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ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के बारे में जान लीजिए, जिसके ग्लेशियर टूटने से तबाही की खबर है

गांववाले करते रहे हैं इसका विरोध, हाईकोर्ट तक में डाल रखी है याचिका

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क्षतिग्रस्त ऋषि गंगा पॉवर प्रोजेक्ट. (तस्वीर: पीटीआई)
उत्तराखंड के चमोली जिले में 7 फरवरी को नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटा तो बड़ी तबाही की आशंका गहरा गई. नदियों में बाढ़ के खतरे को देखते हुए निचले इलाकों से लोगों को बाहर निकालने का काम शुरू कर दिया गया है. ग्लेशियर टूटने से ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट को काफ़ी नुकसान पहुंचा है. कई अन्य पावर प्रोजेक्टों में भी नुकसान की खबरें हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक़, ऋषि गंगा प्रोजेक्ट पर काम कर रहे दर्जनों लोग लापता हैं. इस प्रोजेक्ट को लेकर पहले भी विरोध होता रहा है. आइए जानते हैं ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट के बारे में, जिस पर इतनी बड़ा आपदा आई है.
उत्तराखंड के चमोली में है नंदा देवी पर्वत. पास में ही ऋषि गंगा नदी है जो धौलीगंगा से मिल रही है. इसको तपोवन रैणी क्षेत्र भी कहा जाता है. यहीं अलकनंदा नदी की ऊपरी धारा पर ऋषि गंगा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना है. हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट मतलब पानी से बिजली बनाने का प्लांट. ये प्रोजेक्ट करीब 13 मेगावॉट का है. नंदा देवी ग्लेशियर का हिस्सा टूटने से आई बाढ़ का सबसे पहले असर इसी प्रोजेक्ट पर हुआ. आजतक की रिपोर्ट मुताबिक़, जोशीमठ की एसडीएम कुमकुम जोशी ने बताया  कि तपोवन की एनटीपीसी और ऋषि गंगा प्रोजेक्ट मलबे में तब्दील हो गया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक़ ऋषि गंगा प्रोजेक्ट के साथ ही तपोवन (520 मेगावॉट), पीपल कोटी (4*111 मेगावॉट) और विष्णुप्रयाग (400 मेगावॉट) प्रोजेक्ट्स को भी नुकसान पहुंचने की आशंका जताई जा रही है.
Damaged Rishi Ganga Power Project
मलबे से दबा ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट. (तस्वीर: पीटीआई)


हादसे पर NTPC का भी बयान आ गया है. NTPC ने कहा है कि उत्तराखंड में तपोवन के पास एक हिमस्खलन से हमारी निर्माणाधीन हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के एक हिस्से को नुकसान पहुंचा है. बचाव अभियान जारी है. जिला प्रशासन और पुलिस की मदद से स्थिति पर लगातार नजर रखी जा रही है. ऋषि गंगा के पावर प्रोजेक्टों का विरोध चमोली में ऋषि गंगा नदी पर बने हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का स्थानीय लोग पहले भी विरोध करते रहे हैं. 'डाउन टू अर्थ' की मई 2019 एक रिपोर्ट
मुताबिक़, इस हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों में वे लोग भी थे, जिनके पूर्वज चिपको आंदोलन में शामिल रहे थे. चिपको आंदोलन के लिए विख्यात चमोली के गौरा देवी के गांव रैणी के लोगों ने हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के विरोध में 2019 में चिपको आंदोलन की वर्षगांठ भी नहीं मनाई थी.
रैणी गांव के कुंदन सिंह ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर करके कहा था कि प्रोजेक्ट के नाम पर सरकार ने उनकी जमीनें ले लीं. उस वक्त गांव के लोगों को रोजगार का वादा किया गया था, लेकिन न तो उन लोगों के पास रोजगार है, न ही जमीन के लिए मुआवजा दिया गया. इसके उलट प्रोजेक्ट के लिए क्षेत्र में की जा रही ब्लास्टिंग से गांवों के अस्तित्व पर भी खतरा आ गया है. प्रोजेक्ट को लेकर स्थानीय लोगों का आरोप था कि इसके निर्माण की वजह से नंदा देवी बायो स्फियर रिजर्व एरिया को नुकसान पहुंच रहा है. ब्लास्टिंग की वजह से वन्य जीव परेशान हैं. वे भागकर गांवों की ओर आ रहे हैं. प्रोजेक्ट के निर्माण से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है. दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक, 15 जुलाई 2019 को हाईकोर्ट ने पावर प्रोजेक्ट के लिए विस्फोटक के प्रयोग पर रोक के संबंध में चमोली के जिलाधिकारी व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जवाब मांगा था. बताया जा रहा है कि फिलहाल ये मामला कोर्ट में विचाराधीन है.


विडियो- उत्तराखंड में ग्लेशियर टूटने का विडियो

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