"हमारा परिवार बहुत लंबे समय से इसकी देखरेख कर रहा है और भविष्य में भी हम लोग इसकी देखरेख करते रहेंगे. हमारा मानना है कि हिंदुओं और मुसलमानों में कोई अंतर नहीं है. ऐसे कुछ नेता अपनी राजनीति के लिए जरूर करने का प्रयास करते हैं, लेकिन वो लोग कभी भी हिंदुओं और मुसलमानों को विभाजित करने में कामयाब नहीं हो पाएंगे."इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले में रहने वाला बोस परिवार नबोपल्ली इलाके में स्थित अमानती मस्जिद की देखभाल कर रहा है. दरअसल 1964 में ये परिवार तब के पूर्वी पाकिस्तान ( वर्तमान में बांग्लादेश) से उत्तर 24 परगना आया था. इंडिया टुडे से बात करते हुए ईश्वर निरोद बोस के 74 साल के बेटे दीपक बोस ने बताया,
"मैं 14 साल का था, जब हम पूर्वी पाकिस्तान के खुलना से बारासात (पश्चिम बंगाल) पहुंचे. दरअसल तब वहां दंगे भड़के हुए थे. जब दंगे शांत हुए तो कानून के अनुसार हमने खुलना के जियासुद्दीन मोरोल नाम के जमींदार के साथ जमीन की अदला-बदली की. यहां मेरे पिता ने एक जमीन अधिग्रहित की थी. यहां एक छोटी सी मस्जिद थी. जिसे मोरोल ने कहा था कि हम अपनी सुविधानुसार इस जमीन का इस्तेमाल कर सकते हैं."मां ने जलाया था दिया दीपक बोस का कहना है कि इस मस्जिद की देखभाल का श्रेय उनकी मां को जाता है. दीपक कहते हैं कि उनकी मां का मानना था कि पूजा की जगह पवित्र स्थान है और इसका सम्मान किया जाना चाहिए. दीपक ने बताया,
"मेरी मां ने इस मस्जिद में सबसे पहले दिया जलाया था."
नबोपल्ली इलाके में स्थित अमनाती मस्जिद (फोटो: आजतक)
बोस परिवार ने कराया पुनर्निर्माण अमानती मस्जिद के इमाम अख्तर अली ने इंडिया टुडे को बताया कि ये मस्जिद लगभग 500 साल पुरानी है. जिस वक्त ये मस्जिद गियासुद्दीन मोरोल के पास थी, तो इसकी हालत काफी खराब थी. बोस परिवार ने ही इस मस्जिद की मरम्मत कराई है. वहीं दीपक बोस कहते हैं कि उनसे पहले उनके दादा और पिता ने मस्जिद की देखभाल का जिम्मा संभाला था. अब वो ये जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. उनका बेटा पार्थ सारथी बोस भी इस काम में मदद करता है और भविष्य में मस्जिद की देखभाल करने के लिए काफी उत्सुक है.