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'धर्मनिरपेक्ष' और 'समाजवाद' की बहस में उपराष्ट्रपति धनखड़ की एंट्री, बोले- 'नासूर और सनातन का अपमान'

उपराष्ट्रपति Jagdeep Dhankhar ने कहा कि ये शब्द 'नासूर' की तरह जोड़े गए. ये शब्द हलचल पैदा करेंगे. उन्होंने आगे कहा कि आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जोड़े गए ये शब्द, संविधान के निर्माताओं की मानसिकता के साथ धोखे के प्रतीक हैं.

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वाइस प्रेसिडेंट एन्क्लेव में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संविधान पर दिया बयान. (x.com/VPIndia)

भारत के संविधान की प्रस्तावना में शामिल शब्दों 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्षता' को लेकर देश में बहस तेज हो गई है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी इस बहस में शामिल हो गए हैं. उन्होंने इमरजेंसी के दौरान प्रस्तावना में शामिल किए गए शब्दों को 'नासूर' बताया. उन्होंने इसे 'सनातन का अपमान' भी करार दिया. यहां एक बात साफ कर दें कि संविधान की प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष' नहीं, बल्कि 'पंथनिरपेक्ष' शब्द का इस्तेमाल किया गया है.

शनिवार, 28 जून को दिल्ली में वाइस प्रेसिडेंट एन्क्लेव में एक कार्यक्रम के दौरान उपराष्ट्रपति ने ये बाते कहीं. उन्होंने कहा,

"प्रस्तावना में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता. प्रस्तावना ही वो आधार है जिस पर संविधान विकसित हुआ है. प्रस्तावना संविधान का बीज है. यह संविधान की आत्मा है, लेकिन भारत के लिए इस प्रस्तावना को 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के जरिए बदल दिया गया, जिसमें सोशलिस्ट (समाजवादी), सेक्यूलर (पंथनिरपेक्ष) और इंटीग्रिटी (अखंडता) जैसे शब्द जोड़े गए."

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, धनखड़ ने कहा कि जब देश में आपातकाल लगा था, तब ये बदलाव किए गए. कार्यक्रम में उन्होंने कहा,

"ये शब्द 'नासूर' की तरह जोड़े गए. ये शब्द हलचल पैदा करेंगे. आपातकाल के दौरान प्रस्तावना में जोड़े गए ये शब्द, संविधान के निर्माताओं की मानसिकता के साथ धोखे के प्रतीक हैं. यह इस देश की हजारों सालों की सभ्यता की धरोहर और ज्ञान को कमतर बनाने जैसा है. यह सनातन की आत्मा का अपमान है."

दरअसल, इस बहस की शुरुआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की थी. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 25 जून को लखनऊ में एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' जैसे शब्द जोड़ना भारत की आत्मा पर क्रूर आघात था. उन्होंने मांग की थी कि इसके लिए कांग्रेस को देश और दलितों से माफी मांगनी चाहिए.

इसके बाद 26 जून को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने इस बहस को हवा दी. उन्होंने कहा था कि 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को प्रस्तावना में बनाए रखने पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि ये शब्द संविधान के मूल रूप में शामिल नहीं थे और इन्हें गलत तरीके से जोड़ा गया था.

इसके तुरंत बाद केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी बयान दे डाला. 26 जून को उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति की आत्मा 'सर्व धर्म समभाव' की है, ना कि 'धर्मनिरपेक्ष'. उन्होंने 'धर्मनिरपेक्ष' शब्द हटाने की वकालत की. वहीं, केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि हर समझदार नागरिक चाहेगा कि ये शब्द हटाए जाएं क्योंकि ये मूल संविधान में नहीं थे.

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