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भारत-चीन पर भड़का नेपाल, दोनों को 'डिप्लोमैटिक नोट' भेजेगा, गुस्से की वजह ये रास्ता है

भारत और चीन के बीच व्यापार को लेकर एक समझौते ने नेपाल को परेशान कर दिया है. नेपाल की सरकार बैठक कर दोनों देशों को नोटिस भेजने की तैयारी कर रही है.

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भारत और चीन के समझौते से नेपाल परेशान (India Today)

भारत और चीन के बीच व्यापार को लेकर एक समझौता हुआ और नेपाल परेशान हो गया. उसे झटका इस बात का लगा कि 'दोस्त' चीन ने भी इस मुद्दे पर उसका साथ नहीं दिया. जबकि नेपाल की केपी शर्मा ओली सरकार इसकी बहुत उम्मीद कर रही थी. हुआ ये कि भारत और चीन के बीच कुछ खास मार्गों पर बंद पड़े व्यापार को चालू करने के लिए एक समझौता हुआ. इसमें एक रास्ते पर नेपाल ने आपत्ति जताई, क्योंकि उसे लगता है कि ये रास्ता उसके हिस्से में आता है. लेकिन भारत समेत चीन ने भी मान लिया कि ये भारत का हिस्सा है. इसी बात पर नेपाल भड़का हुआ है और दोनों देशों को 'डिप्लोमैटिक नोट' भेजने की तैयारी कर रहा है. हालांकि, भारत ने साफतौर पर नेपाल के दावों को अनुचित बताते हुए उसे खारिज किया है.

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भारत से नाराज हुआ नेपाल

दरअसल, चीन के विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा के दौरान मंगलवार, 19 अगस्त को दोनों देशों (भारत-चीन) ने कुछ खास स्थल मार्गों से व्यापार बहाल करने पर सहमति जताई थी. इस समझौते के मुताबिक, भारत और चीन लिपुलेख दर्रा, शिपकी ला पास और नाथू ला दर्रे के रास्ते से सीमा व्यापार को फिर से खोलेंगे. 

लेकिन नेपाल को लिपुलेख दर्रे के रास्ते भारत-चीन के व्यापार से आपत्ति है. इंडिया टुडे से जुड़े पंकज दास की रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल की सरकार इस बात से इतनी नाराज हो गई है कि उसने दोनों देशों को विरोध के तौर पर डिप्लोमैटिक नोट तक भेजने की तैयारी कर ली है.

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नेपाल के विदेश मंत्रालय ने आपत्ति जताई है
नेपाल क्यों नाराज है?

दरअसल, नेपाल भारत के लिपुलेख और लिंपियाधुरा पर अपना दावा करता रहा है. साल 2021 में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार ने भारत के लिपुलेख और लिंपियाधुरा को अपने देश के नक्शे में दिखाया था. इतना ही नहीं, उस समय ओली सरकार ने संसद में इस नक्शे को सरकारी प्रयोजन में लाने के लिए संविधान संशोधन तक कर डाला था. इस बात को लेकर दोनों देशों के बीच कई महीनों तक कूटनीतिक विवाद चलता रहा. नेपाल सरकार को उम्मीद थी कि भारत के जिस भूभाग पर वह अपना दावा कर रहा है, उस पर कम से कम चीन का समर्थन मिल सकता है.

लेकिन, मंगलवार, 19 अगस्त के समझौते में चीन ने नेपाल की उम्मीदों को झटका दे दिया. उसने लिपुलेख को भारत का हिस्सा मानते हुए इसे व्यापारिक मार्ग के रूप में प्रयोग करने पर भारत के साथ सहमति जताई. इसी को लेकर नेपाल में खलबली मच गई. नेपाल सरकार ने मुद्दे पर मशविरे के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन की बैठक बुला ली. नेपाल के विदेश मंत्रालय ने भी मीटिंग कर भारत और चीन को डिप्लोमैटिक नोट भेजने की तैयारी कर ली. लेकिन, भारत ने नेपाल के दावे को सिरे से खारिज कर दिया. 

भारत ने खारिज किया दावा

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बुधवार, 20 अगस्त को कहा कि उन्होंने नेपाल के विदेश मंत्रालय की उन टिप्पणियों को संज्ञान में लिया है, जो भारत और चीन के बीच लिपुलेख दर्रे से फिर शुरू होने वाले सीमा व्यापार से जुड़ी हैं. उन्होंने कहा,

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इस मामले पर भारत का रुख हमेशा से साफ और एक जैसा रहा है. भारत-चीन के बीच लिपुलेख दर्रे से सीमा व्यापार 1954 में शुरू हुआ था और यह कई दशकों से चलता आ रहा है. कोविड और अन्य वजहों से यह व्यापार कुछ समय के लिए बाधित हो गया था, जिसे अब दोनों देशों ने मिलकर इसे फिर से शुरू करने का फैसला किया है.

जायसवाल ने कहा कि जहां तक क्षेत्रीय दावों की बात है, हमारा स्टैंड वही है कि ऐसे दावे न तो सही हैं और न ही ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों पर आधारित हैं. इस तरह से एकतरफा और कृत्रिम रूप से (Unilateral artificial) क्षेत्रीय दावे बढ़ाना बिल्कुल अस्वीकार्य है. भारत सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि भारत सीमा से जुड़े पेंडिंग मुद्दों को बातचीत और कूटनीति के जरिए सुलझाने के लिए नेपाल के साथ रचनात्मक संवाद के लिए तैयार है.

वीडियो: खर्चा-पानी: चीन ने भारत के लिए तीन जरूरी चीजों से एक्सपोर्ट बैन क्यों हटाया?

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