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इस मोदी को जानो, हंसते-हंसते समझ बढ़ जाएगी

किस्से पीलू मोदी के, जो संसद में पीएम को भी नहीं बख्शते थे.

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आज पलिटिकल किस्सा सबसे हंसोड़ सांसद का. जिसकी नजर और समझ पैनी थी. जो हंसता था. सबसे ज्याद खुद पर. और दूसरों को भी नहीं बख्शता था. फिर चाहे वह प्रधानमंत्री हों या कोई और.
आज बात पीलू मोदी की. उनकी जिंदादिली के किस्से जानने से पहले कुछ बुनियादी बातें जान लें.
पीलू मोदी अपना बर्थडे साझा करते थे नेहरू के साथ. 14 नवंबर. साल था 1926 और जगह मुंबई. पीलू के पिता प्रतिष्ठित पारसी थे. सर होमी मोदी. कारोबारी भी और गांधीवादी भी. अंग्रेजों के जमाने में विधायक रहे. फिर संविधान सभा के सदस्य. और उसके बाद यूपी के राज्यपाल. पहले. अगर आपको सरोजिनी नायडू का नाम ध्यान आ रहा तो दुरुस्त कर लें. नायडू यूनाइटेड प्रोविंस की पहली राज्यपाल थीं. यूपी 1950 में बना और तब इसके गवर्नर थे होमी मोदी. 1952 तक वह इस पद पर रहे. होमी के तीन बच्चे. दो मशहूर हुए. रुसी और पीलू मोदी. ये पीलू मोदी की कहानी है.
पीलू मोदी ने अपने दोस्त ज़ुल्फिकार अली भुट्टो पर ज़ुल्फी माय फ्रेंड नाम की किताब भी लिखी थी.
पीलू मोदी ने अपने दोस्त ज़ुल्फिकार अली भुट्टो पर ज़ुल्फी माय फ्रेंड नाम की किताब भी लिखी थी.


उनकी शुरुआती स्कूली पढ़ाई बंबई के कैथेड्रल ब्वायज स्कूल में हुई. यहां उनके क्लासमेट थे जूनागढ़ रियासत के दीवान शाहनवाज भुट्टो के बेटे जुल्फिकार अली भुट्टो. वही जुल्फिकार जो बाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. बेनजीर इन्हीं की बेटी थीं. पीलू और जुल्फिकार पक्के दोस्त थे. बाद के दिनों में पीलू ने 'जुल्फी माई फ्रेंड' के नाम से उन पर किताब भी लिखी. सिर्फ जुल्फिकार ही नेता नहीं बने, पीलू भी इस लाइन में आए. पिता की तरह. ट्रेन में कारसेवकों को जलाने के बाद देश की तारीख में गाढ़ी स्याही से दर्ज हो चुके गुजरात के गोधरा से सांसद रहे.
उससे पहले आर्किटेक्ट. अमरीका की बर्कले यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल कर. दिल्ली के ओबेरॉय होटल का डिजाइन पीलू का ही बनाया हुआ है.
ऊपर पीलू की सांसदी का जिक्र आया. किस पार्टी से. स्वतंत्र पार्टी से. जिसका अब अस्तित्व नहीं. इसे 1960 में स्वतंत्र भारत के पहले भारतीय गवर्नर रहे राजगोपालाचारी ने गठित किया था. पीलू इसके संस्थापक सदस्यों में से एक थे. जयपुर की मशहूर गायत्री देवी भी इसी पार्टी के टिकट से सांसद बनी थीं. स्वतंत्र पार्टी बाजारवाद और खुलेपन की समर्थक थी. सरकारी नियंत्रण के बनिस्बत. इसे पूर्व रजवाड़ों और कारोबारी घरानों की पार्टी माना जाता था. इसी के टिकट पर पीलू नई बनी गोधरा लोकसभा से 1967 एवं 1971 में संसद पहुंचे. 1978 में वह जनता पार्टी के टिकट पर राज्यसभा सदस्य चुने गए. लगभग 14 साल के संसदीय जीवन में पीलू ने संसद को अपनी समझ और व्यंग्य से खूब समृद्ध किया.
आज सुनिए, पढ़िए, उनके ऐसे ही दस किस्से.
1 क्या राज्यसभा में कोई रेंका था राज्यसभा चल रही थी. साल था 1980. पीलू किसी विषय पर बोल रहे थे. उधर ट्रेजरी बैंच की तरफ बैठे थे कांग्रेसी सांसद जेसी जैन. जैन की आदत थी, पीलू के भाषण के दौरान टोका टाकी की. इस बार भी उन्होंने यही किया. पीलू ताव में बोले, अंग्रेजी में, स्टॉप बार्किंग. यानी कि भौंकना बंद करो.
ये सुनते ही जैन ने आसमान सिर पर उठा लिया. वो चिल्लाए, ''सभापति महोदय, ये मुझे कुत्ता कह रहे हैं। यह असंसदीय भाषा है."
सभापति की कुर्सी पर बैठे थे देश के उपराष्ट्रपति हिदायतउल्लाह. उन्होंने आदेश दिया. पीलू मोदी ने जो कुछ भी कहा वो रिकॉर्ड में नहीं जाएगा. जैन मुस्कुराए. कुछ बोले. मगर पीलू भी कम न थे. अब वह बोले, "ऑल राइट देन, स्टॉप ब्रेइंग (यानी रेंकना बंद करो)." जैन को ब्रेइंग शब्द का मतलब नहीं पता था, इसलिए वो चुप रहे. और वो शब्द राज्यसभा की कार्रवाई के रिकॉर्ड में दर्ज हो गया. हमेशा के लिए.
2 मैं सीआईए एजेंट हूं इंदिरा के राज में जब भी कोई कांग्रेस या सरकार का विरोध करता, उसे फौरन सरकारी पिट्ठू अमरीकी एजेंट करार देते. अब जाहिर कि विरोध का काम, सवाल पूछने का काम विपक्ष का था. स्वतंत्र पार्टी के पीलू मोदी अकसर अपना धर्म निभाते. और कांग्रेसी उन्हें भी विदेशी ताकतों का एजेंट कह देते. ऐसे में एक दिन पीलू अपने गले में एक प्लेकार्ड यानी तख्ती लटकाकर पहुंच गए. इसमें लिखा था, 'I am a CIA agent'कहां पहुंच गए, संसद के सेंट्रल हॉल. यानी वो जगह जहां तमाम पार्टियों के सांसद और पत्रकार गुफ्तगू करते हैं.
3 मोदी से दशकों पहले, टॉयलेट की बात सत्तर के दशक के बीतने से पहले पीलू को समझ आ गया. अब स्वतंत्र पार्टी के दिन पूरे हुए. उन्होंने विपक्षी एकता के नाम पर चौधरी चरण सिंह की लोकदन में अपनी पार्टी का विलय कर दिया. उसके बाद एक रोज चौधरी के बंगले पर बात हुई. गांवों की जरूरतों के बारे में. चौधरी चरण सिंह फसल, ट्रैक्टर, यूरिया और सिंचाई की बात करने लगे. मगर पीलू बोले, हमें गांवों में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक शौचालय बनाने चाहिए. चौधरी हंसने लगे और बोले, मोदी साहब, आप भी क्या बात ले आए. तब पीलू ने कहा, चौधरी साहब आप गाँवों में पले-बढ़े ज़रूर हैं लेकिन आपने एक बात पर गौर नहीं किया. पब्लिक टायलेट्स के अभाव में भारत की गरीब महिलाओं की शारीरिक बनावट में अंतर आ रहा है. ये उनकी सेहत के लिए बहुत ख़तरनाक हो सकता है. तब चौधऱी चरण सिंह को लगा कि ये तो बहुत गंभीर किस्म का आदमी है.
जब चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने, 1979 में, तब भी पीलू के तेवर अपने नेता के प्रति नहीं बदले. वह साफगोई बरतते रहे. एक बार तो एक बहस में उन्होंने चरण सिंह को कह दिया, आपके लिए तो हिंदुस्तान झांसी तक ही है. इसके आगे तो आपको पता ही नहीं है. (चौधरी चरण सिंह ने तमाम जिंदगी उत्तर भारत के किसानों की राजनीति की, इसी संदर्भ में था ये बयान)
4. मैं परमानेंट पीएम, आप टेंपरेरी पीलू और इंदिरा, राजनीतिक तौर पर विरोधी थे, मगर निजी जीवन में मित्रवत. इंदिरा संसद में दिए गए पीलू मोदी के किसी भी भाषण को मिस नहीं करती थीं. अकसर पीलू की स्पीच के बाद वह नोट भी भेजतीं, तारीफ से भरा. जाहिर है कि पीलू भी इसका जवाब देते. और पीएम को भेजी जवाबी स्लिप के आखिरी में लिखते पीएम. पीएम क्यों. क्योंकि ये पीलू मोदी का शॉर्ट फॉर्म था. पीलू कई बार इंदिरा के सामने भी कहते, "आई एम ए परमानेंट पीएम, यू आर ओनली टेंपेरेरी पीएम". इंदिरा ये सुन मुस्कुरा देतीं.
5. तीसरी बार नहीं मिलूंगा आपसे 1969 में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस बंटी. इंदिरा ने अलग पार्टी कांग्रेस आर बना ली. आर मतलब रूलिंग. कांग्रेस के जो सांसद सिंडीकेट के खेमे में चले गए, उनकी भरपाई कम्युनिस्ट पार्टियों के समर्थन से हुई. इंदिरा पीएम बनी रहीं. ये वो दौर था, जब इंदिरा कई पार्टियों में अपने लिए समर्थन जुटा रही थीं. इस दौरान वह पीलू को अकसर बुलावा भेजतीं. बातचीत के दौरान खुद चाय बनाकर सर्व करतीं. दो दफा तो पीलू इस बुलावे पर चले गए, मगर तीसरी बार संदेशा आया तो इनकार कर दिया. कुछ रोज बाद संसद के गलियारों में पीलू इंदिरा के सामने पड़ गए. इंदिरा ने तब पीलू से न आने की वजह पूछी. पीलू बोले, मैं जान बूझकर नहीं आया. आपका व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि अगर तीसरी बार मिलता तो आपको सपोर्ट करने लगता. इंदिरा फिर मुस्कुरा दीं. और पीलू. वे ठहाका मारकर हंसने लगे.
6 क्या पीएम संसद में अखबारी पहेली हल कर सकता है? ये सवाल पीलू मोदी ने पूछा. स्पीकर से. इस सवाल के पीछे की एक कहानी है. पीलू मोदी की पत्रकारों से खूब छनती थी. लोकसभा में पत्रकार दीर्घा बालकनी में होती है. यानी सदन में कौन क्या कर रहा है, उसका पत्रकारों को एरियल व्यू मिलता है. इसी व्यू के चलते कुछ पत्रकारों को दिख गया कि जब शाम के समय इंदिरा लोकसभा में आती हैं, तो उनके हाथ में अखबार होता है. ईवनिंग न्यूजपेपर. और उसमें छपी होती थी क्रॉसवर्ड पज़ल (शब्द वर्ग पहेली). बहस के दौरान अकसर इंदिरा अखबार पर झुकीं पहेली हल कर रही होतीं.
पीलू को जब ये पता चला तो उन्होंने अपने पत्रकार मित्र से कहा, अगली दफा जब इंदिरा ऐसा करें तो मुझे गैलरी से इशारा कर देना. अगली बारी जल्द आई. इशारा मिलते ही पीलू खड़े हुए और स्पीकर से कहा, 'सर प्वाएंट ऑफ़ ऑर्डर. ( ये एक वैधानिक टर्म है, जब कोई औचक महत्व का विषय आ जाए या कोई चीज मिस हो रही हो और उस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत हो. स्पीकर थे नीलम संजीव रेड्डी. उन्होंने पीलू से पूछा, व्हाट प्वाएंट ऑफ़ ऑर्डर. देयर इज़ नो मैटर इन फ़्रंट ऑफ़ हाउस'. पीलू बोले, क्या कोई सांसद संसद में क्रॉसवर्ड पज़ल हल कर सकता है? यह सुनते ही इंदिरा गांधी के हाथ रुक गए. वह पीलू को घूरने लगीं. बाद में पीलू को उन्होंने नोट भेज पूछा, तुम्हें कैसे पता चला? पीलू का जवाब था, मेरे जासूस हर जगह हैं.
7 जब विदेशी महिला को संसद में घूरते धराए गए मंत्री जी श्यामनंदन मिश्रा. बिहार में बेगूसराय से आने वाले कांग्रेसी नेता और फ्रीडम फाइटर. कांग्रेसी बंटी तो इंदिरा के विरोधी खेमे में चले गए. पहले लोकसभा के रास्ते दिल्ली पहुंचते रहे और बाद में राज्यसभा के. चौधरी चरण सिंह की सरकार में विदेश मंत्री भी बने. यही श्यामनंदन एक बार पीलू के लपेटे में आ गए. हुआ यूं कि संसद की डिप्लोमेट गैलरी में एक महिला दाखिल हुईं. बेहद सुंदर. वह वेनेज़ुएला की डिप्लोमैट थीं. श्यामनंदन उनकी आमद के बाद बार बार उस तरफ देखने लगे. गलियारे में ही पीलू मोदी थे. इंदिरा के खास यूपी के नेता दिनेश सिंह से बात कर रहे थे. तभी पत्रकारों ने उन्हें इशारा कर श्याम की तरफ देखने को कहा. पल भर में ही पीलू माजरा समझ गए. वहीं से चिल्लाकर बोले, 'श्याम वॉट आर यू डूइंग?' श्याम बाबू झेंप गए. बाद में उन्होंने पीलू से पूछा, "तुम्हें कैसे पता चला"? पीलू का जवाब था, "मेरे जासूस हर जगह हैं."
8. जब पीएम ने दोस्त के लिए जेल में इंग्लिश संडास लगवाया इमरजेंसी के दौर में बाकी विपक्षी नेताओं की तरह पीलू भी जेल में ठूंस दिए गए. उन्हें कैद किया गया रोहतक जेल में. अब जेल में इंडियन स्टाइल संडास था. मगर पीलू भारी भरकम शरीर वाले आदमी. उन्हें आदत थी इंग्लिश संडास यानी कमोड की. जिस पर बिना पैरों पर बल दिए बैठा जा सकता है. इसलिए रोहतक जेल में पीलू की बुरी हालत.  तभी एक रोज उन्हें इंदिरा की स्लिप मिली. किसी चीज की जरूरत तो नहीं. पीलू ने तकलीफ बताई. इंदिरा ने फौरन रोहतक जेल में वेस्टर्न कमोड लगवाने का आदेश दिया. इस आदेश की तामील की कहानी भी दिलचस्प है. पीएमओ से ऑर्डर के बाद जेल सुपरिटेंडेंट ने पूरा रोहतक छान मारा. मगर कहीं कमोड नहीं मिला. तब एक राज मिस्त्री ने मुश्किल सुलझाई. उन्होंने ईंट व सीमेंट से ही कमोड जैसा स्ट्रक्चर बना दिया. और तब जाकर पीलू की दिक्कत दूर हुई.
9 शराबी है, अध्यक्ष नहीं बना सकते इमरजेंसी हटी तो कई विपक्षी पार्टियों ने जेपी के आह्वान पर मिलकर एक पार्टी बना ली. जनता पार्टी. इसके लिए अध्यक्ष तय करना एक मुश्किल काम था. हर धड़े के नेता और सबके ईगो. चर्चा के दौरान पीलू मोदी का नाम भी आया. समर्थकों ने कहा, वे सबको स्वीकार्य होंगे. मगर कुछ गांधीवादियों ने वीटो कर दिया. उनके ऐतराज की वजह, ये कि पीलू शराब पीते थे और इसे छिपाते नहीं थे. एक रोज जनता पार्टी के एक गांधीवादी नेता ने यही तर्क पीलू के सामने दोहरा दिया. पीलू पलटकर बोले, अध्यक्षी का मेरी बोतल से क्या लेना देना. कोई कायदे की वजह खोजिए इनकार के लिए. ये प्रसंग सुन आपको ये न लगे कि पीलू बहुत शराब पीते थे. कभी कभार वाले ही थे, मगर छिपकर नहीं.
10 मैं तो दोनों तरफ से पूरा गोल हूं ये इंदिरा का समय था. वर्चस्व की लड़ाई में कांग्रेस के भीतर जीत चुकी इंदिरा का. और अपना सिक्का जमाने के लिए वह हर जगह अपने लोग बैठा रही थीं. ऐसे ही एक लोग थे गुरदयाल सिंह ढिल्लों. पंजाब कांग्रेस के पुराने नेता और तरणतारण से पहली बार के लोकसभा सदस्य. 1969 में इंदिरा ने उन्हें लोकसभा अध्यक्ष बनवाया. अब आप ढिल्लो से परिचित हो गए इसलिए कथानायक पीलू मोदी की एंट्री करवाई जा सकती है. लोकसभा में बहस चल रही थी. पीलू अपनी सीट पर खड़े होकर हस्तक्षेप करने लगे. ढिल्लों ने डपट दिया. पीलू बच्चे की तरह गुस्सा हो गए. और वापस सीट पर बैठ गए. मगर उलटे ढंग से. यानी स्पीकर की तरफ मुंह के बजाय पीठ करके. ये देख ट्रेजरी बेंच के सांसद हल्ला मचाने लगे. इसे आसन यानी लोकसभा अध्यक्ष का अपमान माना गया. पीलू से माफी मांगने को कहा गया. ढिल्लो, ये सब तमाशा देख रहे थे. पीलू अपनी सीट पर फिर खड़े हुए. और बस एक वाक्य बोला. जिसे सुनते ही पूरे सदन में फिर ठहाके गूंजन लगे. इस बार हंसने वालों में ढिल्लो भी थे. क्या बोले थे, पीलू, ''मैं तो पूरा ही गोल हूं. किसी भी तरफ मुंह करके बैठ सकता हूं.''
पीलू ने अपनी गोलू पोलू देह का मजाक बनाया और आसन के अपमान की बात भी हवा में उड़ गई .
पीलू जिंदगी को भरपूर जीते थे. और कई बार ऐसे लोगों के लिए जिंदगी कम पड़ जाती है. पीलू का 1983 के साल की शुरुआत में निधन हो गया. 57 साल की उम्र में. ठहाके ठहर गए संसद के गलियारों के.
बाद के दौर में लोगों ने अटल, लालू और कई नेताओं का संसद में हंसोड़पन देखा. मगर पीलू अपने में अकेले थे. संसद के दोनों सदनों में भारी भरकम देह वाले सांसदों पर करीबी नजर रखते. उन्हें अपने भीम क्लब का मेंबर बताते. अकसर अपने गोल मटोल होने का खुद ही मजाक उड़ाते.


इस आर्टिकल के पहले ड्राफ्ट और रिसर्च का क्रेडिट जाता है दी लल्लनटॉप के दोस्त, रीडर, अभिषेक कुमार को. अभिषेक बिहार से हैं और सियासत की कमाल समझ रखते हैं. इन दिनों वह दिल्ली में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वालों को पढ़ा रहे हैं.


वीडियो देखें: वो नेता जिसने शास्त्री और इंदिरा को प्रधानमंत्री बनाया