इसके लिए थोड़ा विज्ञान के इतिहास पर चलते हैं. जैसे-जैसे विज्ञान ने तरक्की की, डॉक्टरों को समझ आया कि अंग प्रत्यर्पण से किसी की जान बचाई जा सकती है, या किसी की जिंदगी बेहतर की जा सकती है. मसलन किसी के दोनों गुर्दे काम करना बंद कर दें तो किसी का एक गुर्दा लगाकर काम चलाया जा सकता है. इसके अलावा आंखें दान कर देने से भी किसी को नई आंखें मिल सकती हैं. लेकिन दिल का क्या? किसी का दिल सही से काम करना बंद कर दे तो उसके शरीर में किसी और का दिल लगाया जा सकता है? तारीख के इस एपिसोड में जानिए भारत की पहली हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी के बारे में. देखिए वीडियो.
तारीख: कैसे हुई थी भारत में हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी की शरुआत?
साल 1995 में एक हिन्दू महिला का दिल ट्रांसप्लांट कर एक मुस्लिम महिला के सीने में लगाया गया और इस काम को अंजाम देने वाला था एक ईसाई डॉक्टर
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