दैनिक भास्कर ने अभिमान, मॉडर्न गर्ल, दिल्ली के ठग जैसी फिल्मों में काम कर चुकी स्मृति विश्वास नारंग पर खबर की है. इसके मुताबिक 93 साल की स्मृति नासिक शहर में एक छोटे से मकान में अपने दो बेटों के साथ रहती हैं. राजकपूर, किशोर कुमार, बलराज साहनी और नरगिस के साथ काम कर चुकी हैं ये. 90 फिल्मों में काम किया.

स्मृति की डांस करते हुए तस्वीर
नारंग विला में रहने वाली यही हैं. उस वक्त इन्होंने हीरो, प्रोड्यूसर, एक्टर और डायरेक्टर एस डी नारंग से शादी कर ली थी. 1986 में एस डी की मौत हो गई. उसके बाद बकौल स्मृति, एक बिल्डर को बुलाया गया बंगले की मरम्मत के लिए. उसने कहा कि कुछ दिन के लिए बाहर रहिए. फिर ठीक कर के दूंगा. तब से लेकर आज तक वो उस बंगले में नहीं जा पाई हैं. तब से अब तक वो 28 घर बदल चुकी हैं. मुंबई छोड़कर नासिक में रहना पड़ा है. यही नहीं, इनके दिल्ली, मुंबई और महाबलेश्वर में भी बंगले थे. पर इनके रिश्तेदारों ने हथिया लिए. इनको दादा साहब फाल्के गोल्डन एरा जैसे अवॉर्ड भी मिल चुके हैं.
पर हमेशा यही स्थिति नहीं थी. 1954 में उनका एक इंटरव्यू छपा था. इसमें उनकी जिंदगी कुछ और थी.
सिनेप्लॉट वेबसाइट के मुताबिक इस इंटरव्यू में उनको बंगाल के रसगुल्ले की तरह बताया गया था. खुश, खिलंदड़ और मस्त. स्मृति ने इंटरव्यू में बताया था कि वो अपने परिवार की मर्द हैं. 9 साल की उम्र से वो परिवार को पैसे कमा के दे रही हैं. जबकि उनकी छोटी शरारती बहन नीना स्कूल जाती थी. उसको भी वो मदद करती थीं. बाद में नीना ने ही उनको नासिक में रहने में मदद की है.
इंटरव्यू में बताया गया है कि मुंबई आने से पहले बंगाल और लाहौर में उन्होंने 26 फिल्में कर ली थीं. पर बंबई में उनको वैम्प बना के पेश किया गया. हीरो हीरोइन के साथ वो दूसरी औरत बन के आती थीं. पर 1954 में आई फिल्म भगत सिंह में वो हीरोइन बनी थीं. लेकिन वो कह रही थीं कि जनता बस फिल्म हमदर्द के विलेन के तौर पर ही याद रखती है.
स्मृति कलकत्ता के यूनाइटेड मिशनरी गर्ल्स हाई स्कूल में पढ़ती थीं. उनके पापा स्कॉटिश चर्च कॉलेजिएट स्कूल के हेडमास्टर थे. मम्मी दूसरे स्कूल की हेडमिस्ट्रेस थीं. तो स्मृति कहती थीं कि उनकी पूरी स्कूल लाइफ ही हॉस्टल लाइफ की तरह थी. छुपछुप के नाचना पड़ता था. क्योंकि घरवाले इसको सपोर्ट नहीं करते थे. जब उन्होंने 9 साल की उम्र में बिमल रॉय की फिल्म हमराही में काम किया तो घर में दंगे की नौबत आ गई थी. पर फिर उन्होंने हेमेन गुप्ता की फिल्म द्वंद्व में काम कर लिया. इसके बाद पूरा परिवार ऐसे बिहैव कर रहा था जैसे कि स्मृति ने कोई क्राइम कर दिया हो. उनका स्कूल भी बदलवा दिया गया.

स्मृति
फिर ये लोग लाहौर चले गए. वहां पर उनको रागिनी फिल्म बनी. उसमें प्राण हीरो थे. बाद में प्राण और स्मृति दोनों ही विलेन बनने लगे. उस वक्त वो 3 हजार रुपये प्रति महीने कमाती थीं. ये बहुत बड़ी रकम थी उनके लिए. पर तब तक लाहौर में दंगे हो गए. सचमुच के. इसके बाद पूरा परिवार दिल्ली आ गया. यहीं उनकी मुलाकात एस डी नारंग से हुई . नारंग ने उनको लेकर हिंदी फिल्म एक बात और बंगाली फिल्म चिन्ने पुतुल यानी कि चाइनीज डॉल बनाई. चिन्ने पुतुल को वो अपनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानती थीं.

1949 में उनकी फिल्म आई अभिमान. इसने इनको अवॉर्ड भी दिलाया और काम भी. इसके बाद 1951 में वो मुंबई आ गईं. यहां ज्ञान मुखर्जी ने उनको शमशीर फिल्म में छोटा सा रोल दे दिया. पर इसी रोल में उनको उस समय के डांसिंग सनसन भगवान दादा के साथ नाचना था. इसके बाद इनको स्टारडम मिल गया. फिल्म हमदर्द में वैम्प का रोल मिला. और फिर बॉलीवुड ने अपने अंदाज में इनको टाइपकास्ट करते हुए वैम्प ही बनाना शुरू कर दिया. बॉलीवुड का ये अंदाज ही गजब लगता है. थ्रिलर फिल्म में सदाशिव अमरापुरकर, परेश रावल, बिंदु, रंजीत को लेते थे. सारा सस्पेंस पहले ही खत्म रहता था. पता रहता था कि कौन विलेन है.

इंटरव्यू में ये भी बताया गया है कि स्मृति खाना बनाना, तैराकी, घुड़सवारी और गिटार-हारमोनियम-सितार सब करना-बजाना जानती थीं. अंग्रेजी तो आज भी धड़ाधड़ बोलती हैं. उस वक्त भी बोलती थीं. बैडमिंटन और टेबल टेनिस भी खेलती थीं. उनकी नजर थोड़ी कमजोर थी, तो चश्मा पहनती थीं. पर फिल्मों के सेट पर नहीं. कहती थीं कि शादी के लिए जल्दबाजी नहीं करूंगी. करियर महत्वपूर्ण है. पर शादी के बाद घर ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाएगा. कहती थीं कि नारंग को भी पेंटिंग, जासूसी कहानियां, शिकार और स्पोर्ट्स पसंद हैं मेरी तरह. वो कभी सीरियस नहीं रहती थीं. एक फन लविंग टॉमबॉय थीं वो जिनको फिल्म वाले बहुत प्यार करते थे. हालांकि एक बात जरूर थी. बंगाल और लाहौर में वो स्टार थीं, पर बंबई ने उनको वो रुतबा नहीं दिया था. फिल्में मिलती थीं, पर स्टारडम नहीं.
स्मृति का अमेरिका जाने का प्लान भी था. इनग्रिड बर्गमन, रोनाल्ड कोलमैन और ग्रेगरी पैक उनके फेवरिट हॉलीवुड स्टार थे.

इनग्रिड बर्गमन
फिर 2011 में फरहाना फारुख ने स्मृति का इंटरव्यू किया था.

उस वक्त स्मृति उनको तस्वीरें दिखा रही थीं. इसमें वो फिल्मफेयर की कवरगर्ल भी बनी थीं. राजकपूर की होली पार्टियों और क्रिकेट मैच की तस्वीरें भी थीं उनमें. बता रही थीं कि पहले फिल्मस्टार बहुत मजे करते थे. अब सारे लोग चतुराई पर ध्यान देते हैं. फिर उन्होंने बताया कि कैसे धमकी फिल्म का गाना जवानी मस्तानी तांगेवालों में खूब लोकप्रिय हुआ था. स्मृति बी आर चोपड़ा के साथ कबाब पार्टी अरेंज करती थीं. मधुबाला के लिए मटकी में रसगुल्ला ले जाती थीं. देव आनंद के साथ हमसफर फिल्म में हीरोइन का रोल भी किया था. इस फिल्म में उनको देव को थप्पड़ मारना था. पर वो मार नहीं पा रही थीं. सहम जा रही थीं. देव ने बताया कि कैसे थप्पड़ मारना है.
निरुपा रॉय, बेगम पारा, श्यामा, नरगिस इनकी दोस्त हुआ करती थीं. ये लोग खूब मस्ती किया करती थीं. पर जब डॉक्टर से फिल्मकार बने नारंग से शादी हुई तो नारंग ने कह दिया कि अब पीछे मुड़ कर मत देखना. 10 साल तक रोमांस चला था. इसके बाद वो कभी फिल्म करने नहीं गईं. ये 1960 का साल था. इसके बाद वो घर पर रहने लगीं. पढ़ती, लिखतीं, खाना बनातीं. नारंग के मरने के बाद भी वो फिल्मों में नहीं गईं.

मीना कुमारी के साथ उन्होंने चांदनी चौक में शूटिंग भी की थी. मीना ने कहा था कि बासी रोटी और सब्जी के साथ खाऔगी तो आर्थराइटिस और डायबिटीज की समस्या नहीं होगी. उनसे उनकी आखिरी मुलाकात गुरुदत्त के मरने पर हुई थी. स्मृति गुरुदत्त और उनकी पत्नी गीता के भी करीब थीं. कई बार ये लोग साथ में खाना भी खाते थे. नारंग पवई के बोटिंग क्लब के मेंबर थे. तो ये लोग घूमते भी थे. स्मृति ने गुरु की फिल्म सैलाब में काम भी किया था. वो कहती थीं कि गुरुदत्त एक गर्लफ्रेंड की तरह थे. स्मृति ने बताया कि गुरुदत्त कलाकार आदमी थे. पर वहीदा रहमान का कोई रोल नहीं था उनके सुसाइड में.

गुरुदत्त
इन्होंने राजकपूर और नरगिस के साथ फिल्म जागते रहो में भी काम किया था. एक बार ये लोग श्रीलंका गये थे. वहां पर चैरिटी क्रिकेट मैच हुआ. एक टीम के कप्तान राजकपूर थे, दूसरी की नरगिस. स्मृति ने दो विकेट लिए तो इनको कंधे पर बैठाकर मैदान का चक्कर लगाया गया. ये बताती हैं कि राजकपूर को ये लोग स्वीमिंग पूल में फेंक दिया करती थीं. नरगिस के बारे में बताया कि वो खाना बनाने की शौकीन नहीं थीं लेकिन संजू के जन्मदिन पर पडिंग बनाती थीं. वो संजू को बोर्डिंग स्कूल से बुलाना चाहती थीं, लेकिन सुनील दत्त मना कर देते कि अभी उसे पढ़ने दो. ये भी बताया कि नरगिस कैंसर के चलते हॉस्पिटल में थीं. पर सुनील दत्त उनको देखने नहीं जाते थे. क्योंकि उनका दर्द नहीं बर्दाश्त कर पाते थे. नरगिस ने स्मृति को एक 'नॉटी' ग्रीटिंग कार्ड भी दिया था.

सुनील दत्त, संजय दत्त और नरगिस
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