम वोट योगी जी को ही देंगे. हमें उनसे सब कुछ मिला, खाली घर नहीं बना. वो दोबारा आएंगे तो बाकियों की तरह हमारा भी घर बनेगा."
Women Voter Of Up
"मोदी- योगी की वजह से महिलाओं को आज़ादी मिली है."
पीछे खड़ी महिला ने आगे जोड़ा,
"मोदी- योगी की वजह से हमको आज़ादी मिली है. हम स्वयं सहायता समूह के सदस्य हैं. पहले हम खाली बैठे रहते थे घर पर, कोई काम नहीं मिलता था. अब हमारे पास काम है और चार पैसे की आमदनी होती है."
केंद्र की कई योजनाओं ने उत्तरप्रदेश में ग्रामीण अंचल तक अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है, ऐसा इन इलाकों में घूमे और यहां की महिलाओं से बार करते हुए पता पड़ता है. सरकारी आंकड़ों की मानें तो:
- पीएम किसान योजना से 2 करोड़ 40 लाख किसानों को फायदा पहुंचा
- नरेगा (NREGA) से 80 लाख परिवारों को आय हुई.
- आयुष्मान भारत जैसी महत्वाकांक्षी योजना से यूपी के 1 करोड़ 30 लाख लोग जुड़े
- उज्जवला योजना के तहत डेढ़ करोड़ सिलेंडर बांटे गए.
ये अलग बात है कि गरीबी में गले तक डूबे परिवार दोबारा उन सिलेंडरों को भरवा नहीं सके लेकिन उन्हें उम्मीद रही कि जिस सरकार ने उन तक पहली बार सिलेंडर पहुंचवाए वो लौटने पर उन्हें कभी भरवा भी देगी.
Ujjwala yojna benificiary
"फ्री सिलेंडर देने वाली सरकार दोबरा आई तो फ्री में भरवा कर भी देगी"

झांसी से सटे एक दलित बहुल गांव में ऑडनारी की टीम को कई परिवार ऐसे मिले जिन्हें सिलेंडर का लाभ मिला और वो इसी वजह से इस बार बीजेपी को वोट देने का मन बना रहे थे. कोई संदेह नहीं कि इनमें महिलाओं की संख्या अधिक रही क्योंकि सिलेंडर के अभाव में चूल्हे से उठता धुआं उनका ही दम घोंट रहा था.
क्या नया रहा?
ऐसा नहीं कि महिला वोटर्स की ताकत कोई छिपा फैक्टर है. हर दल अपने पुराने अनुभवों के आधार पर इसे महसूस भी कर रहा था और योजनाएं बनाकर मैदान में उतरा भी था. पिछले तीन विधानसभा चुनावों के आंकड़े ये बताने के लिए काफी हैं कि लखनऊ की गद्दी उसे मिली जिसने महिला वोटर्स को रिझा लिया.
  • सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी (सीएसडीएस) के आंकड़ों के मुताबिक 2007 में बीएसपी को महिलाओं के 32% , सपा को 26 %, बीजेपी को 16 % और कांग्रेस को 8 % वोट मिले थे. उस साल सरकार मायावती ने बनाई.
  • इसके बाद 2012 में महिलाओं ने सपा को 31%, बीएसपी को 25 %, बीजेपी को 14% और कांग्रेस को 12 % वोट दिए. इस बार अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने.
  • यही ट्रेंड 2017 में जारी रहा. बीजेपी ने 41% महिला वोट हासिल किए जबकि बीएसपी को 23 %, सपा को 20 % और कांग्रेस को 5 % पर संतोष करना पड़ा. बीजेपी ने आराम से सरकार बनाई.
इस बार ये फैक्टर और महत्वपूर्ण तब हो गया जब वोटर लिस्ट में 52 लाख नए वोटर्स जुड़े. इनमें 23.9 लाख पुरुष थे लेकिन महिला उनसे अधिक 28.8 लाख रहीं.
New Voters Of Up
वोटर लिस्ट में 52 लाख नए वोटर्स जुड़े, जिसमें 28.8 लाख महिला वोटर्स हैं

चुनाव आंकड़ों का खेल है और जब आंकड़े कह रहे हों कि यूपी में महिला वोटर निर्णायक हैं तो कोई पार्टी इसे नज़रअंदाज़ कैसे करती.
- मसलन, कांग्रेस ने राहुल गांधी की जगह प्रियंका गांधी को मुख्य चेहरा बनाकर यूपी में उतारा, जिन्होंने न सिर्फ ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा’ दिया बल्कि महिलाओं के लिए अलग घोषणापत्र निकालकर उसमें खूब लुभावने वादे किए.
- समाजवादी पार्टी की रथयात्रा में अखिलेश यादव महिला सुरक्षा पर जोर देते रहे और घोषणापत्रों में स्कूटी देने का वादा करते नज़र आए.
- बीजेपी अपनी रैली में महिलाओं से कहती रही कि उसके शासन में महिलाओं के लिए सड़कें अधिक सुरक्षित हुई हैं.
- अनेक अहम योजनाओं के अलावा पार्टी ने इस तबके की घेराबंदी के लिए कोशिशें काफी पहले से शुरू कर दी थीं. प्रयागराज में मातृ शक्ति महाकुंभ का आयोजन इसी सिलसिले की कड़ी था जिसमें यूपी भर से ढाई लाख महिलाएं पहुंचीं.
- चुनाव के दौर में ही केंद्र सरकार ने लड़की की शादी लायक उम्र 18 से 21 साल करने का प्रस्ताव मंज़ूर किया तो ये समझना मुश्किल नहीं था कि इस फैसले को महिलाओं का समर्थन आसानी से मिलेगा.
'महिला लाभार्थी'
चुनाव के दौरान ऑडनारी की टीम को बाराबंकी के तांडपुर गांव में खेत की मेड़ पर सुस्ता रही मज़दूर महिलाओं से मिलने का मौका मिला था. जब उनसे टीम ने समझना चाहा कि वो कैसे तय करती हैं कि किसे वोट देना है, कौन नेता उन्हें अच्छा लगता है, तो जवाब में एक महिला ने कहा था,
Tandpur Village Women
"अब गरीब बेचारा खात-पियत तो है. पाहिले मजूरी करि करि के खात रहें, ये सरकार में सुख से खान पियन को तो मिलथ हय."
"हमाए लिए मोदी योगी अच्छे हैं. गरीब लोगन को राशन देते हैं, कॉलोनी देते हैं. अब गरीब बेचारा खात-पियत तो है. पाहिले मजूरी करि करि के खात रहें, ये सरकार में सुख से खान पियन को तो मिलथ हय."
इस जवाब के बाद जब उनसे पूछा गया कि फ्री राशन तो बस कोरोना के कारण मिला है. आगे जाकर जब स्थिति ठीक होगी तो फ्री राशन वाली स्कीम खत्म हो जाएगी तब तो उन्हें राशन ख़रीदना पड़ेगा, तब क्या? इसका जवाब देते हुए एक अम्मा ने कहा था,
"इनके राज में कम से कम छोट बड़े एक समान है. ये सबको बराबर के नज़र में तो देख रहा है. हमाए लाने भी तो सोच रहा है. पहिले की सरकार ने गरीब, गरीब रहा अउर अमीर, ज़्यादे अमीर हो जाता था. रही बात विधायक की, तो हमाए यहां से साकेन्द्र वर्मा है, हमाए सब की नज़र में तो बहुत ख़राब चल रहे हैं वो. कमल की वजह से हैं, इसलिए दे रहे हैं हम बीजेपी को वोट. नहीं तो इनको वोट तो ना दिहिं. योगी हमको चावल, गेहूं, चना देकर सहायता कर रहे हैं तो उन्हीं को न देंगे"
अम्मा की बात में बीजेपी की हालिया चुनावी जीत का असल सार छिपा लगता है. एक्सपर्ट्स कहते आए हैं कि बीजेपी ने केंद्र में मोदी और उत्तर प्रदेश में योगी के साथ मिलकर लाभार्थियों का एक बड़ा वोट बैंक तैयार किया है. जो जाति के ऊपर उठकर वोट देने में हिचकता नहीं है. चाहे 2019 में बीते हुए लोकसभा चुनाव हों या 2022 के विधानसभा चुनाव, वोटर्स की प्राथमिकताएं बदली नहीं हैं, कम से कम ग्रामीण वोटर के लिए ऐसा कहा जा सकता है.
आप खुशनसीब हैं तो आपको सब्सिडी वाला घर, उस घर में गैस का मुफ्त कनेक्शन, उस गैस पर पकाने के लिए सस्ता राशन मिल सकता है. खाते में सीधे पैसे मिल सकते हैं.  और कुछ कम खुशनसीब हैं तो आपको ये सब मिलने की उम्मीद तो मिल ही सकती है--"इस बार नहीं तो क्या, अगली बार आएगा." घर चला रही और बच्चों को पाल रही महिला के लिए आंखों की ये उम्मीद ही वोट देने के लिए काफ़ी हो सकती है.
भारतीय जनता पार्टी महिला वोटर्स के दिल में ये बात बैठा पाने में कामयाब रही कि कोरोना जैसी मुश्किल चुनौतियों के बावजूद उसने घर घर राशन पहुंचाया है और छिटपुट गलतियों के बावजूद वही है जो पहली बार उनके खाते खुलवाने, उसमें पैसे डालने और सिलेंडर पहुंचाने तक के जतन करती रही है.
सरकार का ये नुमाया जतन महिलाओं को अहसानमंद महसूस करवाता है. अपनी कृतज्ञता को वोटों में बदलने का मौका वे क्यों छोड़ेंगी?