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नारायण साईं ने मां को बीमार बता मांगी पैरोल, सच जानकर उनके वकील भी हुए हैरान

नारायण साईं ने ऐसा खेल खेला कि उनके वकील भी चकमा खा गए

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नारायण साई (फोटो: इंडिया टुडे)
गुजरात हाई कोर्ट (Gujarat High Court) ने यौन शोषण मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे नारायण साईं (Narayan Sai) की बेल की अर्जी खारिज कर दी है. कारण है बेल के लिए अपनी मां की बीमारी का झूठा बहाना. और इससे भी चौकने वाली बात ये है कि नारायण साईं के वकीलों को भी बीमारी के इस झूठे दावे के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. ये पहला मामला नहीं है जब किसी कैदी ने बेल, पैरोल या फरलो के लिए झूठे कारण बताए हों. जेल से बाहर निकलने के लिए कैदी ऐसे कई झूठे कारण बताते रहते हैं. कोर्ट ने लगाया जुर्माना दरअसल, आसाराम (Asaram Bapu) के बेटे नारायण साईं ने हाई कोर्ट में ये कहते हुए बेल की अर्जी दी थी कि उनकी मां लक्ष्मीदेवी हरपलानी अस्पताल में भर्ती हैं. लेकिन जब कोर्ट ने साईं के इस दावे की जांच कराई तो पता चला कि न सिर्फ नारायण साईं का दावा झूठा है, बल्कि उनके वकीलों को भी बीमारी के इस झूठे दावे के बारे में कोई जानकारी नहीं है. इसके बाद गुजरात हाई कोर्ट ने नारायण साईं की बेल की अर्जी खारिज कर दी और उन पर झूठ बोलने के लिए 1 लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया.
Narayan Sai And Asaram Bapu
नारायण साईं और आसाराम (इंडिया टुडे)

बेल के लिए फर्जी बहाने ढूंढते हैं कैदी अहमदाबाद मिरर की एक रिपोर्ट
के मुताबिक गुजरात जेल प्रशासन के पास हर साल पैरोल और फरलो की करीब 3 हजार अर्जियां आती हैं. जेल से बाहर निकलने के लिए कैदी तमाम तरह के कारण बताते हैं, कई सच होते हैं तो कइयों को जानकर जेल प्रशासन भी हैरान हो जाता है. आमतौर पर कैदी जिन कारणों का जिक्र अपनी अर्जी में करते हैं, उनमें परिजनों की फर्जी शादियां, उनकी बीमारी और मौत को ही वजह बताया जाता है. यही नहीं, अपनी बात को सही साबित करने के लिए कुछ कैदी फर्जी शादी का कार्ड भी छपवाकर जेल में जमा करवाते हैं. पैरोल और फरलो में अंतर पैरोल (Parole) में कैदी को जेल से बाहर जाने के लिए एक संतोषजनक कारण बताना होता है. कैदी को उसके परिवार के निजी सदस्यों की शादी, मृत्यु या एग्जाम जैसी इमरजेंसी वाली स्थिति पर पैरोल दी जाती है. कैदी की अर्जी को मानने के लिए जेल प्रशासन बाध्य नहीं है. वह इसे खारिज भी कर सकता है. कैदी को एक निश्चित समय के लिए जेल से रिहा करने से पहले जेल प्रशासन समाज पर कैदी से पड़ने वाले असर को भी ध्यान में रखता है.
वहीं, फरलो (Furlough) एक डच शब्द है. फरलो के तहत कैदी को अपनी सामाजिक या व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए कुछ समय के लिए रिहा किया जाता है. साल भर में हर कैदी को 15 दिन की फरलो दी जाती है. इसे कैदी के सुधार से जोड़कर भी देखा जाता है. तकनीकी तौर पर फरलो को कैदी का मूलभूत अधिकार माना जाता है.
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सांकेतिक फोटो (आजतक)

पैरोल से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बड़ौदा जेल के एसपी बलदेव सिंह वाघेला का कहना है कि कैदी पैरोल के लिए हर मुमकिन बहाना बनाता है. इसी तरह का एक मामला गुजरात के महीसागर जिले के रहने वाले एक कैदी का है. राजकोट में एक हत्या के मामले में ये सजा काट रहा था. इस कैदी ने 2021 में जेल प्रशासन के पास 60 दिन की पैरोल की अर्जी भेजी. उसका कहना था कि उसे फसल बोने के लिए रिहा किया जाए. लेकिन जेल प्रशासन ने उसकी अर्जी को खारिज कर दिया. इसके बाद उसने दूसरा कारण बताते हुए कहा कि वह एक आदिवासी है और अपने परिवार में इकलौता कमाने वाला सदस्य है और उसके परिवार को उसकी जरूरत है, क्योंकि उनकी फसल खराब हो गई है. इस पर जेल प्राशसन को दया आ गई और 26 नवंबर से 26 दिसंबर 2021 तक के लिए उसे पैरोल पर रिहा कर दिया गया.
इसके बाद उस कैदी ने 2 दिसंबर को पैरोल बढ़ाने के लिए अर्जी दी. उसका कहना था कि ग्राम पंचायत के चुनाव होने वाले हैं और आचार संहिता लागू है, इसलिए उसकी पैरोल बढ़ा दी जाए. इसके बाद उसने एक नया बहाना पेश किया. उसने कहा कि उसकी बेटी की शादी है और इसलिए उसकी पैरोल 45 दिन के लिए बढ़ा दी जाए. इस पर जेल प्रशासन ने उसे 30 दिन की और पैरोल दे दी. लेकिन कैदी यहीं नहीं रुका, उसने पैरोल बढ़वाने के लिए एक और बहाना बनाया. इस बार जेल प्रशासन का माथा ठनका और फिर पूरे मामले की जांच हुई. जांच में पता चला कि कैदी की बेटी की नहीं, बल्कि उसकी भतीजी की शादी थी, और वो भी दो साल पहले. जब पुलिस ने इस मामले की और गहराई से जांच की तो पता चला कि कैदी की दो पत्नियां हैं और ये तीनों ही हत्या के मामले में जेल की सजा काट रहे हैं. इससे भी रोचक बात ये थी कि इन तीनों ने एक ही कारण बताकर पैरोल की मांग की थी.