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मूवी रिव्यू: ऑलमोस्ट प्यार विथ डीजे मोहब्बत

अनुराग कश्यप का ये नया प्रयोग अच्छा तो है लेकिन उनके कद के बराबर नहीं है.

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नयी तरह की कहानी कहती है 'ऑलमोस्ट प्यार विथ डीजे मोहब्बत'.

अनुराग कश्यप का नाम आते ही 'वासेपुर', 'अग्ली', 'ब्लैक फ्राइडे' और 'पांच' जैसी इंटेंस क्राइम ड्रामा फ़िल्में याद आती हैं. लेकिन बीच-बीच में वो प्रेम की गली में भी चक्कर लगाते रहे हैं. 'मनमर्ज़ियाँ' के बाद एक बार फिर वो प्यार वाली थीम पर काम कर रहे हैं. उनकी नई फिल्म आई है 'ऑलमोस्ट प्यार विथ डीजे मोहब्बत', जो मिलेनियल्स और जेन ज़ी की शब्दावली और फीलिंग्स दोनों ही एक्सप्लोर करती है. कैसी है ये फिल्म? ऑलमोस्ट ठीकठाक.

# दो शहर, डीजे, मोहब्बत

मोटा-माटी, स्पॉइलर फ्री कहानी जान लेते हैं. एक्चुअली कहानियां. फिल्म में दो कहानियां पैरलल चलती हैं. एक डलहौज़ी में घट रही है और एक लंडन में. दोनों कहानियों को एक सूत्र में पिरोता है एक डीजे. डीजे मोहब्बत. फिल्म के तमाम किरदार डीजे मोहब्बत के फैन हैं. डलहौज़ी वाली कहानी में अमृता नाम की एक लड़की है, जो टिक-टॉक जैसे एक ऐप पर बुर्के में वीडियोज़ डालती हैं. अपने किरदार का नाम रखा है सलोनी अम्मी. जो क्लियरली कॉमेडियन सलोनी गौर के फेमस कैरिकेचर नजमा अप्पी से इंस्पायर्ड है. फिल्म में सलोनी को क्रेडिट भी दिया गया है. अमृता को फिल्मों का शौक है, जिसे पूरा करने का ज़रिया बनता है याकूब. याकूब अपने पिता के साथ मिलकर डीवीडी बेचने का काम करता है. याकूब ही वो शख्स है, जो अमृता को डीजे मोहब्बत के कॉन्सर्ट में ले जा सकता है. अमृता के पिता पूर्व विधायक हैं, भाई दबंग हैं, माँ रुढ़िवादी है. ऐसे सिनारियो में अमृता अपनी मर्ज़ी चलाए भी तो कैसे! लेकिन कॉन्सर्ट तो देखना है. फिर...? फिर जो होता है, उसके लिए फिल्म देखिएगा.

अलाया एफ स्कूल गर्ल के रोल में कन्विंसिंग लगी हैं. 

उधर लंडन में हरमीत नाम का एक लड़का है, जो किसी क्लब में डीजे है और कामयाब कम्पोज़र बनना चाहता है. आयशा एक रईस खानदान की औलाद है, जिसका हरमीत पर दिल आ गया है. लेकिन हरमीत सिर्फ और सिर्फ म्यूज़िक पर फोकस करना चाहता है. आगे क्या होगा? उसके लिए भी आपको फिल्म ही देखनी पड़ेगी.

ये दोनों कहानियां एक दूसरे से कहाँ कनेक्ट होती हैं, कैसे कनेक्ट होती हैं और इनके किरदारों का क्या अंजाम होता है, यही है अनुराग कश्यप की जेन ज़ी लव स्टोरी 'ऑलमोस्ट प्यार विथ डीजे मोहब्बत'.

# अनुराग कश्यप यूनिवर्स

अनुराग कश्यप की फिल्म हो और उसमें सिर्फ फ़्लैट तरीके से लव स्टोरी पेश की जा रही हो, ऐसा कैसे हो सकता है! ज़ाहिर है और भी बहुत कुछ होगा. है. अनुराग कई मुद्दों को छूते हुए चलते हैं. जैसे लव-जिहाद, सांप्रदायिकता, होमोफोबिया, पैट्रियार्की, क्लासिज़्म, हाइपर नेशनलिज़्म वगैरह-वगैरह. वो भी इन सबको सीधे एड्रेस किए बगैर. ये सब चीज़ें आपको दिख जाती हैं. आप नोट करते चलते हैं कि यही सब तो है, जो हमारे आसपास बहुतायत में हो रहा है. फिल्म के किरदार इस पर टिप्पणी करने के चक्कर में नहीं पड़ते. वो तो अपनी ही समस्याओं से जूझ रहे हैं. उन समस्याओं में दर्शक ये सब स्पॉट कर लेता है.

समीक्षा के हिसाब से देखा जाए, तो ये एक स्मार्ट तरीका है चीज़ों को रियलस्टिक बनाने का. अनुराग को इसमें महारत भी हासिल है. दिक्कत बस ये है कि इस फिल्म में कई बार ये चीज़ें उतनी इम्पैक्टफुल नहीं लगती. ऐसा लगता है जैसे ये सब कुछ महज़ एक फिलर है. इसीलिए इनकी वजह से कहानी में आने वाले ट्विस्ट्स चौंकाते तो हैं, लेकिन शॉक की मात्रा कम पड़ जाती है. ट्रेजेडी भी आपको उतना मूव नहीं करती. ये एक मेजर खामी मानी जा सकती है इस फिल्म की.

ये सीन बहुत उम्दा ढंग से निभाया है अलाया ने. 
# अलाया-करन शो

अलाया एफ की ये तीसरी फिल्म है. उनकी पहली फिल्म 'जवानी जानेमन' मैंने देखी नहीं थी और दूसरी फिल्म 'फ्रेडी' अभी हाल ही में देखी. 'ऑलमोस्ट प्यार...' देखकर जो पहला ख़याल मेरे मन में आया वो ये कि ये फिल्म 'फ्रेडी' से पहले आनी चाहिए थी. 'फ्रेडी' के बाद अलाया के प्रति एक पूर्वाग्रह सा बन जाता है. वो इस फिल्म में कम से कम मेरे लिए तो टूटा है. अलाया ने अपने दोनों रोल काफी मैच्योर तरीके से निभाए हैं. ख़ास तौर से अमृता वाला रोल. बात-बात पर ग़ालिब, अमृता प्रीतम और अमृता शेरगिल को कोट करने वाली एक हिमाचली लड़की उन्होंने उम्दा ढंग से साकार की है. उनकी खासियत ये है कि वो एक ही वक्त में स्कूल जाने वाली लड़की और फिल्दी रिच गर्ल, दोनों ही कन्विंसिंगली लगी हैं. एकाध इमोशनल सीन तो उन्होंने बेहद उम्दा ढंग से निभाया है. एक सीन है, जहाँ वो खानदान की नाक कटने के विषय पर एक मोनोलॉग सा बोलती हैं. बहुत अच्छा सीन किया है वो उन्होंने.

करन मेहता की ये डेब्यू फिल्म है. उन्होंने भी काफी अच्छा काम किया है. दोनों ही रोल में. कंट्रोल्ड अग्रेशन वाला हरमीत और वाचाल याकूब उन्होंने अच्छे ढंग से पेश किया है. उनसे और उम्मीदें रहेंगी. विकी कौशल डीजे मोहब्बत के रोल में सही लगे हैं. उनका ऑन-ऑफ स्क्रीन पर आते रहना, भला लगता है.

# अमित-शैली का मैजिक चला या नहीं?

फिल्म का एक और उल्लेखनीय पक्ष है इसका म्यूज़िक. अमित त्रिवेदी और शैली के डेडली कॉम्बिनेशन से आठ ऐसे गाने निकले हैं, जिनमें से ज़्यादातर से जेन ज़ी तुरंत रिलेट करेगी. गानों में इन्स्टा, नेटफ्लिक्स से लेकर तमाम जेन ज़ी शब्दावलियों को पिरोया गया है. स्मार्टफोन जनरेशन वाली भाषा. नमूना ये रहा.

तुझसे पहले था जो कॉन्स्टिट्यू्शन
तुझे पाने के लिए निकाले दो सेक्शन
महंगा बड़ा पड रहा है
ये तेरा-मेरा-तेरा घनघोर कनेक्शन

हालांकि दो या तीन गानों के अलावा बाकी गाने उतना बड़ा इम्पैक्ट नहीं छोड़ पाते हैं. 'मोहब्बत से क्रांति', 'बंजारे' और 'दुनिया'... इन गानों को आप अपने साथ घर ला सकते हो. कुल-मिलाकर 'मनमर्ज़ियां' वाला मैजिक फिर से तो क्रिएट नहीं हो पाया है, लेकिन एकदम ही रद करने जैसे हालात भी नहीं हैं.

ये गाना काफी पॉपुलर हो सकता है. 
# देखें या नहीं?

ठीक-ठाक संगीत, अच्छी एक्टिंग और इंटरेस्टिंग प्लॉट के बावजूद ये फिल्म अपनी खामियों से पार पाने में असमर्थ नज़र आती है. कुछेक चीज़ें हज़म नहीं होती. जैसे कि कोई लड़का-लड़की अगर घर से भाग रहे हैं, तो वो इतने बेवक़ूफ़ तो होंगे नहीं कि ये मान लें कि किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. आज के वक्त में इतना मासूम (पढ़ें बेवक़ूफ़) कौन होता है! फिर जिस प्यार का टाइटल तक में ज़िक्र है, उसकी मौजूदगी उतनी सशक्त है नहीं फिल्म में. आप किरदारों की तरह ही तमाम अरसा कन्फ्यूज़ रहते हैं. किरदार और उनके जज़्बात आपके अंदर नहीं उतर पाते.

कुल मिलाकर बात ऐसी है कि अनुराग कश्यप का ये नया प्रयोग अच्छा तो है लेकिन उनके कद के बराबर नहीं है. फिल्म आपको टुकड़ों में पसंद आ सकती है. जैसे मुझे आई. लेकिन ओवरऑल ऐसी नहीं है कि इसे टॉप ब्रैकेट में रखा जाए. हाँ इतना ज़रूर है कि देखने पर डिज़ास्टर जैसा महसूस नहीं होगा. वन टाइम वॉच ज़रूर है फिल्म. लीड पेयर की एक्टिंग, नई तरह की कहानी और कुछेक गानों के लिए देख सकते हैं. 

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