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अयोध्या में दलितों से ली गई जमीन का ट्रांसफर अवैध घोषित, अब कौन होगा मालिक?

लगभग 21 बीघा जमीन MRVT को ट्रांसफर करने के सरकारी आदेश को कोर्ट ने अवैध माना.

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सांकेतिक तस्वीर-PTI
अयोध्या में दलितों की लगभग 21 बीघा जमीन महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट (MRVT) को ट्रांसफर करने के सरकारी आदेश को कोर्ट ने अवैध माना है.  22 अगस्त, 1996  को ये जमीन ट्रांसफर की गई थी. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक Assistant Record Officer (ARO) कोर्ट ने ट्रांसफर वाले सरकारी आदेश को अवैध घोषित कर जमीन राज्य सरकार को सौंप दी है. सरल शब्दों में कहें तो जिस तरह अनरजिस्टर्ड स्टांप पर जमीन ट्रस्ट के नाम दान के रूप में ट्रांसफर की गई थी उस पूरी प्रक्रिया को अवैध माना गया है. हालांकि यहां ये भी साफ करना जरूरी है कि कोर्ट ने ट्रस्ट के खिलाफ किसी कार्रवाई की सिफारिश नहीं की है. क्योंकि कोर्ट का कहना है कि इसमें कोई जालसाजी शामिल नहीं थी. क्या है मामला? 22 दिसंबर 2021 को इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट छापी. इसके मुताबिक, राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर, 2019 के फैसले के बाद अयोध्या में कई लोगों ने जमीनें खरीदीं. इनमें स्थानीय विधायक, अयोध्या में सर्विस करने वाले नौकरशाहों के करीबी रिश्तेदार, स्थानीय राजस्व अधिकारी शामिल थे. ये रिपोर्ट पब्लिश होने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 22 दिसंबर, 2021 को ही भूमि सौदों की जांच का आदेश दिया. सहायक विकास अधिकारी भानसिंह का कहना है कि मुख्यमंत्री के आदेश पर गठित जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी है. उस रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई होगी. महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने 1992 से 1996 के बीच बरहटा माझा गांव और आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जमीन खरीदी थी. आरोप लगा कि इन्हीं जमीनों में से 21 बीघा जमीन ऐसी थी जिसे खरीदने के लिए नियमों और कानूनों को दरकिनार कर दिया गया. उत्तर प्रदेश भू राजस्व संहिता में उल्लेख किए गए कानूनों के तहत किसी गैर दलित को दलित से जमीन खरीदने के लिए जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होती है, लेकिन महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने इससे बचने के लिए दलितों की जमीन अपने साथ लाए भरोसे के दलित व्यक्ति रोघई के नाम से खरीद ली. इसके बाद 22 अगस्त 1996 को इसी रोघई ने महर्षि रमण विद्यापीठ ट्रस्ट को पूरी 52000 वर्ग मीटर जमीन ₹10 के स्टांप पेपर पर दान दे दी. इस तरह बिना रजिस्टर्ड दान अभिलेख के ये पूरी जमीन महर्षि ट्रस्ट के नाम दर्ज हो गई. ट्रस्ट को इससे दो फायदा हुए. पहला, जमीन की श्रेणी नहीं चेंज करानी पड़ी और ना ही राजस्व स्टांप की बड़ी रकम ही चुकानी पड़ी. लेकिन जिन दलितों की जमीन खरीदी गई उन्हीं में से एक महादेव ने राजस्व बोर्ड लखनऊ में इसकी शिकायत की. उसका आरोप था कि अवैध तरीके से उसकी जमीन महर्षि ट्रस्ट के नाम स्थानांतरित की गई. इसी शिकायत के बाद फैजाबाद की अतिरिक्त आयुक्त शिव पूजन और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट गोरे लाल शुक्ला के निर्देशन में एक जांच कमेटी बनी. जिस पर बीते वर्ष 2021 में अयोध्या के तत्कालीन कमिश्नर और जिलाधिकारी अयोध्या ने संस्तुति दी और ये पूरा मामला सहायक रिकॉर्ड अधिकारी की अदालत में चलने लगा. मामले की सुनवाई के बाद एआरओ की राजस्व अदालत ने अब दलितों से ली गई 21 बीघा जमीन के ट्रांसफर की प्रक्रिया और संबंधित सरकारी आदेश को अवैध घोषित कर दिया है. अधिकारी क्या कह रहे हैं? सहायक रिकॉर्ड अधिकारी, भान सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया,
मैंने सर्वेक्षण-नायब तहसीलदार के अगस्त 1996 के आदेश को रद्द कर दिया है, क्योंकि ये अवैध था. मैंने इसे आगे की कार्रवाई के लिए SDM (उप-मंडल मजिस्ट्रेट) को भेज दिया है. मैं तत्कालीन सर्वे-नायब-तहसीलदार (कृष्ण कुमार सिंह, अब सेवानिवृत्त) के खिलाफ कार्रवाई की भी सिफारिश कर रहा हूं.
हालांकि भान सिंह ने कहा कि किसी और के खिलाफ कार्रवाई की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा,
चूंकि मुझे इस मामले में कोई जालसाजी नहीं मिली, इसलिए MRVT और अन्य के खिलाफ किसी कार्रवाई की सिफारिश नहीं की जा रही है.
इस मामले में संपर्क करने पर, एसडीएम (अयोध्या) प्रशांत कुमार ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. अब जमीन का क्या होगा? ट्रांसफर प्रक्रिया अवैध घोषित किए जाने के बाद ये जमीन सभी तरह के आदेशों से मुक्त हो गई है. ऐसे में इसका मालिकाना हक भी शून्य हो गया है. लिहाजा सहायक रिकॉर्ड अधिकारी के आदेश के बाद ये पूरी भूमि सरकारी घोषित हो गई है. इसे ग्राम समाज की जमीन घोषित करने के लिए एआरओ ने पत्रावली एसडीएम प्रशांत कुमार को भेज दी है. एआरओ भान सिंह का कहना है कि एसडीएम के आदेश के बाद उक्त भूमि ग्रामसभा में निहित हो जाती है. अयोध्या के जिलाधिकारी नितीश कुमार ने बताया कि यूपी के मुख्यमंत्री के आदेश पर शासन स्तर पर गठित जांच टीम ने अयोध्या आकर इस प्रकरण की जांच की है कि महर्षि ट्रस्ट से जुड़ी जमीनों को किन-किन लोगों ने खरीदा, क्या उनका महर्षि ट्रस्ट के प्रकरण से किसी तरह से जुड़ाव था या नहीं.