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Rajasthan Election Results: गहलोत ने हरवाया, लेकिन सचिन पायलट कितनों को जिता पाए?

सचिन पायलट गुज्जर समाज से आते हैं. पूर्वी राजस्थान में भरतपुर, दौसा, टोंक, सवाई माधवपुर, अजमेर, भिलवाड़ा, करौली जिले हैं. ये ऐसे इलाके हैं जिनकी गिनती गुज्जर बाहुल्य इलाकों में होती है. इन जिलों की 35-40 विधानसभा सीटों पर गुज्जर समाज निर्णायक भूमिका निभा सकता है.

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राजस्थान की टोेंक सीट से दूसरी बार विधायक चुने गए सचिन पायलट. (फाइल फोटो- PTI)

तो आखिर राजस्थान में परंपरा बरकरार रही. पांच साल के बाद सत्ता परिवर्तन हो रहा है. कांग्रेस के पांच साल के बाद बीजेपी एक बार फिर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है. 'जादूगर' कहे जाने वाले अशोक गहलोत का जादू उन्हें सत्ता में वापसी नहीं करा पाया. इसी के साथ अशोक गहलोत के राजनीतिक भविष्य पर भी सवाल उठने लगा है कि क्या उनका करियर कम से कम प्रदेश में समाप्ति की ओर बढ़ चला है.

लेकिन एक नाम और है. 'CM इन वेटिंग' सचिन पायलट. उन्हें लेकर भी सवाल किया जा रहा है कि कांग्रेस की इस हार के बाद अब पायलट क्या करेंगे. पांच साल तक विधानसभा में विपक्ष में बैठकर बीजेपी का विरोध करेंगे या किसी और राज्य में जाकर पार्टी की जिम्मेदारी संभालेंगे.

पायलट का क्या होगा?

2018 से लेकर 2023 तक सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच राजनीतिक खींचतान चलती रही. चाहे 2020 में पायलट का रूठकर मानेसर चले जाना हो या चुनाव से कुछ ही महीने पहले अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ जाना, मुख्यमंत्री बनने की बेताबी सचिन पायलट की गतिविधियों में साफ दिख रही थी. हर बार पार्टी आलाकमान उन्हें अगले चुनाव का इंतजार करने को कह देती थी. लेकिन चुनाव हुआ तो उनकी पार्टी हार गई. जो पांच साल का इंतजार था वो अब 10 साल तक बढ़ता नजर आ रहा है. क्योंकि अगले पांच साल तक उन्हें विपक्ष में बैठना पड़ेगा. 

ऐसे में सवाल उठता है कि सचिन पायलट का भविष्य आगे किस तरफ जाएगा.

इस बारे में हमने बात की इंडिया टुडे मैग्जीन के वरिष्ठ संवाददाता और एक दशक से ज्यादा से राजस्थान की राजनीति कवर कर रहे आनंद चौधरी से. सचिन पायलट को लेकर उन्होंने कहा,

"कुछ दिनों में अशोक गहलोत को किसी राज्य के प्रभारी के पद पर देख सकते हैं. यानी वो राष्ट्रीय राजनीति का रुख कर सकते हैं. लेकिन सचिन पायलट ऐसा नहीं करेंगे. अगर उन्हें मुख्यमंत्री बनना है तो राजस्थान में रहकर राजनीति करनी होगी.

 

इस बात की संभावना है कि सचिन पायलट को लोकसभा चुनाव तक या चुनावों के बाद राजस्थान कांग्रेस की कमान सौंप दी जाए. जैसा 2013 चुनाव के बाद हुआ था. पायलट को जमीन पर राजनीति करनी होगी. ताकि अगले चुनाव में वो खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर सकें."

राजस्थान में जब 2013 में चुनाव हुए तब भी अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे. चुनाव में कांग्रेस की हार हुई थी और वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनीं. हार के बाद 2014 में सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया. उनके अध्यक्ष रहते हुए ही 2018 में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था और अशोक गहलोत ने सरकार बनाई थी. कुछ ऐसे ही परिस्थितियां इस बार भी हैं. और कयास ऐसे ही लगाए जा रहे हैं कि आने वाले समय में पायलट को राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जा सकता है.

साल 2000 में पिता राजेश पायलट की सड़क दुर्घटना में मृत्यु के बाद चुनावी राजनीति का रुख करने वाले सचिन पायलट सिर्फ 26 साल की उम्र में सांसद बन गए थे. उनके पिता केंद्रीय मंत्री रह चुके थे और कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे. 2004 में पायलट दौसा सीट से सांसद बनकर पहली बार पार्लियामेंट पहुंचे. दौसा उनके पिता की पारंपरिक सीट थी. 2009 में चुनाव लड़े, लेकिन दौसा सीट छोड़ दी. इस बार अजमेर में चुनाव जीता. और मात्र 31 साल की उम्र में केंद्र में मंत्री बने. UPA-2 में उन्हें पहले राज्य मंत्री बनाया गया और उसके बाद स्वतंत्र प्रभार दिया गया. लेकिन 2014 की 'मोदी लहर' में अपनी अजमेर सीट नहीं बचा पाए.

इसके बाद सचिन पायलट ने राजस्थान की राजनीति का रुख किया. प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद राज्य में समय बिताया. इस लालसा से कि जल्द ही उन्हें मुख्यमंत्री पद दिया जाएगा. लेकिन 2018 में राहुल गांधी के मनाने पर सचिन पायलट ने जिद छोड़ी और गहलोत के डिप्टी बनने पर हामी भर दी.

लेकिन उनके मन में मुख्यमंत्री न बन पाने की टीस जरूर रही. गहलोत से बगावत भी की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए. चुनाव से ठीक पहले उनकी नाराज़गी दूर करने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें कांग्रेस वर्किंग कमेंटी में शामिल भी किया. और चुनाव तक पार्टी के कदम से कदम मिलाने को कहा गया. पायलट ने साथ मिलकर चुनाव तो लड़ा, लेकिन राजस्थान की राजनीति को कवर करने वाले पत्रकार बताते हैं कि उन्होंने उस शिद्दत से चुनाव प्रचार नहीं किया जितनी मेहनत गहलोत ने की.

चुनाव के नतीजे आए तो ये तय हो गया कि सचिन पायलट का इंतजार अभी और लंबा चलेगा. 15 साल से ज्यादा वक्त से कांग्रेस कवर कर रहे लोकमत से जुड़े आदेश रावल कहते हैं,

"पायलट को जल्द ही कांग्रेस में महासचिव बनाया जा सकता है. नतीजों के बाद अगर गहलोत और गांधी परिवार के बीच की दूरियां बढ़ती हैं तो सचिन पायलट या उनके किसी करीबी को विधायक दल का नेता भी बनाया जा सकता है."

सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की बात पर आदेश कहते हैं कि ऐसा हाल फिलहाल में होना तो मुश्किल दिख रहा है, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद उन्हें राजस्थान सौंपा जा सकता है.

पायलट ने 2018 में टोंक सीट से पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा था. इस बार भी उन्होंने इसी सीट से 29 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की है. उन्होंने बीजेपी के अजीत सिंह मेहता को मात दी. अजीत 2013 में टोंक सीट से चुनाव जीत कर आए थे. लेकिन पिछली दो बार से टोंक में पायलट का दबदबा कायम है. उन्होंने ट्वीट कर टोंक की जनता का धन्यवाद भी कर दिया. लेकिन उनकी पकड़ वाले इलाकों में कांग्रेस ने कैसा प्रदर्शन किया?

कितनी सीटें जितवा पाए पायलट?

पायलट गुज्जर समाज से आते हैं. पूर्वी राजस्थान में भरतपुर, दौसा, टोंक, सवाई माधवपुर, अजमेर, भिलवाड़ा, करौली जिले हैं. ये ऐसे इलाके हैं जिनकी गिनती गुज्जर बाहुल्य इलाकों में होती है. इन जिलों की 35-40 विधानसभा सीटों पर गुज्जर समाज निर्णायक भूमिका निभा सकता है. मगर कांग्रेस के लिए इस इलाके में स्थिति अफसोस जनक रही. कांग्रेस पार्टी यहां 10 सीट भी नहीं जीत पाई.

यानी एक बात साफ नज़र आती है. गहलोत सरकार में वापसी तो नहीं करा पाए, लेकिन सचिन पायलट भी प्रदेश में कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए. आने वाले समय में सचिन पायलट को कांग्रेस आलाकमान क्या जिम्मेदारी सौंपेगी ये देखना होगा. लेकिन ये तय हो चुका है कि अगले पांच साल भी सचिन पायलट ‘CM इन वेटिंग’ ही रहेंगे.