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पुलवामा के शहीद की पत्नी ने कहा- बेटा पूछता है पापा कहां हैं, घर क्यों नहीं आ रहे

'सरकार ने सब कुछ दिया लेकिन इंसान के बिना क्या है'

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शहीद श्याम बाबू और उनकी पत्नी रूबी.
14 फरवरी, 2019 को कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमला हुआ. आत्मघाती हमलावर ने विस्फोटकों से भरी कार से काफिले को निशाना बनाया. 40 जवान शहीद हो गए. 40 में से 12 जवान उत्तर प्रदेश के थे. इनमें एक नाम था श्याम बाबू का. वे कानपुर देहात के नोनारी गांव के रहने वाले थे. उनके परिवार में माता-पिता, पत्नी रूबी और दो बच्चे हैं. रूबी को सरकार ने नौकरी दी है. वह कानपुर देहात के कलेक्ट्रेट में करती हैं. श्याम बाबू के माता-पिता गांव में रहते हैं. परिवार को सरकार से पूरी आर्थिक मदद मिल चुकी है.
'कब तक उसे फुसलाएंगे'
रूबी बताती हैं कि बच्चे पिता को याद करते हैं. श्याम बाबू का पांच साल का बेटा आयुष और डेढ़ साल की बेटी आयुषी है. बेटा आयुष मां से कई बार पिता के बारे में पूछता है. इंडिया टुडे को रूबी ने बताया, 'वह पूछता है कि पापा कहां हैं. वह घर क्यों नहीं आ रहे. उसे कहती हूं कि उन्हें छुट्टी नहीं मिल रही. जल्द ही आ जाएंगे. कब तक उसे फुसलाएंगे.' ऐसा कहते हुए उनका गला रुंध जाता है.
वह आगे कहती है कि उनके जाने से खालीपन आ गया है. सरकार ने सब कुछ दिया लेकिन इंसान के बिना क्या है. बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया.
रूबी कानपुर देहात कलेक्ट्रेट में कार्यरत हैं.
रूबी कानपुर देहात कलेक्ट्रेट में कार्यरत हैं.

'बस उनके नाम का स्मारक बन जाए'
सरकार से मदद मिलने के बारे में वह कहती हैं कि जो भी कहा गया था सब मिला है. नौकरी भी मिल गई है. पैसे भी मिले हैं. हालांकि उन्हें इस बात का मलाल है कि श्याम बाबू के नाम से अभी तक स्मारक नहीं बना रहा है. वे कहती हैं, 'जितना जल्दी स्मारक बन जाए उतना ठीक है. उन्होंने देश के लिए जान कुर्बान कर दी. हमें और कुछ नहीं चाहिए. बस उनके नाम का स्मारक बन जाए. यही इच्छा है.'
रूबी ने बताया कि पुलवामा हमले की जांच के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. वहीं रिलायंस फाउंडेशन के शहीदों के बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठाने के सवाल पर रूबी ने कहा कि उन्हें इस बारे में नहीं पता.


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