इजराइल दुनिया का एकमात्र यहूदी देश है. फिलिस्तीनी जो कि अरब मुस्लिम हैं, इसी जमीन से आते हैं, जिसे हम इजराइल कहते हैं. जब भी इजराइल का नाम आता है, यही पता चलता है कि यहूदियों और मुसलमानों की लड़ाई हज़ार साल से चल रही है. कि इजराइल ने इस्लाम के खिलाफ जंग छेड़ रखी है. अगर इंडिया हाथ बढ़ाये तो वो इस काम में इंडिया की मदद करेगा. फिर ये भी सुनने में आता है कि इजराइल और फिलिस्तीन की लड़ाई इतनी जटिल है, जिसे समझ पाना मुश्किल है.
इजराइल और फिलिस्तीन के झगड़े का वो सच, जो कभी बताया नहीं जाता
इजराइल और फिलिस्तीन की लड़ाई में गोलियों से ज्यादा कहानियां हैं.

पर ऐसा कुछ भी नहीं है. जिस जगह को हम इजराइल-फिलिस्तीन के झगड़े के रूप में जानते हैं वो जगह सौ साल पहले बड़ी शांत हुआ करती थी. इसके पहले कोई इस्लाम-यहूदी झगड़ा नहीं था. फिर बाद में भी ये झगड़ा कभी धर्म को लेकर हुआ ही नहीं! इजराइल और फिलिस्तीन की लड़ाई में गोलियों से ज्यादा कहानियां हैं.
आबादी: 85 लाख राजधानी: जेरुसलम भाषा: हिब्रू धर्म: यहूदी

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ये लड़ाई जमीन और पहचान के लिए थी, इस्लाम के खिलाफ नहीं
इस जगह की लड़ाई दो भाग में हुई: एक अरब-इजराइल और दूसरी इजराइल-फिलिस्तीन. पहली लड़ाई हुई दो समुदायों के राष्ट्रवाद के चलते. जो द्वितीय विश्व-युद्ध और इसके साथ ब्रिटेन का राज ख़त्म होने के साथ उभरा था. अरब देश विदेशी शासन से अपनी आज़ादी के लिए खड़े हुए थे. और दुनिया में जगह-जगह फैले हुए यहूदी तरह-तरह के अत्याचारों से परेशान थे. और अपने लिए देश बना रहे थे.
दिक्कत ये हुई कि दोनों समुदायों ने एक ही जमीन को अपना मान लिया. जो ब्रिटेन के कब्जे से हाल में ही मुक्त हुआ था. हालांकि दुनिया ने इस गड़बड़ी को नोटिस किया था. और 1947 में यूएन ने प्रस्ताव दिया कि इस जगह को दो देशों में बांट दिया जाये. और 1948 में इजराइल एक देश बनकर आ गया. 1948 में साढ़े छः लाख यहूदी नीले एरिया में घुसे. और तेरह लाख अरब फिलिस्तीनी भागकर नारंगी रंग वाले में चले गए.

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पर विदेशी शासन और हस्तक्षेप के प्रति नफरत अरब देशों के दिमाग से अभी गई नहीं थी. क्योंकि एक साल भी तो नहीं हुआ था. तो 1948 में इजिप्ट, जॉर्डन, इराक और सीरिया ने इजराइल पर हमला कर दिया. पर फिलिस्तीन को बचाने के लिए नहीं. ये हमला इसलिए हुआ था कि इनकी नज़र में इजराइल विदेशी राज का नमूना था. पर हार गए. इस लड़ाई में आधा जेरुसलम शहर इजराइल के कब्जे में आ गया. फिर 7 लाख के करीब फिलिस्तीनी अरब रिफ्यूजी हो गए. पूरे एरिया पर इजराइल का कब्ज़ा हो गया. वेस्ट बैंक और गाज़ा में फिलिस्तीनियों को जगह मिली.
फिर फेमस सिक्स डे वॉर हुआ, जिसमें इजराइल ने और जमीन छीन ली
1967 में इजराइल ने दूसरी बार अरब देशों से जंग की. और इस बार फिलिस्तीन की दो जगहें वेस्ट बैंक और गाजा दोनों पर कब्ज़ा कर लिया. इसके बाद आने वाले 20 सालों में अरब देशों ने मोटा-माटी ये मान लिया कि इजराइल तो देश बन ही गया है.

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पर इसके बाद फिर एक और झगड़ा शुरू हुआ फिलिस्तीन और इजराइल के बीच. इसके पहले इजराइल अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा था. इस बार फिलिस्तीन वेस्ट बैंक और गाज़ा में खोये अपने अस्तित्व के लिए. पिछले 30 सालों में ये नफरत इतनी बढ़ गई है कि दोनों का साथ आना असंभव सा हो गया है.
90 के दशक में दोनों में एक समझौता भी हुआ. पर दिक्कत ये थी कि इसके मुताबिक दोनों को एक-दूसरे को देश के तौर पर स्वीकार करना ही था. जिसके लिए फिलिस्तीन तैयार नहीं हुआ. इजराइल का तो फायदा था ही तैयार होने में.
1920 तक ये जगह ओटोमन सम्राज्य का हिस्सा थी. पहले विश्व-युद्ध के बाद ब्रिटेन का हिस्सा बन गयी. 19वीं और 20वीं शताब्दी में यूरोप के यहूदी समुदाय में राष्ट्रवाद की भावना भड़क गयी. ये सेक्युलर समाज था जो कि फ्रेंच, चीनी, इंडियन सबकी तरह अपने लिए एक देश चाह रहे थे. इस भड़की भावना को 'ज़िओनिज्म' कहा गया.
इस लड़ाई का एक धार्मिक पहलू भी है. जो कि बाद में जुड़ा है. जेरूसलम. अब तो ये बंटा हुआ शहर है. पर ये इस्लाम की तीसरी सबसे पवित्र जगह है. अल-अक्सा मस्जिद. जो कि टेम्पल माउंट के ऊपर है. इसी टेम्पल की वेस्टर्न वॉल यहूदियों की सबसे पवित्र जगह है. (मजेदार बात ये है कि ये अंग्रेजों के लिए भी पवित्र जगह है.)
पर फिलिस्तीन का काम कैसे चल रहा है?
वेस्ट बैंक में एक ग्रुप है Palestine Liberation Organisation जो कि इजराइल से बातचीत करता है. गाजा में एक ग्रुप है हमास, जिसने इजराइल को मिटा देने की कसम खा रखी है.

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2007 में फिलिस्तीन में एक टेम्पररी सरकार बनी, जो अभी तक चल रही है. 2014 में हमास और इजराइल में फुल्टू जंग शुरू हो गयी. वेस्ट बैंक पर इजराइल का कब्ज़ा है. गाजा में फिलिस्तीनी रहते हैं. पर इजराइल की मिलिट्री ने वहां डेरा डाल रखा है. खाना-पीना मुश्किल कर दिया है. फिलिस्तीनियों का कोई देश नहीं है.

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2014 में इजराइल और हमास में भयानक भिड़ंत हुई. 8 जुलाई से 26 अगस्त तक चली इस लड़ाई में 2100 फिलिस्तीनी और 73 इजराइली मारे गए. इसकी शुरुआत हुई थी गाजा में तीन इजराइली छात्रों की हत्या से. इसके बाद इजराइल ने गाजा पर हमला कर दिया.
पर ये पता नहीं चल पाया था कि हमास ने ही इन छात्रों को मारा था. ये जरूर पता था कि इसके ठीक बाद एक फिलिस्तीनी लड़के को जलाकर मार दिया गया. इजराइल के चरमपंथियों द्वारा.
मामला सुलट जाता. पर छुटपुट लड़ाई चलने लगी. और एक दिन हमास ने 40 राकेट दाग दिए. इसके बाद सब कुछ हाथ से निकल गया. भयानक हत्याएं हुईं. इसी दौरान पता चला कि हमास ने गाजा से इजराइल तक कई सुरंगें खोद रखी थीं. इजराइल ने इन सबको नेस्तोनाबूद कर दिया. हमास को अंततः हार माननी पड़ी. पर इजराइल को जीत हासिल हुई, ये नहीं कह सकते. क्योंकि गाजा पर से हमास का प्रभाव कम नहीं हुआ है.
जब शांति की बात होगी तो क्या दिक्कतें होंगी:
जेरूसलम
इसको दोनों ही अपनी राजधानी बताते हैं. पहले ये ईस्ट और वेस्ट जेरूसलम में बंटा हुआ था. पर 1967 में इजराइल ने जेरूसलम के काफी हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया. धीरे-धीरे इजराइल के लोग बाउंड्री मार-मार के काफी हद तक शहर को पालतू बना चुके हैं.
रिफ्यूजी
इजराइल के बनने के बाद सात लाख फिलिस्तीनी रिफ्यूजी हो गए. ये लोग मेनली रमाला और जफा से भगाए गए थे. अब ये लोग सत्तर लाख हो गए हैं. अब जब भी शांति की बात होती है तो फिलिस्तीन के लोग इन सत्तर लाख लोगों के घर को वापस दिलाये जाने की बात करते हैं. पर दिक्कत ये है कि अगर ये लोग वापस आ जायें तो यहूदी अपने देश में ही माइनॉरिटी हो जायेंगे! फिर एक और दिक्कत है. अगर वेस्ट बैंक और गाजा दे भी दिया गया, तो क्या गारंटी है कि मांग और नहीं बढ़ेगी?
इंतिफाद क्या थे?
इंतिफाद मतलब विद्रोह. इजराइल के खिलाफ फिलिस्तीन ने दो बार विद्रोह किया दबा के. एक बार अस्सी के दशक में और दूसरी बार इक्कीसवीं शताब्दी के पहले दशक में. पहली बार फिलिस्तीनियों ने विरोध-प्रदर्शन किया था. क्योंकि उस समय हमास नहीं था. इन लोगों ने इजराइल में काम करने से इनकार कर दिया. हड़ताल कर दी. नारेबाजी की. इसके बाद इजराइल और फिलिस्तीन में बातचीत शुरू हो गई. ओस्लो समझौता हुआ. जिसमें दोनों को देश बनाने की सलाह दी गई.
पर ये शांति समझौता दोनों को ढंग से मंजूर नहीं था. इसके बाद फिलिस्तीन ने दूसरा इंतिफाद किया. ये बहुत खूनी और हिंसक था. क्योंकि अब फिलिस्तीन के पास भी अपना मिलिट्री संगठन हमास था. इसकी शुरुआत हुई इजराइल के होने वाले प्रधानमंत्री अरियल शेरोन की जेरूसलम टेम्पल घूमने की घटना को लेकर. फिर सुसाइड बॉम्बिंग, रॉकेट अटैक सब होने लगे.
इजराइल-फिलिस्तीन के बारे में ये सबसे बड़े झूठ फैलाये जाते हैं
1. ये कहा जाता है कि ब्रिटिश राज की कोलोनिअलिज्म का नमूना है इजराइल. पर ऐसा नहीं है. हां, ये है कि 1917 में ब्रिटेन ने बल्फर डिक्लेरेशन में ये जरूर कहा था कि यहूदियों को एक देश दिया जाएगा. ब्रिटिश राज के फिलिस्तीन में. इसके बाद वहां पर जगह-जगह से यहूदी आने लगे. जब ज्यादा आने लगे तो ब्रिटेन ने रोक भी दिया था.
2. फिर ये भी धारणा है कि हिटलर की क्रूरता से तंग यहूदियों को जगह देकर अमेरिका यूरोप के पाप का प्रायश्चित कर रहा है. पर ये भी सही नहीं है. यहां पर यहूदी हिटलर के आने से पहले से ही जमा हो रहे थे. हिटलर के बाद तेजी से जमा हुए.
3. ये भी कहा जाता है कि इजराइल को अमेरिका बेटे-बेटी की तरह मानता है. पर ये भी झूठ है! 1973 तक तो अमेरिका और इजराइल में बनती ही नहीं थी. बाद में थोड़ा शुरू हुआ. फिर अमेरिका ने इजराइल को हथियार, बिजनेस और डिप्लोमेटिक सपोर्ट देना शुरू किया. ये काम अमेरिका पाकिस्तान के साथ भी करता है. हथियार बेचना है.
4. इजराइल के बारे में लोगों को शंका रहती है कि ये फिलिस्तीन को मिटाना चाहता है. इसके लिए लम्बे प्लान कर रखे हैं. पर ये भी सही नहीं है. इजराइल डे-टू-डे बेसिस पर निबट रहा है फिलिस्तीन से. जब से फिलिस्तीन के हमास ग्रुप ने गाज़ा पर कब्ज़ा किया, तब से वो इजराइल पर हमले कर रहे हैं. इजराइल बस इसका जवाब दे पाता है.
ये आर्टिकल दी लल्लनटॉप के साथी रहे ऋषभ ने लिखा है.
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