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'महिला सशक्तिकरण ने बच्चों को बिगाड़ा' वाला प्रश्न CBSE ने हटाया, सफाई में क्या कहा?

सोनिया गांधी और प्रियंका चतुर्वेदी ने शिक्षा मंत्रालय और बोर्ड से माफी मांगने को कहा.

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बाएं से दाएं. CBSE की तरफ से पूछा गया स्त्रीविरोधी पैराग्रफ प्रश्न और लोकसभा में इसकी आलोचना करतीं कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी. (फोटो: ट्विटर/पीटीआई)
केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने दसवीं क्लास के अंग्रेजी पेपर में स्त्री विरोधी प्रश्न की आलोचना होने पर प्रतिक्रिया दी है. एक बयान जारी करते हुए CBSE ने कहा है कि पेपर में दिया गया पैराग्राफ उसके दिशानिर्देशों के अनुरूप नहीं है. CBSE ने बताया है कि इस पैराग्राफ को एक एक्सपर्ट कमेटी के पास भेजा गया था. बोर्ड के मुताबिक कमेटी की सलाह के आधार पर इस पैराग्राफ और उसके आधार पर पूछ गए प्रश्नों को हटाने का फैसला लिया गया है. CBSE की तरफ से ये भी कहा गया कि इस पैराग्राफ के लिए सभी स्टूडेंट को पूरे अंक दिए जाएंगे. सोनिया गांधी और प्रियंका चतुर्वेदी ने उठाया मुद्दा इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी इस मुद्दे को लोकसभा में उठाया. उन्होंने शिक्षा मंत्रालय और बोर्ड से इस पैराग्राफ को तुरंत हटाने और माफी मांगने के लिए कहा. साथ ही साथ ये भी सुनिश्चित करने को कहा कि ऐसी गलती भविष्य में ना हो. सोमवार 13 दिसंबर को लोकसभा में विवादित पैराग्राफ पर चिंता जताते हुए सोनिया गांधी ने कहा,
"मैं सरकार का ध्यान CBSE के पेपर में पूछे गए पैराग्राफ पर दिलाना चाहती हूं. इस पैराग्राफ में बहुत सी घटिया बातें लिखी हुई हैं. जैसे कि कहा गया है कि 'महिलाओं के आजादी हासिल कर लेने से बहुत सी सामाजिक और पारिवारिक समस्यायें खड़ी हो गई हैं. पत्नियों ने अपने पतियों के आदेश का पालन करना बंद कर दिया है. इसकी वजह से बच्चे और घर में काम करने वाले नौकर अनुशासित नहीं हैं'."
सोनिया गांधी ने इस पैराग्राफ के संबंध में पूछे गए प्रश्नों को भी घटिया बताया. उन्होंने चिंता जताई कि इस तरह का स्त्री विरोधी प्रश्न बोर्ड के शिक्षा स्तर को दर्शाता है. सोनिया गांधी ने आगे कहा कि पैराग्राफ घोर स्त्री विरोधी है और एक प्रगतिशील और सशक्त समाज के खिलाफ जाता है. सोनिया गांधी ने शिक्षा मंत्रालय से पाठ्यक्रम में जेंडर सेंसिटाइजेशन का रिव्यू करने की भी मांग की.
स्त्री विरोधी पैराग्राफ प्रश्न के बाद आई CBSE की प्रतिक्रिया.
स्त्री विरोधी पैराग्राफ प्रश्न के बाद आई CBSE की प्रतिक्रिया.

सोनिया गांधी के साथ-साथ शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी इस मुद्दे पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने इस मामले में केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र लिखा है. इसमें प्रियंका ने विवादित कॉन्टैन्ट की तरफ तो मंत्री का ध्यान दिलाया ही, साथ ही पूरे पैराग्राफ को घोर स्त्री विरोधी और पिछड़ी सोच वाला बताया है. उन्होंने अपने पत्र में कहा कि ये बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि इस तरह के प्रश्न राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में पूछे जा रहे हैं. शिवसेना सांसद ने सवाल पूछा कि आखिर हम अपने युवा बच्चों को क्या संदेश दे रहे हैं?

प्रियंका चतुर्वेदी ने अपने पत्र में ये सवाल भी पूछा,
अगर इस तरह की पितृसत्ता को प्रमोट करने वाले सवाल एग्जाम पेपर्स में पूछे जा रहे हैं, तो फिर महिला सशक्तिकरण के लिए तय किए गए फंड का 80 फीसदी हिस्सा प्रचार-प्रसार में खर्च करने का क्या फायदा? आखिर इस तरह का प्रश्न पास कैसे हुआ. सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी और उसके भी ऊपर बैठे लोगों ने क्या सोचकर इस प्रश्न को पेपर में जगह दी. केंद्र सरकार और बोर्ड को इन सवालों का जवाब देना चाहिए.
अपने पत्र में प्रियंका चतुर्वेदी ने आगे कहा कि इस तरह के प्रश्न उन लोगों के संघर्षों पर पानी फेरने का प्रयास करते हैं, जिन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए लड़ाई लड़ी. उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि बीजेपी और आरएसएस के शासन में स्त्री विरोधी सोच खूब फल-फूल रही है. आखिर में प्रियंका ने केंद्र सरकार और बोर्ड से देश की सभी महिलाओं से माफी मांगने के लिए कहा. पैराग्राफ में क्या है? CBSE के जिस पैराग्राफ प्रश्न की आलोचना हो रही है, वो दसवीं क्लास के 'लैंग्वेज एंड लिटरेचर' पेपर का हिस्सा है. ये एग्जाम बीती 11 दिसंबर को हुआ. इस पैराग्राफ में एक के बाद एक स्त्री विरोधी बातें लिखी हुई हैं. मसलन, पैराग्रााफ में बताया गया है,
"एक सदी पहले पुरुष अपने घर का मालिक होता था. उसकी पत्नी उसके आदेशों का पालन करती थी और उसकी अनुपस्थिति में अथॉरिटी के एक टूल के तौर पर काम करती थी. वो अथॉरिटी, जो असल में उसके पति की थी. इस अथॉरिटी के जरिए ही पत्नी अपने बच्चों पर नियंत्रण रखती थी. पति की अथॉरिटी के चलते ही बच्चे और नौकर पत्नी का आदेश मानते थे और पति की अनुपस्थिति में भी अपनी हदों में रहते थे."
पैराग्राफ में आगे लिखा गया,
"बीसवीं शताब्दी में पारिवारिक जीवन में परिवर्तन आया. बच्चे कम हो गए और नारीवादी आंदोलनों का उदय हुआ. पिता की अथॉरिटी कम हो गई. स्त्रियां बराबरी की मांग करने लगीं. बड़ी चिंताओं के साथ उनकी ये मांग स्वीकारी गई. अब बच्चों से बातचीत की जाने लगी. उनकी मानसिकता पर किताबें पढ़ी जाने लगीं. महिलाएं अलग काम करने लगीं. शादीशुदा महिलाओं ने खुद को अभिव्यक्त किया और घर के फैसलों पर पुरुषों का एकाधिकार लगभग समाप्त हो गया."
इस पैराग्राफ के शुरुआत में एक सवाल पूछा गया था कि आखिर किशोर बच्चे अपनी अलग दुनिया में क्यों रहने लगे हैं. जवाब में कहा गया कि इसकी कई वजहें हैं. इनमें से एक है- बच्चों के ऊपर से माता-पिता का नियंत्रण हट जाना. पैराग्राफ के बीच में ये बताने की कोशिश हुई कि आखिर ये कथित नियंत्रण हटा कैसै, और अंत में स्त्रियों के उत्थान और सशक्तिकरण को इसका प्रमुख कारण बता दिया गया. लिखा गया,
"ये बात लोगों को बहुत बाद में समझ आई कि बच्चों के ऊपर से माता-पिता का नियंत्रण हटने की वजह परिवार में पत्नी का सशक्तिकरण है. मां ने पिता की अथॉरिटी को स्वीकार नहीं किया. अब माता-पिता के बीच असहमति दिखने लगी. इससे बच्चा इनमें से एक या दूसरे के प्रति झुकाव रखने लगा. बाद में दोनों को ही इग्नोर करने लगा. पति को उसकी अथॉरिटी से हटाकर पत्नी ने अनुशासन की इकाई तोड़ दी और खुद को भी उस पावर से दूर कर लिया."
इस पेपर के सामने आने के बाद से ही सोशल मीडिया पर इसकी कड़ी आलोचना हुई. आखिर में ये मुद्दा देश की संसद में भी उठा. फिलहाल बोर्ड ने इसे हटाने का फैसला लिया है.