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'गदर' की असली कहानी: जब फौजी बूटा सिंह ने बचाई, भारत-पाक बंटवारे के समय ज़ैनब की जान

डायरेक्टर अनिल शर्मा को राम के लंका जाने से, आया था तारा सिंह को पाकिस्तान भेजने का आइडिया.

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'गदर' की स्क्रिप्ट सुन अमरीश पुरी भावुक हो गए थे

Sunny Deol की Gadar को 9 जून को दोबारा रिलीज किया गया है. फिल्म अच्छा बिजनेस भी कर रही है. 2001 में रिलीज हुई फिल्म भारतीय सिनेमा में कल्ट मूवी का दर्जा रखती है. आखिर इसकी कहानी आई कहां से? क्या ये असली कहानी पर आधारित है? आइए सब बताते हैं.

'गदर' के डायरेक्टर अनिल शर्मा कश्मीरी पंडितों के पलायन पर फिल्म बना रहे थे. वो राइटर शक्तिमान तलवार के साथ कई महीनों से इस फिल्म पर लगे हुए थे. कास्टिंग के लिए कई ऐक्टर्स से बात भी हो चुकी थी. अमिताभ और दिलीप कुमार लगभग राज़ी भी हो गए थे. उस फिल्म में एक सबप्लॉट की ज़रूरत थी, कश्मीर का लड़का और POK की लड़की की प्रेम कहानी. माथापच्ची चल रही थी. शक्तिमान और अनिल ने दुनिया की सौ बेस्ट लव स्टोरीज पढ़ी. इसी बीच एक दिन शक्तिमान अनिल के पास पहुंचे और ब्रिटिश सेना में सैनिक बूटा सिंह की कहानी सुना डाली.

भारत-पाक बंटवारे के वक्त बूटा ने एक मुस्लिम लड़की ज़ैनब की जान बचाई थी. दोनों को प्यार हुआ. शादी हुई. बेटी हुई. चूंकि ज़ैनब मुसलमान थी. इसलिए उसे पाकिस्तान भेज दिया गया. बूटा सिंह को पाक नहीं जाने दिया गया. ज़ैनब के लिए वो गैरकानूनी तरीके से पाकिस्तान पहुंच जाता है. उसके परिवार वालों से मिलने की कोशिश करता है. पर ज़ैनब के घरवाले उसकी शादी चचेरे भाई से करा देते हैं. इधर बूटा सिंह को पाकिस्तान में गैरकानूनी तरीके से घुसने के लिए पकड़ लिया जाता है. उसे बताया जाता है कि ज़ैनब ने बूटा से की गई शादी मानने से इनकार कर दिया है. इससे बूटा इतना दुखी होता है कि ट्रेन के आगे कूदकर जान दे देता है.

ये कहानी अनिल शर्मा ने जवारलाल नेहरू नेहरू की एक किताब में भी पढ़ रखी थी. उन्होंने सोचना शुरू किया. और शक्तिमान से कश्मीर वाली पिक्चर ड्रॉप करने को कहा. अब उन्हें इस कहानी पर पिक्चर बनानी थी. अनिल ने 20 मिनट का समय लिया और एक मुकम्मल कहानी के साथ आ गए. पर एक ट्विस्ट के साथ. वो ट्विस्ट उनके दिमाग में आया 'रामायण' से. राम सीता को लेने लंका जाते हैं. यहां फ़र्क ये है कि तारा सिंह सकीना को लेने पाकिस्तान जाएगा, वो भी अपने बेटे के कहने पर. शक्तिमान ने स्क्रीनप्ले पर काम किया.

स्क्रिप्ट ज़ी स्टूडियो को सुनाई. उन्हें पसंद आ गई. सनी देओल को नरेट की गई. उन्होंने भी हां कर दी. जब स्क्रिप्ट का नरेशन अमरीश पुरी को दिया गया, तो वो भावुक हो गए. उनकी आंखों में आंसू आ गये थे. ऐसा ही कुछ लिरिसिस्ट आनंद बख्शी के साथ भी हुआ. अनिल उन्हें पिक्चर सुना रहे थे. वो ढाई घंटे के नरेशन में कई बार वॉशरूम गए. अनिल को लगता, सिगरेट पीने गए होंगे. पर वो अपने आँसू छुपाने के लिए बार-बार उठकर जाते थे. जब नरेशन खत्म हुआ, आनंद बख्शी ने नम आंखों से शर्मा को गले लगाते हुए कहा: "ये तुम्हारी मुगल-ए-आज़म है."

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