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'तू झूठी मैं मक्कार' मूवी रिव्यू

फिल्म से सबसे बड़ी शिकायत यही है कि रोमांटिक फिल्म होने के बावजूद ये आपके दिल तक नहीं पहुंचती. लीड पेयर के बीच प्रेम का जितनी बार ज़िक्र हुआ है, उस मात्रा में प्रेम उनकी देहबोलियों से नहीं झलक पाता.

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'तू झूठी मैं मक्कार' का इकलौता हासिल है, डिंपल कपाडिया की कॉमिक टाइमिंग.

अर्बन यूथ को लुभाने वाली फ़िल्में बनाने वाले डायरेक्टर लव रंजन अपनी नई फिल्म लेकर आए हैं. 'तू झूठी मैं मक्कार'. इस बार लीड पेयर में उनकी फेवरेट जोड़ी कार्तिक आर्यन और नुसरत भरुचा नहीं है. उनकी जगह हैं रणबीर कपूर और श्रद्धा कपूर. तो कैसी है ये फिल्म? बात करते हैं.

# 11 साल पुराना कॉन्सेप्ट

'तू झूठी मैं मक्कार' के बेसिक प्लॉट की बात की जाए, तो उसमें कोई यूनिक चीज़ नहीं है. एक लड़का है रोहन अरोड़ा उर्फ़ मिक्की. फैमिली बिज़नेस चलाता है और पार्ट टाइम जॉब के तौर पर लोगों के ब्रेकअप करवाने का काम करता है. कुछ-कुछ ऐसी ही कहानी 11 साल पहले आई फिल्म 'जोड़ी-ब्रेकर्स' की भी थी, जिसमें आर माधवन और बिपाशा बासु लीड रोल में थे. तो अपना मिक्की 30 साल की उम्र में भी सिंगल है और पार्टनर की तलाश में है. मिक्की के बेस्ट फ्रेंड डबास की बैचलर पार्टी है. जहां उससे टकराती है, दोस्त के मंगेतर की दोस्त टिन्नी. टिन्नी बिंदास लड़की है, जो सीरियस रिलेशनशिप लायक कोई मिलने से पहले टाइमपास वाले रिश्ते बना रही है. मिक्की को टिन्नी से पहली नज़र में सीरियस वाला प्यार हो गया है. लेकिन टिन्नी श्योर नहीं है. और श्योर न होने की पराकाष्ठा ये कि पूरी फिल्म भर श्योर नहीं हो पाती. बहरहाल, इन दोनों का सदा-कॉम्प्लिकेटेड रिश्ता किन-किन झूठ और मक्कारियों का सहारा लेते हुए अंजाम तक पहुंचता है, यही फिल्म की कहानी है.

# फैली हुई, कन्फ्यूज़्ड फिल्म

एक लाइन में कहा जाए तो ये लव रंजन यूनिवर्स की फिल्म है. इसलिए इसमें वो तमाम मसाले हैं, जो वो इससे पहले तीन-चार बार कामयाबी से दर्शकों के सामने परोस चुके हैं. पेप्पी म्यूज़िक, मॉडर्न रिलेशनशिप्स की समस्याएं और मोनोलॉग्स. ये उनका सेट फ़ॉर्मूला है, जो अब काफी घिसा हुआ लगता है. फिल्म से सबसे बड़ी शिकायत यही है कि रोमांटिक फिल्म होने के बावजूद ये आपके दिल तक नहीं पहुंचती. लीड पेयर के बीच प्रेम का जितनी बार ज़िक्र हुआ है, उस मात्रा में प्रेम उनकी देहबोलियों से नहीं झलक पाता. सबकुछ सतही लगता है. पूरी फिल्म की टोन ही इतनी उथली है कि गहरे डायलॉग भी हिट नहीं करते. ना तो मिक्की और टिन्नी के बीच के रिश्ते में कोई गर्माहट झलकती है, ना ही उनके ब्रेकअप होने की पीड़ा आप तक पहुंचती है.

एक इंडिपेंडेंट लड़की के करियर चॉइस की बात करते-करते फिल्म पारिवारिक मूल्यों में घुस जाती है. सेकंड हाफ तो बिल्कुल ऐसा है जैसे सूरज बडजात्या ने सुपरवाइज़ किया हो. फैमिली ड्रामा फिल्मों के गॉडफादर को फिल्म में बोलकर भी ट्रिब्यूट दिया गया है. ऊपर से फिल्म बहुत लंबी है. 10-15 मिनट नहीं, पूरा आधा घंटा फिल्म से आराम से उड़ाया जा सकता था.

लीड पेयर के बीच फिज़िक्स-बायोलॉजी हो तो हो, केमिस्ट्री बिल्कुल नहीं है. 

# दी डिंपल शो

एक्टिंग के मामले में रणबीर कपूर ने अपना काम ईमानदारी से किया है. इस तरह के रोल्स उन्होंने बहुत किए हैं और वो इनमें सहज लगते भी हैं. वो ही हैं, जो कुछेक सीन्स में आपके इमोशन्स को टच कर पाते हैं. इसके उलट श्रद्धा कपूर इमोशनल सीन्स में कमज़ोर लगती हैं. उनका किरदार कागज़ पर तो एक स्ट्रोंग लड़की का लगा होगा बेशक, लेकिन फिल्म में कन्फ्यूज़्ड और लॉस्ट ही लगता है. कैजुअल रिलेशन रखने की तमन्नाई लड़की झट से सीरियस हो जाती है. करियर की वजह से रिश्ता और सगाई तोड़ने को तैयार लड़की, अंत में एकदम विपरीत फैसले को ख़ुशी-ख़ुशी मान लेती है. ये कैरेक्टर आर्क डाइजेस्ट करने में थोड़ी मुश्किल होती है.

फिल्म में जो एक किरदार सबसे ज़्यादा दिल लुभाता है, वो है डिंपल कपाड़िया का. उन्होंने रणबीर की मां का रोल किया है और क्या ग़ज़ब किया है! वो जब-जब स्क्रीन पर आती हैं, धमाल मचा देती हैं. फिल्म के सबसे अच्छे पंचेज़ भी उनके ही हिस्से आए हैं और सबसे सटीक कॉमिक टाइमिंग भी उन्हीं की रही है. बावजूद इसके कि फिल्म में एक स्टार कॉमेडियन अलग से मौजूद है. क्लाइमैक्स सीन में तो उन्होंने कमाल ही कर डाला है. उन्हें देखकर ये आसानी से प्रेडिक्ट किया जा सकता है कि उनकी ये पारी शानदार रहने वाली है.  

स्टैंड अप कॉमेडियन अनुभव सिंह बस्सी के लिए ये बड़ा ब्रेक था. उन्होंने ठीक-ठाक निभा लिया. उनके कुछ पंच बढ़िया ढंग से लैंड हुए हैं, तो कुछ नहीं भी हुए. पर उन्हें ढेर सारा स्क्रीन-टाइम मिला है, ये उनके लिए अच्छी बात है. वो कॉंफिडेंट भी लगे हैं. बोनी कपूर का पहला स्क्रीन अपियरंस भी ठीक-ठाक ही रहा. उनके हिस्से ज़्यादा कुछ तो नहीं आया है, लेकिन वो बेहद सहज लगे हैं. उनसे ज़्यादा डायलॉग्स तो रणबीर की बहन का रोल करने वाली हसलीन कौर के हिस्से आए हैं. उन्होंने भी अपना पार्ट अच्छे ढंग से प्ले किया है.  लव रंजन ने अपने फेवरेट पेयर को लीड रोल में कास्ट तो नहीं किया, लेकिन उनकी हाज़िरी ज़रूर लगाई है. कार्तिक आर्यन और नुसरत भरुचा का कैमियो भी है फिल्म में. जो उनके फैन्स को पसंद आएगा.

कुल-मिलाकर बात ये है कि लगभग सभी एक्टर्स ने एक्टिंग के फ्रंट पर संतोषजनक काम किया है. दिक्कत फिल्म में ही है. एक तो बहुत लंबी फिल्म, ऊपर से सतही डायलॉग्स, कुछेक गैर-ज़रूरी, भुला देने लायक गाने और इमोशनल डेप्थ की भरपूर कमी. इन सब बातों ने फिल्म को काफी कमज़ोर किया है. लव रंजन की फिल्मों का ट्रेडमार्क बन चुके मोनोलॉग्स अब इरिटेट करने लगे हैं. इस फिल्म में तो कईयों के हिस्से आए हैं. फिल्म जो कुछ भी अच्छा है, वो आखिरी के 20-25 मिनट में ही है. यही वो वक्फा है, जब फिल्म आपका अटेंशन पकड़कर रखती है. क्लाइमैक्स सीन तो बेहतरीन बन पड़ा है. इतना उम्दा कि पहले ढाई घंटे का सियापा माफ़ करने को मन करता है.

तो कहने की बात ये कि अगर आप लव रंजन ब्रांड सिनेमा के बहुत बड़े फैन हैं, तो ज़रूर देखिए. वरना नेटफ्लिक्स पर आ ही जाएगी, वहां देख लेना.

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