अपने ही घर में चोरी छुपे ली गयी संगीत की बस इतनी सी ही शिक्षा के दम पर आभास कुमार गांगुली बदल गया किशोर कुमार में.
जब किशोर कुमार ने केस करने वाले डायरेक्टर की नाक में दम कर दिया
किशोर कुमार. हिन्दी फ़िल्मों के सबसे महान गायक, जिनका आज जन्मदिन है.

किशोर कुमार का निधन 13 अक्टूबर 1987 को हुआ था.
खंडवा, मध्य प्रदेश. 4 अगस्त 1929. एक छोटे से शहर के छोटे से बाज़ार के बेहद छोटे से मकान में एक बंगाली परिवार. दो बेटों के बाद तीसरा पैदा हुआ. आभास गांगुली. बंगाली परिवार होने के नाते घरवालों की आवाज़ से ज़्यादा उसके कानों में गानों की आवाज़ जाया करती थी. खुद की आवाज़ एकदम फटा हुआ बांस. साथ ही एक नम्बर का शैतान बालक. न किसी की सुननी, न समझनी. एक दिन धमाचौकड़ी मचाते हुए घर के अन्दर दौड़ लगा रहा था. मां बैठी हुई तरकारी काट रही थी. आभास के पैर की सबसे छोटी उंगली दरवाज़े के कोने में जा भिड़ी. खून बह निकला. पैर सूज गया. मलहम लगा, पट्टी बांधी गयी. आभास का रोना न शांत हुआ. तीन दिनों तक. गला फाड़ के रोता रहा. दर्द गया तो रोना बंद हुआ. अब जब वो बोलता तो उसकी आवाज़ में कुछ बदलाव आ गया था. कुछ क्या, काफी ज़्यादा. सारी खराश आंसुओं की भेंट चढ़ चुकी थी. फटा बांस अब बांसुरी में तब्दील हो गया था. बड़ा भाई संगीत की तालीम लेता था. घर पे मास्टर जी आते थे. एक कमरे में सितार और बाकी का अल्ला-बल्ला लेकर गुरु और चेला बैठे राग अलापते थे. आभास बाहर से बस झांकता रहता था. पिता वकील थे. एकदम कड़क. इस दौरान उस कमरे के अन्दर जाने की उन्हें मनाही थी. वो बस बाहर से ही झांक सकते थे.
किशोर कुमार तीन भाई थे. सबसे बड़े अशोक कुमार यानी दादा मुनि. मंझले भाई अनूप कुमार. तीसरे खुद किशोर कुमार. किशोर कुमार. जिसने मन के कोरे काग़ज़ पर कितनी ही बार अपना नाम लिख दिया. जिसने न देखा, न सोचा, बस निशाने पर जान रख दी. जो हसीनों की गली से बस दूर ही से सलाम कर के निकल जाता था. और वो जो धड़कते दिलों के तराने लिए बस चला ही जाता था. गांगुली परिवार का फ़िल्मी कनेक्शन था. तीन भाइयों के अलावा एक बहन भी थी. सती देवी. शादी हुई शशिधर मुखर्जी से. शशिधर मुखर्जी ने बम्बई में फ़िल्मिस्तान नाम का स्टूडियो बनाया. सेठ जालान के साथ पार्टनरशिप में. शशिधर मुखर्जी ने अपना करियर बॉम्बे टॉकीज़ से शुरू किया जिसमें एक फिल्म बनी महल. दादा मुनि उसमें ऐक्टिंग कर रहे थे. पहली बार. किशोर कुमार अभी बालक ही थे. दोनों के बीच कुछ 18 बरसों का फासला था. किशोर कुमार बॉम्बे टॉकीज़ जाते थे और बस कैंटीन में समय बिताते थे. एक टेबल घेर लेते थे और पूरे वक़्त उसपे तबला बजाते हुए 'बमचिक-बमचिक' सी आवाजें निकालते थे. हर कोई मज़ाक उड़ाता था. दादा मुनि अपनी पहचान बना चुके थे. लोग उन्हें जानते थे. लोगों को ऐसा भी लगता था कि उनका ये छोटा आवारा भाई अपने बड़े भाई के फ़िल्मी करियर को सीढ़ी बनाना चाहता था. किशोर कुमार को फ़ायदा बस इतना मिला कि चूंकि वो गा-वा लेते थे, उन्हें फिल्मों के गानों में कोरस में खड़े होने का मौका मिल गया. इन सबके बावजूद वो चांस मारते रहे. उन्हें कैमरे के सामने आने का शौक था. दादा मुनि ने उन्हें किसी के पास भेजा भी. उसने किशोर कुमार को झाड़ दिया. बोले कि 'तुम्हारा बड़ा भाई हीरो है तो क्या तुम भी बन जाओगे? तुम उसकी शकल देखो और अपनी देखो. तुम हीरो नहीं बन सकते.' किशोर कुमार ऐसी बातें सुनते आ रहे थे. इस बार उन्हें चुभ गयी. बहुत नाराज़ हुए. कभी भूल भी नहीं पाए. सालों बाद जब वही डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स उनके साथ काम करने आये, किशोर कुमार ने उनके साथ काम करने से साफ़ इनकार कर दिया. दिल में उन सभी के लिए वो तल्खी लिए घूमते थे. मगर वो खुद घूमते थे प्यार का गीत सुनाते हुए. जिसकी नज़र मंज़िल पर थी. एकदम झुमरू. ये अड़ियल स्वभाव उनकी पहचान थी. एकदम साफ़ सोच. अच्छा है तो अच्छा है, बुरा है तो बुरा. उन्हें चिढ़ बहुत जल्दी हो जाती थी. लेकिन थे खूब मज़ाकिया. अपने वार्डन रोड के फ़्लैट के दरवाज़े पर एक बोर्ड लगा दिया - किशोर से सावधान. उनके घर पर प्रोड्यूसर-डायरेक्टर एच.एस. रवैल आये. उन्हें कुछ पैसे देने. किशोर कुमार ने उन्हें दरवाज़े पर ही अटेंड किया और पैसे लिए. जब रवैल ने हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, तो किशोर कुमार ने हाथ पकड़ा और काट खाया. रवैल ने जब पूछा कि वो क्या कर रहे हैं, तो किशोर कुमार ने कहा, "तुमने ये बोर्ड नहीं पढ़ा?" किसी फिल्म डायरेक्टर से जब किशोर कुमार का अजीब-ओ-गरीब मज़ाक सहा नहीं गया तो वो कोर्ट चला गया. कोर्ट ने ऑर्डर दिया कि किशोर कुमार डायरेक्टर के कहे मुताबिक़ ही काम करेंगे. उसके बाद एक गाने की शूटिंग में किशोर कुमार गाड़ी चला रहे थे. शॉट खतम हो गया लेकिन वो गाड़ी चलाते रहे. चलाते-चलाते खंडाला पहुंच गए. इसलिए क्यूंकि डायरेक्टर कट बोलना भूल गया था. उन्हें नफरत थी उनसे जो उन्हें पूरा पेमेंट नहीं देते थे. एक वक़्त के बाद वो सिर्फ तभी काम करते थे, जब उनका सेक्रेटरी ये बता देता कि पूरा पेमेंट हो चुका है. एक ऐसे ही मौके पर वो शूटिंग के लिए अपने आधे चेहरे पर मेकअप लगा कर पहुंच गए. डायरेक्टर ने पूछा तो कहा, "आधा पैसा तो आधा मेकअप." बाद में समझ आया कि उन्हें पूरा पेमेंट चाहिए था जबकि मिला सिर्फ आधा ही था. ज़िद और अक्खड़पन की एक और मिसाल उन्होंने तब कायम की जब उन्होंने एक फ़िल्म की शूटिंग करने से ही मना कर दिया. डायरेक्टर ने किशोर कुमार को पांच हज़ार रुपये बकाया रख छोड़े थे. बड़े भाई अशोक कुमार ने जब समझाया तो तैयार हुए. कैमरा चालू होते ही चिल्लाये, "पांच हज़ार रुपैय्या!" और कलाबाजियां करने लगे.
किशोर कुमार के.एल. सहगल से बहुत इंस्पायर्ड थे. बचपन से. वो उनकी नक़ल करते थे. उनकी ही स्टाइल में गाने गाते थे. फिल्म जिद्दी. साल 1949. एक नया नया हीरो काम कर रहा था. देवानंद. किशोर कुमार का पहला गाना. "मरने की दुआएं क्यूं मांगूं, जीने की तमन्ना कौन करे." देखा जाए तो 1951 में सही मायनों में किशोर कुमार इंडस्ट्री में आये. बिमल रॉय डायरेक्टर थे. शीला रमानी हिरोइन थीं. किशोर कुमार ने एक दिन डायरेक्टर साहब से कहा कि इस फिल्म का एक गाना उन्हें गाना है. म्यूज़िक डायरेक्टर सलिल चौधरी से जब बात की तो उन्होंने झिड़क दिया. उन्होंने कहा कि ये कोई ट्रेंड सिंगर तो है नहीं. लेकिन किशोर कुमार जिद्दी थे. ज़िद पे अड़ गए. अंत में हार कर सलिल चौधरी ने गाना गवाया. गाना ऐसा कि आज भी उसे रेडियो पर सुनने का जी चाहता है. बेजोड़ गाना. बहुत बड़ा हिट. "छोटा सा घर होगा, बादलों की छांव में..." यहां से शुरू हुआ किशोर कुमार का सिंगिंग और ऐक्टिंग करियर. https://www.youtube.com/watch?v=KRfgKRy-W7E पचास के दशक की शुरुआत में आया गाना - "ईना मीना डीका..." एक बे सर-पैर के बोल वाला गाना. मजाल है आज भी बज जाए और आपके चेहरे पर एक मुस्कान न आए. मोहन सहगल की बनाई फिल्म न्यू डेल्ही. फिल्म का गाना नखरेवाली. बेहद पॉपुलर हुआ. और उनकी मुलाक़ात हुई एस.डी. बर्मन से. उन्होंने उनसे कहा, 'माना सहगल साहब एक बेहतरीन सिंगर थे. लेकिन तुम्हें अपनी आवाज़ को ढूंढना चाहिए.' किशोर कुमार ने अपनी आवाज़ ढूंढी और गाया उस सिंगर के लिए जिसके लिए सबसे पहले गाया था - देवानंद. फिल्म फंटूश. गाना - "देने वाला जब भी देता ..." https://www.youtube.com/watch?v=NoxSwTPneJY गाना "एक लड़की भीगी भागी सी..." किशोर कुमार का कालजयी गाना. गैराज में खड़ी एक गाड़ी, झमाझम होती बारिश, एक लड़की और किशोर कुमार. अपनी स्टाइल में गाते हुए. फिल्म का नाम 'चलती का नाम गाड़ी'. इस फिल्म की दो ख़ास बातें थी. पहली कि ये किशोर कुमार की प्रोड्यूस की हुई सबसे पहली फिल्म थी. दूसरी कि इस फिल्म में तीनों गांगुली भाइयों ने काम किया था. इस फिल्म के गाने बेहद पॉपुलर हुए. आज भी उतने ही हैं. जब किशोर कुमार पांच रुपइय्या बारा आना मांगते हैं तो फ़ील गुड वाली फीलिंग आती है. और उसका ये गाना जो बताता है कि चलती को गाड़ी कहते हैं और इशारों का समझा जाना किस कदर ज़रूरी है.
ये भी पढ़ें: बस पांडू हवलदार नहीं थे भगवान दादा: 34 बातें जो आपको ये बता देगी!

"सौ बातों की इक बात यही है, क्या भला तो क्या बुरा, कामयाबी में ज़िन्दगी है..."https://www.youtube.com/watch?v=xlbAlfzIPo0 किशोर कुमार के साथ ही फिल्मों में आई योडलिंग. गाने के दौरान किशोर कुमार की निकाली गई अजीब-ओ-गरीब आवाजें. वो आवाजें जो अब से पहले हिंदी गानों में नहीं सुनाई देती थीं. किशोर कुमार को योडलिंग का चस्का लगा था अपने मंझले भाई की वजह से. वो बचपन से उसकी प्रैक्टिस करते हुए आ रहे थे. https://www.youtube.com/watch?v=wtGL3Y9OPAU किशोर कुमार का ये मुस्कुराता हुआ, हमेशा मज़ाक के मूड में रहने वाला चेहरा एक मुखौटा मात्र था. इन सभी के पीछे एक बेहद अकेला किशोर कुमार था. वो किशोर कुमार जो चलती का नाम गाड़ी और बढ़ती का नाम दाढ़ी जैसी फिल्में बना रहा था, वही किशोर कुमार दूर गगन की छांव में, दूर का राही जैसी फिल्में बना रहे थे. इन फिल्मों के गीत भी उन्होंने ही लिखे. "बेक़रार दिल तू गाए जा, खुशियों से भरे वो तराने जिन्हें सुन के दुनिया झूम उठे..." ऐसे गाने सिर्फ वो ही लिख सकता था, जो कई सतहों में गम में डूबा हो. उनके सारे मज़ाकों के पीछे एक दर्द से झुलसता आदमी था. जो शायद दुनिया से कहता था,
https://www.youtube.com/watch?v=yIzCBU0_LyY किशोर कुमार ने पर्सनल और प्रोफ़ेशनल दोनों ही ज़िंदगियों में पहाड़ों की ऊंचाई और खाइयों की गहराई झेली. जीवन में सैकड़ों मुहब्बत भरे गाने गाने वाले किशोर कुमार असल ज़िन्दगी में लोगों के साथ के मोहताज रहे. खुद को लोगों से दूर रक्खा या दूर होते ही रहे, ये वो खुद भी नहीं समझ पाए. अपना अंतिम संस्कार खंडवा में करवाने की ख्वाहिश जता गए. कहते थे बम्बई में किसी का अंतिम संस्कार सेलिब्रिटियों का गेट-टुगेदर होता है. उन्हें वैसे नहीं जाना था. वो शांति चाहते थे. मुक्ति. अपने तमाम पचड़ों, मुसीबतों, ग़मों के बाद भी किशोर कुमार हमेशा एक ही सीख देते हुए मालूम पड़ते हैं -
"तूने ओ सनम, ढाए हैं सितम, तो ये तू भूल न जाना, के न तुझपे भी इनायत होगी, आज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी..."
https://www.youtube.com/watch?v=RIjQjECxDDA
"यूं ही गाते रहो, मुस्कुराते रहो, नाचो रे सब झूम के गाओ रे, हो गाओ रे.... आओ रे...!!!"
ये भी पढ़ें: बस पांडू हवलदार नहीं थे भगवान दादा: 34 बातें जो आपको ये बता देगी!