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उस मोखड़ाजी दादा की 13 बातें, जिनका नाम लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रो-रो सर्विस शुरू की

इस शख्स के किस्से आज भी समुद्री तटों पर लोग बड़ी शान से सुनाते हैं.

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मोखड़ाजी और भावनगर के खादरपार में बना उनका मंदिर.(फोटो: Facebook)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 अक्टूबर को भावनगर जिले के घोघा बंदरगाह पर रो-रो सर्विस की शुरुआत की है. इस दौरान लोगों से बात करते हुए उन्होंने कई बार एक शख्स का नाम लिया और उनकी शान में लोगों से नारे लगवाए. ये नाम था मोखड़ाजी दादा का, जिन्होंने घोघा राज्य पर शासन किया था. जानते हैं उनके बारे में 13 ऐसी बातें, जिनकी वजह से वो आज भी लोगों के बीच सम्मान की नजरों से देखे जाते हैं. 1. मोखड़ाजी दादा का पूरा नाम मोखड़ाजी गोहिल था, जो खेहरगढ़ के सेजाकाजी गोहिल के वंशज थे. 2. इनके पूर्वज राजस्थान से विस्थापित होकर सौराष्ट्र आए थे. इनके पिता रनजी गोहिल की रनपुर नाम की छोटी सी जागीर थी, जो अब अहमदाबाद में है. 3. इन्होंने 1309 से 1347 के बीच शासन किया था. इस दौरान दिल्ली पर तुगलक वंश का शासन था. 4. अहमदाबाद में ही एक और छोटी सी जागीर थी धौलेरा. इसके राजा धनमेर ठाकोर ने अपने बुढ़ापे को देखते हुए अपना राज्य मोखड़ाजी को सौंप दिया और खुद हिमालय चले गए. 5. मोखड़ाजी ने बाद में दिल्ली की भी यात्रा की, जहां से लौटने पर उन्होंने तुगलक शासन से टकराने का फैसला किया. 6. इसके लिए उन्हें अपने साम्राज्य का विस्तार करना था. इसे देखते हुए मोखड़ाजी गोहिल ने घोघा पर कब्जा कर लिया और पिराम द्वीप को राजधानी के तौर पर बसाया.
Mokhdaji temple
भावनगर में कई जगहों पर अब भी मोखड़ाजी के मंदिर बन रहे हैं. (फोटो: Facebook)

7. सूचना मिलने पर उन्होंने खंभात बंदरगाह पर दिल्ली सल्तनत का पूरा खजाना और गोला-बारूद लूट लिया. इस खजाने से उन्होंने अपनी नौसेना को और भी मजबूत किया था. 8. मोखड़ाजी ने जेठवा राजपूत इलाके पर भी कब्जा कर लिया. राज्य को कब्जे में लेने के बाद मोखड़ाजी ने जेठवा की बेटी से शादी कर ली थी. इससे पहले उन्होंने राजपिपला की राजकुमारी से भी शादी की थी. इसके बाद मोखड़ाजी ने खंभात से लेकर सोमनाथ तक पूरे समुद्र तट पर कब्जा कर लिया. 9. दिल्ली सल्तनत के लिए जब खंभात बंदरगाह से कारोबार करना मुश्किल हो गया, तो तुगलक की सेना ने मोखड़ाजी की राजधानी पिराम को चारों ओर से घेर लिया. तुगलक की सेना को समुद्री तट पर लड़ने की आदत नहीं थी, इसलिए वो हार गई और मोखड़ाजी जीत गए. 10. इसके बाद खुद मोहम्मद बिन तुगलक ने मोर्चा संभाला और पिराम के चारों ओर सेना तैनात कर दी. यह साल था 1347. 11. अपने राज्य को बचाने के लिए मोखड़ाजी सैनिकों के साथ खुद वहां लड़ने के लिए गए. उनकी सेना समुद्र में लड़ने के लिए तो मजबूत थी, लेकिन लड़ाई समुद्र तट पर हुई. 12. इस लड़ाई में मोखड़ाजी के सैनिक तुगलकी सैनिकों के आगे नहीं टिक सके. लड़ाई में खुद मोखड़ाजी की गर्दन कट कई और वो शहीद हो गए. 13. उनकी वीरता की कहानी आज भी समुद्र तट पर सुनाई जाती है. समुद्र तट पर उनके मंदिर बने हैं. मछली पकड़ने के लिए जाने वाले मछुआरे पहले मोखड़ाजी दादा को नारियल चढ़ाते हैं, उसके बाद ही अपनी नावें उतारते हैं.


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