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'मुसलमान थे, तो सीट बदल दी', कलाम की जयंती के दिन पढ़िए उनके बचपन के क़िस्से

बीज जुटाने, ट्रेनों से अख़बार उतारने, नारियल तोड़ने में करियर बनाने की हसरत और अतरंगी सवालों से भरा था कलाम का बचपन.

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15 अक्टूबर 1931 से 27 जुलाई 2015 तक थी कलाम की जीवन यात्रा. (तस्वीर - सोशल मीडिया)

‘वंदे मातरम् किसने लिखा है?’ – GK के सवालों में जितना प्रचलित ये था, उतना ही प्रचलित था कि डॉ अब्दुल कलाम (Abdul Kalam) का पूरा नाम क्या है? जवाब: अवुल पाकिर जैनुलब्दीन अब्दुल कलाम. भारत के पूर्व राष्ट्रपति, दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में एक, देश के डिफ़ेंस रिसर्च प्रोग्राम के 'लौह-पुरुष' और मिसाइल मैन ऑफ़ इंडिया. जीके में नहीं, तो आमजनों और आम-ज़हनों में उनके ये परिचय भी प्रचलित हैं.

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आज डॉ कलाम की जयंती है. इसीलिए हमने 'रेड टर्टल' प्रकाशन से छपी उनकी ऑटोबायोग्राफी 'माय लाइफ़' से कुछ क़िस्से छांटे हैं. उनके बचपने के क़िस्से.

ट्रेनों से अख़बार उतारने से पहले ये काम करते थे

सब जानते हैं कि कलाम बचपन में ट्रेन से अख़बारों के बंडल उतारा करते थे. लेकिन यह उनका पहला रोजगार नहीं था. दूसरे विश्व युद्ध के समय जब रोज़मर्रा की चीज़ों की कमी हो गई थी, उन्होंने तय किया कि कुछ पैसे कमाकर फैमिली की मदद करेंगे. लिहाज़ा कलाम इमली के बीज जमा करने लगे. उस समय कुछ वजहों से इमली के बीज की डिमांड थी. कलाम ठीक-ठाक मात्रा में उन्हें जमा कर लेते, तो उन्हें दुकान पर बेचकर उन्हें एक आना मिल जाता था. आना भारत में 1957 तक प्रचलित था. एक आने में चार पैसे होते थे. 

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स्कूल में या और कहीं पर भी कलाम की निगाहें सिर्फ़ इमली के बीज तलाशतीं. उन्हें ढेर सारा जमा करके वह लोकल दुकानदार को बेच आते. जैसे ही उन्हें आने का सिक्का मिलता, वे दौड़कर मां के पास जाते और उन्हें वह सिक्का दे देते. मां उस सिक्के को उस छोटे से बक्से में डाल देतीं, जिसमें घर की आजीविका रखी जाती थी.

नारियल तोड़ने में भी करियर बनाना चाहते थे

बीज जमा करने और अख़बार उतारने के अलावा, एक और काम था जिसमें वो अपना करियर बनाना चाहते थे. ये काम समाज में दोयम दर्जे का माना जाता है. बचपन में कलाम पेड़ पर चढ़कर नारियल तोड़ने को अपना पेशा बनाना चाहते थे. उन्होंने लिखा है कि बचपन में वह किसी को पेड़ पर चढ़कर नारियल तोड़ता देख बहुत ख़ुश हो जाते थे.

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"मेरी पायलट बनने की इच्छा से बहुत पहले, मैं सोचता था कि बड़े होकर नारियल के पेड़ों पर चढ़ने वाला बनूंगा और यह मेरे लिए एक शानदार पेशा होगा. आख़िर कोई भी उनसे ऊंचा नहीं चढ़ सकता और पेड़ों की चोटी से आप दूर-दूर तक देख सकते हैं."

मुसलमान होने की वजह से बदली गई सीट

कलाम को इस देश से बहुत प्यार मिला. लेकिन स्कूल में उन्हें मुसलमान होने की वजह से भेदभाव का सामना करना पड़ा था. अपनी ऑटोबायोग्राफी में उन्होंने लिखा है कि एक बार मुसलमान होने की वजह से उनकी सीट बदल दी गई थी.

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रामेश्वरम एलीमेंट्री स्कूल में अब्दुल (कलाम) की दोस्ती एक ब्राह्मण छात्र रामनाधा शास्त्री से हो गई थी. दोनों क्लास में साथ-साथ बैठते थे. वे साथ में नाव बनाते और उस पर चींटे और दूसरे कीड़ों को सवारी करवाते. एक बार स्कूल में एक नए टीचर आए. उन्होंने पहनावे से जान लिया कि एक ब्राह्मण लड़के के साथ एक मुस्लिम लड़का बैठा है. वह इससे खुश नहीं थे. कलाम लिखते हैं,

"उन्होंने मुझे उठाकर कहीं और बैठा दिया. मैं हैरान और दुखी था. मुझे याद है कि मैं रो पड़ा था क्योंकि मुझसे मेरे बेस्ट फ्रेंड के साथ वाली सीट छीन ली गई थी. और किसे पता था कि हिंदू और मुसलमान साथ-साथ नहीं बैठ सकते?"

रामनाधा शास्त्री के पिता रामेश्वरम शिव मंदिर में मुख्य पुजारी थे. उसी शाम उनको इस घटना के बारे में पता चल गया. उन्होंने कलाम के पिता से बात की. फिर दोनों स्कूल गए और उस टीचर से कहा कि उन्हें धर्म को क्लासरूम में नहीं लाना चाहिए. बच्चों को साथ-साथ पढ़ते और खेलते हुए बड़े होना चाहिए, आस्थाओं के टकराव के बिना. टीचर बात को समझ गए और दोनों को फिर से पास-पास बैठा दिया गया.

बचपन में किन सवालों से भरा था कलाम का दिमाग़?

एपीजे अब्दुल कलाम का व्यक्तित्व इसलिए निखरा क्योंकि बचपन में वह हर चीज पर सवाल करते थे. उन्होंने कई बार बताया कि उनका मन सवालों से भरा रहता था, जिन्हें वह अपने बड़े-बुजुर्गों से पूछा करते थे. कलाम ने लिखा है कि वह बहुत सपने देखते थे और उन्हें समुद्र के किनारे पर चिड़ियों-बादलों को देखते हुए अकेले वक़्त बिताना पसंद था. इस दौरान उनका दिमाग हमेशा सवालों से लबरेज रहता था. कैसे सवाल?

- पक्षी क्यों उड़ते हैं और हम क्यों नहीं?
- सिर्फ पंखों को हिलाने से कोई कैसे आसमान में उड़ सकता है?
- क्या दिन के खत्म होने पर सूरज सच में समुद्र में गिर जाता है?
- समुद्र की लहरें कहां से आती हैं और कहां को जाती हैं?

कलाम ने ये सवाल बड़ों से पूछे. जब उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं मिले तो उन्होंने ये जवाब किताबों में खोजने की कोशिश की. इस तरह मासूम जिज्ञासाओं ने उनकी किताबों और विज्ञान में रुचि पैदा की. पक्षी के उड़ने से शुरू हुई जिज्ञासा से शुरू हुआ सफ़र एयरोनॉटिकल इंजीनियर तलक पहुंचा और वहां भी नहीं रुके. आगे की कहानी.. रेस्ट इज़ हिस्ट्री. 

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