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'जो सरकार MSP लीगल करेगी, डूबेगी', कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने इसकी वजह भी बताई

कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी का कहना है कि भारत में कोई भी सरकार फसलों के लिए एमएसपी को लीगल गारंटी नहीं देगी. अगर किसी सरकार ने ये कोशिश की तो वह डूब जाएगी.

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कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी (दाएं) ने कहा कि MSP की कानूनी गारंटी नहीं दी जा सकती (Photo- The Lallantop)

किसान अपनी फसलों के लिए MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य की लीगल गारंटी की मांग लंबे समय से करते आ रहे हैं. लेकिन कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी का मानना है कि कोई भी सरकार ये गारंटी कभी नहीं दे सकती. अगर कोई कोशिश भी करेगा तो उसका ‘डूबना’ तय है. ‘दी लल्लनटॉप’ के साथ ‘बैठकी’ में गुलाटी ने बताया कि साल 1965 के आसपास देश में फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए हाई-यील्डिंग वैरायटी बीज (HYV seeds) की टेक्नॉलजी लाई गई थी. उस समय फसलों के ‘बेकाबू उत्पादन’ पर कीमतों को गिरने से बचाने के लिए MSP यानी Minimum Support Price की व्यवस्था की गई थी. 

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गुलाटी के मुताबिक,

MSP कभी लीगल हो ही नहीं सकती. जो भी सरकार इसे लीगल करेगी, वो डूबेगी. 

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कब पैदा हुआ MSP?

अशोक गुलाटी ने आगे बताया कि पहले आप इसका जेनेसिस (जन्म) समझिए कि मिनिमम सपोर्ट प्राइस कहां से पैदा हुआ था? यह साल 1965 में तब पहली बार अस्तित्व में आया, जब भारत सरकार ने एग्रीकल्चर प्राइसेस कमीशन और फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) की स्थापना की. उस समय भारत ने बाहर से हाई-यील्डिंग वैरायटी बीज (HYV seeds) की टेक्नॉलजी मंगाई थी. ये ऐसे बीज होते थे, जिनसे फसलों के उत्पादन बेतहाशा बढ़ जाती है. हरित क्रांति के दौरान इन बीजों की भूमिका बेजोड़ थी. 

हालांकि, इस तकनीक को लेकर संसद में खूब बहस हुई. कुछ नेताओं ने कहा कि यह ग्रीन रिवोल्यूशन हमें हमेशा के लिए पश्चिमी देशों (West Countries) का गुलाम बना देगा. लेकिन हकीकत ये थी कि उस समय देश में अकाल पड़ा था. करो या मरो की स्थिति थी. गेहूं था नहीं. भारत को तकरीबन 10 मिलियन टन गेहूं आयात करना पड़ रहा था, जबकि उस समय देश की आबादी आज की तुलना में आधी से भी कम थी.

गुलाटी ने आगे बताया कि उस समय कहा गया कि नई तकनीक से उत्पादन बढ़ेगा तो फसलों की कीमतें नहीं गिरनी चाहिए. अगर कीमतें गिर गईं तो किसान नई तकनीक को अपनाने से हिचकने लगेंगे. 

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इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा,

जब फसलों का प्रोडक्शन बढ़ता है और हमारे पास उनको रखने की जगह नहीं होती. प्राइवेट सेक्टर को भी आप इजाजत नहीं देते कि वो ज्यादा अनाज स्टोर कर सकें. स्टॉकिंग लिमिट लगा देते हैं. तो क्या होगा? बाजार में फसलों की कीमत गिरेगी. ऐसी हालत में मार्केट में फसलों की कीमत न गिरे और किसानों को बढ़ावा मिले कि जो नई टेक्नोलॉजी आ रही है, उसको वो अडॉप्ट करें. तो इसके लिए सरकार ने MSP (Minimum support price) और एफसीआई (Food Corporation Of India) की व्यवस्था की. FCI का काम था, किसानों से एक निर्धारित कीमत पर अनाज खरीदे और उसे जमा करे ताकि जरूरत पड़ने पर उसे लोगों में बांटा जा सके. 

स्कूलों को बना दिया गोदाम

गुलाटी के मुताबिक, उस समय देश में फसलों के लिए ज्यादा स्टोरेज नहीं होते थे. साल 1965-66 में हाई-यील्डिंग वैरायटी बीज अपनाने के बाद जब पहली फसल आई तो प्रोडक्शन एकदम से बढ़ गया. और इतना बढ़ गया कि हमारे पास अनाज रखने की जगह नहीं थी. तब पंजाब के स्कूल बंद करने पड़े थे और सारा अनाज वहां स्टोर करना पड़ा था. प्राइमरी स्कूल के क्लासरूम एफसीआई के गोदाम बन गए थे. ये इतिहास है. यहीं से MSP और फसलों की सरकारी खरीद की शुरुआत हुई.

उन्होंने कहा, 

शुरुआत में ये व्यवस्था केवल गेहूं और धान (चावल) तक सीमित थी, लेकिन बाद में अन्य फसलों के किसान भी मांग करने लगे कि उनकी फसलों को भी MSP में शामिल किया जाए. धीरे-धीरे इसमें कई ऐसी फसलें जोड़ दी गईं जिनका बाजार में कोई बड़ा महत्व ही नहीं है. जैसे- नाइजर सीड. सरकार हर साल इसके लिए MSP घोषित करती है, जबकि न तो उसकी असल में कोई खपत है और न ही कोई प्रोक्योरमेंट की व्यवस्था. अब अगर MSP लीगल हो जाती है तो इसके प्रोक्योरमेंट यानी स्टोरेज की व्यवस्था करनी पड़ेगी. वो कौन करेगा. इसकी खपत कैसे होगी?

नाइजर सीड को 'रामतिल' भी कहा जाता है. इस फसल की खासियत होती है कि बंजर जमीन पर भी यह उग जाती है. रामतिल के अलावा इसे जगनी या जटांगी, गुजराती में रामतल, मराठी में कराले या खुरसनी, कन्नड़ में उचेलू, ओडिया में अलाशी, बंगाली में सारगुजा और असमी में सोरगुजा कहा जाता है.

खैर. हम MSP पर आते हैं. अशोक गुलाटी के मुताबिक आज हालत ये है कि ‘नेशनल सिचुएशन असेसमेंट’ सर्वे के अनुसार सिर्फ 10% किसान और खेती के कुल उत्पादन का लगभग 10% हिस्सा ही MSP पर बिकता है. बाकी 90% व्यापार तो प्राइवेट सेक्टर पर ही चल रहा है. 

गुलाटी का कहना है कि अगर सरकार ने MSP को लीगल कर दिया तो सारा काम छोड़कर वो बस फसल खरीदती रह जाएगी. 

अशोक गुलाटी के साथ पूरा इंटरव्यू यहां देख सकते हैं.

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