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गुलाम नबी आजाद, वो नेता जिसने वाजपेयी पर हमले कर रहे संजय गांधी का कुर्ता खींच दिया था

जानिए गुलाम नबी आजाद की पत्नी उनके बारे में क्या कहती हैं.

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गुलाम नबी आजाद के दोस्त हर पार्टी में हैं. ये बात को खुद भी बताते हैं. फोटो- PTI
25 फरवरी 2016. राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद बोलने के लिए खड़े हुए. उन्होंने अपनी बात की शुरुआत एक किस्से से की. बताया कि 1977 में जब वो दिल्ली में नए-नए आए थे, तब यहां एक कहावत से उनका आमना-सामना हुआ. लोग उनसे कहते थे कि तुम ज्यादा बोल रहे हो, ज्यादा प्याज़ खा रहे हो. ये बात उन्हें समझ नहीं आती थी. फिर एक दिन एक बुजुर्ग नेता से उन्होंने धीरे से इस कहावत का मतलब पूछा. बुजुर्ग ने बदले में एक कहानी सुना दी. कहा कि एक पंडित, मुसलमान बन गया. लेकिन वो बताता कैसे कि पक्का मुसलमान बन गया है. इसलिए जब वह मुस्लिम दावतों में जाता था तो ज्यादा प्याज खाता था, क्योंकि पंडित तो प्याज खाते नहीं. यानी खुद को पक्का मुसलमान साबित करने के लिए वो थोड़ा ज्यादा प्याज खाता था. इस कहानी को हंसते हुए सुनाने के बाद गुलाम नबी आजाद ने बीजेपी को निशाने पर लिया. कहा कि हम उम्र भर प्याज खाएं हैं तो हमें 24 घंटे नेशनलिज्म चिल्लाने की जरूरत नहीं है. जो नए-नए 'मुसलमान' बने हैं, वो दिखावे के लिए राष्ट्रवाद-राष्ट्रवाद करते हैं. वो ज्यादा प्याज खा रहे हैं.
गुलाम नबी आजाद ने इस तरह बड़ी चालाकी से बीजेपी को घेर भी लिया, बातें भी सुना दीं और लोग इस दौरान हंसते भी रहे. कुछ ऐसी ही शख्सियत रही है खुद को पक्का कांग्रेसी बताने वाले गुलाम नबी आजाद की. बहुत कम लोग जानते हैं कि उनकी पत्नी शमीम देव आजाद कश्मीर की मशहूर गायिका हैं. उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा जा चुका है. लोगों को लगता है कि गुलाम नबी आज़ाद की लव मैरिज हुई है. लेकिन एक वीडियो इंटरव्यू में शमीम ने बताया था कि दोनों परिवार एक दूसरे को लंबे वक्त से जानते थे. आना-जाना था. वो बचपन से एक-दूसरे से परिचित थे. शादी के लिए कभी सोचा नहीं था, लेकिन दोनों की ही रुचि गानों में थी. मौसिकी में थी. वो हंसते हुए बताती हैं कि गुलाम नबी आजाद को गाने का भी शौक है. वो शायर भी अच्छे हैं. अक्सर डायरी में शेर लिखा करते हैं. अच्छे क्रिटिक भी हैं. बताते भी हैं कि गाने में कहां क्या कमी रह गई.
Shameem Dev कश्मीरी भाषा की गायिका हैं आजाद की पत्नी शमीम देव. (फोटो क्रेडिट @Cinco Rio यूट्यूब चैनल)
भावुक शख्स हैं गुलाम नबी आज़ाद चंद दिनों पुरानी ही बात है, जब लोगों ने गुलाम नबी आजाद को राज्यसभा में रोते देखा. उन्होंने कहा कि मैं जीवन में 5 बार ही चिल्ला-चिल्लाकर रोया हूं. मेरे माता-पिता की मौत हुई तो मैं बहुत रोया, लेकिन कुछ वाकये ऐसे हुए जिन पर मैं चिल्ला-चिल्ला कर रोया. पहली बार तब जब संजय गांधी की मौत हुई. दूसरी बार तब जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई. तीसरा बार राजीव गांधी की मौत पर. और चौथी बार तब जब उड़ीसा में सुपर सूनामी आई थी. सोनिया गांधी ने मुझे वहां जाने को कहा. पिता बीमार थे, फिर भी मैं वहां गया. मैंने समंदर में सैकड़ों लाशों को तैरते देखा, और बहुत रोया. इसके बाद उन्होंने साल 2005 का वो किस्सा बताया, जिसका जिक्र हाल में राज्यसभा से गुलाम नबी आजाद के रिटायरमेंट के वक्त नरेंद्र मोदी ने किया था.
2005 में गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर के सीएम थे. गुजरात के लोगों का दल पर्यटन के लिए कश्मीर पहुंचा था. लेकिन वो आतंकवादियों के बमों का निशाना बन गए. करीब 8 लोगों की मौत हुई. काफी लोग जख्मी भी हुए. मौके पर आजाद भी पहुंचे. पीड़ित बच्चे उनके पैरों से लिपट गए. पूछने लगे कि हमारे पापा कहां हैं. आजाद के पास कोई जवाब नहीं था. वो बेबसी में रोने लगे. हाथ जोड़ दिए. कहा कि हम आपको फल और फूलों के साथ वापस भेजना चाहते थे लेकिन लाशों के साथ वापस भेज रहे हैं. बहुत अफसोस है. हमें माफ करना.
https://twitter.com/ANI/status/1359046731808137224
उस वारदात में घायल लोगों को गुलाम नबी आजाद ने प्लेन से वापस गुजरात भेजा. साथ में सम्मान के साथ लाशों को भी भेजा. यही बात नरेंद्र मोदी के दिल को छू गई, जो इस घटना के वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे. अपने बगीचे से बहुत प्यार है शेर-ओ-शायरी के अलावा जिस चीज से आजाद को लगाव है, वो है उनका बगीचा. 2006 में NDTV के एक कार्यक्रम में उन्होंने बताया था कि कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें दो बार सीएम पद सौंपना चाहा लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया. साल 2005 में उन्होंने इस ऑफर को स्वीकार कर लिया. वो बताते हैं कि रिटायर होने से पहले मैं वापस कश्मीर लौटना चाहता था. लेकिन शायद उनके ऐसा करने के पीछे बड़ी वजह बगीचों से उनका लगाव है. दिल्ली में भी उन्होंने अपने बगीचे में काफी मेहनत की है. पीएम मोदी ने राज्यसभा में अपने भाषण में कहा था कि आजाद ने दिल्ली में ही कश्मीर बना रखा है, तो ये बात काफी सच भी है. आजतक से बात करते हुए गुलाम नबी आजाद बताते हैं,
"मेरे ख्याल में मेरे बगीचे में 25-26 वैरायटी के फूल हैं. जब मैं मुख्यमंत्री था तो मैंने एशिया का पहला ट्यूलिप गार्डन कश्मीर में बनाया था. आज वह एक पर्यटक स्थल है. मैं सिर्फ फूल ही नहीं उगाता हूं, बीज भी खुद रखता हूं, कलेक्ट करता हूं, पौध भी तैयार करता हूं. कौन सी चीज कहां लगेगी, उसके बाद अलग-अलग जगह लगाता हूं."
इस शौक के लिए उन्हें कई बार पुरस्कार भी मिल चुके हैं. CPWD की ओर से भी उनके गार्डन को इनाम मिल चुका है. जेडीयू नेता राम चंद्र प्रसाद सिंह ने कहते हैं कि नीतीश कुमार बंगले में लगे बगीचे को सुंदर बनाने के लिए भी गुलाम नबी आजाद टिप्स दिया करते थे.
Ghulam Nabi Azad Congress' गुलाम नबी आजाद अपने शौक के लिए वक्त निकाल ही लेते हैं. फोटो- PTI
हमेशा से कांग्रेसी रहे हैं आज़ाद जम्मू-कश्मीर में एक जिला है डोडा. यहां पर एक गांव में 7 मार्च 1949 को गुलाम नबी आजाद का जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम था रहमतुल्लाह बट. 1972 में उन्होंने श्रीनगर की कश्मीर यूनिवर्सिटी से जूलॉजी में मास्टर्स डिग्री ली. साल 1975 से राजनीति की तरफ झुकाव होने लगा. दिल्ली चले आए. 1980 तक वो युवा कांग्रेस के अध्यक्ष बन चुके थे. इसी साल वो पहली बार लोकसभा पहुंचे. वो भी महाराष्ट्र के वाशिम से जीतकर. 1982 में इंदिरा गांधी की सरकार में वो उपमंत्री भी रहे. 1985 में वो फिर से संसद पहुंचे. इसके बाद 1990 में राज्यसभा के लिए चुने गए. नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री भी रहे. 2005 में जम्मू-कश्मीर के सीएम बने. साल 2008 में PDP ने समर्थन वापस लिया तो सरकार गिर गई, तब एक बार फिर से आजाद दिल्ली पहुंचे. मनमोहन सिंह की सरकार में स्वास्थ्य मंत्री बने. साल 2014 में कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी. अब 2021 में उनका राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हुआ है. आजकल बहुत चर्चा में हैं आजाद गुलाम नबी आजाद आजकल बहुत चर्चा में हैं. खासकर राज्यसभा कार्यकाल खत्म होने के बाद से. जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी विदाई के दौरान भावुक हो गए, उससे कयास लगाए जाने लगे हैं कि क्या आजाद बीजेपी में जाने वाले हैं. आजतक के कार्यक्रम सीधी बात में प्रभु चावला ने भी उनसे यही सवाल किया. इस पर आजाद ने कहा कि मैं कांग्रेसी था, हूं और रहूंगा. मैं कभी बीजेपी में नहीं जा सकता, और मोदी कभी कांग्रेस में नहीं आ सकते. वो कहते हैं कि पहले के नेताओं की विचारधाराएं अलग होती थीं, लड़ाइयां भी होती थीं लेकिन सम्मान बरकरार रहता था. राज्यसभा में विदाई के दौरान जो कुछ भी हुआ, ठीक वैसा ही था. वो एक किस्सा भी सुनाते हैं-
"1980 की बात है. संजय गांधी संसद में अक्सर काफी कम बोलते थे. लेकिन उस दफा वो काफी देर तक बोले. वो अटल जी के खिलाफ बोल रहे थे. मैं उनका कुर्ता खींच रहा था कि बैठ जाओ, वो बोलेंगे तो धज्जियां उड़ा देंगे. लेकिन अटल जी ने जब बोला तो संजय की तारीफ में बोला. उन्होंने कहा कि आज संजय ने मेरे खिलाफ काफी कुछ कहा लेकिन मैं कुछ नहीं कहूंगा. पिछले चुनाव में हमने संजय को मुद्दा बनाया था, उस वक्त वो लीडर नहीं था लेकिन इंदिरा जी अगर आज आप कुर्सी पर हैं तो इसके पीछे संजय गांधी ही हैं. आज संजय लीडर हैं और लीडर के खिलाफ मैं कुछ नहीं कहूंगा."