इस मुलाकात के बाद तय हो गया था कि अब गंगा किनारे की बालू पर खून के छींटे गिरने जा रहे हैं. 1996 आते-आते उत्तर प्रदेश का सियासी मौसम काफी बदल चुका था. गेस्ट हाउस कांड हो चुका था. समाजवादी पार्टी की सरकार जा चुकी थी. सूबे में राष्ट्रपति शासन अमल में था. जवाहर पंडित को अंदाजा था कि करवरिया परिवार उनसे हिसाब बराबर करने की फिराक में है. विधानसभा भंग होने के बाद उनको मिली सरकारी सुरक्षा खत्म हो चुकी थी. लिहाजा जान पर खतरे की आशंका जताते हुए उन्होंने प्रशासन से दो दफा सुरक्षा भी मांगी थी. लेकिन उनकी अर्जी पर किसी ने कान नहीं दिया.
कल्याण सिंह और केशरीनाथ त्रिपाठी के साथ उदयभान करवरिया. (फोटो- सोशल मीडिया)पहली बार इलाहाबाद में तड़तड़ाई एके-4713 अगस्त 1996. इलाहबाद के सिविल लाइन्स का इलाका. UP-70 E-3479 नम्बर की एक सफ़ेद मारुति कार हनुमान मंदिर चौराहे से पत्थर गिरिजाघर की तरफ बढ़ रही थी. इस कार के ठीक पीछे एक टाटा सूमो भी चल रही थी. सुभाष चौराहे के आगे पैलेस सिनेमा के पास एक सफ़ेद रंग की टाटा सिएरा ने मारुति कार को ओवरटेक किया. मारुति कार के ड्राइवर गुलाब यादव को कुछ गड़बड़ का अंदेशा हुआ. वो बगल से टाटा सिएरा को ओवरटेक करने की सोच ही रहे थे कि बगल वाली लेन में एक और गाड़ी उनके बराबर चलने लगी. सफ़ेद रंग की मारुति वैन. जिसका नंबर था, UP-70 8070. आगे चल रही टाटा सिएरा अचानक से रुक गई. गुलाब यादव के पास बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था.
बगल की लेन में चल रही मारुति वैन से चार लोग उतरे. कपिल मुनि करवरिया, सूरजभान करवरिया, उदयभान करवरिया और श्याम नारायण करवरिया उर्फ़ मौला महाराज. आगे रुकी हुई टाटा सिएरा से तावदार मूंछो वाला एक और शख्स नीचे उतरा. नाम रामचन्द्र त्रिपाठी उर्फ़ कल्लू. इन पांचो लोगों के हाथ में हथियार थे. रायफल, रिवॉल्वर और एके-47. मारुति कार और उसके पीछे चल रही टाटा सूमो में बैठे कुल आधा दर्जन लोगों के होश फाख्ता हो गए.
हाथ में एके-47 थामे मौला महाराज ने मारुति कर में बैठे एक शख्स को नाम लेकर ललकारना शुरू किया. 'बाहर निकलो जवाहर पंडित'. और इसके बाद सिविल लाइंस गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. पांचो लोगों ने मारुति कार पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं. यह पहली बार था जब इलाहाबाद में एके-47 की तड़तड़ाहट सुनाई दे रही थी. आधे मिनट के भीतर जवाहर पंडित के शरीर में दस गोलियां धंस चुकी थीं. जवाहर पंडित के साथ बैठे कल्लन यादव और ड्राइवर गुलाब यादव को भी गोलियां लगी थीं. गुलाब और जवाहर यादव ने मौके पर ही दम तोड़ दिया. जबकि कल्लन चमत्कारिक तौर पर जानलेवा जख्म से उबरने में कामयाब रहे. हालांकि घटना के कुछ समय बाद ही उनकी बीमारी के चलते मौत हो गई.
जवाहर पंडित को श्रद्धांजलि देते सपा कार्यकर्ता. सिविल लाइंस में इसी जगह पर 1996 में हुई थी जवाहर पंडित की हत्या. (फोटो- फेसबुक)''हम तो शहर में नहीं थे''
जवाहर पंडित के भाई सुलाकी यादव की तहरीर पर कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया, सूरजभान करवरिया, श्याम नारायण करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी को इस हत्याकांड में आरोपी बनाया गया था. इसमें से श्याम नारायण करवरिया उर्फ़ मौला महाराज की 1996 मौत हो गई. करवरिया बंधुओं ने अपने बचाव में जांचा-परखा तर्क दिया कि वो घटना स्थल पर मौजूद नहीं थे. कपिलमुनि करवरिया ने दावा किया कि वो उस दिन इलाहाबाद में नहीं थे. वो किसी दूसरे जिले में थे और उन्होंने अपना पूरा दिन बीजेपी नेता कलराज मिश्र के साथ बिताया. इस सिलसिले में कलराज मिश्र ने तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी को खुला खत लिखा था जिसे उस समय के अखबारों छापा भी था. यहां तक कि कलराज मिश्र कपिलमुनि के पक्ष में गवाही भी देने आए थे. लेकिन अदालत ने उनकी गवाही को स्वीकार नहीं किया.
उदयभान करवरिया ने भी कुछ इसी किस्म का दावा किया. उन्होंने कहा कि घटना के वक़्त वो भी शहर से बाहर थे. लेकिन अदालत ने उनके तर्क भी ख़ारिज कर दिया. अपर सेशन जज बद्री विशाल पाण्डेय ने अपने फैसले में लिखा कि उदयभान के दावे को इसलिए स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि वो इस सम्बन्ध में कोई रसीद या टिकट उपलब्ध नहीं करवा पाए.
सूरजभान करवरिया ने भी अदालत से कहा कि वो मौके पर मौजूद नहीं थे. सूरजभान ने कहा कि वो घटना के वक़्त रसूलाबाद घाट पर मौजूद थे. सबूत के तौर पर उन्होंने अदालत में एक फोटोग्राफ भी उपलब्ध करवाया था. अदालत ने फोटो की सच्चाई जानने के लिए सूरजभान से नेगेटिव मांगा था. लेकिन सूरजभान नेगेटिव उपलब्ध नहीं करवा पाए. लिहाजा उनका दावा भी ख़ारिज कर दिया गया.
4 नवंबर 2019 इस हत्याकांड में फैसला आया. अदालत ने चारों आरोपियों को भारतीय दंड सहिंता की धारा 302, 307, 147, 148, 149 और क्रिमिनल लॉ अमेंमेंट एक्ट की धारा 7 के तहत दोषी पाया. अदालत ने चारों दोषियों को सश्रम उम्रकैद और 7.20 लाख जुर्माने की सजा सुनाई.
इलाहाबाद के कल्याणी देवी स्थित करवरिया कोठी.तीन पीढ़ी में खड़ा किया साम्राज्य
4 अक्टूबर 2018. करवरिया बंधुओं को सजा होने के ठीक 13 महीने पहले उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से इलाहाबाद सेशन कोर्ट में एक अर्जी दाखिल की गई थी. इस अर्जी में कहा गया था कि करवरिया बंधुओं के के खिलाफ आरोप साबित होने के लिहाज से पर्याप्त सबूत नहीं है. लिहाजा सरकार करवरिया बंधुओं के खिलाफ मुकदमा वापस लेना चाहती है. सरकार के इस फैसले के खिलाफ जवाहर पंडित की पत्नी विजमा यादव हाईकोर्ट गई थीं. हाईकोर्ट ने सरकार की इस अपील को ख़ारिज करते हुए मुकदमा जारी रखने के निर्देश दिए. यह बहुत दुर्लभ मौका था जब सरकार एक विधायक की हत्या के मामले में मुकदमा उठाने को तैयार थी. सरकार की अपील भले ही हाईकोर्ट ने ख़ारिज कर दी हो लेकिन यह करवरिया खानदान के सियासी रसूख की गवाही तो थी ही. जो कौशांबी के एक छोटे से गांव से शुरू हुई थी और इलाहाबाद और उसके आस-पास के जिलों में फ़ैली थी.
सजा सुनाए जाने के बाद कपिलमुनि करवरिया को लेकर जाती पुलिसकौशांबी के मंझनपुर के चकनारा गांव के रहने वाले जगत नारायण करवरिया 1967 में सिराथू सीट से चुनावी मैदान में उतरे. लेकिन सफलता नहीं मिली. जगत नारायण की विरासत को आगे बढ़ाया उनके बेटे विशिष्ट नारायण करवरिया ऊर्फ भुक्खल महराज ने. भुक्खल महराज ने इलाहाबाद उत्तरी और दक्षिणी विधानसभा से निर्दलीय किस्मत आजमाई. लेकिन जीत नहीं मिली. जीत मिली परिवार की तीसरी पीढ़ी को. साल 1997 में भुक्खल महराज के मंझले बेटे उदयभान करवरिया कौशांबी जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष बने. लगभग तीन दशक तक कोशिश करने के बाद करवरिया परिवार का कोई सदस्य चुनाव जीतने में कामयाब हुआ था.
सूरजभान करवरिया का कहना है कि जिस समय ये घटना हुई उस वक्त वे रसूलाबाद घाट पर मौजूद थे. लेकिन कोर्ट ने उनका तर्क खारिज कर दिया.साल 2000 में पंचायत चुनाव हुए और भुक्खल महराज के बड़े बेटे कपिलमुनि करवरिया कौशांबी के जिला पंचायत अध्यक्ष बने. साल 2002 में विधानसभा चुनाव हुए और उदयभान ने पहली बार इलाहाबाद की बारा सीट पर कमल खिलाया. उन दिनों इलाहाबाद के सांसद हुआ करते थे भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी. उदयभान मुरली मनोहर के खास लोगों में से थे. भुक्खल महराज के सबसे छोटे बेटे सूरजभान ने 2005 में राजनीति में कदम रखा और मंझनपुर के ब्लॉक प्रमुख बने. 2007 में सूरजभान एमएलसी बने और ब्लॉक प्रमुख का पद छोड़ दिया. 2007 के विधानसभा चुनाव में उदयभान को भाजपा ने फिर बारा से टिकट दिया और उदयभान फिर से विधायक बने. इलाहाबाद की 12 विधानसभा सीटों में से केवल बारा ही भाजपा जीतने में सफल रही थी. डॉ. जोशी इलाहाबाद से जा चुके थे और उदयभान क्षेत्र में भाजपा के सबसे मजबूत नेता के तौर पर उभरने लगे थे. 2009 के चुनाव में कपिलमुनि ने भाजपा से लोकसभा का टिकट मांगा. लेकिन बात नहीं बनी. कपिलमुनि ने भाजपा छोड़ बसपा का दामन थाम लिया. फूलपुर से हाथी के निशान पर चुनाव लड़े और जीते. बसपा पहली बार फूलपुर से जीती थी और सांसद बने थे कपिलमुनि.
उदयभान करवरिया का कहना है कि सजा उनके पॉलिटिकल स्टेटस को देखते हुए सुनाई गई है. इसलिए वे हाईकोर्ट जाएंगे.2012 में बारा की विधानसभा सीट सुरक्षित हो गई. उदयभान बारा छोड़ इलाहाबाद उत्तरी से कमल के निशान पर लड़े. लेकिन यहां उन्हें कांग्रेस के अनुग्रह नारायण सिंह से हार झेलनी पड़ी. 2012 में उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बनी. और सरकार बदली तो जवाहर पंडित हत्याकांड की सुनवाई में तेजी आई. 2013 में हाईकोर्ट ने मामले की कार्यवाही में लगा स्टे खारिज कर दिया. और लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे उदयभान को गिरफ्तार करने का वारंट निकाल दिया. उदयभान दो महीने फरार रहे. 1 जनवरी 2014 को सरेंडर किया. बाद में कपिलमुनि और सूरजभान भी जेल चले गए. उदयभान को तो टिकट नहीं मिला लेकिन कपिलमुनि पर बसपा ने एक बार फिर विश्वास जताया और 2014 में फूलपुर से मैदान में उतारा. लेकिन जीते नहीं. जीते केशव प्रसाद मौर्य. तीनों भाई जेल चले गए तो उदयभान की पत्नी नीलम चुनावी मैदान में उतरीं. 2017 में भाजपा ने मेजा विधानसभा सीट से उन्हें टिकट दिया. नीलम मेजा विधानसभा से पहली बार भाजपा को जिताने में सफल रहीं.
करवरिया परिवार की सियासी विरासत बढ़ाने की जिम्मेदारी अब नीलम करवरिया पर है. उनका कहना है कि फिलहाल परिवार से सक्रिय राजनीति में वही रहेंगी.नीलम फिलहाल विधायक हैं लेकिन 2014 से करवरिया परिवार के सितारे गर्दिश में हैं. तीनों भाई पिछले चार साल जेल में हैं. उदयभान करवरिया ने मीडिया को दिए बयान में साफ किया है कि उनके परिवार की अगली पीढ़ी अभी राजनीति में नहीं आएगी. लेकिन अदालत के इस फैसले ने करवरिया परिवार के सियासी वारिस के बारे में अटकले तेज कर दी हैं.
पति की हत्या के बाद विजमा यादव राजनीति में उतरीं. विजमा दो बार झूंसी से और एक बार प्रतापपुर से विधायक बनीं. (फोटो- फेसबुक)
पति के हत्या के बाद घूंघट से निकल शुरू की राजनीतिजवाहर पंडित से विजमा की शादी 1990 में हुई थी. महज छह साल बाद ही जवाहर की हत्या हो गई. घूंघट से बाहर निकल विजमा ने पति की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया. 1996 में विधानसभा चुनाव हुए. समाजवादी पार्टी ने विजमा को झूंसी से अपना प्रत्याशी बनाया. 12 हजार वोटों से जीतकर विजमा विधानसभा पहुंचीं. 2002 में विजमा फिर झूंसी से विधानसभा पहुंची और मार्जिन इस बार बढ़कर 18 हजार हो गया. 2007 में विजमा एक बार फिर से झूंसी से चुनावी मैदान में थी लेकिन जीत की हैट्रिक न लगा सकीं. झूंसी से बसपा के प्रवीण पटेल के हाथों उन्हें हार झेलनी पड़ी. 2012 में समाजवादी पार्टी ने विजमा की सीट बदल दी और उन्हें प्रतापपुर से मैदान में उतारा. विजमा तीसरी बार विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहीं.
हत्या से एक दिन पहले ही जवाहर पंडित लखनऊ गए थे और बड़ी बेटी ज्योति और बेटे हॉस्टल में छोड़कर आए थे. 2016 में ज्योति फूलपुर की ब्लॉक प्रमुख बनीं. (फोटो- फेसबुक)2017 में फिर से विजमा प्रतापपुर से चुनाव मैदान में उतरीं लेकिन उन्हें हार झेलनी पड़ी. विजमा के साथ उनकी बड़ी बेटी ज्योति यादव भी राजनीति में सक्रिय हैं. ज्योति 2016 में फूलपुर ब्लॉक से ब्लॉक प्रमुख बनीं. हालांकि साल भर बाद ही उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आ गया और उन्हें पद छोड़ना पड़ा. करवरिया बंधुओं को सजा सुनाए जाने के बाद विजमा ने फैसले पर संतुष्टि जताई है. उनका कहना है कि अगर करवरिया बंधु हाईकोर्ट जाएंगे तो हम वहां भी लड़ेंगे.
वीडियो: अमित शाह के खास स्वतंत्र देव सिंह की RSS से होते हुए यूपी बीजेपी चीफ बनने की कहानी