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कश्मीर में आतंकियों ने अपनाया ये नया तरीका, पुलिस परेशान, कहा - "बिना नाम बताए पिस्तौल बांट रहे"

सुरक्षाबलों को नए आतंकियों की जानकारी प्राप्त करने में समस्या आ रही है.

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(फोटो: पीटीआई)

साल 1966 में इटली में एक बेहद चर्चित वॉर फिल्म रिलीज हुई थी. बैटल ऑफ अल्जीयर्स. ये फिल्म नॉर्थ अफ्रीका में फ्रांसीसी सरकार के खिलाफ 1954-1962 के बीच लड़े गए अल्जीरियन युद्ध के विद्रोहियों पर आधारित थी. इस युद्ध में लड़ाकों ने अपने दुश्मनों को हराने के लिए एक खास योजना बनाई थी, जिसे बाद में ‘सीक्रेट वॉरफेयर’ के नाम से जाना गया.

ये कहानी हम आपको इसलिए बता रहे हैं क्योंकि जम्मू-कश्मीर के सुरक्षाबलों का कहना है कि घाटी में मिलिटेंसी और आतंकवाद एक अलग फेज में पहुंच चुका है. इसने लड़ाई के लिए ‘सीक्रेट वॉरफेयर’ जैसे नए तरीके अख्तियार कर लिए हैं. इसके कारण अब सुरक्षाबलों को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

सीक्रेट वॉरफेयर

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस अधिकारियों का कहना है कि आज के मिलिटेंट्स एक दूसरे को सही से जानते भी नहीं हैं.

दक्षिण कश्मीर के एक अधिकारी ने कहा, 

'हमारे जिले में सिर्फ 6 मिलिटेंट्स की जानकारी है. लेकिन हमें सूचना मिली है कि इनकी संख्या 50 से अधिक हो सकती है. ये लोग कौन हैं, हमें नहीं पता. हम ये सब पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह आसान काम नहीं है.'

जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों ने कहा कि आतंकवादी अब ‘सीक्रेट वॉरफेयर’ अपना रहे हैं, जहां वे गोपनीय तरीके से हमले की योजना बना रहे हैं.

अधिकारी ने कहा, 

'हाल ही में हमने एक युवक से पूछताछ की तो पता चला कि उसने पांच पिस्तौल बांटे थे. जब हमने उन लोगों की पहचान पूछी जिन्हें उसने पिस्तौल दी थी, तो वह नहीं बता सका. उसके हैंडलर ने उसे एक विशेष स्थान पर रुकने और लाल शर्ट पहने एक लड़के को पिस्तौल देने के लिए कहा था. लड़का आया, वह नकाबपोश था और वे एक दूसरे को नहीं जानते थे.'

अधिकारियों का कहना है कि वैसे तो दक्षिण कश्मीर में ये सब ज्यादा देखने को मिल रहा है, लेकिन श्रीनगर तक भी ऐसी चीजें होने लगी हैं. उन्होंने कहा कि ऐसा होने के चलते ही हाल के दिनों में पुलिसकर्मियों और प्रवासियों पर हमले बढ़े हैं.

नए आतंकियों की जानकारी नहीं!

इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के पुलिस अधिकारियों का कहना है कि घाटी में मिलिटेंसी बेहद 'गोपनीय और खतरनाक' हो चुकी है. पुलिस को ये जानकारी नहीं मिल पा रही है कि आखिर नए लोग कौन हैं और इसके कारण आगामी खतरों को रोकने में बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है.

पुलिस विभाग के एक बड़े अधिकारी ने अखबार को बताया, 

'तीन दशकों में पहली बार हमें गुरिल्ला वॉरफेयर देखने को मिल रहा है. हमारे रिकॉर्ड में करीब 200 मिलिटेंट्स की जानकारी है. ये ऐसे लोग हैं, जिन्होंने अपनी पहचान सार्वजनिक की है और अंडरग्राउंड हो गए हैं. लेकिन इस बात की संभावना है कि और अधिक युवाओं ने हथियार थाम लिया है.'

इससे पहले भी कश्मीर में मिलिटेंट्स अपनी पहचान सार्वजनिक कर दिया करते थे, सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीरें आ जाती थीं. ऐसा इस उद्देश्य से किया जाता था ताकि ज्यादा से ज्यादा युवाओं को आतंकवाद में शामिल किया जा सके. पोस्टर बॉय होने की वजह से लोगों को आतंकी गतिविधियों की ओर रिझाने में मदद मिलती थी. हालांकि इसके चलते सुरक्षा एजेंसियों का भी काम आसान हो जाता था और आतंकवादियों के बारे में आसानी से जानकारी सामने आ जाती थी.

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