राज्यपाल और सरकार के बीच की तनातनी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. 21 अगस्त को सुनवाई के दौरान CJI बी. आर. गवई की अगुआई वाली संविधान पीठ ने सरकार से पूछा कि क्या एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई राज्य सरकार राज्यपाल की “मनमर्जी” पर निर्भर हो सकती है?
CJI गवई ने उठाया बड़ा सवाल! क्या गवर्नर ‘मनमर्जी’ से रोक सकते हैं विधेयक?
केंद्र सरकार के वकील ने कोर्ट में कहा कि संविधान ने ही राज्यपाल को यह विवेकाधिकार दिया है. इस पर CJI ने कहा कि क्या हम राज्यपाल को अपीलों पर विचार करने का पूरा अधिकार नहीं दे रहे हैं? बहुमत से चुनी गई सरकार राज्यपाल की मनमर्जी और इच्छा पर निर्भर होगी.


लाइव लॉ में छपी खबर के मुताबिक, बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों की मंजूरी के लिए समय-सीमा तय की थी. इस मुद्दे पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट को फिर से इस पर विचार करने को कहा था. राष्ट्रपति ने पूछा था कि राज्य विधानसभा से पारित बिल पर गवर्नर और राष्ट्रपति को फैसला लेने के लिए कोई समय-सीमा तय की जा सकती है या नहीं?
बुधवार को पांच जजों की संवैधानिक पीठ इस मामले में सुनवाई कर रही थी. संवैधानिक पीठ में CJI गवई के अलावा, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी. एस. नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर भी शामिल थे.
सुनवाई के दौरान CJI गवई ने पूछा कि अगर गवर्नर को किसी विधेयक को अनिश्चित काल तक रोके रखने की शक्ति दी जाए तो क्या यह लोकतंत्र के खिलाफ नहीं होगा? इसका मतलब होगा कि बहुमत से चुनी गई सरकार गवर्नर की इच्छा पर निर्भर हो जाएगी.
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता ने दलील दी कि संविधान के आर्टिकल-200 के तहत राज्यपाल के पास चार विकल्प होते हैंः
1. विधेयक को मंजूरी देना
2. असहमति जताना या मंजूरी रोकना
3. राष्ट्रपति के विचारों के लिए सुरक्षित रखना
4. विधानसभा को पुनर्विचार के लिए लौटाना.
SG का कहना था कि अगर राज्यपाल विधेयक को मंजूर नहीं करते हैं तो उस विधेयक की प्रक्रिया वहीं खत्म हो जाती है. तब बिल “मर” जाता है और उसे पुनर्विचार के लिए विधानसभा में वापस भेजना जरूरी नहीं.
तब CJI गवई ने पूछा कि अगर इस शक्ति को मान्यता दी जाती है तो क्या यह राज्यपाल को विधेयक को अनिश्चित काल तक रोके रखने का अधिकार नहीं देती? आपके मुताबिक रोके रखने का मतलब है कि विधेयक पारित नहीं हो पाता? लेकिन अगर वह पुनर्विचार के लिए दोबारा भेजने का विकल्प नहीं अपनाते हैं तो वे इसे अनंत काल तक रोके रखेंगे?
इस पर SG ने कहा कि संविधान ने ही राज्यपाल को यह विवेकाधिकार दिया है. इस पर CJI ने कहा कि क्या हम राज्यपाल को अपीलों पर विचार करने का पूरा अधिकार नहीं दे रहे हैं? बहुमत से चुनी गई सरकार राज्यपाल की मनमर्जी और इच्छा पर निर्भर होगी.
जब बेंच ने पूछा कि क्या संविधान सभा ने ‘रोकना’ (withhold) शब्द के अर्थ पर बहस की थी? सॉलिसिटर मेहता ने इससे इनकार किया. लेकिन जस्टिस नरसिम्हा ने बताया कि आर्टिकल-200 में ‘रोकना’ शब्द का इस्तेमाल दो बार किया गया है, पहला मुख्य प्रावधान में और दूसरा परंतुक (proviso) में.
सॉलिसिटर ने कहा कि ‘रोकना’ राज्यपाल के पास मौजूद एक स्वतंत्र विकल्प है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने माना कि राज्यपाल को ऐसी असाधारण परिस्थितियों से निपटने के लिए रोक लगाने की शक्ति का प्रयोग बहुत कम और संयम से किया जाना चाहिए. उन्होंने दलील दी कि राज्यपाल सिर्फ विधेयकों को ज्यों के त्यों स्वीकार करने वाला “डाकिया” नहीं है बल्कि वे भारत सरकार और राष्ट्रपति के प्रतिनिधि होते हैं.
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जो व्यक्ति सीधे चुना नहीं जाता, वह कमतर नहीं होता. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राज्यपाल एक ऐसा व्यक्ति है जिस पर संविधान ने संवैधानिक काम करने के लिए भरोसा जताया है. किसी भी अन्य व्याख्या से रोक लगाने की शक्ति बेकार हो जाएगी. उन्होंने साफ किया कि इसका उद्देश्य राज्यपाल को “विधेयक को रद्द” करने का विवेकाधिकार देना नहीं है.
अदालत ने कहा कि अगर राज्यपाल सिर्फ एक बार असहमति जताकर प्रक्रिया खत्म कर दें तो यह राजनीतिक प्रक्रिया को ही नुकसान पहुंचाएगा. उन्होंने कहा कि कभी-कभी मुख्यमंत्री खुद राज्यपाल से मिलकर बदलाव का सुझाव दे सकते हैं और राज्यपाल बिल को फिर से लौटाकर रास्ता खोल सकते हैं. इसलिए यह एक “ओपन-एंडेड” प्रक्रिया होनी चाहिए.
CJI ने आगे कहा कि उन्हें ऐसे किसी भी फैसले का हवाला नहीं दिया गया है जिसमें कहा गया हो कि राज्यपाल स्थायी रूप से स्वीकृति रोक सकते हैं. एक मौके पर जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि संवैधानिक व्याख्या की प्रक्रिया “स्थिर” नहीं है और अगर राज्यपाल, सॉलिसिटर अटॉर्नी जनरल की ओर से सुझाए गए दूसरे विकल्प के रूप में सरलता से रोक लगाने का प्रयोग करते हैं और मामला समाप्त हो जाता है तो यह प्रतिकूल परिणाम दे सकता है. उन्होंने कहा कि विधेयक को वापस भेजे जाने और उसकी दिक्कतों को दूर कर सकने का विकल्प खुले रहना चाहिए.
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