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यूपी: स्कूल में दलित बच्चों से भेदभाव की शिकायत करने वाले ने अब ठाकुर समुदाय के लिए क्या कह दिया?

और ठाकुरों ने क्या जवाब दिया?

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ये प्रतीकात्मक तस्वीर है. (साभार- पीटीआई)
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में एक प्राइमरी स्कूल
में कथित रूप से बच्चों से जाति के आधार भेदभाव किए जाने का मामला सामने आया था. इसके बाद दौदापुर स्थित प्राइमरी स्कूल की हेडमास्टर को सस्पेंड कर दिया गया था. वहीं, दो अन्य महिला कर्मचारियों को भी स्कूल की रसोई से निकाल दिया गया था. अब खबर है कि इसकी शिकायत करने वाले साहिब सिंह को दौदापुर गांव के ठाकुर समुदाय की तरफ से धमकियां दी जा रही हैं. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में साहिब सिंह ने खुद ये दावा किया. क्या बोले साहिब सिंह? साहिब सिंह की पत्नी दौदापुर गांव की आरक्षित एससी सीट से नवनिर्वाचित सरपंच हैं. साहिब सिंह उनके प्रतिनिधि हैं. उन्होंने स्कूल में दलित बच्चों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ शिकायत की थी. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, साहिब सिंह का कहना है कि शिकायत करने के बाद गांव के कुछ ठाकुर उनसे काफी गुस्सा हैं. अखबार ने बताया कि रविवार 26 सितंबर को साहिब सिंह के घर पर ताला लगा था. पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि वो किसी जरूरी काम से जिला मुख्यालय गए हैं. फोन पर बात करने से पता चला कि कथित रूप से उन्हें गांव के ठाकुरों से धमकियां मिल रही हैं.
साहिब सिंह का कहना है,
“वो खुले तौर पर बोल रहें है कि एक दलित को गांव का प्रधान नहीं रहने देंगे. उन्होंने मुझे जाति सूचक गालियां भी दीं. वो मुझे धमकियां दे रहें हैं. कह रहे हैं कि मेरी हड्डिया तोड़ देंगे और मुझे गोली मार देंगे. गांव में उन्होंने हंगामा मचा रखा है. इस वजह से मैं एसपी साहब और जिला मजिस्ट्रेट से मिलने आया हूं. लेकिन वो दोनों ही मौजूद नहीं थे. मैं इसके खिलाफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत सभी के पास लिखित शिकायत दर्ज करूंगा.”
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प्रतीकात्मक तस्वीर. (साभार- पीटीआई)
स्कूल में एससी बच्चों की संख्या ज्यादा दौदापुर के प्राइमरी स्कूल में कुल 80 बच्चे पढ़ते हैं. इनमें से 60 बच्चे अनुसूचित जाति से आते हैं. मामला उनके बर्तनों को अलग रखे जाने और उन्हीं से धुलवाने से जुड़ा है. अखबार ने बताया है कि पूरे गांव में दलित जनसंख्या करीब 35 प्रतिशत है. इतनी ही संख्या ठाकुरों की है. बाकी लोग पिछड़े वर्ग से आते हैं.
गांव की एक दलित निवासी 52 साल की प्रेमवती, साहिब सिंह की पड़ोसी हैं. उनके पोता-पोती भी इसी स्कूल में पढ़ते हैं. प्रेमवती के परिवार का कहना है कि जिन बर्तनों में दलित बच्चे खाना खाते हैं उन्हें क्लासरूम में ही रखा जाता है, जबकि जिन बर्तनों में बाकी बच्चे खाते हैं उनको रसोई में रखा जाता है. अखबार के मुताबिक, इस बारे में प्रेमवती का कहना है,
“ये गलत हो रहा है. स्कूल में सभी बच्चों के साथ एक समान व्यवहार होना चाहिए. इस मामले में हम प्रधान जी का समर्थन करते हैं.”
वहीं, प्रेमवती की बेटी ने बताया की लॉकडाउन के बाद स्कूल फिर खुले. एक बार वो स्कूल की रसोई में काम करने वाली रसोइयों से खाने के बारे में पूछने के लिए गई थी. छात्रा ने बताया कि उसके दलित होने के वजह से रसोइयों ने उसे डांट कर भगा दिया था.
गांव की एक और दलित निवासी सोनी का बेटा भी उसी स्कूल में पढ़ता है. 40 वर्षीय सोनी ने बताया कि ठाकुरों के ज्यादातर बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं, मुश्किल से 'पांच-छह' बच्चे ही गांव के सरकारी स्कूल में जाते हैं.
अखबार ने मामले को लेकर गांव के एक बच्चे से भी बात की. उसने भी बताया कि तीन साल पहले जब उसने स्कूल में पढ़ना शुरू किया था, तभी से इसी तरह दलित बच्चों के खाने की प्लेटें अलग रखी जाती हैं.
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सांकेतिक फोटो.
ठाकुरों ने आरोपों को नकारा उधर, गांव के एक दूसरे हिस्से में रह रहे ठाकुर समुदाय के लोगों का कहना है कि उन्होंने साहिब सिंह को नहीं धमकाया है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 50 साल के गजेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा,
“किसी को नहीं धमकाया है. हमारा इस मामले से क्या लेना-देना. साहिब सिंह ही गांव में जाति के आधार पर तनाव पैदा कर रहा है. स्कूल तो हमेशा से ही ठीक चल रहा था. सब कुछ पहले की तरह ही हो रहा था. साहिब सिंह ही स्कूल में नेतागिरी करने गया था. वहां उसने खाना बनाने वाली औरतों से भी बदतमीजी से बात की. स्कूल की हेडमास्टर भी अच्छी हैं. उन्हें सस्पेंड किया जाना बिल्कुल गलत है. जाति का तो कोई मसला ही नहीं है. सरपंच के पति ने ही ये झूठ फैलाया है. स्कूल के मामले में उसे दखल नहीं देना चाहिए.”
हालांकि खाने की प्लेटें अलग रखे जाने की बात गजेन्द्र सिंह यू कहते हैं,
“स्कूल में सब सही है, बच्चे खुद ही अपनी प्लेट अलग रखते हैं. गांव के बुजुर्ग कह रहे हैं कि साहिब सिंह चाहता है कि स्कूल के सभी बच्चे किसी दलित रसोइया द्वारा बनाए गए खाने को खाएं. अगर ऐसा होगा तो वो अपने बच्चों को वहां पढ़ने नहीं भेजेंगे. हमारी बस एक ही मांग है कि सारी व्यवस्था पहले की तरह ही चले और सरपंच के पति के खिलाफ कार्रवाई हो.”
गजेन्द्र सिंह से बातचीत के दौरान ही स्कूल की रसोई में खाना बनाने वाली लक्ष्मी देवी को भी बुला लिया गया. उन्होंने बताया,
“हम हमेशा कुछ प्लेट रसोई में ही रखते हैं, जिन्हें हम सब्जी वगैरा काटने के लिए इस्तेमाल करते हैं. बाकी प्लेट, जिनमें बच्चे खाते हैं, उनको क्लास में रखा जाता है. जाति के आधार पर भेदभाव करने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता.”
अखबार ने बताया कि उसने स्कूल की हेडमास्टर गरिमा राजपूत से भी संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. स्कूल खुलेगा, बच्चों की पढ़ाई जारी रहेगी इस सबके बीच मैनपुरी के बेसिक शिक्षा अधिकारी कमल सिंह ने बताया कि अनुसूचित जाति के बच्चों के साथ भेदभाव करने के आरोप के चलते दोनों रसोइयों को काम से निकाल दिया गया है. वहीं, स्कूल की हेडमास्टर को सस्पेंड कर दिया गया है. कमल सिंह के मुताबिक, विभाग की एक टीम फिर से गांव के दौरे पर गई थी. बच्चों की पढ़ाई में कोई रुकावट ना आए, इसलिए गांव के दोनों पक्षों से बात की गई है ताकि स्कूल फिर से खोल दिया जाए. अधिकारी ने ये भी कहा कि मामले की जांच होगी. तब तक हेडमास्टर निलंबित रहेंगी और खाना पकाने वाली भी काम नहीं करेंगी.

(आपके लिए ये ख़बर हमारे साथी आयूष ने लिखी है.)