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कौन थे आनंद दिघे, जिनका नाम लेकर विधानसभा में एकनाथ शिंदे रो दिए?

आनंद दिघे की मौत से गुस्साए शिवसैनिकों ने अस्पताल को ही जला दिया था.

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आनंद दीघे और एकनाथ शिंदे.

असम के गुवाहाटी में जब महाराष्ट्र की सत्ता छीने जाने की पटकथा लिखी जा रही थी, उसी बीच मुंबई के नजदीक ठाणे में नए पोस्टरों के अंबार लगाए गए. इसमें एकनाथ शिंदे दो व्यक्तियों के साथ दिखाई दिए. बाल ठाकरे और आनंद दिघे. वैसे तो एकनाथ शिंदे ने दावा किया है वे बाल ठाकरे के 'असली विचारों' के अनुयायी हैं, लेकिन तस्वीरें दर्शाती हैं कि कट्टर शिवसैनिक आनंद दिघे अब पार्टी के नए 'महापुरुष' के रूप में उभरे हैं.

एकनाथ शिंदे और उनके कैंप के शिवसेना विधायक महत्वपूर्ण मौकों पर बाल ठाकरे के साथ आनंद दिघे का नाम लेने और उन्हें श्रेय देने से नहीं चूकते हैं. ऐसा महाराष्ट्र विधानसभा में भी देखने को मिला. बहुमत साबित करने के बाद अपने भाषण के दौरान एकनाथ शिंदे भावुक हो गए थे. उन्होंने अपनी दास्तां सुनाई. कहा, 

'जब मैं ठाणे में शिवसेना कॉरपोरेटर के रूप में काम कर रहा था, मेरे दो बच्चों की मौत हो गई थी. मुझे लगा कि सबकुछ खत्म हो गया है. मैं टूट गया था, लेकिन आनंद दिघे साहब ने समझाया कि मैं राजनीति में बना रहूं.'

कौन हैं आनंद दिघे?

आनंद दिघे शिवसेना के एक बेहद प्रभावशाही नेता थे. ठाणे जिले में उनका वर्चस्व था. उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत शिवसेना से ही की और साल 1984 में ठाणे के पार्टी अध्यक्ष बने थे. लेकिन 49 साल की उम्र में ही एक एक्सिडेंट के बाद उनकी मौत हो गई. 

आनंद दिघे, एकनाथ शिंदे के राजनीतिक गुरु थे. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जिस तरह उद्धव और उनके बेटे आदित्य ठाकरे ने पार्टी में दूसरे नंबर पर होने के बावजूद एकनाथ शिंदे के दर्जे को कम कर दिया था, उसी तरह बाल ठाकरे ने बढ़ती लोकप्रियता के चलते आनंद दिघे को साइडलाइन कर दिया था.

बाल ठाकरे की तरह दिघे ने भी कभी चुनाव नहीं लड़ा और ज्यादातर समय पार्टी की ठाणे इकाई में ही काम करते रहे. अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय लोग आनंद दिघे को 'समस्याओं का समाधान करने वाले नेता' के रूप में देखते थे. वो अपना ‘दरबार’ लगाते थे, जिसमें लोगों की शिकायतों का ‘तुरंत’ निवारण किया जाता था. 

साल 2001 में जिस अस्पताल में हार्ट अटैक से उनकी मौत हुई थी, उसे शिव सैनिकों ने जला दिया था. फ्रंटलाइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक शिव सैनिकों के उत्पात के चलते जब लाइफ सपोर्ट मशीनों ने काम करना बंद कर दिया, तब एक छह महीने के बच्चे और एक 65 साल के बुज़ुर्ग की भी जान चली गई थी.

जब लाइमलाइट में आए!

आनंद दिघे का ऐसा दबदबा था कि पुलिस उनके कार्यों में दखलअंदाजी नहीं करती थी. इतना ही नहीं, उस समय जो पुलिस कमिश्नर उस शहर में आते थे, वे दिघे के पास 'शिष्टाचार भेंट' करने जाते थे.

1980 के दशक में आनंद दिघे उस समय सुर्खियों में आ गए जब उन्होंने दावा किया कि कल्याण के पास स्थित हाजी मलंग दरगाह ‘वास्तव में नाथ-पंथी संप्रदाय के स्वामियों की जगह’ है, जबकि मुस्लिम समुदाय ने कहा कि ये हाजी मलंग बाबा की जगह है.

आनंद दिघे खुद एक नाथ-पंथी थे और अपनी अंगुलियों में कई अंगूठियां पहनते थे. दिघे के समर्थक उन्हें 'धर्मवीर' भी कहते थे. वो बहुत बड़े स्तर पर नवरात्रि और गणेश पूजा कार्यक्रम का आयोजन कराया करते थे. एकनाथ शिंदे ने हाल ही में 'धर्मवीर' नाम से आनंद दिघे के ऊपर एक फिल्म बनवाई है.

साल 1989 में शहर के मेयर चुनाव में ठाणे के कॉरपोरेटर श्रीधर खोपकर ने कांग्रेस के पक्ष में वोट कर दिया था. इसे लेकर आनंद दिघे ने धमकी दी थी कि 'इस धोखे का बदला लिया जाएगा'. इसके कुछ दिन बाद ही खोपरकर की हत्या कर दी गई थी. दिघे को हत्या के आरोपों के चलते गिरफ्तार किया गया. बाद में उन पर कठोर आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि अधिनियम (टाडा) के तहत धाराएं लगाई गई थीं. इसके चलते वो लंबे समय तक जेल में रहे थे.

जब ठाकरे ने दिघे का विरोध किया

साल 1995 में सत्ता में आने के बाद शिवसेना की अगुवाई वाली सरकार ने टी. चंद्रशेखर को ठाणे नगर पालिका का कमिश्नर नियुक्त किया था. इसके बाद नगर निकाय ने बड़े स्तर पर ध्वस्तीकरण कार्यक्रम शुरु किया, क्योंकि उन्हें सड़क चौड़ी करनी थी. लेकिन दिघे ने इस कदम का विरोध किया था. हालांकि इस मुद्दे पर उन्हें शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का साथ नहीं मिला. दिघे और चंद्रशेखर के बीच लड़ाई में ठाकरे ने चंद्रशेखर का साथ दिया. इसके बाद ठाणे नगर पालिका के चुनाव में उम्मीदवारों के चयन में भी दिघे को दरकिनार किया गया था.

कुछ ऐसा ही मामला मौजूदा समय में एकनाथ शिंदे के साथ देखने को मिला. शिंदे शहरी विकास मंत्री थे, लेकिन मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (एमएमआरडीए) से जुड़े फैसले तत्कालीन पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे ले रहे थे. शिंदे एमएमआरडीए के चेयरमैन थे, लेकिन ठाकरे ने इसके कई आदेशों पर रोक लगा दी थी.

जब मौत हुई

साल 2001 में थाणे जिले में आनंद दिघे का एक्सिडेंट हो गया था. उन्हें तत्काल संघानिया अस्पताल में भर्ती कराया गया. लेकिन उन्हें बचाया न जा सका और हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई. शिवसैनिकों ने इस पर घोर नाराजगी जाहिर की और पूरे अस्पताल को ही आग के हवाले कर दिया.

आनंद दिघे के जाने के बाद वैसे तो शिवसेना हाईकमान ने ठाणे ईकाई को कई भागों में बांट दिया था. लेकिन दिघे के स्थान को एकनाथ शिंदे ने भरा और धीरे-धीरे पूरे जिले और फिर राज्य स्तर पर उन्होंने अपना दबदबा कायम कर लिया.

जानकारों का मानना है कि ठाकरे ये नहीं चाहते थे कि फिर दूसरा दिघे पैदा हो, इसलिए शिंदे के पर कतर दिए जाते थे. दिघे और ठाकरे एक ही जाति- चंद्रसेनिया कायस्थ प्रभु- के हैं और कई शिवसैनिक दिघे को ठाकरे का उत्तराधिकारी या उनके विकल्प के रूप में देख रहे थे. हालांकि इससे पहले ही उनकी मौत हो गई.

वीडियो: सीएम एकनाथ शिंदे ने अपने बच्चों और गुरु आनंद दिघे पर महाराष्ट्र विधानसभा में क्या बोला?