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पेंशन लाभ के लिए तरस रहे दिल्ली के रिटायर्ड कर्मचारी, कहा- 'मरने से पहले क्लियरेंस दे दो'

ऐसे मामलों का समाधान करने के लिए अब दिल्ली सरकार स्पेशल ड्राइव चला रही है.

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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल. (फोटो: पीटीआई)

दयानंद सिंह ने अपने जीवन के 34 साल दिल्ली सरकार को दिए. इस दौरान वह कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे. बीच में उनके सुर बगावती भी हुए और सरकारी कर्मचारियों के लिए आवाज भी उठाई. लेकिन जब रिटायरमेंट नजदीक आया तो उन्होंने सोचा कि वे अब अपने दुनियावी कार्यों को रोककर परिवार के साथ शांति से समय बिताएंगे. लेकिन ये 'शांति' उन्हें अभी तक नसीब नहीं हो पाई है. 

दयानंद 31 जनवरी 2021 को दिल्ली सरकार के गुरु नानक आई सेंटर के प्रशासनिक अधिकारी के पद से रिटायर हुए थे. लेकिन लगभग 10 साल पुराने एक मामले को आधार बनाते हुए विभाग ने उनके सभी रिटायरमेंट बेनिफिट्स रोक दिए. पिछले डेढ़ सालों से वे एक से दूसरे दफ्तर में अपनी बेगुनाही साबित करते फिर रहे हैं, लेकिन प्रशासन मूकदर्शक बना हुआ है. जबकि जांच अधिकारी ने काफी पहले उन्हें निर्दोष घोषित कर दिया था.

कुछ ऐसी ही स्थिति 68 वर्षीय शाम चंद की है. वह अक्टूबर 2014 में एसडीएम के पद से रिटायर हुए थे. लेकिन उनके खिलाफ भी एक मामला दायर करके रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली सुविधाओं को रोक दिया गया. उन्हें जांच अधिकारी ने निर्दोष साबित कर दिया है, लेकिन इसके बावजूद अभी तक उनका मामला लंबित है और उन्हें पेंशन सुविधाएं नहीं मिल रही हैं.

ये सिर्फ दो अधिकारियों की कहानी नहीं है. दिल्ली सरकार के कई सारे पूर्व कर्मचारियों ने शिकायत की है कि रिटायर होने के कई साल बाद भी उन्हें पेंशन सुविधाएं नहीं मिल रही हैं. दिल्ली के मुख्य सचिव और सेवा विभाग में ऐसी शिकायतों की भरमार लग गई है. यही वजह है कि दिल्ली सरकार इन मामलों का तत्काल समाधान करने के लिए 15 जून से 15 जुलाई के बीच स्पेशल ड्राइव चला रही है.

मालूम हो कि रिटायरमेंट के बाद कर्मचारियों को ग्रेच्युटी, इंश्योरेंस, प्रॉविडेंट फंड, बची हुई छुट्टियों, एरियर इत्यादि का पैसा जोड़कर मिलता है.

अधिकारियों की मनमर्जी

दी लल्लनटॉप से बातचीत में दयानंद सिंह (61 वर्ष) ने कहा है कि उन्हें अभी तक ग्रेच्युटी का पैसा नहीं मिला है. इसके अलावा उन्हें MACP अपग्रेडेशन के लाभ से भी वंचित कर दिया गया है, जो कि साल 2010 से लंबित है. उनका दावा है कि इसके कारण उनके करीब 45 लाख रुपये रुके हुए हैं.

साल 2011-13 के दौरान जीटीबी अस्पताल की पार्किंग से जुड़े एक टेंडर में अनियमितता बरतने के आरोप में दयानंद सिंह के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. उनके रिटायरमेंट के बाद जब ये मामला उठा तो अस्पताल के विजिलेंस ऑफिस से रिपोर्ट मांगी गई. अस्पताल ने 23 दिसंबर 2020 को अपनी रिपोर्ट में कहा कि दयानंद सिंह के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है. लेकिन दिल्ली सरकार के विजिलेंस विभाग ने इस केस को एंट्री-करप्शन ब्रांच को ट्रांसफर कर दिया. अब ब्रांच ने भी 8 जनवरी 2021 को अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दयानंद के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है. इसके बावजूद उन्हें रिटायरमेंट बेनिफिट्स नहीं मिल रहे हैं. 

दयानंद सिंह ने कहा कि दिल्ली का विजिलेंस विभाग इसमें सबसे बड़ा रोड़ा है. उन्होंने दी लल्लनटॉप को बताया, 

‘सभी जांच रिपोर्ट सौंपने के बाद भी वे क्लियरेंस नहीं देते हैं. वे केवल स्टेटस रिपोर्ट भेज देते हैं. विभाग कहता है कि बेनिफिट्स चाहिए तो क्लियरेंस लाओ और जब हम विजिलेंस के पास जाते हैं तो वे कहते हैं कि हमने रिपोर्ट भेज दी है. जबकि डीओपीटी की गाइडलाइन स्पष्ट रूप से कहती है कि विजिलेंस विभाग को ‘क्लियरेंस’ ही देना होता है, न कि स्टेटस रिपोर्ट.’

डीओपीटी की गाइडलाइंस के अनुसार यदि कोई कर्मचारी निलंबित हो या उसके खिलाफ किसी मामले में अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए चार्जशीट दायर की जा चुकी हो और जांच प्रक्रिया चल रही हो, अथवा किसी कोर्ट में कोई आपराधिक मामला विचाराधीन हो, तभी विजिलेंस क्लियरेंस रोका जा सकता है.

दयानंद सिंह बताते हैं, 

‘ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न किया जा रहा है. ये उचित नहीं है. जो कर्मचारी अपने जीवन के इतने साल सरकारी विभाग में लगाता है और अंत में फर्जी आधार पर उसके पैसे रोक लेते हैं, जरा सोचिए कि उसको कैसा महसूस होगा. इस उम्र में भी हमें सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं.’

मौत से पहले क्लियरेंस दे दें!

शाम चंद इस समय डायबिटीज, दिल की बीमारी और आंख की समस्याओं से जूझ रहे हैं. वे कोरोना वायरस से भी संक्रमित हुए थे और अभी तक इससे उबर नहीं पाए हैं. वे कहते हैं कि उम्र के इस पड़ाव पर उनके जीवन का कोई भरोसा नहीं है और बस इतना चाहते हैं उनके ऊपर से झूठे आरोप का दाग मिटाया जाए. उन्होंने कहा, 

‘मैं 31 अक्टूबर 2014 को रिटायर हुआ था. मैंने अपने कार्यकाल में कई सरकारी/ग्राम सभा की जमीनों को कब्जों से मुक्त कराया था. उस जमीन पर रहने वाले किसी व्यक्ति ने इसके खिलाफ शिकायत नहीं की थी. लेकिन सीनियर अधिकारियों के इशारे पर मेरे खिलाफ एक फर्जी मुकदमा किया गया कि इन जमीनों को खाली करवाने के दौरान मैंने तय नियमों का पालन नहीं किया. यह विडंबना ही है कि एक तो मैंने सरकारी जमीन को कब्जे से मुक्त कराया और सरकार के ही हित में काम किया, लेकिन दूसरी ओर से बिना किसी शिकायत के ही मेरे खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया.’

शाम चंद ने बीती 26 अप्रैल को गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव को एक पत्र लिखकर पूरी स्थिति से अवगत कराया था. उन्होंने बताया कि 11 जुलाई 2016 को ही जांच अधिकारी ने उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया था. इसके बावजूद उन्हें अभी तक विजिलेंस क्लियरेंस नहीं मिला है. शाम चंद कहते हैं,

'मुझे नहीं पता कि क्यों मेरा केस अटका पड़ा है. न ही कोई अधिकारी मुझे इस बारे में सूचित करता है. ये प्रताड़ना नहीं है तो और क्या है. मैंने उनसे कहा है कि मेरे जीते जी तो कम से कम फैसला दे दो. मैं कोई दाग लेकर नहीं यहां से जाना चाहता हूं.' 

शाम चंद ने दावा किया कि उनकी 10 लाख रुपये से अधिक की राशि लंबित है.

किन कारणों से नहीं मिल रहा बेनिफिट्स

दिल्ली सरकार के सेवा विभाग ने पिछले महीने 13 जून को एक ऑफिस मेमोरेंडम जारी किया. इसमें उसने स्वीकार किया कि बड़ी संख्या में रिटायर्ड कर्मचारियों को पेंशन संबंधी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं.

विभाग के विशेष सचिव कुलानंद जोशी ने अपने पत्र में कहा था, 

'पेंशन संबंधी शिकायतों को देखने से पता चलता है कि रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी काफी परेशानी में हैं, जिससे बचा जा सकता था. उन्होंने कई सालों तक सरकार में अपनी सेवाएं दी हैं, लेकिन प्रशासनिक समस्याओं, देरी और कमियों के चलते उन्हें तकलीफ दी जा रही है.'

विभाग ने बताया कि इन कारणों से पेंशन संबंधी समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है:

  1. रिटायरमेंट ऑर्डर जारी करने में देरी.
  2. संबंधित प्रिसिंपल अकाउंट्स ऑफिस में पेंशन पेपर्स जमा करने में देरी.
  3. विजिलेंस क्लियरेंस मिलने में देरी.
  4. छोटी-मोटी गलतियों जैसे कि हस्ताक्षर, अंगूठा लगाना, अटेस्ट करना इत्यादि के चलते फॉर्म भरने में देरी.
  5. तमाम वेरिफिकेशन संबंधी दस्तावेज मिलने में देरी.
  6. कुछ मामलों में बैंक डिटेल वगैरह नहीं भरने के कारण पेंशन सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं.

इस पूरे मामले को लेकर 10 जून को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद सेवा विभाग ने 15 जून से 15 जुलाई तक एक स्पेशल ड्राइव चलाई है. इसके लिए सभी विभागों से कहा गया है कि वे एक विशेष टीम का गठन करें और 31 मई तक के लंबित सभी पेंशन मामलों का तत्काल निपटारा करें. इसके अलावा मुख्य सचिव के ऑफिस ने लंबित पेंशन मामलों की जानकारी सभी विभागो से मांगी है.

सेवा विभाग ने कहा कि पेंशन नियमों को ध्यान में रखते हुए सभी विभागों को ये ध्यान देने की जरूरत है कि पेंशन से जुड़े सभी प्रशासनिक प्रक्रियाओं के लिए एक समयमीमा तय है और इसका समाधान उसी बीच में किया जाना चाहिए. दी लल्लनटॉप ने विजिलेंस क्लियरेंस में देरी को लेकर दिल्ली के डायरेक्टर ऑफ विजिलेंस सुधीर कुमार से सवाल किया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब देने से इनकार कर दिया.

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