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हरियाणा सरकार की 'मेरा पानी-मेरी विरासत' योजना क्या है, जिसका किसानों ने तगड़ा विरोध किया

सरकार योजना पर झुकी है, लेकिन विपक्ष कह रहा है कि सरकार अभी भी भ्रम फैला रही है.

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हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने योजना का समर्थन किया है लेकिन उन्होंने पचास फीसदी ज़मीन पर वैकल्पिक फसल के नोटिफिकेश को 'आदेश' नही 'एडवायजरी' बताया. कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला (दाएं, आगे) ने योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया था. फोटो: India Today/Twitter
हरियाणा सरकार ने पिछले दिनों ने एक योजना लॉन्च की. मेरा पानी, मेरी विरासत. सरकार ने कहा कि इसका मकसद 'पानी बचाओ' वाला है. लगेगा कि वाह! ये तो अच्छी बात है. पानी बचाना ही चाहिए. लेकिन बहुत से किसान योजना से उखड़ गए. उन्होंने 'किसान बचाओ-खेती बचाओ' अभियान शुरू कर दिया. क्यों?

टीज़र

असल में योजना के तहत सरकार ने धान की जगह खेत के 50 फीसदी हिस्से में वैकल्पिक फसलें उगाना अनिवार्य कर दिया. तर्क ये कि धान में पानी ज़्यादा लगता है और फसलों की डायवर्सिटी से किसानों को फायदा होगा. आगे की पीढ़ियों के लिए पानी भी बचेगा.
किसानों का कहना कि हमारा खेत, हम चाहे जो उगाएं. विपक्ष ने इसे 'धानबंदी' तक कहा. विरोध बढ़ा तो सरकार का रुख थोड़ा नरम हुआ और इसे अनिवार्य की जगह 'स्वैच्छिक' कर दिया. लेकिन कुछ विकल्प खुले रखे गए हैं. बवाल अभी थमा नहीं है. विपक्ष कई तरह के आरोप लगा रहा है. इस पर आगे बात करेंगे. पहले ठीक से जानते हैं, ये योजना क्या है?

पूरी पिच्चर

'राज्य में जल-स्तर लगातार गिर रहा है'
हरियाणा सरकार का कहना है कि हरियाणा में जल-स्तर हर साल एक मीटर नीचे जा रहा है. सरकार ने कहा कि धान में रोपाई से लेकर सिंचाई तक में पानी की खपत बहुत होती है. ज़मीन के नीचे वाले पानी का काफी इस्तेमाल होता है. 9 मई, 2020 को खट्टर सरकार की तरफ से 'मेरा पानी, मेरी विरासत' योजना लागू करने का नोटिफिकेशन आता है. योजना के लिए 19 ब्लॉक चुने जाते हैं, जहां जलस्तर 40 मीटर से ज़्यादा है. मतलब 40 मीटर तक ज़मीन की खुदाई करो, तो भी पानी न मिले. इसके अलावा पंचायत की वो ज़मीन, जहां 35 मीटर से ज़्यादा का जलस्तर है, वहां धान की खेती पर रोक लगा दी गई.
योजना की गाइडलाइंस
# किसान को अपने धान के क्षेत्र में 50 फीसदी हिस्से में वैकल्पिक फसलें उगानी होंगी. जैसे- मक्का, कपास, बाजरा, दलहन फसलें, सब्जी, बागवानी. मतलब अगर किसी के पास चार एकड़ ज़मीन है, तो उसे दो एकड़ ज़मीन में वैकल्पिक फसलें उगानी होंगी.
# वैकल्पिक खेती को अपनाने के लिए 7,000 रुपए प्रति हेक्टेयर प्रोत्साहन राशि दी जाएगी. ये पैसे दो किस्तों में दिए जाएंगे.
# वैकल्पिक फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भी दिया जाएगा.
# मक्के के हाइब्रिड बीज दिए जाएंगे. ड्रिप सिंचाई सिस्टम अपनाने पर 85 फीसदी की सब्सिडी दी जाएगी.
# 50 हॉर्सपॉवर के मोटर से ट्यूबवेल का इस्तेमाल कर रहे किसानों को धान उगाने की इजाज़त नहीं होगी.
# 50 फीसदी से कम क्षेत्र में दूसरी फसलें उगाने पर सब्सिडी नहीं मिलेगी. साथ ही धान की खरीद भी राज्य सरकार की तरफ से नहीं होगी.
# इस खरीफ सीजन से योजना को अपनाने वाले को ये पैसे मिलेंगे. इन ब्लॉक में किसानों को किसी ऐसे नए क्षेत्र में धान उगाने की इजाज़त नहीं होगी, जहां पिछले साल धान न उगाया गया हो.
9 मई, 2020 को जारी किया नोटिफिकेशन, जिसमें कई गाइडलाइंस दी गई थीं. फोटो: Twitter/Randeep Surjewala
9 मई, 2020 को जारी किया नोटिफिकेशन, जिसमें कई गाइडलाइंस दी गई थीं. फोटो: Twitter/Randeep Surjewala

सरकार का तर्क क्या है? 
राज्य के कृषि मंत्रालय की वेबसाइट
पर लिखा है कि योजना का उद्देश्य ज़्यादा पानी की मांग वाली फसलों के क्षेत्र को कम करना है. क्रॉप डायवर्सिफिकेशन को बढ़ावा देने की बात कही गई. इसका मतलब है अलग-अलग तरीके की फसलें उगाना. सरकार ने एक लाख हेक्टेयर ज़मीन में वैकल्पिक फसलों की खेती कराने का लक्ष्य रखा.
इसके अलावा सरकार ने कहा कि हमारा उद्देश्य संसाधनों को बचाए रखना और ज़मीन के जलस्तर को बनाए रखना है. आने वाली पीढ़ियों के लिए. धान-गेहूं चक्र की वजह से मिट्टी पर बुरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए उसमें ज़रूरी तत्वों को बचाना है. कहा गया कि धान-गेहूं चक्र वाली खेती से हटाकर किसानों को ज़्यादा मुनाफा देने वाली फसलों का ऑप्शन देना है.
सरकार का कहना है कि वो ज़्यादा पानी वाली फसलों के क्षेत्र को कम करना चाहती है. सांकेतिक फोटो: India Today
सरकार का कहना है कि वो ज़्यादा पानी वाली फसलों के क्षेत्र को कम करना चाहती है. सांकेतिक फोटो: India Today

किसानों ने क्यों विरोध किया? 
फतेहाबाद ज़िले में सोमवार, 25 मई को किसानों ने योजना के विरोध में ट्रैक्टर रैली निकाली. किसानों का कहना है कि बहुत सी ज़मीनों पर दूसरी फसलें नहीं उग सकतीं. इसके अलावा उनका कहना है कि प्रोत्साहन राशि भी कम है. कोरोना वायरस के दौर में ये अलग से बोझ बढ़ाने जैसा है. किसानों का कहना है कि इससे पहले सरकार की 'जल ही जीवन है' योजना में मक्के के हाइब्रिड बीज दिए गए, जिनसे कोई फायदा नहीं हुआ.
भारतीय किसान यूनियन के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने 'दी लल्लनटॉप' को बताया,
ये तुगलकी फरमान था. बिना सर्वे के जारी कर दिया गया. हरियाणा में चार तरह की ज़मीन हैं, जिनमें धान की जगह कोई और फसल नहीं उग सकती. इसमें बहुत सा इलाका वो है, जहां बाढ़ आती है. बहुत से इलाकों में जल संचयन भी किया जाता है. इन्होंने कह दिया कि 19 ब्लॉक में आधी ज़मीन पर धान नहीं उगाएंगे तो ठीक, वरना सरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाएगा.
हमने आदेश नहीं मानने का फैसला किया. हम पहले की ही तरह धान लगाएंगे. इन्होंने अब दूसरी फसलों के लिए प्रोत्साहित करने की बात कही है. हमने कहा कि अगर कुछ इलाकों में, जहां संभव है, वहां कोई स्वेच्छा से दूसरी फसलों की खेती करना चाहे, तो प्रोत्साहन राशि 7,000 रुपए की जगह 15,000 कर दीजिए. लेकिन वो मांग नहीं मानी गई. 

क्या दूसरी फसलें उगाने से किसानों को फायदा है? 
धान को छोड़कर आधे हिस्से में दूसरी फसलें उगाने के सवाल पर पत्रकार और कृषि विशेषज्ञ आरएस राणा बताते हैं,
फसलें बदलने से फायदा तो होता है, लेकिन अगर किसान को पता है कि हरियाणा में गेहूं और धान की सबसे ज़्यादा खरीदारी होती है, तो वो क्यों दूसरी फसलें उगाएगा? सरकार धान-गेहूं की खरीद ज़रूर करती है. ऐसे में किसान सिक्योर रहता है. मक्का या दूसरी फसलों में सिक्योरिटी नहीं है. इनकी खरीद कम होती है.
धान और मक्के के दाम में भी अंतर है. धान में ज़्यादा फायदा होता है. लेकिन इसमें राजनीति भी हो रही है. विपक्ष के लिए भी मौका है. हालांकि पहले भी इस तरह की योजना थी. अब उसका नाम बदल दिया गया है. 
बैकफुट पर सरकार?
किसानों का विरोध बढ़ता देख 26 मई को सरकार ने इस योजना में वैकल्पिक खेती करने के अनिवार्य वाले हिस्से में ढील दी. सरकार ने इसे स्वैच्छिक कर दिया. मतलब आप आधे हिस्से में धान की खेती करें या न करें, आपके ऊपर है. लेकिन सरकार ने प्रोत्साहन राशि वाला विकल्प खुला रखा है. सरकार अभी भी उन किसानों को ये पैसे देगी, जो धान की खेती नहीं करते हैं. इसके लिए कृषि विभाग के पोर्टल पर किसान अप्लाई भी कर सकते हैं.
अब सरकार क्या कह रही है?
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर कुरुक्षेत्र के किसानों से मिले थे. इसके बाद ये ढील दी गई, लेकिन उन्होंने इस योजना का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि पानी की हर बूंद कीमती है और इसे भविष्य की पीढ़ी के लिए जमा करना है. किसानों से इस बारे में फीडबैक लिए जा रहे हैं, ताकि नीतियों में और सुधार लाया जा सके. सरकार कह रही है कि वो किसानों को क्रॉप डायवर्सीफिकेशन के लिए प्रोत्साहित करती रहेगी.
विपक्ष ने कहा- सरकार ने यू-टर्न लिया
गुरुवार, 28 मई को सीएम मनोहरलाल खट्टर ने कहा कि ये 'आदेश' नहीं, बल्कि किसानों को 'एडवाइजरी' थी. विपक्ष ने इसे सरकार का यू-टर्न बताया है. कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि सरकार अभी भी भ्रम का माहौल बना रही है. सरकार 'एडवाइजरी' और 'आदेश' का मतलब नहीं समझती. सरकार 9 मई का आदेश वापस ले. यू-टर्न नहीं लिया, किसानों को समझाएंगे: कृषि मंत्री
हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल का कहना है कि वो किसानों को इसके लिए सहमत करने में सफल रहेंगे. किसी तरह का यू-टर्न नहीं लिया गया है. सात हजार रुपए अब भी दिए जाएंगे. उनका कहना है कि किसान इसका विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि विपक्ष के नेता कर रहे हैं. सरकार की तरफ से एडिशनल चीफ सेक्रेटरी संजीव कौशल ने कहा,
'हम किसानों का दिल जीतेंगे. हम दूसरी फसलें अपनाने के लिए उन्हें समझाने की कोशिश करेंगे. हम उन पर दबाव नहीं डालेंगे.'
फिलहाल अभी भी इस पर राजनीति जारी है. विपक्ष का कहना है कि सरकार पूरी तरह योजना वापस ले. वहीं, सरकार इसके लिए तैयार नहीं दिखती.


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