हैपी विमेन्स डे. हर साल 8 मार्च को हम घूम-घूम के महिलाओं को (Women's Day) विश करते हैं. नहीं घूम पाते, तो स्टेटस या स्टोरी लगा लेते हैं. फिर कुछ बाग़ी होते हैं. वो फ़ेसबुक पर 4,000 शब्दों का एक आलेख लिखते हैं, ये बताने के लिए कि महिलाओं को बस एक दिन नहीं, रोज़ सेलिब्रेट करना चाहिए. कुछ 'विमेन्स डे में तो महिलाओं को फ़ुटेज मिलता है, मेन्स के लिए कोई डे नहीं होता है' वाला राग लेकर आ जाते हैं. लेकिन आज की बात अलग है. विमेन्स डे जैसे मनाओ, न मनाना हो न मनाओ. लेकिन ये जो शब्द है 'वुमन' (Woman), क्या इसका मतलब जानते हैं? सामने से सीधा जवाब आ सकता है - वुमन मल्लब महिला, औरत, नारी. और क्या! आपके भाषाई ज्ञान पर कोई डाउट नहीं है. मगर वुमन शब्द का ओरिजिन मालूम है? भौंचक हो जाएंगे. बाय गॉड.
Happy Women's Day बोलने से पहले वुमन शब्द का असली मतलब तो जान लीजिए!
वुमन का मतलब 'वाइफ़ ऑफ़ मैन' होता है?

देखिए, भाषा की यात्रा क्या रही है, उसके कोई पुख़्ता रिकॉर्ड्स नहीं हैं. कई थियरीज़ हैं. इतिहासकार और भाषा वैज्ञानिक मौजूदा सबूतों के बिनाह पर तथ्य छांटते हैं और एक तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचते हैं. वैसे ही भाषाविदों ने पाया कि वुमन का मतलब होता है: वाइफ़ ऑफ़ मैन (WOMAN = Wife Of MAN).
सुनने में थोड़ा भेदभावपूर्ण लगता है न? दरअसल, जब 5वीं सदी में ओल्ड इंग्लिश बोली जाती थी, तो पुरुषों और महिलाओं के लिए दो अलग-अलग शब्द थे: 'वेर' (wer) माने 'वयस्क पुरुष' और 'विफ़' (wif) माने 'वयस्क महिला'. एक तीसरा शब्द भी था - 'मैन', जो व्यक्ति, इंसान या मनुष्य के लिए इस्तेमाल होता था.

इन शब्दों को जोड़ कर भी इस्तेमाल किया जाता था. जैसे 'वेर' और 'मैन' जोड़ कर 'वेरमैन' बना. मतलब ‘वयस्क पुरुष’. या जैसे 'विफ़' और 'मैन' जोड़ कर 'विफ़मैन' बना, इसे वयस्क महिलाओं के लिए इस्तेमाल किया जाता था. यानी इतिहास में एक समय ऐसा था, जब वयस्क औरतों के लिए विफ़मैन शब्द का इस्तेमाल होता था.
उस समय तक वर्तनी उतनी डेवेलप्ड नहीं थी, इसलिए हमें कुछ भिन्नताएं दिखाई देती हैं. मसलन, wifmon, wifmanna, और wifmone. या पुरुषों के लिए weapman भी कॉमन इस्तेमाल में था. लेकिन मेडिवल इंग्लिश तक आते-आते ‘wimman’ और ‘wommon’ को मानक बनाया गया. और 1600 के दशक तक, हम आज जिन शब्दों को जानते हैं वे स्थापित हो गए थे. यानी, एक महिला के लिए 'वुमन' (woman) और एक से ज़्यादा महिलाओं के लिए 'विमेन' (women).
‘Man’ इंसान से आदमी के लिए कब हुआ?इस बात की कोई ठोस थियरी नहीं मिलती, कि जब महिलाओं के लिए wifman और पुरुषों के लिए weapman का इस्तेमाल होता था, तो महिलाओं के लिए वुमन और पुरुषों के लिए मैन क्यों हो गया? जबकि मैन तो इंसान के लिए इस्तेमाल होता था.
भाषाविद् इसकी एक वजह 'मेल इज़ अल्फ़ा थियरी' में खोजते हैं. मेल इज़ अल्फ़ा थियरी मतलब इस ब्रह्माण्ड के केंद्र में पुरुष हैं और दुनिया उन्हीं के इर्द-गिर्द घूम रही है. चूंकि, जिस समय की बात हो रही है, उस समय में पुरुष ही बाहर जा कर काम करते थे. पुरुष की कमाई से ही घर चलता था. परिवार की संकल्पना भी पुरुषों पर ही केंद्रित बनी और पुरुषों के ये मुग़ालता हो गया कि वही हैं, जो हैं. तो मैन हो गया अल्फा और 'वाइफ़ ऑफ़ मैन' हो गई अल्फ़ा के कामकाज को स्मूद करने वाली औरत. हालांकि, ये सिर्फ़ एक संभावित वजह है.
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वुमन शब्द के साथ एक थियरी और है, या कहें भ्रांति है. ये कि Woman 'वूम्ब' और 'मैन' से मिलकर बना है. वूम्ब मतलब कोख. लेकिन इस थियरी को पुख़्ता करने के लिए भाषाचरों के पास पर्याप्त तर्क और सबूत नहीं हैं.
Sir-Madam, Male-Female का मामला क्या है?मैडम शब्द का इतिहास भी कुछ ऐसी ही है. ये शब्द फ्रेंच शब्द 'डेम' से बना है. अब वहां इस शब्द को आपत्तिजनक स्लैंग माना जाता है. लेकिन एक वक़्त पर इसका इस्तेमाल विवाहित महिलाओं या सम्पन्न महिलाओं को संबोधित करने के लिए किया जाता था. क्योंकि डेम की उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘डॉमिना’ से हुई है, जो 'डॉमिनस' का स्त्री रूप है. डॉमिनस का अर्थ है, लॉर्ड या मास्टर. चुनांचे डॉमिना माने मालकिन.

ऐसे ही इसमें दो शब्द और हैं. मेल और फ़ीमेल. लोगों को लगता है female शब्द भी male से निकला है, लेकिन ऐसा नहीं है. फ़ीमेल शब्द में Fe कोई उपसर्ग नहीं है.
फ़ीमेल का मूल लैटिन भाषा से आता है. Femilla, जिसका मतलब 'महिला' है. दूसरी तरफ़ मेल पुराने फ्रांसेसी ‘masle’ से आता है, जो लैटिन शब्द ‘मैस्क्यूलस’ से निकलता है. समय के साथ ‘masle’ मेल बन गया और 14वीं शताब्दी के आसपास, मेल के साथ लंबे समय तक उपयोग के बाद, ‘femilla’ भी फ़ीमेल में बदल गया.
ख़ैर, आज के लिए बहुत ज्ञान हुआ. एक और बात जान लीजिए. हमने आपको मैन इज़ ऐल्फ़ा वाली थियरी बता ही दी. भाषा पर भी इसका असर कैसे आया, वो भी. इसीलिए आज के समय दुनियाभर के नारीवादी संगठन womxn, womyn, womon जैसे शब्दों के इस्तेमाल को बढ़ावा देते हैं. हालांकि, इससे कितना फ़र्क़ पड़ेगा, लोग किस हद तक जेंडर सेंसिटिव होंगे ये कहना मुश्किल है. हमारे हाथ में तो बस कोशिश ही है.