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किस टाइप के सरकारी बंगले में रहती आई हैं प्रियंका, खाली करने पर कितने पैसे भरने पड़े?

कांग्रेस महासचिव को 1 अगस्त तक लुटयंस दिल्ली का बंगला खाली करने को कहा गया.

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कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (बाएं) से लोधी स्टेट स्थित उनका बंगला 1 अगस्त, 2020 तक खाली करने को कहा गया है. दायीं तरफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का आवास 10, जनपथ. फोटो: India Today
दिल्ली में 'कई सारी दिल्ली' बसती हैं. दिल्ली-6 वाली पुरानी दिल्ली हो, नॉर्थ कैंपस वाली हो, मुखर्जी नगर या मुनीरका वाली हो. चमचमाती साउथ दिल्ली. करोल बाग-पीतमपुरा वाली. सीलमपुर वाली. या सत्ताधारियों की लुटयंस दिल्ली.
हम आज बात कर रहे हैं ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटयंस की बसाई लुटयंस दिल्ली की. जिन 'राजनीतिक गलियारों' के बारे में हम पढ़ते हैं, वो यहीं से गुजरते हैं. यहां मौजूद बंगलों के नाम 'सेंटर ऑफ पॉवर' की तरह भी इस्तेमाल होते रहे हैं. जैसे- तीन मूर्ति भवन, 10 जनपथ, 7 RCR जो फिलहाल लोक कल्याण मार्ग है. लेकिन 'लुटयंस दिल्ली' टर्म को 'एलीट वर्सेज कॉमन मैन' वाली बहस में तंज की तरह भी फेंका जाता है. कि साब आप तो लुटयंस वाले हैं. आप आम आदमी को क्या समझेंगे!
लेकिन आज ये चर्चा क्यों?
क्योंकि लुटयंस दिल्ली का एक बंगला चर्चा में है: 35, लोधी स्टेट. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को केंद्र सरकार ने ये बंगला 1 अगस्त, 2020 तक खाली करने का नोटिस पकड़ा दिया. आवासीय और शहरी मामलों के मंत्रालय की तरफ से कहा गया कि उनके पास SPG (स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप) सुरक्षा नहीं है, इसलिए अब वो इस बंगले में नहीं रह सकतीं. नवंबर, 2019 में प्रियंका गांधी की सिक्योरिटी SPG से बदलकर 'जेड प्लस' कर दी गई थी. इसमें CRPF के जवान सुरक्षा में लगे होते हैं.
21 फरवरी, 1997 को SPG के कहने पर प्रियंका गांधी को टाइप VI-B वाला ये बंगला अलॉट हुआ था. बंगला खाली कराए जाने पर हो-हल्ला भी हुआ. कांग्रेस इसे 'बदले की राजनीति' बता रही है. सरकार नियमों का हवाला दे रही है. राजनीति अपनी जगह है लेकिन सरकारी आवास/बंगले मिलने का पूरा ताम-झाम क्या है? इसी बारे में आज हम बात करेंगे 'आसान भाषा में'.
प्रियंका गांधी वाड्रा को केंद्र सरकार की तरफ से मिला नोटिस.
प्रियंका गांधी वाड्रा को केंद्र सरकार की तरफ से मिला नोटिस.

ये सरकारी आवास बंटते कैसे हैं? 
सरकारी आवास कई 'टाइप' में बांटे गए हैं. टाइप I से लेकर टाइप VIII तक. इन्हें रोमन में ही लिखा जाता है. मतलब टाइप 1 से टाइप 8. इनमें सरकारी क्वार्टर, अपार्टमेंट से लेकर पॉश इलाकों के बंगले शामिल हैं. ये आवास एरिया, सुविधाओं और सिक्योरिटी के हिसाब से बंटे होते हैं. टाइप VIII में सबसे अच्छी क्वालिटी वाले बंगले होते हैं.
सरकारी कर्मचारियों, अफसरों और नेताओं-पदाधिकारियों के लिए सरकारी आवास को लेकर बहुत सारे नियम हैं. यहां चर्चा में राजनीतिक पार्टियां और नेता हैं, तो उनसे जुड़े नियमों की ही बात करेंगे. साफ कर दें कि ये दिल्ली से जुड़े नियम हैं.
दिल्ली की इन सड़कों से आप गुजरें, तो मतलब 'सत्ता के गलियारों' से गुजर रहे हैं. फोटो: India Today
दिल्ली की इन सड़कों से आप गुजरें, तो मतलब 'सत्ता के गलियारों' से गुजर रहे हैं. फोटो: India Today

कौन देखता है ये काम?
सरकारी आवासों का आवंटन, उनका रख-रखाव, किराया-भाड़ा, ये सब काम डायरेक्टोरेट ऑफ एस्टेट्स (Directorate of Estates) का है. इस विभाग को 1922 में बनाया गया था. सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (CPWD) के तहत. दूसरे विश्व युद्ध तक तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के विभागों की संख्या तेजी से बढ़ी. ऑफिस और अधिकारियों के रहने की व्यवस्था करनी थी. तब इस संस्था ने खूब सारी इमारतें बनवाईं. प्राइवेट इमारतों का अधिग्रहण किया. दिल्ली, नई दिल्ली और अंग्रेजों की समर कैपिटल शिमला में खूब आवास बने.
ये काम इतना ज़रूरी हो गया कि अक्टूबर, 1944 में CPWD से अलग कर ये अलग संस्था बना दी गई. तत्कालीन मिनिस्ट्री ऑफ वर्क्स एंड हाउसिंग के तहत. देश के प्रमुख शहरों में इसके रीजनल ऑफिस बने. अब इसका हेडक्वार्टर नई दिल्ली में है और ये संस्था आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तहत काम करती है.
इसका प्रमुख काम है-
सरकारी संपत्ति का मैनेजमेंट और प्रशासन (आवासीय/कार्यालय)
अचल संपत्ति मांग और अधिग्रहण अधिनियम, 1952 को देखना
नियम-कायदे
दिल्ली में सरकारी आवास आवंटित करने लिए अलॉटमेंट ऑफ गवर्नमेंट रेजिडेंसेज (जनरल पूल इन दिल्ली) रूल्स, 1963 हैं.
इसमें 'अलॉटमेंट' का मतलब है कि नियमों के आधार पर किसी आवास में रहने के लिए लाइसेंस देना.
कोई भी अलॉटमेंट पीरियड 1 जनवरी से या राष्ट्रपति जो नोटिफाई करे, वहां से शुरू होता है.
नियमों के मुताबिक, दिल्ली का मतलब वो इलाका जो केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के अधीन है और जहां सरकार आवास की पात्रता तय कर सकती है.
बंगलों का बंटवारा पदाधिकारियों, नेताओं के ग्रेड पे/सैलरी और सीनियॉरिटी के आधार पर होता है.
अलग-अलग आवास के 'टाइप' और ग्रेड पे/बेसिक पे:
इस टेबल में आवास के टाइप और ग्रेड पे/बेसिक पे दिए गए हैं.
इस टेबल में आवास के टाइप और ग्रेड पे/बेसिक पे दिए गए हैं.

इनमें कुछ आवासों के लिए फंडामेंटल रूल के तहत लाइसेंस फीस ली जाती है. कुछ के लिए नहीं ली जाती. लाइसेंस फीस इस आधार पर घटती-बढ़ती है कि आपका दिल्ली में खुद का घर है या नहीं. इसके अलावा कोई शख्स लाइसेंस फीस के साथ या उसके बग़ैर आवास शेयर भी कर सकता है. इसे 'सबलेटिंग' कहते हैं. हालांकि सबलेटिंग में परिवार के करीबी रिश्ते के लोग शामिल नहीं होते हैं. मतलब वो साथ रह सकते हैं. इसे शेयरिंग नहीं माना जाएगा.
टाइप I से IV आवास (1 से 4)- इसके लिए केंद्र सरकार की सर्विस जॉइन करने वाले कर्मचारी को उसके पे लेवल के हिसाब से अलॉटमेंट होता है. पे स्केल में बदलाव से इनके आवंटन में भी बदलाव होते हैं.
टाइप IV (SPL) और उससे ऊपर आवास के अलॉटमेंट के लिए पे स्केल में बढ़ोतरी को देखा जाता है.
टाइप VI (6)- इन बंगलों में सेक्रेटरी, सांसदों, बड़े पदाधिकारियों का अलॉटमेंट होता है. इसके अलावा प्राइवेट पर्सन को भी ये अलॉट किए जा सकते हैं. उसके नियम अलग हैं.
टाइप VII (7)- ये बंगले आम तौर पर राज्य मंत्रियों, दिल्ली हाईकोर्ट के जज, लोकसभा के डिप्टी स्पीकर और राज्य सभा के डिप्टी चेयरमैन को दिए जाते हैं.
टाइप VIII (8)- ये बड़े बंगले आम तौर पर कैबिनेट मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के जज, पूर्व प्रधानमंत्रियों, पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व उप-राष्ट्रपति, वित्त आयोग के चेयरमैन को मिलते हैं. अगर पदासीन व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उसके पति/पत्नी के नाम बंगला आवंटित हो जाता है.
अगर कोई सांसद रहा हो और नई लोकसभा में सांसद नहीं चुना गया, तो उसे लोकसभा गठित होने के 15 दिनों तक अपना बंगला खाली करना होता है. वरना जुर्माना लगता है. सरकारें बदलने पर ऐसे तमाम तरह के बंगले खाली करवाए जाते हैं. कई बार पूर्व सांसद समय पर बंगले खाली नहीं करते, तो टकराव भी होता है.
तमाम पूर्व सांसद नोटिस मिलने के बाद भी बंगले खाली करने को तैयार नहीं होते. लेकिन पिछले कुछ सालों में तेजी से बंगले खाली करवाए गए हैं. सांकेतिक फोटो: India Today
तमाम पूर्व सांसद नोटिस मिलने के बाद भी बंगले खाली करने को तैयार नहीं होते. लेकिन पिछले कुछ सालों में तेजी से बंगले खाली करवाए गए हैं. सांकेतिक फोटो: India Today

प्राइवेट पर्सन के मामले में नियम
प्राइवेट पर्सन, जैसे कोई प्रतिष्ठित कलाकार, किसी क्षेत्र में ऊंचा दर्जा रखने वाला शख्स, विज्ञान, खेल, सोशल सर्विसेज, एनजीओ/संस्था के क्षेत्र में नेशनल अवॉर्ड जीतने वाले, फ्रीडम फाइटर्स जैसे ग़ैर-सरकारी लोगों को भी बंगलों का अलॉटमेंट होता है, जो कि निश्चित पीरियड तक हो सकता है. इसके लिए कैबिनेट कमिटी ऑफ एकमोडेशन (CCA) की अनुमित ज़रूरी है. इस तरह के अलॉटमेंट सरकार कुल हिस्से के पांच फीसदी स्लॉट में ही करेगी. किसी भी हालत में 5 फीसदी से ज्यादा अलॉटमेंट नहीं हो सकता.
अगर सिक्योरिटी को आधार बनाया जाए तो नियम क्या है?
7 दिसंबर, 2000 को कैबिनेट कमिटी ऑफ एकमोडेशन (CCA) ने मीटिंग में फैसला किया कि SPG प्रोटेक्शन वाले शख्स को छोड़कर किसी प्राइवेट पर्सन को सिक्योरिटी के आधार पर बंगला नहीं दिया जाएगा. बिज़नेस टुडे
के मुताबिक़, फैसला हुआ कि अगर ऐसा अलॉटमेंट होता है तो, इसका किराया मार्केट रेट के आधार पर होगा. जो सामान्य किराये से 50 गुना ज्यादा होगा. बाद में जुलाई 2003 में इसे घटा दिया गया और सामान्य किराए से 20 गुना ज्यादा लाइसेंस फीस चार्ज करने की बात कही गई.
जिनकी SPG सुरक्षा होती है, उनसे भी स्पेशल लाइसेंस फीस ली जाती है. प्रियंका गांधी से इसी नियम का हवाला देकर बंगला खाली करने को कहा गया क्योंकि उनके पास SPG सुरक्षा नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक, वो इस बंगले की लाइसेंस फीस भर रही थीं. उनसे 30 जून तक की बकाया राशि 3,46,677 रुपए चुकाने को कहा गया, जो उन्होंने चुका दी है.


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