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कंप्यूटर टेक्नोलॉजी में गर्दा उड़ाने वाला सिस्टम बनाया... फिजिक्स का नोबेल पाने वालों ने धांसू खोज की है

Nobel Prize in Physics 2025: ‘फिजिक्स’ के नियमों को धता बताने वाली एक ‘फिजिक्स’ है- क्वांटम फिजिक्स या क्वांटम मैकेनिक्स. इसी क्वांटम की दुनिया में एक धांसू खोज हुई है, जिसके लिए तीन वैज्ञानिकों को इस बार फिजिक्स का नोबेल प्राइज मिला है. आइए जानते हैं क्या है ये खोज?

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फिजिक्स का नोबेल पाने वाले वैज्ञानिक जॉन क्लार्क, मिशेल डेवोरेट और जॉन मार्टिनिस

एक ऐसी मशीन जो सुपर कंप्यूटर को भी चने चबवा दे. सेकंडों में वो काम कर दे, जो आज के बड़े-बड़े कंप्यूटर सालों में भी न कर पाएं. किसी दिन स्टॉक मार्केट का सारा डेटा चट से खंगाल के बता दे कि ‘ये 10 रुपये वाले 20 शेयर ले लो, 10 साल बाद करोड़पति बन जाओगे’ या फिर किसी इंसान का पूरा DNA पढ़ के ’ये जवानी है दीवानी' वाले बनी का डायलॉग बोल दे- ‘22 में पथरी, 25 में BP, 33 में गठिया.’

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सुनने में ये किसी को ज्योतिष तो किसी को हॉलीवुड की साई-फाई मूवी का सीन लग सकता है. लेकिन ये सपना जल्द हकीकत बन सकता है. दुनियाभर के साइंटिस्ट दिन-रात एक कर रहे हैं, ताकि क्वांटम कंप्यूटर नाम की ये जादुई मशीन बना सकें. इस कंप्यूटर के पीछे है ‘फिजिक्स’ के नियम तोड़ने वाली ‘फिजिक्स’- क्वांटम फिजिक्स या क्वांटम मैकेनिक्स. क्वांटम का शाब्दिक अर्थ है ‘छोटा या सूक्ष्म’, ये एटम से भी छोटे पार्टिकल्स पर काम करती है, असरदार बहुत है. 'ये देखन में छोटे लगे पर घाव करे गंभीर’. 

अब इस क्वांटम की दुनिया में एक धांसू खोज हुई है, जिसके लिए तीन वैज्ञानिकों - जॉन क्लार्क, मिशेल डेवोरेट और जॉन मार्टिनिस - ने इस बार फिजिक्स का नोबेल प्राइज झटक लिया है. खोज का नाम है, ‘माइक्रोस्कोपिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग एंड एनर्जी क्वान्टाइजेशन इन इलेक्ट्रिक सर्किट’. ये किसी गांव, कस्बे या कुल का नाम नहीं, खोज का टाइटल है. बहरहाल सबसे पहले तो आपने घबराना नहीं है. तसल्ली से समझेंगे कि

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  • क्या है ये फिजिक्स के नियमों को धता बताने वाली क्वांटम मैकेनिक्स? 
  • और कैसे इस खोज ने आने वाले भविष्य को नई दिशा दे दी है? 
#क्या है क्वांटम फिजिक्स?

सबसे पहले समझते हैं ये क्वांटम फिजिक्स है क्या बला. Evolution के क्रम में इंसानों ने दुनिया को समझने के वास्ते ख़ूब मेहनत की. वो एकदम माइक्रो लेवल पर ये समझना चाहते थे कि दुनिया कैसे बनी है? विज्ञान की खोज आगे बढ़ी. पता चला कि इस दुनिया में सब कुछ एटम से मिलकर बना है. लेकिन, जब और खोज की गई. तो समझ आया एटम के अंदर उससे भी छोटे पार्टिकल्स मौजूद हैं. जिनसे एटम बने हैं. इन्हें Subatomic Particles कहा गया. जिसमें इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन, प्रोटॉन आते हैं. 

20वीं सदी में पता चला कि फिजिक्स के सारे नियम, जो सभी चीज़ों पर लागू होते हैं. वही वाले नियम जो कभी न्यूटन और आइंस्टीन चचा ने बनाये थे. वो सभी Subatomic लेवल पर काम नहीं करते. क्योंकि एटम के अंदर की दुनिया बाहरी दुनिया से बिलकुल अलग है. इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन बी लाइक ‘हमें अपने में मत जोड़िए, हमारा नियम क़ानून अलग है’. Subatomic पार्टिकल्स के लेवल को क्वांटम लेवल कहा गया. और इस लेवल पर लागू फिजिक्स को क्वांटम फिजिक्स या क्वांटम मैकेनिक्स कहा गया. 

क्वांटम मैकेनिक्स कहती है कि एक कण एक पार्टिकल एक साथ दो जगह हो सकते हैं या दीवार पार कर सकते हैं. जैसे भूत-प्रेत फिल्मों में दीवार के आर-पार चले जाते हैं, वैसे ही. ऐसा इसलिए है क्योंकि पक्के जवाब नहीं है. मामला सारा प्रोबैबिलिटीज़ पर बेस्ड है. ऐसा क्यों? असल में किसी भी कण की पोजीशन और स्पीड को एक साथ सटीकता से नहीं मापा जा सकता. क्योंकि ये बेहद छोटे और एनर्जेटिक पार्टिकल्स हैं. माने ये किसी भी डिवाइस से देखे नही जा सकते, और इनमें इतनी एनर्जी है कि ये किसी एक जगह पर स्थिर नहीं रहते. तो कई बार ये समझना मुश्किल हो जाता है कि ये पार्टिकल हैं, या फिर एक तरंग.

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जैसे, Light यानी रोशनी के subatomic Particles यानी फोटोन, दोहरी प्रकृति के होते हैं. वे कभी Particle की तरह बर्ताव करते हैं और कभी तरंग यानी वेव की तरह. माने वो पार्टी भी हैं ब्रोकर भी. हिपोक्रेसी की सीमा होती होगी, पर इन कणों के दोहरे चरित्र की कोई सीमा नहीं होती. 

#क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग 

एक थॉट एक्सपेरिमेंट करते हैं. मान लीजिए आपने ग्राउंड फ्लोर से कोई गेंद सेकंड फ्लोर की तरफ फेंकी. गेंद सेकंड फ्लोर पर पहुंचेगी ये इस बात पर डिपेंड करेगा कि आपने कितनी ताकत से गेंद फेंकी है. अगर ताकत पर्याप्त लगाई है तो गेंद सेकंड फ्लोर पर पहुंचेगी वरना वापस गिर जाएगी. लेकिन ये तो फिजिक्स का नियम है ना. इससे अलग क्वांटम फिजिक्स कहती है कि ताकत हो या ना हो गेंद तो सेकंड फ्लोर पर पहुंचेगी. 

ऐसा इसलिए क्योंकि इस दुनिया में गेंद एक ऑब्जेक्ट नहीं, बल्कि एक तरंग है, तो एक ही पल में इस तरंग का कुछ हिस्सा ग्राउंड फ्लोर पर होगा और कुछ हिस्सा सेकंड फ्लोर पर. इसको कहते हैं क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग. सुनने में ये बेहद इल-लॉजिकल लग सकता है, पर क्वांटम लेवल पर ये होता है. सब एटॉमिक पार्टिकल्स जैसे कि इलेक्ट्रॉन्स के साथ. पर ये चीज़ बड़े लेवल पर इम्प्लीमेंट नहीं हो सकती थी. क्योंकि बड़े ऑब्जेक्ट्स की पोजीशन और स्पीड दोनों बखूबी पता होती है. 

व्यावहारिक तौर पर भी जब किसी के बारे में सब कुछ पता हो तो फिर ड्युअलिटी का स्कोप खत्म हो जाता है. वैसे तो साइंस के मामले में एक्सेप्शन मिल जाते हैं. इस मामले में कोई एक्सेप्शन नहीं था, तो इन तीन वैज्ञानिकों ने बना दिया. और इसे बड़े लेवल पर भी इम्प्लीमेंट करके दिखा दिया. कैसे? इसे समझने के पहले करंट के कॉन्सेप्ट को समझना जरूरी है. 

#करंट का बेसिक्स 

सब्सटेंस या पदार्थ दो तरह के हो सकते हैं:-

# जिनमें करंट चल सकता है, जैसे लोहा, कॉपर, एल्युमीनियम. इन्हें हम फिजिक्स की भाषा में कंडक्टर कहते हैं.

# जिनमें करंट नहीं चल सकता है. जैसे रबर, कोयला,प्लास्टिक, उन्हें हम इंसुलेटर कहते हैं. 

जब किसी कंडक्टर को बिजली के सोर्स से जोड़ा जाता है, तब कुछ इलेक्ट्रॉन, एटम से फ्री होकर एक दिशा में चलने लगते हैं. इन फ्री इलेक्ट्रॉन्स के सहारे करंट आगे बढ़ता है, इलेक्ट्रॉन्स से उल्टी दिशा में. आपके घर में जितनी भी बिजली की वायरिंग है वो इसी सिद्धांत पर काम करती है. 

लेकिन कहानी सिर्फ इतनी नहीं है. आपने देखा होगा जब बहुत देर तक किसी भी बिजली से चलने वाली चीज़ जैसे फ्रीज, टीवी का उपयोग होता है. तब उसका तार गर्म हो जाता है. ये करंट की बड़ी समस्या है. इसकी वजह है रेजिस्टेंस. रेजिस्टेंस माने बाधा या प्रतिरोध. 

असल में कंडक्टर के अंदर चलने वाले फ्री इलेक्ट्रॉन्स, उस कंडक्टर में मौजूद बाक़ी एटम और दूसरे फ्री इलेक्ट्रॉन्स से टकराते हैं. जिससे करंट को चलने में दिक्कत होती है. इसी वजह से तार गर्म होने लगता है. इसे फिजिक्स की भाषा में रेजिस्टेंस कहते हैं. रेजिस्टेंस जितना कम होगा, करंट उतना बेहतर बहेगा, और बिजली का नुकसान उतना कम होगा. यहां एंट्री होती है सुपरकंडक्टर्स की. सुपरकंडक्टर में रेजिस्टेंस जीरो होता है.   

#नोबेल प्राइज इसलिए मिला

तीनों वैज्ञानिकों - जॉन क्लार्क, मिशेल डेवोरेट और जॉन मार्टिनिस - ने 1984-85 में एक प्रयोग किया, जिसमें उन्होंने एक सुपरकंडक्टर का सर्किट बनाया. दो सुपरकंडक्टर के टुकड़ों के बीच एक पतली सी इंसुलेटर की परत डाली. इसको 'जोसेफसन जंक्शन' कहते हैं. 

इस सर्किट में सारे इलेक्ट्रॉन्स एक सिंक में एक साथ ऐसे फ्लो करते हैं, जैसे मानो वो छोटे-छोटे इलेक्ट्रॉन्स नहीं, बल्कि इलेक्ट्रॉन का एक कॉम्बिनेशन हो. जो पूरे सर्किट में घूम रहा है. ये दृश्य कुछ-कुछ वैसा है, जैसे एक स्टेडियम में फैंस एक साथ हूटिंग करने लगें. तो स्टेडियम में सबकी आवाजें मिलकर एक सिंगल और तेज आवाज बन जाती है. 

पर कमाल की बात ये है कि इस सिचुएशन में कोई बिजली का सोर्स नहीं जोड़ा गया है. ये इलेक्ट्रॉन्स ‘क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग’ की वजह से चल रहे हैं. इस वजह से बिना किसी बिजली के सोर्स के, इंसुलेटर के बैरियर्स को भी पार करते हुए करंट चलता है. और इस सर्किट में वोल्टेज भी बनता है. वजह वही कि ये इलेक्ट्रॉन्स एक कण की तरह नहीं, बल्कि एक वेव की तरह चलते हैं और क्वांटम मैकेनिक्स की वजह से ख़ुद-ब-ख़ुद पूरा सिस्टम काम करता है. जबकि सर्किट काम कर सके इसके लिए पर्याप्त ऊर्जा भी नहीं दी गई थी. इसे ‘एनर्जी क्वान्टाइजेशन इन इलेक्ट्रिक सर्किट’ कहते हैं. और शुरू से अंत तक इस पूरे कॉन्सेप्ट को कहते हैं, 'माइक्रोस्कोपिक क्वांटम मैकेनिकल टनलिंग एंड एनर्जी क्वांटाइज़ेशन इन इलेक्ट्रिक सर्किट'.

इस खोज में बड़ा महत्वपूर्ण तथ्य एक और भी है. दरअसल, फिजिक्स में एक बड़ा सवाल ये है कि क्वांटम मेकैनिकल इफेक्ट्स दिखाने के सिस्टम का साइज ज्यादा से ज्यादा कितना बड़ा हो सकता है. ये खोज इसलिए भी खास है क्योंकि इन तीनों वैज्ञानिकों ने एक ऐसे सिस्टम में क्वांटम टनलिंग और एनर्जी के क्वांटाइजेशन को दिखाया जो इतना बड़ा है कि उसे हाथ पर रखा जा सकता है.

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