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क्या एशिया की सबसे बड़ी फुलवारी का मन गुलाम रसूल के बिना लग रहा होगा?

इंदिरा गांधी ट्यूलिप गार्डन के बाग़बान गुलाम रसूल के रिटायरमेंट पर.

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श्रीनगर का ट्यूलिप गार्डन और गुलाम रसूल.

पीरपंजाल की चोटियां बर्फ से ढंक गईं हैं. डल झील कोहरे की आग़ोश में है. श्रीनगर ने बर्फ की चादर ओढ़ ली है और अखबारों में ख़राब मौसम की चेतावनी है. बर्फीले बादलों के छंटने के बाद मौसम का मिज़ाज बदलेगा. कश्मीर में बसंत की शुरुआत होगी. श्रीनगर का ट्यूलिप गार्डन फूलों से गुलज़ार होगा. हर साल की तरह पर्यटकों की भीड़ भी होगी, पर गुलाम रसूल नही होंगे.

ट्यूलिप. जिन्हें निहारते-निहारते गुलाम की पलकें बोझिल हो गईं. आंखें धंस गईं. बतियाना शुरू किया तो घन्टों मौन रहे. इश्क़ किया तो पूरी उम्र खपा दी. 36 साल फूलों की संगत में रहने वाले गुलाम रसूल डेढ़ बरस पहले इंदिरा गांधी ट्यूलिप गार्डन से रिटायर हो गए. उनके रिटायरमेंट ने सुर्खियां नहीं बटोरीं, किसी चैनल पर हेडलाइन नहीं दौड़ी. गुलाम किसी शांत मौसम की तरह चुपचाप विदा हुए.
कश्मीर में डल झील के किनारे ज़बरवान पर्वतमाला के दामन में लगभग 12 हेक्टेयर फैला ट्यूलिप गार्डन गुलाम नबी आजाद के दिमाग़ की उपज थी, पर इसे उपजाया और तराशा गुलाम रसूल ने. आज़ाद जब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने इस गार्डन को बनाने का हुक़्म दिया. फ्लोरीकल्चर विभाग ने बागवानी के कुशल कारीगरों का जुटान किया और गुलाम रसूल नियुक्त हुए. इसके बाद तो लगा जैसे कि गुलाम रसूल इसके लिए ही गढ़े गए हैं. फूलों की सोहबत में जीने वाले गुलाम रसूल को ट्यूलिप की मोहब्बत में कुछ न सुहाया. बेशक ये वाटिका गुलाम नबी आजाद का सपना था, पर इसे अंजाम तक पहुंचाया गुलाम रसूल ने. ट्यूलिप के साथ उन्होंने अपनी आत्मा भी रोप दी. उनकी मेहनत के कारण ये फुलवारी एशिया के सबसे बड़े ट्यूलिप गार्डन रूप में दर्ज है.
इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्यूलिप गार्डन.श्रीनगर.
इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्यूलिप गार्डन. श्रीनगर.

परवीन शाकिर लिखती हैं-
‛मैं फूल चुनती रही और मुझे ख़बर न हुई
वो शख़्स आ के मिरे शहर से चला भी गया’
ट्यूलिप के इश्क़ में गुलाम दुनिया से बेखबर रहे. कभी भर नींद सो न पाए, कई रातें फूलों के नाम लिखते हुए गुजार दीं. बेटा कब पढ़ाई पूरी करके जवान हो गया, गुलाम रसूल को भनक भी न लगी. पत्नी लाख शिकायतें करती, फिर भी वह आधी रात अचानक उठकर फूलों का हाल जानने चले जाते थे. परिवार से ज्यादा समय उन्होंने फूलों को ही दिया. कश्मीर की सर्द हवाओं में चाय पड़ी-पड़ी ठंडी हो जाती, घर आए मेहमान रूठ कर लौट जाते, पर गुलाम! गुलाम रंग-बिरंगे ट्यूलिप की यादों में खोए रहते थे. किसी भी मौसम में उनका प्यार कभी सुस्त न हुआ. गार्डन के अधिकारी गुलाम से रात-रात भर काम करने की वजह पूछते तो गुलाम कहते थे- असली काम तभी होता है जब कोई देख न रहा हो. ये गुलाम का अंतरंग प्रेम था.
गुलाम रसूल
गुलाम रसूल

‛चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले’
क्या बिना गुलाम रसूल के ट्यूलिप का जी लग रहा होगा! नहीं लग रहा होगा. आसमान जब-जब सुर्ख़ होगा, श्रीनगर की गुनगुनी धूप बगिया को गुदगुदाएगी, जब-जब चलती हवा उपवन को छेड़ेगी, तब-तब मोहब्बत में खिले हर ट्यूलिप को रसूल और सिर्फ रसूल ही याद आएंगे. कश्मीर अगर धरती का स्वर्ग है तो ये उपवन स्वर्ग का सुख धाम, अमरावती! गुलाम रसूल इस अमरावती के शिल्पकार.
दीवार पर टंगी घड़ी कहती − “उठो अब वक़्त आ गया.” कोने में खड़ी छड़ी कहती − “चलो अब, बहुत दूर जाना है.” पैताने रखे जूते पाँव छूते “पहन लो हमें, रास्ता ऊबड़-खाबड़ है.” सन्नाटा कहता − “घबराओ मत मैं तुम्हारे साथ हूं.” यादें कहतीं − “भूल जाओ हमें अब हमारा कोई ठिकाना नहीं.”
- कुंवर नारायण
जुदा हो रहे लाडले गुलाम से फूलों ने रुक जाने को कहा होगा! चाह कर भी गुलाम रसूल नहीं रुक सके. उन्हें जाना पड़ा. अपनी बगिया को किसी और हाथ सौंप कर. गुलाम को अपने बाग़बान होने पर जरूर फ़ख़्र होगा, पर साथ ही सरकारी नौकर होने का दुःख भी. रसूल कागज़ी मानकों के हिसाब से इतनी ही सेवा दे सकते थे, सो उन्होंने दी और सेवानिवृत्त हो गए.
यकीनन ट्यूलिपों को अपने दीवाने का चले जाना अखरता होगा. बिछोह में गुलाम क्या चैन से सो पाते होंगे? विदाई के वक्त सिसकते रसूल के साथ-साथ हमेशा ख़ामोशी से खिलने, चुपचाप रंग बिखेरने और महकने वाले लाखों ट्यूलिप फूलों की आंखें भी क्या छलकी होंगी? रिटायरमेंट के बाद गुलाम रसूल क्या कर रहे होंगे? किसी बोझिल सांझ में ट्यूलिप कि यादों में सोचते होंगे, ‛तुम अगर फूल न होते तो हमारे होते.’ जिस ट्यूलिप पर वो अपना सब कुछ लुटा बैठे, क्या वे उन्हें याद करते होंगे?
बगिया में बहार आएगी, नज़ारे देखने आए लोग तस्वीरें निकाल वाहवाही कर लौट जाएंगे, पर क्या कोई ऐसा आएगा जो रसूल की तरह इन फूलों से इश्क कर पाए! समर्पण में सब कुछ हार जाए! कल नग़्मों की खिलती कलियां चुनने वाले और जरूर आएंगे पर शायद ही उन्हें कोई गुलाम रसूल सा दुलार देने वाला मिल पाए. ट्यूलिपों का शबाब अपने आशिक के बिना अधूरा ही रहेगा.