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दुनिया का सबसे पहला 'बॉन्ड', जिसे ख़रीद कर सारे गुनाह माफ़ हो जाते थे!

राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए ख़रीदे जाने वाले Electoral Bond की चर्चा इन दिनों हर तरफ़ है. मगर दुनिया का सबसे पहला बॉन्ड कब जारी हुआ था और किस लिए? ये भी बहुत दिलचस्प है.

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बॉन्ड का सिस्टम नया नहीं है. बहुतै पुराना है. चर्च से शुरू हुआ था. (फ़ोटो - सोशल)

साल 1517 की बात है. जर्मनी के विटनबर्ग शहर में एक पादरी उठा और चर्च की तरफ़ चल दिया. चर्च के अंदर जाने के बजाय उसने चर्च की दीवारों पर कुछ कागज़ चिपका दिए. इस एक घटना से शुरुआत हुई उस प्रोसेस की, जिसे ईसाई धर्म का रिफ़ॉर्मशन या सुधार कहा जाता है. इन पादरी का नाम था मार्टिन लूथर. एक धर्म सुधारक, जिनका रोमन कैथोलिक चर्च ने बहिष्कार कर दिया था. इसके बावजूद मार्टिन लूथर की बातें इतनी फैलीं कि ईसाई धर्म में दरार पड़ गई और कैथोलिक से अलग, एक बिलकुल नई शाखा की शुरुआत हो गई.

सवाल ये कि मार्टिन लूथर ने अपने दस्तावेज़ों मे ऐसा लिखा क्या था? बहुत सी बातें की थीं. मगर चर्च की एक पांच सौ साल पुरानी परंपरा की निंदा सबसे ज़्यादा थी. इस परंपरा के मुताबिक़, आप एक तरह का 'बॉन्ड' ख़रीदकर अपने पापों से मुक्त हो सकते थे. कौन सा था ये बॉन्ड? पहले बॉन्ड्स का मतलब क्या होता था? और चुनावी बॉन्ड पर हो रही चर्चा के बीच जानिए सबसे पहला बॉन्ड कब जारी हुआ?

बॉन्ड क्या होता है?

कॉमन सेंस से हम समझ सकते हैं कि पहली बार पैसा कैसे ईजाद हुआ होगा. बार-बार तीन भेड़ों को ले जाकर 10 किलो गेहूं खरीदना मुश्किल था. इसलिए पैसों का सिस्टम बना. पैसा एक इंसानी कल्पना है. महज सहूलियत के लिए. लेकिन कल्पना कितनी ताकतवर हो सकती है. ये आप उनसे पूछिए जिनके बैंक अकाउंट में दिख रहा एक ज़ीरो कम जो जाए. बहरहाल, पैसा क्यों बना हम समझते हैं. लेकिन बॉन्ड… ये क्या बला है?

गोल्ड बॉन्ड, कॉर्पोरेट बॉन्ड, सरकारी बॉन्ड और अब इलेक्टोरल बॉन्ड. बॉन्ड की चर्चा इन दिनों हर तरफ़ है. ये बॉन्ड होता क्या है? मान लीजिए सुमन को कुछ क़र्ज़ चाहिए. वो हर्षिता के पास जाकर कहती है, आप मुझे 10 रूपये दे दो. मैं आपको 5% ब्याज सहित लौटा दूंगी. हर्षिता तैयार नहीं है. आख़िर क्या भरोसा बात का? हर्षिता बाकी लोगों से पूछती है. सब कहते हैं, सुमन वक्त पर पैसे लौटा देती है. हर्षिता को भरोसा हो जाता है. लेकिन अभी भी एक दिक्कत है. मुद्दा अभी भी यही है कि अगर कल को सुमन भूल गई तो? या मुकर गई तो? तब हर्षिता के पास कोई सबूत भी नहीं होगा, कि सुमन ने उससे पैसे लिए थे. हर्षिता की चिंता दूर करने के लिए सुमन एक कागज़ लेती है और लिखकर दे देती है कि वो सुमन को अमुक समय पर 5% ब्याज के साथ पैसे लौटाएगी. अब हर्षिता तैयार हो जाती है.

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इस पूरी प्रक्रिया में सुमन ने हर्षिता को जो कागज़ दिया, वही कहलाता है बॉन्ड. यानी वादा. ऐसे देखें तो रूपये का एक नोट भी असल में एक बॉन्ड ही है, जो वादा करता है कि आपको नोट पर लिखी कीमत मिलेगी.

बॉन्ड्स की शुरुआत कैसे हुई?
  • पांच हजार पहले सुमेरियन सभ्यता में सबूत मिलते हैं कि मंदिर बॉन्ड जारी करते थे. इस पर 20% इंटरेस्ट मिला करता था.
  • बेबीलॉन की कानूनी किताब, कोड ऑफ हम्मुराबी में बॉन्ड के क़ानून का ज़िक्र भी है.
  • मेसोपोटामिया में करेंसी के रूप में मक्का इस्तेमाल हुआ करता था. उस वक्त भी अलग से गैरंटी बॉन्ड जारी हुआ करते थे.

बॉन्ड्स का अगला ज़िक्र मिलता है, 12वीं शताब्दी में. वेनिस (आज का इटली) एक ताकतवर राज्य हुआ करता था. वेनिस की सरकार ने पहली बार 'वॉर बॉन्ड' जारी किए थे. मतलब सेना और हथियारों के लिए पैसा न होने पर सरकार पैसे देती थी और युद्ध जीतने पर जो माल मिले, उससे पैसा सूद समेत वसूल लेती थी. ये बॉन्ड कोई भी खरीद सकता था, और उस पर 5% का इंटरेस्ट मिलता था.

सिडनी होमर अपनी किताब, ‘A history of interest rates’ में लिखते हैं,

वेनिस में बॉन्ड इन्वेस्टमेंट का सबसे लोकप्रिय साधन बन गए थे. क्योंकि बॉन्ड खरीदकर आप लगातार उस बॉन्ड से इंटरेस्ट हासिल कर सकते थे. इसलिए लोग अक्सर दहेज़ में अपनी बेटियों को बॉन्ड देते थे.

ये सिस्टम ख़त्म हुआ, जब ब्रिटेन और फ्रांस के बीच लड़ाई हुई. हुआ ये कि ब्रिटेन ने वेनिस से बहुत सारा क़र्ज़ लिया था, जिसे बाद में वो चुका नहीं पाए और बॉन्ड मार्केट डूब गया. इसी दौरान एक और चीज़ हुई. 13वीं शताब्दी में यूरोप में ब्लैक प्लेग फैला, जिसमें लाखों लोग मरे और अर्थव्यस्था ठप्प हो गई. बॉन्ड का इस्तेमाल कुछ वक्त के लिए कम हो गया. सरकारें बॉन्ड जारी करने से बचने लगी. क्योंकि कल का भरोसा नहीं था. हालांकि, एक जगह थी जहां कल की गारंटी मिलती थी. ईश्वर के पास.

चर्च का बॉन्ड

मध्य काल में रोमन कैथोलिक चर्च ने एक प्रकार का बॉन्ड जारी करना शुरू किया. आसान शब्दों में कहें तो - 'पैसे दो, माफ़ी लो'. इस पूरे सिस्टम को कहते थे, सेल ऑफ़ इनडल्जेंसेज़ (sale of indulgences).

मार्टिन लूथर के विद्रोह ने ईसाई धर्म में सुधार की शुरूआत की. (फोटो - ब्रिटैनिका)

कैसे काम करता था ये सिस्टम? उसके लिए पहले पहले आपको ईसाई धर्म में पाप की धारणा समझनी पड़ेगी. पाप की धारणा शुरू होती है ‘ओरिजिनल सिन’ (मौलिक पाप) की कहानी से. क्या है ओरिजिनल सिन और पाप की धारणा? ये जानने के लिए हमने बात की ऑल इंडिया क्रिश्चन काउंसिल के सेक्रेट्री जनरल जॉन दयाल से. उन्होंने दी लल्लनटॉप को बताया,

ईसाई धर्म में पाप को लेकर अलग-अलग अवधारणाएं हैं. जैसे कैथोलिक धर्म में आदिकाल से ये मान्यता है कि एक गुनाह इंसान के पैदा होने के साथ ही नत्थी होता है. ये गुनाह वो ख़ुद नहीं करता. ये ओरिजनल सिन है, कि पवित्रता या न्याय के बिना ही पैदा हो गए. पैदा हुए तो ये जाना-माना गया कि धरती के कई गुण-अवगुण मनुष्य के अंदर हैं. जिनका प्राश्चित करने के लिए ईसा मसीह आए थे. उनके आने के बाद एक नया समाज पैदा हुआ, हर चीज़ की एक नई परिभाषा पैदा हुई.

इसीलिए कैथोलिक मानते हैं कि इंसान कुछ त्रुटियों के साथ पैदा होता है और वो उसके साथ रहती है. इन्हीं से निकलने के लिए वो नेक काम करता है. वहीं, ईसाइयों का दूसरा फ़िरका मानता है कि इस पाप का प्राश्चित आपको ख़ुद करना पड़ेगा. दुबारा पैदा होना पड़ेगा. बैपटाइज़ होना पड़ेगा और ईसा मसीह को अपनी मुक्तिदाता करार करना होगा.

जैसा विशेषज्ञ ने बताया, ईसाई धर्म में मान्यता है कि पाप से छुटकारा दिलाने के लिए ईसा मसीह धरती पर आए. इसके बावजूद इंसान पाप करता रहा. ईसाई धर्म में पाप से छुटकारा पाने के तरीके भी हैं. मसलन तीर्थ यात्रा, ईश्वर का नाम लेना, गुनाहों की माफ़ी मांगना, पश्चाताप करना. आप पाप करते हैं या पुण्य, ईश्वर में विश्वास करते हैं या नहीं, ईसाई मान्यताओं के तहत इसी से तय होता है कि मनुष्य की आत्मा स्वर्ग जाएगी या नर्क में.

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स्वर्ग-नर्क परमानेंट हैं. लेकिन मध्यकाल में एक और अवधारणा ने जन्म लिया जिसे पर्गेटरी (purgatory) कहते हैं. मान्यता के अनुसार, purgatory में आप यातनाओं से गुज़रते हैं. इससे आपकी आत्मा पर लगे पाप के दाग धुल जाते हैं. इसी अवधारणा से एक नई परंपरा का जन्म हुआ, जिसे इंडल्जेंसेज़ (indulgences) कहा गया. यानी पादरी के पास ये शक्ति है कि वो आपके पापों को कम कर सके, या ख़त्म कर सके.

11वीं सदी में ये सिस्टम आधिकारिक बन गया. अर्बन द्वितीय नाम के एक पोप ने 1095 में उन्होंने indulgences के सिस्टम को औपचारिक रूप दिया. इस सिस्टम के तहत अगर एक आदमी पर्याप्त अच्छे कर्म करे, तो पोप या पादरी उन्हें पाप से छुटकारा दिला सकता है. यानी पोप और पादरी के हाथ में ये ताकत है कि वो आपके पाप ख़त्म कर सके. इस सिस्टम का औपचारिक इस्तेमाल सबसे पहले क्रूसेड्स (11वीं सदी के धर्म युद्ध) के दौरान हुआ. क्रूसेड्स के समय पोप अर्बन ने घोषणा कर दी कि जो भी ईसाई लोग इस धर्म युद्ध में लड़ने जाएंगे, उनके पाप माफ़ हो जाएंगे. जो नहीं जा सकते थे, उन्होंने सोचा कि वो क्या करें कि उनके पाप भी ख़त्म हो जाएं?

आरोप लगे कि चर्च पापों के लिए माफ़ी बेच रहा है.

यहां से एक नया विचार पैदा हुआ. लोगों ने सोचना शुरू किया कि क्या वित्तीय तरीके से पाप काटे जा सकते हैं. धीरे-धीरे लोगों ने चर्च को चंदा देना शुरू किया. कभी चर्च के लिए बिल्डिंग बना दी, कभी किसी आयोजन के लिए चंदा दे दिया. 13वीं सदी आते-आते ये सिस्टम एक बॉन्ड के रूप में डेवेलप होना शुरू हो गया. यानी आप चर्च को पैसे दो, और आपके पाप नष्ट हो जाएंगे.

धीरे-धीरे सिस्टम कुछ ऐसा हो गया कि चर्च दावा करने लग गया कि कितने अच्छे काम, या क्या अच्छा काम करने से आपके कितने पाप कट सकते हैं. चर्च पर आरोप भी लगे कि वो पापों के लिए माफ़ी बेच रहे हैं. लोग सिर्फ़ अपने पापों के लिए ही नहीं, अपने पूर्वजों के लिए भी indulgences ख़रीदने लगे. ताकि purgatory में उन्हें कम से कम सज़ा मिले.

ये पूरा सिस्टम sale of indulgences के नाम से जाना गया.

ईसाई धर्म की नई शाखा

ये सिस्टम कुछ 16वीं शताब्दी तक चला. फिर दुनिया में (और इस सीन में) मार्टिन लूथर नाम के एक धर्म सुधारक पैदा आए. मार्टिन पादरी थे और यूनिवर्सिटी में पढ़ाते भी थे. उन्होंने sale of indulgences की निंदा की. कहा कि माफी देने का अधिकार सिर्फ़ ईश्वर के पास है, पादरियों के पास नहीं. इस बात पर चर्च ने उनका बहिष्कार किया. उनसे माफ़ी मांगने को कहा. लेकिन मार्टिन लूथर तैयार नहीं हुए. धीरे-धीरे उनके विचार पूरे यूरोप में फैले और ईसाई धर्म में रेफ़ॉर्मेशन यानी धर्म सुधार की प्रक्रिया शुरू हुई. लोगों ने चर्च छोड़कर ईसाई धर्म की नई शाखाएं शुरू कर दी. इनमें से कुछ समुदाय प्रोटेस्टेंट कहलाए.

धर्म और धर्मांधता की सत्ता के ख़िलाफ़ जो विचार पनपा, उसे ही रोशन-फ़िक्री कहा गया.
Sale of indulgences का सिस्टम ख़त्म कैसे हुआ?

जब लोगों के बीच चर्च के प्रति विद्रोह बढ़ा, चर्च को बदलाव करने पड़े. साल 1563 में पोप पायस ने indulgences का सिस्टम पूरी तरह ख़त्म कर दिया. इसके बाद भी पादरी माफ़ी दे सकते थे, लेकिन किसी वित्तीय आधार पर नहीं. चर्च का बॉन्ड इस तरह ख़त्म हो गया. हालांकि, बॉन्ड का सिस्टम चलता रहा. बॉन्ड खरीदकर अब माफी चाहे न मिलती हो, बॉन्ड्स आज भी इनवेस्टमेंट के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.

सोच समझ कर इनवेस्ट करिएगा. कभी-कभी बड़ा रिस्क हो जाता है.

वीडियो: इलेक्टोरल बॉन्ड पर विदेशी मीडिया ने क्या-क्या छापा है?