The Lallantop
लल्लनटॉप का चैनलJOINकरें

कोविड वैक्सीन के बाद शरीर में हो रही अजीब तरह की ब्लड क्लॉटिंग, रिपोर्ट में पता चला

रिसर्चर्स का कहना है कि ये एक रेयर कंडीशन है, लेकिन भविष्य में इम्युनाइजेशन कैम्पेन और वैक्सीन डेवलपमेंट में इस खतरे को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

post-main-image
यूरोप के पांच देशों और अमेरिका में स्टडी की गई. फोटो- PTI

कोविड 19 की वैक्सीन को लेकर एक डराने वाली बात सामने आई है. पांच यूरोपीय देशों और अमेरिका में हुई एक स्टडी में सामने आया है कि कोविड 19 वैक्सीन लगाने के बाद एक खास तरह की ब्लड क्लॉटिंग का रिस्क हो सकता है.

PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में एक स्टडी छपी है. ये स्टडी यूरोप के पांच देशों और अमेरिका में ऑक्सफोर्ड-एस्त्रेजेनेका की कोविड 19 वैक्सीन का पहला डोज़ लगने के बाद सामने आए हेल्थ डेटा पर की गई थी. इस स्टडी में कोविड 19 वैक्सीन के बाद  थ्रोम्बोसिस विद थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) नाम की कंडीशन के खतरे का पता चला है.  

क्या है TTS?

जब किसी व्यक्ति की नसों में खून का थक्का जमने लगे और उससे शरीर में खून का प्रवाह कम हो तो उसे थ्रोम्बोसिस कहा जाता है. वहीं, जब किसी व्यक्ति के खून में प्लेटलेट्स कम हो जाएं तो उसे थ्रोम्बोसाइटोपेनिया कहते हैं. TTS में ये दोनों चीज़ें एक साथ होती हैं. स्टडी के मुताबिक, ये एक रेयर कंडीशन है और सामान्य थ्रोम्बोसिस या लंग्स में होने वाले ब्लॉकेज से अलग है.

फिलहाल इसकी जांच हो रही है कि क्या TTS एडिनोवायरस बेस्ड कोविड वैक्सीन का रेयर साइड इफेक्ट हो सकता है. एडिनोवायरस बेस्ड वैक्सीन का मतलब वो वैक्सीन जिसमें संबंधित वायरस का कमज़ोर वेरिएंट इस्तेमाल किया जाता है, ताकि वैक्सीन से बेहतर इम्युनिटी मिली. हालांकि, दूसरे तरीकों से बने वैक्सीन्स में इस तरह के रिस्क से जुड़ा कोई सबूत सामने नहीं आया है.

कितने लोगों पर और कैसे की गई स्टडी?

रिपोर्ट के मुताबिक, 10 मिलियन यानी एक करोड़ लोगों का हेल्थ डेटा इकट्ठा किया गया था. इनमें फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड्स, स्पेन, यूके और यूएस के वो लोग शामिल थे जिन्हें कोविड 19 की कम से कम एक डोज़ लग गई है. ये डेटा दिसंबर, 2020 से 2021 के मध्य तक का था. स्टडी में जिन लोगों का हेल्थ डेटा शामिल किया गया उन्होंने ऑक्सफर्ड-एस्त्रेजेनेका, फाइजर-बायोएनटेक, मॉडर्ना या जैन्सेन/जॉनसन एंड जॉनसन में से किसी एक की वैक्सीन लगाई गई थी.

डेटा इकट्ठा करने के बाद लोगों को उम्र, जेंडर, पुरानी बीमारियों और दवाओं की हिस्ट्री के आधार पर छांटा गया.

इसके बाद रिसर्चर्स ने 28 दिनों तक थ्रोम्बोसिस और थ्रोम्बोसिस विद थ्रोम्बोसाइटोपीनिया के मामलों को स्टडी किया. इसके लिए पार्टिसिपेंट्स को दो अलग-अलग ग्रुप्स में बांटा गया, एक वो जिन्हें एडीनोवायरस बेस्ड वैक्सीन लगाए गए (ऑक्सफर्ड-एस्त्रेजेनेका या जैनसेन/जॉनसन एंड जॉनसन) और दूसरे वो जिन्हें mRNA बेस्ड वैक्सीन (फाइज़र-बायोएनटेक या मॉडर्ना) लगाया गया.

इसके बाद अलग-अलग देशों और वैक्सीन्स वाले लोगों के डेटा को मैच किया गया. रिपोर्ट के मुताबिक,

- जर्मनी और यूके के ऑक्सफर्ड-एस्त्रेजेनेका का पहला डोज़ लगाने वाले 1.3 मिलियन (13 लाख) लोगों को फाइजर-बायोएनटेक लगाने वाले 2.1 मिलियन (21 मिलियन) लोगों से मैच किया गया.
-जर्मनी, स्पेन और यूएस में जैनसन/जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन  लेने वाले 7.62 लाख लोगों को फाइजर-बायोएनटेक लेने वाले 28 लोगों से मैच किया गया.
- अमेरिका में जैनसन/जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन लेने वाले सभी लोगों को मॉडर्ना वैक्सीन लेने वाले 22 लाख लोगों से मैच किया गया.

जब पूरे डेटा को मिलाया गया तो सामने आया कि फाइजर-बायोएनटेक की तुलना में ऑक्सफर्ड-एस्त्रेजेनेका की पहली डोज़ लगाने वालों में प्लेटलेट्स की कमी का खतरा 30 प्रतिशत ज्यादा देखा गया. हालांकि, दूसरे डोज़ के बाद दोनों वैक्सीन्स के खतरे में कोई अंतर नहीं देखा गया.

रिसर्चर्स का कहना है कि ये कंडीशन बहुत रेयर है और वैक्सीनेशन का पूरा रिकॉर्ड नहीं होने का नतीजों पर असर पड़ सकता है. रिसर्चर्स का कहना है,

"हमारी जानकारी में ये पहली मल्टीनैशनल एनालिसिस है जो mRNA बेस्ड वैक्सीन की तुलना में एडिनोवायरस बेस्ड वैक्सीन की सेफ्टी पर काम करती है."

रिपोर्ट के मुताबिक, रिसर्चर्स का कहना है कि भले ही ये खतरा रेयर मामलों में देखा गया है, लेकिन पूरी दुनिया में वैक्सीनेशन के आंकड़ों को देखें तो TTS के केसेस काफी ज्यादा आ सकते हैं. इस स्टडी में शामिल रिसर्चर्स का कहना है कि ये एक रेयर कंडीशन है, लेकिन भविष्य में इम्युनाइजेशन कैम्पेन और वैक्सीन डेवलपमेंट में इस खतरे को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

वीडियोः भारत में मिला कोरोना का नया वेरिएंट