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क्या भारत ने बांगलादेश को ज़मीन दे दी ?

साल 2011 में एक और प्रोटोकॉल साइन किया गया. जो साल 2015 में जाकर इम्प्लीमेंट हुआ. इसी प्रोटोकॉल के तहत भारत बंगलदेश ने अपने हिस्से के कुछ इन्क्लेव भारत को सौंप दिए. और इसी तरह भारत ने कुछ इन्क्लेव बंगलदेश को दे दिए.

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पीएम मोदी के साथ बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना (फोटो-एक्स)

कच्चातिवु द्वीप, आजकल ट्रेंडिंग कीवर्ड बना हुआ है. प्रधानमंत्री मोदी समेत बीजेपी के कई नेता लगातार कांग्रेस पर हमलावर हैं. कि उनकी सरकार के वक्त भारत की जमीन श्रीलंका को दे दी गई. कांग्रेस इस मुद्दे के जवाब में प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र की भाजपा सरकार को बांग्लादेश डील की याद दिला रही है. मोटामाटी कांग्रेस का कहना है कि 2015 में केंद्र सरकार ने बंगलदेश को जमीन क्यों दी?

अगर आपके आस पड़ोस में कभी कोई जमीन का विवाद हुआ होगा तो सबसे पहले विवाद समझने के लिए लोग. जगह पर जाते है, जमीन को देखते हैं फिर समझते हैं कि मुद्दा आखिर क्या है. वैसे ही बांग्लादेश की सीमा वाले विवाद को समझने के लिए पहले लोकेशन को समझना होगा. 
 

बॉर्डर डिस्प्यूट की जगह

इसके लिए चलिए. भारत के चिकन नेक के पास स्थित पश्चिम बंगाल-बांग्लादेश बॉर्डर पर. चिकन नेक. देखिये किसी भी चीज़ को समझने के लिए ज्यादातर एक मेटाफर या रूपक का इस्तेमाल किया जाता है. चिकन नैक भी एक रूपक है. कैसे? भारत का मैप कुछ ऐसा है कि नॉर्थ ईस्ट का हिस्सा मुर्गे के सर की तरह दिखता है. और ये पतला सा कॉरिडोर मुर्गे की गर्दन की तरह. इस वजह से इस हिस्से को चिकन नेक कहते है. 

चिकन नेक

चिकेन नेक वाला ये इलाका पश्चिम बंगाल के हिस्से में आता है. और इसके नीचे है बांग्लादेश. जिसके चलते इस बॉर्डर पर बहुत विचित्र कंडीशन बन जाती है. 
कैसी कंडीशन? 
मान लीजिये भारत के दो गांव हैं. A और B. अब B है तो भारत में. लेकिन बंटवारे के दौरान सीमा रेखा कुछ ऐसी बनी कि B चारों ओर से बंगालदेश से घिरा हुआ है. स्क्रीन पर देखेंगे तो आपको समझ आएगा.ये ऐसा मामला है मानो समंदर के बीचों बीच एक आइलैंड हो.ये आइलैंड है तो भारत का. लेकिन इसकी एक इंच ज़मीन भी भारत से जुडी नहीं है. तो अब अगर B से किसी को A तक जाना हो. तो उसे समंदर में उतरना पड़ेगा.मतलब B से A तक पहुँचने के लिए  बांग्लादेश से गुजरना पड़ेगा. आप ये सवाल पूछ सकते हैं कि अगर A से B जाना है तो दिक्कत क्या है? बांग्लादेश से होकर भी तो जा सकते है न. नहीं यहां एक बड़ी समस्या होती है. क्या? बॉर्डर पर दोनों तरफ की सेनाएं होती हैं.चेक पोस्ट होते हैं. जैसे हम देश के अंदर कही भी जा सकते हैं किसी भी समय पर. बॉर्डर पर ऐसा नहीं होता.वहां इस पार से उस पर जाने का समय फिक्स्ड होता है. और सबसे ज्यादा डर होता है. घुसपैठ होने का. यानी गैर कानूनी तरीके से कोई देश में घुस सकता है. ये दिक्कत सिर्फ एक गांव की नहीं है. बांग्लादेश और भारत सीमा पर ऐसे बहुत सी जगहें हैं.  जो भारत की हैं लेकिन बांग्लादेश की सीमा के अंदर आती हैं. ऐसा ही कुछ दूसरी तरफ भी है बांग्लादेश के कुछ हिस्से भारत की सीमा के अंदर हैं. ऐसी जगहों को एन्क्लेवेस कहा जाता है. 
 

एन्क्लेव्स की ये समस्या 

कहानी यूं है कि आजदी से पहले रंगपुर रियासत के राजा और कूच बेहार रियासत के राजा के बीच चेस की बाजी लगती थी. और ज़मीन के हिस्सों को उसमे दांव पर लगया जाता था. इस वजह से कई छोटे-छोटे हिस्से, दोनों राज्यों के पार्ट बन गए. फिर आया आज़ादी का समय. रंगपुर का राज्य पाकिस्तान से मिल गया और कूच बिहार भारत से. लेकिन कूच बिहार के कुछ हिस्से ईस्ट पाकिस्तान और रंगपुर के कुछ हिस्से भारत में फास गए. बंटवारे की ज़िम्मेदारी रेडक्लिफ को दी गयी. इस बटवारे को करते हुए. रेडक्लिफ ने इन एन्क्लेव्स  का ध्यान नहीं रखा. लिहाजा आजदी के बाद ये एन्क्लेव्स परेशानी का सबब बन गए. भारत और बांग्लादेश के बीच एन्क्लेवेस की ये समस्या लम्बे समय से चली आई है. लिहाजा समय समय पर इस समस्या को सुलझाने की कोशिश भी हुई.  

समस्या सुलझाने की कोशिशें    

इस समस्या का एक ही इलाज था. जो बांग्लादेश की जमीन भारत के टेरिटरी के अंदर वो भारत को दे दी जाए, और जो भारत की ज़मीन बांग्लादेश की सीमा के अंदर है वो बांग्लादेश को दे दी जाये. 1958 में इसके लिए एक पहल हुई. तत्कालीन प्रधान मंत्री नेहरू और पाकिस्तान के प्रधान मंत्री फिरोज खान नून के बीच एक समझौता हुआ. जिसके तहत भारत ने बेरुबारी यूनियन का हिस्सा पश्चिम बंगाल से लेकर ईस्ट पाकिस्तान को दे दिया. अब ये मामला कोर्ट पंहुचा और सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णायक जजमेंट दिया.कोर्ट के कहा कि अगर भारत की ज़मीन का टुकड़ा किसी दूसरे देश को दिया जा रहा है तो उसके पहले संविधान में संशोधन करना जरुरी है.

जिसके तहत बेरूबारी यूनियन का आधा एरिया, जो पश्चिम बंगाल का हिस्सा हुआ करता था, उसे ईस्ट पाकिस्तान को दे दिया. और ईस्ट पाकिस्तान के कुछ हिस्से भारत को मिले. पाकिस्तान 1971 का युद्ध.जिसके बाद जन्म हुआ बांग्लादेश का. क्योंकि बांग्लादेश एक नया मुल्क था और उसके बनने में भारत का योगदान था. इसलिए इंदिरा गाँधी को उम्मीद थी कि इस समस्या को निपटारा आसानी से हो जायेगा.

बांग्लादेश ने एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर भी कर दिए. लेकिन भारत ने उसे इस लिए नहीं अपनाया क्योंकि अभी तक ज़मीनी तौर पर बॉर्डर का निर्धारण नहीं हुआ था. और सुप्रीम कोर्ट ने एक बात स्पष्ट कर दी थी. यहीं की अगर देश की ज़मीन किसी दूसरे देश को दी जा रही है तो संविधान में संशोधन जरुरी है. इस वजह से उस वक़्त की सरकार ने इसे मंजूर नहीं किया.और पहले ग्राउंड पर बॉर्डर को चिन्नित करने पर जोर दिया गया. 
इसके 30 वर्षों के बाद साल 2011 में एक और प्रोटोकॉल साइन किया गया. जो साल 2015 में जाकर इम्प्लीमेंट हुआ. इसी प्रोटोकॉल के तहत भारत बंगलदेश ने अपने हिस्से के कुछ इन्क्लेव भारत को सौंप दिए. और इसी तरह भारत ने कुछ इन्क्लेव बंगलदेश को दे दिए. आंकड़ों के हिसाब से देखें तो..17000 acre ज़मीन भारत ने बांग्लादेश को दी और 7000 acre की ज़मीन बांग्लादेश ने भारत को दी. बहरहाल 2015 ये अदला बदली कैसे संभव हुई.

इन सब तथ्यों से एक बात साफ होती है कि मोदी सरकार के साथ साथ नेहरू सरकार ने भी बांग्लादेश के साथ जमीन का एक्सचेंज किया है. हालांकि, भारत द्वारा दी गई जमीन ज्यादा है. लेकिन बिना युद्ध के अगर जमीन का मसला सुलझ जाए तो वो एक अच्छी पहल है.