अब्दुस सलाम, वो नाम जो पहला पाकिस्तानी और पहला मुस्लिम नोबेल प्राइज विनर बना. अब्दुस सलाम को 1979 में क्वांटम फिजिक्स के 'इलेक्ट्रॉनिक यूनिफिकेशन थ्योरी' के लिए स्टीवन वाइनबर्ग और शेल्डन ग्लाशो के साथ नोबेल प्राइज से सम्मानित किया गया. अब्दुस सलाम ने अपने थ्योरी के जरिए स्वतंत्र रूप से सब-एटॉमिक पार्टिकल्स को लेकर भविष्यवाणी की थी. जिसे अब ब्रिटिश साइंटिस्ट पीटर हिग्स और भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर हिग्स बोसोन का नाम दिया गया है. ये गॉड पार्टिकल्स के नाम से भी जाने जाते हैं. क्योंकि इनका अस्तित्व यूनिवर्स के शुरूआती विकास को समझने के लिए बहुत जरूरी है.
नोबेल प्राइज जीतने वाले वैज्ञानिक की कब्र से मुसलमान शब्द हटा क्यों दिया गया?
पाकिस्तान ने इस वैज्ञानिक की दुर्गति कर दी.
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अब्दुस सलाम
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नॉबेल प्राइज लेते अब्दुस सलाम
पाकिस्तान में अहमदियों पर हो रहे जुल्मो-सितम
पाकिस्तान में अहमदिया लोगों पर हुए जुल्म के कई पहलू हैं. इसकी शुरुआत 1974 में हुई, जब अहमदिया संप्रदाय के लोगों को पाकिस्तान में एक संविधान संशोधन के जरिए गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया. सिर्फ इतना ही नहीं, इस कानून के मुताबिक वे अपनी इबादत करने की जगह को मस्जिद का भी नाम नहीं दे सकते हैं. और न ही पब्लिकली कुरान की आयतें पढ़ सकते हैं. इस कानून को तोड़ने पर किसी अहमदिया को तीन साल तक के लिए जेल भेजा जा सकता है. लोगों का कहना है कि इससे अहमदिया संप्रदाय के खिलाफ हिंसा बढ़ी.
अहमदिया समुदाय के लोग
इस कानून के बनने के बाद पाकिस्तान में रहने वाले अहमदिया लोगों की अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. मसलन पाकिस्तान में रहने वाला कोई अहमदी मुसलमान हज करने नहीं जा सकता. लेकिन अगर वह किसी दूसरे देश में है तो उस पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है. अहमदिया समुदाय के लोग ख़ुद को भी मुसलमानों का ही एक फ़िरक़ा मानते हैं. अहमदिया समुदाय के लोगों का मानना है कि 1908 में शहीद हुए "हजरत मिर्जा गुलाम अहमद" अल्लाह के पैगम्बर थे. पाकिस्तान सरकार ने देश की जमात-ए-इस्लामी समेत प्रमुख इस्लामी पार्टियों के आंदोलन के बाद यह कदम उठाया. इस्लाम में पैगम्बर मोहम्मद को अंतिम पैगम्बर माना जाता है. उनके बाद अपने को पैगम्बर घोषित करने वालों को इस्लाम से ख़ारिज कर दिया जाता है. पाकिस्तान में 1953 में पहली बार अहमदियों के ख़िलाफ़ दंगे हुए और उसकी जांच के बाद पता चला कि कुछ इस्लामी कट्टरपंथियों के उकसावे पर ये दंगे हुए थे.

अहमदिया समुदाय के लोग नमाज अदा करते हुए
1984 में ज़ियाउल हक़ ने संविधान में अहमदिया को लेकर दूसरा संशोधन किया. और पाकिस्तान पीनल कोड में धारा 295 बी और सी जोड़ीं जिसके तहत अहमदियों पर पाबंदी लगा दी गई कि वे ख़ुद को मुसलमान नहीं कह सकते. और अहमदी अगर किसी को अस्सलामअलैकुम कर दे तो उसे जेल में बंद किया जा सकता है. इतना ही नहीं तौहीने रिसालत यानि ईश निन्दा करने के आरोप में उनके लिए मौत का प्रावधान कर दिया गया. यहां तक कि क़ब्रिस्तान भी अलग-अलग कर दिए गए. बाद के दशकों में जैसे पाकिस्तान में तालिबान और आतंकवाद बढ़ा. अहमदिया के खिलाफ हमले भी बढ़ने लगे. 2010 में उनकी दो मस्जिदों पर हमले हुए जिसमें 80 लोग मारे गए. आए दिन अहमदियों को टारगेट किया जाता है. पाकिस्तान में पिछले सालों में इस्लाम की कट्टरपंथी व्याख्या ने जोर पकड़ा है और देश में अहमदिया के अलावा शिया मुसलमानों, हिंदुओं, सिखोंऔर ईसाइयों जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति खराब होती गई है. पाकिस्तान की ज्यादातर आबादी सुन्नी संप्रदाय की है. समाजशास्त्रियों की रिसर्च के हिसाब से पाकिस्तान में जिस अल्पसंख्यक को सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया जाता है, वो अहमदिया समुदाय के लोग हैं.
अब्दुस सलाम को लेकर पाकिस्तान का दोगलापन
अब्दुस सलाम की अनदेखी, पाकिस्तान में पिछले चार दशकों में बढ़ते मजहबी कट्टरपंथ का ठोस सबूत हैं. उनका 1996 में निधन हुआ. सलाम का अपमान उनकी मौत के बाद भी जारी रहा. 1996 में ऑक्सफोर्ड में मौत के बाद उनका शव पाकिस्तान में दफनाया गया. उनकी कब्र के पत्थर पर लिखा गया नोबेल पुरस्कार जीतने वाला पहला मुसलमान. मजहबी कट्टरपंथियों के लगातार विरोध के बाद एक लोकल मजिस्ट्रेट ने उससे मुसलमान शब्द हटाने का आदेश दिया. कहा गया कि जो शख्स मुसलमान है ही नहीं, उसके कब्र पर मुसलमान शब्द लिखना एक गुनाह है.
अब्दुस सलाम
1960 और 70 के दशक में पाकिस्तान में अब्दुस सलाम का बड़ा रुतबा था. वे राष्ट्रपति के 'चीफ साइंटिस्ट एडवाइजर' थे. और देश की इंटरनल एजेंसी और पाकिस्तान एटॉमिक एनर्जी कमीशन बनाने में सरकार की मदद कर रहे थे. फिजिक्स के फील्ड में बेहतरीन काम और पाकिस्तान के एटॉमिक प्रोग्राम में योगदान की वजह से उन्हें साठ के दशक में पाकिस्तान का नेशनल हीरो माना जाता था. अब्दुस सलाम और उनके जैसे दूसरे 30 लाख अहमदिया लोगों की जिंदगी 1974 में तब बदल गई जब पाकिस्तान की असेंबली ने संविधान में संशोधन कर अहमदिया समुदाय को मुसलमान मानने से इनकार कर दिया. 1974 में अब्दुस सलाम ने संविधान संशोधन के विरोध में अपने सरकारी पद से इस्तीफा दे दिया और अपने काम को जारी रखने के लिए देश छोड़कर यूरोप चले गए. वहां इटली में वो न्यूक्लियर फिजिक्स पर काम करते रहे और 1979 में उन्हें नोबेल प्राइज से नवाजा गया.

अब्दुस सलाम को लेकर पाकिस्तान के रवैये के जगहंसाई के बाद हाल ही में प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की हुकूमत ने पिछले दिनों ही इस्लामाबाद के कायद-ए-आज़म यूनिवर्सिटी के नेशनल सेंटर फॉर फिज़िक्स का नाम बदल कर सलाम के नाम पर रखने को मंजूरी दे दी है. जो कि अब तक अमल में नहीं आ पाया है. जिसे पूरे पाकिस्तान में कट्टरपथियों का विरोध का सामना करना पड़ रहा है. इसी वजह से पाकिस्तान के इतिहास से भुलाए जा चुके अब्दुस सलाम इन दिनों पाकिस्तानी मीडिया में चर्चा के विषय बने हुए हैं. सबसे हास्यापद और शर्मनाक बात तो ये है कि अब्दुस सलाम के अहमदिया समुदाय का होने के कारण उनका नाम स्कूलों के सिलेबस से हटा दिया गया है.
ये स्टोरी आदित्य प्रकाश ने की है
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