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उद्धव ठाकरे ने आरे जंगल पर शिंदे सरकार को घेरा, महा विकास अघाड़ी बनने की वजह भी बताई

सीएम पद से इस्तीफे के बाद पहली बार मीडिया के सामने आए उद्धव ठाकरे ने कहा- मुंबई की पीठ में खंजर न घोपें.

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(फोटो: पीटीआई)

महाराष्ट्र की सत्ता जाने के बाद पहली बार उद्धव ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपने विचार व्यक्त किए हैं. उन्होंने कहा आरोप लगाया कि रातों-रात सत्ता का खेल किया गया है. इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री ने आग्रह किया कि मुंबई के आरे जंगल के साथ कोई छेड़छाड़ न किया जाए और इस जगह पर मेट्रो कार शेड नहीं बनाया जाना चाहिए.

उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शिवसेना और बीजेपी के बीच हुई ओरिजिनल डील के साथ छेड़छाड़ न की होती तो महा विकास अघाड़ी गठबंधन न बनता और आज बीजेपी नेता मुख्यमंत्री होता. उद्धव ने कहा, 

'कल जो कुछ हआ, मैंने अमित शाह से पहले भी कहा था कि 2.5 सालों के लिए शिवसेना का मुख्यमंत्री होना चाहिए (शिवसेना-बीजेपी गठबंधन में). अगर उन्होंने ये बात मान ली होती तो महा विकास अघाड़ी गठबंधन न होता.'

मीडिया के साथ बातचीत के दौरान उद्धव ठाकरे ने आरे जंगल को लेकर हालिया फैसले पर चिंता जाहिर की है. उन्होंने महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से आग्रह किया कि आरे जंगल में कार शेड न बनाया जाए. उन्होंने कहा, 

'मेरे ऊपर जो गुस्सा है उसे मुंबई वालों पर न निकालें. मेट्रो कार शेड प्रस्ताव में कोई परिवर्तन न करें. मुंबई के पर्यावरण से न खेलें.'

ठाकरे ने आगे कहा, 

'मैं पर्यावरणविदों के साथ खड़ा हूं. आपको मेरे साथ जो भी करना है, करिए. लेकिन मुंबई की पीठ में छूरा न घोपिए. जिस तरीके से आरे फैसले को पलटा गया है, वो सही नहीं है. हमने इसके लिए एक अलग प्लॉट सुझाया था. लेकिन जिस तरीके से फैसला पलटा गया है, उससे मैं दुखी हूं, इससे पर्यावरण पर प्रभाव पड़ेगा. कंजूरमार्ग प्रस्ताव का पालन किया जाना चाहिए.'

मालूम हो कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में ही उद्धव सरकार के एक बड़े फैसले को पलट दिया है. उन्होंने मेट्रो कार शेड प्रोजेक्ट को आरे में लागू करने का फैसला लिया है. जबकि शिवसेना की अगुवाई वाली महा विकास अघाड़ी सरकार ने मेट्रो कार शेड को कंजूरमार्ग में लागू करने का निर्णय किया था.

एमवीए सरकार ने संजय गांधी राष्ट्रीय पार्क से सटे हुए आरे जंगल की 800 एकड़ जमीन को 'संरक्षित जंगल' घोषित कर दिया था. भारतीय वन अधिनियम 1927 के तहत एक बार किसी क्षेत्र को 'संरक्षिण जंगल' घोषित कर दिया जाता है तो वहां गैर-वन वाले कार्य नहीं हो सकते हैं.