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गाड़ी का इंश्योरेंस कराने वालों को दिल्ली हाई कोर्ट का ये आदेश जान लेना चाहिए

बीमा कंपनी गाड़ी चोरी या दुर्घटनाग्रस्त होने का बहाना बनाए तो ये आदेश दिखा देना.

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फाइल फोटो. (साभार- पीटीआई)
दिल्ली हाई कोर्ट ने वाहन बीमा को लेकर अहम आदेश दिया है. उसने कहा है कि बीमा कंपनी को वाहन चोरी होने या किसी अन्य द्वारा अनधिकृत रूप से चलाए जाने की स्थिति में भी मृतक परिवार को मुआवजा देना होगा. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस संजीव सचदेवा ने कहा कि बीमा कंपनी तभी बीमा देने से इनकार कर सकती है, जब वो साबित कर पाए कि बीमाकृत या बीमित व्यक्ति ने जानबूझकर पॉलिसी का उल्लंघन किया है. ये मामला 28 जनवरी 2015 का है, जब दिल्ली के नरेला में एक स्कूटी सवार व्यक्ति को इको कार ने जोरदार टक्कर मार दी थी. इसके कारण पीड़ित जमीन पर गिर गए, जिससे उन्हें घातक चोटें आईं और बाद में उनकी मौत हो गई. बताया गया कि जिस कार ने पीड़ित को टक्कर मारी थी, वो चोरी की थी. बीमा कंपनी ने मामले की सुनवाई में इस बात पर काफी जोर दिया. कहा कि चोरी की कार होने के चलते बीमा नहीं दिया जा सकता. लेकिन कोर्ट ने कहा कि अगर बीमा कंपनी की दलीलों को स्वीकार किया जाता है तो ये दुर्घटना के शिकार लोगों को लाभ देने के लिए बने कानून की अवधारणा को ही निष्प्रभावी कर देगा. आदेश में कहा गया है कि अगर इस तरह की दलीलें मान ली जाती हैं, तो न सिर्फ बीमा कंपनी अपनी जिम्मेदारियों से बच निकलेगी, बल्कि गाड़ी का मालिक भी बेवजह प्रभावित होगा जिसने चोरी और एक्सीडेंट का बीमा कराया हुआ था. खबर के मुताबिक ये आदेश यूनाइटेड इंश्योरेंस कंपनी द्वारा दायर एक अपील पर पारित किया गया है. कंपनी ने केस में ट्रिब्यूनल के आदेश को चुनौती दी थी. उसका ये तर्क था कि चूंकि गाड़ी की चोरी हुई थी और इसे एक प्रोफेशनल चोर चला रहा था, इसलिए इस केस में बीमा देने का कोई सवाल नहीं उठता है. गाड़ी चोरी की गई थी, इस संबंध में पुलिस में एक शिकायत दर्ज कराई गई थी. न्यायालय के सामने एक बड़ा सवाल था कि क्या गाड़ी चोरी होने और किसी अनधिकृत व्यक्ति द्वारा इसे चलाए जाने की स्थिति में बीमा कंपनी पीड़ित को बीमा देने से इनकार कर सकती है? इसे लेकर हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि बीमा कंपनी ये साबित करने में विफल रही है कि जिस व्यक्ति द्वारा बीमा लिया गया था, उस व्यक्ति द्वारा बीमा नीति का कोई उल्लंघन किया गया है. दूसरी तरफ़ बीमा कंपनी ने अपनी दलीलों के लिए मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश का हवाला दिया था. हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर असहमति जताते हुए कहा कि इस आदेश में सुप्रीम के आदेश को संज्ञान में नहीं लिया गया था. इस तरह दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल के आदेश को सही ठहराया और बीमा कंपनी की याचिका को खारिज कर दिया.