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चंगेज़ खान ने भारत पर हमला क्यों नहीं किया?

सिंधु नदी से वापिस क्यों लौट गया था चंगेज खान?

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चंगेज़ खान के बाद मंगोलों ने भारत पर आक्रमण की कई कोशिशें की लेकिन वो कभी भारत पर कब्ज़ा नहीं कर पाए (तस्वीर: Wikimedia Commons)

सिंधु नदी के किनारे खड़े उस शख़्स ने एक नज़र उस पार देखा. बस धारा पार करने की देरी थी. और वो दुनिया के सबसे वैभवशाली देश को अपनी मुट्ठी में कर सकता था. ताक़त भी थी और जुर्रत भी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. वो लौट गया और पीछे छोड़ गया एक सवाल. मध्य एशिया का सबसे क्रूर शासक, जिसने अपने साम्राज्य को यूरोप तक पहुंचा दिया था, जिसके बारे में कहा जाता था कि दुनिया की कोई फ़ौज उसे हरा नहीं सकती, उसने भारत पर आक्रमण क्यों नहीं किया? मंगोल सरदार चंगेज खान (Genghis Khan) सिंधु नदी के किनारे तक आया. उसके पास दुनिया की सबसे ताकतवर सेना थी. फिर भी उसने दिल्ली पर हमला नहीं किया.(Genghis Khan India) क्यों नहीं?

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चंगेज़ खान ने चांदी पिघलवाकर आंखों में डाल दी  

इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें चलना होगा साल 1218 में. कहानी शुरू होती है दक्षिणी कजाकिस्तान में पड़ने वाले ओतरार नाम के एक शहर से. 21 वीं सदी में इसे 'भूतों का शहर' के नाम से जाना जाता है. लेकिन एक वक्त में इसका बड़ा महत्व हुआ करता था. सिल्क रूट पर पड़ने वाला ये शहर मध्य एशिया को यूरोप से जोड़ता था. 13 वीं शताब्दी की शुरुआत में ओतरार ख्वारिज्म नाम के एक साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था. 21 वीं सदी के हिसाब से ख्वारिज्म साम्राज्य, ईरान, मध्य एशिया और अफ़ग़ानिस्तान के कुछ हिस्सों को मिलाकर बनता था. और यहां के सुल्तान थे, तुर्की मामलूक वंश के मुहम्मद शाह. मुहम्मद शाह ने अपने अंकिल इनलचुक को ओतरार का गवर्नर बनाया हुआ था. जो जैसा पहले बताया एक महतवपूर्ण ट्रेड रूट का हिस्सा था. इसलिए इनलचुक की हैसियत भी काफ़ी ज़्यादा थी. 

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चंगेज खान का जन्म सन् 1162 के आसपास मंगोलिया के एक ख़ानाबदोश कबीले में हुआ था. चंगेज़ ख़ान का असली नाम 'तेमुजिन' था (तस्वीर- Wikimedia commons)

साल 1218 में ओतरार एक घटना का गवाह बना. 450 मंगोल व्यापारियों का एक कारवां ओतरार में दाखिल हुआ. जिसमें मंगोल सरदार, चंगेज खान का एक नुमाइंदा भी शामिल था. इनलचुक को जब इस बात की खबर लगी, उसने इन सभी को जासूसी के शक में गिरफ़्तार कर लिया. हालांकि ख्वारिज्म और मंगोलों के बीच कोई लड़ाई नहीं थी. लेकिन मंगोलों का रुतबा और चंगेज खान के दुनिया जीतने के इरादे से सारी दुनिया वाक़िफ़ हो चुकी थी. इनलचुक ने 450 मंगोलों को अपने दरबार में बुलाया. आराम से जवाब देने के बजाय मंगोलों ने हेकड़ी दिखानी शुरू कर दी. ये देखकर इनलचुक इतना ग़ुस्सा हुआ कि उसने सभी मंगोल व्यापारियों को मरवा डाला. जब ये खबर चंगेज खान तक पहुंची, उसने अपने तीन दूत सुल्तान मुहम्मद शाह के पास भिजवाकर मांग रखी कि इस गुस्ताखी के लिए इनलचुक को सजा दी जाए. सुल्तान मुहम्मद दो कदम आगे था. उन्होंने एक दूत का सर काट डाला और दो दूतों की दाढ़ी मुड़वा कर उन्हें वापिस चंगेज खान के पास भिजवा दिया.

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सुल्तान को ये हरकत बहुत भारी पड़ी. साल 1219. अप्रैल का महीना. मंगोल सेनाएं ओतरार के क़िले के बाहर खड़ी थीं. बाक़ी शहर का हाल ऐसा था, जैसा खड़ी फसल का टिड्डी दल के हमले के बाद होता है. इनलचुक अपने 20 हज़ार आदमियों को लेकर क़िले के अंदर छिप गया था. कुल दो महीने तक युद्ध चला. और अंत में इनलचुक को पकड़ लिया गया. उसे समरकंद ले जाकर चंगेज खान के आगे पेश किया गया. गेम ऑफ़ थ्रोंस का वो सीन याद है. जब खाल ड्रोगो, खलिसी के भाई के सर पर गरम पिघली चांदी उड़ेलते हुए कहता है,

"राजा के लिए ताज़".

ठीक यही सीन साल 1219 में तेमुजिन उर्फ़ चंगेज खान के दरबार में दिखाई दिया. लेखक जेरिमाया कर्टिन की किताब , 'द मंगोल्स' के अनुसार, अंतर बस इतना था कि चंगेज खान ने इनलचुक के कानों और आंख में पिघली हुई चांदी भर दी थी. चंगेज खान यहीं नहीं रुका. बुखारा (आज के उज़बेकिस्तान में) की मस्जिद पर चढ़कर उसने ऐलान किया,

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"मैं जन्नत से भेजा गया दूत हूं, जो आज तुम सबका फ़ैसला करेगा".

इसी ऐलान के साथ शहर में मार काट शुरू हो गई. मंगोल सैनिकों ने पूरा शहर जला दिया. यहां से चंगेज खान समरकंद पहुंचा. यहां उसने लोगों को ग़ुलाम बनाकर उन्हें अपने बीवी बच्चों में बांट दिया. शहर का वो हाल हुआ कि उसे दोबारा बसने में कई दशक लग गए. ख्वारिज्म के ज़र्रे-ज़र्रे को चंगेज खान की फ़ौज ने नेस्तो नाबूत कर डाला. दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक को मंगोल फ़ौज ने यूं ख़त्म कर दिया जैसे बच्चों का खेल हो. हालांकि एक शख़्स अभी भी बचा था जो चंगेज खान की पहुंच से दूर था.

सिंधु नदी तक पीछा 

कर्टिन अपनी किताब में लिखते है, सुल्तान मुहम्मद अपनी जान बचाने के लिए यूं भागा, मानो ख़रगोश के पीछे लोमड़ी पड़ी हो. उसके होश फ़ाख्ता थे. एक जगह खाई पार करते हुए वो कहता है,

"मंगोल सैनिक इतने हैं कि इस खाई को तो उनके घोड़ों की लीद ही भर देगी".

जान बचाने के लिए सुल्तान मुहम्मद ने ख़ोरासान का रुख़ किया. ख़ोरासान यानी 21 वीं सदी के हिसाब से उत्तर पूर्वी ईरान का एक प्रांत. मंगोल सैनिकों ने यहां भी उसका पीछा ना छोड़ा. बल्ख, हेरात, निशापुर- ख़ोरासान के चप्पे-चप्पे पर मंगोल सेना के कदम पड़े. जिसने सर झुकाया वो बच गया, जो नहीं झुका, वो काट डाला गया. सुल्तान मुहम्मद ने मंगोलों के बचने के लिए बग़दाद भागने की कोशिश की. लेकिन उसे इसमें भी सफ़लता नहीं मिली. अंत में थक हारकर उसे कैस्पियन सागर में एक द्वीप पर शरण लेनी पड़ी. तरकीब काम आई क्योंकि मंगोल कभी समंदर में दाखिल नहीं होते थे. इस छोटे से द्वीप पर जीने के लिए सुल्तान मुहम्मद लोगों की मदद पर निर्भर था. वो लोगों से चीजें लेता और बदले में उनके नाम जागीर कर देता. हालांकि उसके खुद के पास ज़मीन का एक टुकड़ा तक नहीं बचा था. इसी द्वीप पर रहते-रहते, साल 1220 में एक बीमारी से उसकी मौत हो गई.

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जलाल अल दीं मंगबुरनी ख्वारिज़्म साम्राज्य का अन्तिम शासक था (तस्वीर- Wikimedia commons)

सुल्तान मुहम्मद के बाद सत्ता आई उसके बेटे जलाल अल-दीन मंगबुरनी के हाथों में. हालांकि सिर्फ़ नाम के लिए. गद्दी में बैठने के पहले दिन से मंगबुरनी भी उसी तरह भागता रहा, जैसे उसके पिता भागे थे. उसके पास 90 हज़ार की फ़ौज थी. इनके बल पर उसने मंगोल फ़ौज को एक लड़ाई में धूल चटाई. और चंगेज खान के दामाद को भी मार डाला. इसके बाद जलाल अल-दीन मंगबुरनी ने गजनी को अपना ठिकाना बनाया. ग़जनी यानी 21 वीं सदी के अफ़ग़ानिस्तान का एक इलाक़ा. चंगेज खान ने अपनी फ़ौज ग़जनी तक भेजी लेकिन उन्हें पहुंचने में 15 दिन की देरी हो गई. मंगबुरनी और उनके साथी सिंधु नदी की तरफ़ भागे.

सिंधु नदी के किनारे एक बार फिर दोनों सेनाओं का आमना-सामना हुआ.मामला 19-20 ही था लेकिन तभी मंगोल फ़ौज सिंधु नदी के बाईं तरफ़ मौजूद एक पहाड़ पर चढ़ गई. और दूसरी तरफ़ से आकर उन्होंने मंगबुरनी की फ़ौज को पीछे से घेर लिया. मंगबुरनी की हालत ख़राब हो चुकी थी. अंत में जब उसके सिर्फ़ 7 हज़ार सैनिक बचे थे, उसने अपना बख़्तरबंद फेंका और एक घोड़े पर चढ़ गया. घोड़े सहित उसने नदी में छलांग लगा दी. जेरिमाया कर्टिन की किताब के अनुसार ये देखकर चंगेज खान के मुंह से निकला,

“इस आदमी का पिता शाह मुहम्मद कैसे हो सकता है.”

चंगेज खान से बचने के लिए जलाल अल-दीन मंगबुरनी ने सिंधु नदी पार की. और अब यहां से हम एंटर करते हैं दिल्ली सल्तनत में. साल था 1221. दिल्ली सल्तनत में इस समय मामलूक सुल्तान इल्तुतमिश का राज़ था. भारत में धन धान्य के भंडार थे. लेकिन चंगेज खान ने ना सिंधु नदी पार की. ना भारत पर आक्रमण किया. सवाल उठता है आख़िर क्यों?

मंगोलों ने चीन, ईरान, मध्य पूर्व, यहां तक कि रूस तक अपना सीमा विस्तार किया था. क्रूरता ऐसी थी कि जेरिमाया कर्टिन के अनुसार. मंगोल जिस शहर पर धावा बोलते, वहां के कुत्ते बिल्लियों को तक ज़िंदा नहीं छोड़ते थे. ख्वारिज्म साम्राज्य को नष्ट करते हुए उन्होंने तीन सालों में 60 लाख लोगों की हत्या कर डाली थी. तब दुनिया की कुल जनसंख्या 40 करोड़ थी. यानी केवल सेंट्रल एशिया में ही मंगोलों ने दुनिया की डेढ़ प्रतिशत आबादी का सफ़ाया कर डाला था. इस आंकड़े के हिसाब से भारत की क़िस्मत अच्छी रही. लेकिन क्या ये सिर्फ़ क़िस्मत का खेल था?

चंगेज़ खान भारत से लौट क्यों गया? 

चंगेज खान ने सिंधु नदी पार क्यों नहीं की. ये जानने से पहले जानते हैं, जलाल अल-दीन मंगबुरनी का क्या हुआ? सिंधु नदी पार कर मंगबुरनी ने मुल्तान में शरण ली. यहां से उसने दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश को एक संदेश भेजा. और दिल्ली में अपने लिए शरण मांगी. इल्तुतमिश ने चतुराई दिखाई. उसने मंगबुरनी के दूत का स्वागत सत्कार किया लेकिन जल्दी से कोई जवाब नहीं भेजा. इल्तुतमिश को पता था कि ये दोधारी तलवार है. मंगबुरनी को शरण दे दी तो चंगेज खान के कोप का भाजक बनना पड़ता. और शरण नहीं दी तो ख्वारिज्म की सल्तनत से दुश्मनी हो जाती. इसलिए इल्तुतमिश ने बहुत दिनों तक बहाने बनाए. कभी कहा कि दिल्ली का मौसम सही नहीं है तो कभी कहा, आपके लिए नया महल बनाकार पेश करुंगा. थक हार कर मंगबुरनी ने लाहौर में शरण लेने में ही अपनी भलाई समझी. हालांकि ये कहानी का एक वर्जन है.

मुग़ल इतिहासकार अबुल फ़ज़ल के अनुसार, इल्तुतमिश ने मंगबुरनी के दूत को ज़हर देकर मरवा डाला था. और बदले में उसे बहुत से तोहफ़े देकर ईरान की ओर रवाना कर दिया था. एक और इतिहासकार फ़रिश्ता के अनुसार जैसे ही मंगबुरनी सिंध की सीमा तक पहुंचा. इल्तुतमिश ने फ़ौज भेजकर उसे पीछे खदेड़ दिया. इस दौरान मंगोलों की दो छोटी टुकड़ियां मुल्तान तक आई. लेकिन उन्होंने दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण की कोशिश नहीं की. बाक़ायदा चंगेज खान भी लौट गया और फिर कभी वापिस मुड़कर देखने की कोशिश नहीं की.

मंगोल इतिहास पर लिखी गई किताब, सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ़ मंगोल्स के अनुसार सिंध के किनारे चंगेज खान को एक सींग वाला एक जानवर दिखाई दिया. इस बात को अपशकुन मानकर उसने भारत पर आक्रमण का विचार त्याग दिया और वापस लौट गया. ऐसे कई मिथक और भी है लेकिन जिन बातों की सम्भावना ज़्यादा हो सकती हैं, वो कुछ और थीं.

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दिल्ली सल्तनत के शासक इल्तुतमिश ने चंगेज खान के दुश्मन को शरण देने से इनकार कर दिया था (तस्वीर- Wikimedia commons)

जेरिमाया कर्टिन की किताब , 'द मंगोल्स' के अनुसार चंगेज खान के इस अभियान के दौरान उनका विशाल मंगोल साम्राज्य बिखरने लगा था. कई जगह बग़ावतें शुरू हो गई थीं. इस कारण उसने लौटना चुना. एक सम्भावना ये भी थी कि ठंड के आदि मंगोल सैनिकों को भारत का गरम मौसम रास नहीं आया.इस तर्क को इस बात से बल मिलता है कि मंगोल फ़ौज ने मुल्तान और सिंध के कुछ हिस्सों में छापेमारी की थी. लेकिन वो वहां से जल्द ही लौट गए थे. एक और कारण हो सकता है चंगेज खान की उम्र. चंगेज खान की उम्र 60 साल हो चुकी थी. ऐसे में संभव है और आगे युद्ध करने की उसकी मंशा ना रही हो.

चंगेज खान के भारत पर आक्रमण न करने का सबसे मज़बूत कारण माना जाता है, दिल्ली सल्तनत की सूझबूझ को. दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने चंगेज खान के दुश्मन को अपने यहां शरण नहीं दी. इस तरह वो मंगोलों से सीधा टक्कर लेने से बचता रहा. मंगोलों की दिल्ली सल्तनत से कोई सीधी दुश्मनी भी नहीं थी. लिहाज़ा ये एक और कारण हो सकता है कि चंगेज खान सिंधु के किनारे से लौट गया. और उसे दोबारा लौटने का कभी मौक़ा ही नहीं मिला. 1227 में चंगेज खान की मौत हो गई. हालांकि आगे आने वाले सालों में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण की कई कोशिशें कीं. लेकिन वो भारत पर क़ब्ज़ा करने में कभी सफल नहीं हो पाए.

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