इलाहाबाद हाई कोर्ट ने OBC आरक्षण के बिना उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव (UP Local Body Election) कराने का आदेश दिया है. हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी सरकार के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को खारिज कर दिया है. बेंच ने कहा कि बिना ओबीसी आरक्षण के या 31 जनवरी तक रैपिड सर्वे करा कर आरक्षण के आधार पर चुनाव कराए जाएं. कोर्ट ने रैपिड सर्वे के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाने का आदेश दिया है. इसकी मॉनिटरिंग जिलों में जिलाधिकारी को करना होगा.
हाई कोर्ट के फैसले के बाद यूपी सरकार ने कहा, बिना OBC आरक्षण के चुनाव नहीं कराएंगे
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निकाय चुनाव के लिए यूपी सरकार के ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को खारिज कर दिया था.
कोर्ट ने सरकार द्वारा जारी आरक्षण सूची को रद्द कर दिया है. यानी अगर जल्द चुनाव कराए जाते हैं तो 5 दिसंबर को जारी आरक्षण सूची में जिन-जिन सीटों पर ओबीसी को आरक्षण मिला है, उन्हें सामान्य सीट मानकर चुनाव कराना होगा. बताया जा रहा है कि कोर्ट के फैसले के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बैठक कर सकते हैं जिसमें आगे की रणनीति पर फैसला लिया जाएगा. सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दे सकती है.
कोर्ट के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सरकार निकाय चुनाव में आयोग गठित कर ट्रिपल टेस्ट के आधार पर OBC आरक्षण उपलब्ध कराएगी. मुख्यमंत्री के मुताबिक इसके बाद ही चुनाव कराए जाएंगे. अगर जरूरी हुआ तो सरकार कानूनी पहलुओं पर विचार कर सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी.
वहीं समाजवादी पार्टी ने बीजेपी सरकार पर "पिछड़ा विरोधी" होने का आरोप लगाया है. समाजवादी पार्टी सांसद राम गोपाल यादव का आरोप है कि सरकार ने जानबूझकर कोर्ट में फैक्ट्स नहीं रखे. उन्होंने ट्विटर पर लिखा,
"निकाय चुनावों में OBC आरक्षण खत्म करने का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण. उत्तरप्रदेश सरकार की साजिश (है). तथ्य न्यायालय के समक्ष जानबूझकर प्रस्तुत नहीं किए. उत्तर प्रदेश की साठ फीसदी आबादी को आरक्षण से वंचित किया. ओबीसी मंत्रियों के मुंह पर ताले. मौर्या की स्थिति बंधुआ मजदूर जैसी!"
बीजेपी की सहयोगी अपना दल ने भी कहा कि OBC आरक्षण के बिना निकाय चुनाव किसी भी तरीके से सही नहीं है. पार्टी ने कहा कि जरूरत पड़ने पर अपना दल ओबीसी के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगी.
समझौता नहीं होगा- केशव मौर्यवहीं डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि कोर्ट के आदेश का विस्तृत अध्ययन कर कानून विशेषज्ञों से सलाह ली जाएगी. उसके बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा. उन्होंने कहा कि पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा.
विपक्ष के आरोपों के बाद यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा कि जहां चूक हुई है उसे देखा जाएगा. उन्होंने कहा,
सरकार के पास क्या है विकल्प?"हम कोर्ट के फैसले की समीक्षा करेंगे और आगे की तैयारी में जुटेंगे. पिछड़ा विरोधी होने के आरोप निराधार हैं. हम सभी वर्गों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले लोग हैं. कभी भी चुनाव हो बीजेपी चुनाव के लिए हमेशा तैयार रहती है."
हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट जा सकती है. इसके अलावा दूसरा विकल्प ये है कि सरकार नए सिरे से सर्वे कराकर नई आरक्षण सूची जारी करे. तीसरा विकल्प ये है कि सरकार बिना आरक्षण चुनाव करा दे. हालांकि तीसरे विकल्प की संभावना कम है क्योंकि 40 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी वाले ओबीसी वर्ग को सरकार नाख़ुश नहीं करना चाहेगी. ऐसे में सरकार समिति बनाकर जल्द से जल्द रेपिड सर्वे कराकर नई आरक्षण सूची जारी कर सकती है. अगर ऐसा होता है तो चुनाव होने में देरी होना तय है.
क्या है ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला?सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल महाराष्ट्र निकाय चुनावों के दौरान एक आदेश दिया था. इस फैसले में आरक्षण लागू करने के लिए तीन मानक तय किए गए थे, इसलिए इसे ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला कहा जाता है. इसके तहत निकायों में ओबीसी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को जानने के लिए एक कमीशन बनाना जरूरी है जो इस पर सरकार को रिपोर्ट सौंपेगा. इसी रिपोर्ट के आधार पर निकाय चुनाव में सरकार आनुपातिक तरीके से आरक्षण देगी. सीटों को आरक्षित करते हुए सरकार को ध्यान रखना होगा कि ये एससी, एसटी और ओबीसी के लिए तय 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को पार ना करे.
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