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क्या सोचकर रेडक्लिफ ने पाकिस्तान को लाहौर दे दिया?

पाकिस्तान आज़ादी मना रहा था बिना ये जाने कि उसका वजूद क्या है!

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भारत के विभाजन पर नई दिल्ली में सम्मेलन, 7 जून, 1947 (तस्वीर: Getty)
आज 17 अगस्त है और आज की तारीख़ का संबंध है, भारत के बंटवारे से. भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है, 15 अगस्त को. लेकिन 15 अगस्त की तारीख़ के पीछे कोई ख़ास वजह नहीं है. ये सिर्फ़ माउंटबेटन के व्हिम की बात थी.असल में जब सत्ता के ट्रांसफ़र का ज़िम्मा माउंटबेटन को सौंपा गया, तो ब्रितानी सरकार ने 30 जून 1948 तक का वक्त दिया था. लेकिन जैसा कि सी. राजगोपालाचारी ने लिखा है,
‘अगर सत्ता के ट्रांसफ़र के लिए माउंटबेटन जून 1948 तक रुके होते, तो कोई सत्ता ही नहीं बचती जिसका ट्रांसफ़र किया जा सके.’
डेट चुनने का कारण माउंटबेटन ने बाद में बताया कि वह ये दिखाना चाहते थे कि स्थिति उनके कंट्रोल में है. उन्हें ये अंदाज़ा हो चुका था कि पावर ट्रांसफ़र में देरी नहीं की जा सकती. अपने अंदाज़े से उन्होंने अगस्त या सितम्बर के महीने का निर्णय कर लिया था. फिर उन्हें ध्यान आया कि वर्ल्ड वॉर-2 के अंत में 15 अगस्त को ही जापान ने सरेंडर किया था. इसलिए माउंटबेटन ने सोचा कि ये दिन ही भारत में पावर ट्रांसफ़र के लिए सबसे सही रहेगा.
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1947 में पाकिस्तान की स्वतंत्रता पर मोहम्मद अली जिन्ना और फातिमा जिन्ना के साथ लॉर्ड माउंटबेटन (तस्वीर: Getty)


मसला सिर्फ़ पावर ट्रांसफ़र का होता तो एक बात होती. पावर ट्रांसफ़र के साथ-साथ भारत और पाकिस्तान का बंटवारा भी होना था. रेखा अब काग़ज़ों पर नहीं ज़मीन पर खिंची जानी थी. तय हुआ कि इस काम के लिए एक ऐसे व्यक्ति को चुना जाएगा जो निरपेक्ष दिख सके. और अंत में ब्रिटेन के एक बैरिस्टर लॉर्ड सिरिल रेडक्लिफ का नाम फ़ाइनल किया गया.
8 जून 1947 को रेडक्लिफ भारत पहुंचे. ब्रिटेन की वकील बिरादरी में उनकी छवि एक सुलझे हुए और तार्किक आदमी की हुआ करती थी. उनके पास इस महादेश को बांटने के लिए महज 36 दिन का समय था. लेकिन लंदन में अपनी वकालत करने वाले इस वकील को ना भारत का पता था, ना हिंदू-मुस्लिम मसले की समझ. उन्हें सिर्फ़ ये बताया गया था कि बंटवारा धर्म के आधार पर होना है. पर इसके लिए जनसंख्या का जो डेटा उन्हें मुहैया कराया गया, वो बहुत पुराना था. ना नक़्शे ठीक से बने थे, ना कोई विशेषज्ञ मौजूद था.
क़िस्से को यहां पर रोककर ज़रा 2013 पर चलते हैं.
दिसंबर 2013 में लंदन के हैम्पस्टेड थिएटर में एक नाटक का मंचन हुआ, नाम था 'ड्राइंग द लाइन’. जिसे हॉवर्ड ब्रेंटन ने लिखा था. उन्हें इस नाटक की प्रेरणा मिली, जब वो भारत के दौरे पर थे. यहां केरल प्रवास के दौरान वह एक ऐसे व्यक्ति से मिले जिसके पास पाकिस्तान में उसके पुश्तैनी घर की चाबियां अब तक थीं.
उस नाटक का एक दृश्य देखिये,
पहला व्यक्ति - ये जो लाइन है ना, नक़्शे पर. ये फिरोज़पुर की रेलवे लाइन है. आपने रेलवे लाइन के बीच में रेखा खींच दी है. अब ये लाइन आधी भारत में होगी, आधी पाकिस्तान में.
रेडक्लिफ़ : तो चलो इसे थोड़ा साउथ की तरफ़ कर देते हैं (ये कहते हुए रेडक्लिफ़ नक़्शे पे खिंची रेखा मिटाता है).
पहला व्यक्ति: लेकिन यहां तो हिंदुओं के खेत हैं.
रेडक्लिफ़: तो चलो इसे नॉर्थ की तरफ़ कर देते हैं.
नाटक में सीन कुछ हास्यास्पद सा लगता है. लेकिन जैसा कि अमेरिकी ह्यूमरिस्ट एरमा बॉमबेक ने कहा है,
‘ट्रैजडी और ह्यूमर के बीच एक बहुत महीन रेखा होती है.’
भारत पाकिस्तान के बीच बंटवारे की रेखा खींचते हुए रेडक्लिफ़ के मन में कोई इमोशन नहीं थे. उन्हें इस घटना की ट्रैजडी से कोई इत्तेफ़ाक नहीं था. ये एक सरकारी काम था. और जैसा कि होता है वो इसे जल्द से जल्द निपटा देना चाह रहे थे. भारत के वायसरॉय माउंटबेटन से बातचीत के बाद वह अपने काम पर लग गए. इस काम को पूरा करने के लिए दो बाउन्ड्री कमीशन बनाए गए. पहला पंजाब के लिए और दूसरा बंगाल के लिए. दोनों कमीशन की अध्यक्षता रेडक्लिफ को करनी थी. इसके अलावा कांग्रेस और मुस्लिम लीग से दो सदस्य इस कमीशन का हिस्सा बने.
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सिरिल जॉन रेडक्लिफ, 1977 में उनकी मृत्यु हो गई (तस्वीर: Getty)


बंटवारा जनसंख्या के हिसाब से होना था. मुस्लिम बहुल इलाक़ों को पाकिस्तान और हिंदू बहुल इलाक़ों को भारत में शामिल करना था. नतीजा था हज़ारों-लाखों लोगों का विस्थापन. 14 अगस्त को जब माउंटबेटन पाकिस्तान में आज़ादी के समारोह में शामिल हो रहे थे. तो उनके और रेडक्लिफ़ के अलावा किसी को पता नहीं था कि भारत-पाकिस्तान का नक़्शा कैसा होगा.
असल में सीमारेखा 12 अगस्त को ही तय हो गई थी. लेकिन माउंटबेटन नहीं चाहते थे कि लोग आज़ादी की तारीख़ को लेकर कन्फ़्यूज़ हों. इसलिए बंटवारे के लिए जो नक़्शा बनाया गया. वो आज ही के दिन यानी 17 अगस्त को पब्लिक के लिए उपलब्ध कराया गया.  कहते हैं कि बंटवारे के बाद के हालात को देखकर रेडक्लिफ़ इतना व्यथित हुए कि वो तुरंत वापस ब्रिटेन लौट गए. उन्होंने मेहनताने के 40 हज़ार रुपए भी नहीं लिए. और बंटवारे से सम्बंधित सारे काग़ज़ात भी जला डाले.
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नई दिल्ली सम्मेलन, जहां लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के लिए ब्रिटेन की विभाजन योजना का खुलासा किया.(तस्वीर: Getty)


1971 में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर रेडक्लिफ़ से मिलने लंदन गए. नैयर से बातचीत के दौरान रेडक्लिफ़ ने बताया,
 “मुझे 10-11 दिन मिले थे सीमा रेखा खींचने के लिए. उस वक़्त मैंने बस एक बार हवाई जहाज़ के ज़रिए दौरा किया. मेरे पास जिलों के नक्शे भी नहीं थे. मैंने देखा लाहौर में हिंदुओं की संपत्ति ज़्यादा है. लेकिन मैंने ये भी पाया कि पाकिस्तान के हिस्से में कोई बड़ा शहर नहीं था. मैंने लाहौर को भारत से निकालकर पाकिस्तान को दे दिया. लोग इसे सही या ग़लत कह सकते हैं. लेकिन ये मेरी मजबूरी थी. पाकिस्तान के लोग मुझसे नाराज़ हैं लेकिन उन्हें ख़ुश होना चाहिए कि मैंने उन्हें लाहौर दे दिया.”
17 अगस्त को ही एक और बंटवारा हुआ था. साउथ कोरिया और नॉर्थ कोरिया का.
संयोग की बात है कि जिस प्रकार पाकिस्तान पहले-पहल अमेरिका का और भारत सोवियत संघ का सहयोगी था. उसी प्रकार साउथ कोरिया और नॉर्थ कोरिया भी क्रमशः अमेरिका और सोवियत संघ के संरक्षण में ही आगे बढ़े. संयोग ये भी है कि भारत और साउथ कोरिया दुनिया के स्थापित गणतंत्र साबित हुए. पाकिस्तान में चुने गए प्रतिनिधियों का हाल आप जानते ही हैं. और उत्तर कोरिया का तो कहना ही क्या.