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अगर खून की इस पॉलिटिक्स को पढ़ लें तो लोग चुनाव लड़ना छोड़ दें

यूपी में चुनावी हत्याओं का गजब इतिहास रहा है.

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यशपाल रावत, नीलम करवरिया और राकेश यादव
उत्तर प्रदेश के चुनावों में बैलट के साथ बुलेट भी चलती है. कई लोग ऐसे हैं जो जीत जाने पर विधायक बन जाते हैं. हार जाने पर पुराने पेशे में लौट आते हैं. रंगदारी, आगजनी, गुंडई. कई लोग उपचुनाव की फिराक में पड़ जाते हैं. कि सिटिंग विधायक को मार के जगह खाली कराई जाए. और अपने नाम का रुतबा बनाया जाए. एक रिपोर्ट के मुताबिक दागी कैंडिडेट के चुनाव जीतने की संभावना क्लीन कैंडिडेट की तुलना में 3 गुना ज्यादा होती है. ये समय का दोष है. बाकी किसी का तो निकाल नहीं सकते. आइए इसी क्रम में आपको पढ़वाते हैं यूपी में हुई राजनीतिक हत्याओं के बारे में: 1. 13 अगस्त 1996, जवाहर पंडित की हत्या आजादी के वक्त से ही इलाहाबाद राजनीति का केंद्र रहा था. जवाहर लाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी, हेमवती नंदन बहुगुणा और फिर अमिताभ बच्चन ने यहां हाथ आजमाया था. पर 90 के दशक में यहां पर नए किस्म के लोगों का आगमन हुआ. शॉर्टकट चाहिए था इनको. इस शहर के सबसे चकाचौंध वाले इलाके सिविल लाइंस में झूंसी के विधायक जवाहर पंडित की गोली मारकर हत्या कर दी गई. उनके साथ दो और लोग भी मरे थे. इलाहाबाद में पहली बार AK47 का इस्तेमाल किया गया था. ये भाड़े के शूटर लाए गए थे. वजहें राजनीति के अलावा बालू खनन औऱ शराब का कारोबार भी था. इस मामले में उस वक्त की भाजपा के दबंग करवरिया परिवार के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई थी. एक भाई उदयभान करवरिया भाजपा से विधायक थे. सूरजभान सपा से एमएलसी बने थे. बाद में तीसरे कपिलमुनि करवरिया बसपा से टिकट ले फूलपुर से सांसद बने. 20 साल तक इस मामले में कुछ खास नहीं हो पाया था. थाने में रखे सबूत के कपड़ों को दीमक खा गए थे. पर जवाहर पंडित की बीवी विजमा यादव ने हार नहीं मानी थी. अंत में कोर्ट के आदेश पर तीनों भाई जेल गए. दो साल से जेल में बंद हैं. विजमा फूलपुर से सपा विधायक हैं. फिर मैदान में हैं. उदयभान करवरिया 2002 से 2012 तक बारा क्षेत्र से भाजपा विधायक रहे. 2012 में सीट सुरक्षित हो जाने पर शहर नॉर्थ से लड़े पर हार गये. कपिलमुनि करवरिया 2014 का लोकसभा हारे. उदयभान करवरिया की पत्नी नीलम करवरिया मेजा से भाजपा प्रत्याशी हैं. नीलम ने अपने प्रचार में औरतों पर ज्यादा फोकस किया है. ब्राह्मण वोट भी टारगेट में था. पर बाहुबली पति की इमेज थोड़ी मुश्किल कर रही है. इससे पहले लोकसभा चुनाव में उदयभान और सूरजभान में दूरी हो गई थी. उदयभान ने भाई के लिए प्रचार भी नहीं किया था. 2. 1991 गोरखपुर के सहजनवां में पूर्वमंत्री शारदा रावत की हत्या 8 सितंबर 1991 को सहजनवा विधान सभा के विधायक शारदा प्रसाद रावत की हत्या कर दी गई. ये हत्या भी वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा थी. शारदा प्रसाद रामनरेश यादव की सरकार में मंत्री भी रह चुके थे. रावत की हत्या के 18 साल बाद उनके विधायक बेटे यशपाल रावत पर एक हत्या का आरोप लगा. यशपाल जेल चले गए. इंडिया टुडे में छपी रिपोर्ट के मुताबिक यशपाल ने गोरखपुर के एक कॉन्ट्रैक्टर विजय यादव से 20 लाख रुपये मांगे थे. विजय को रोड निर्माण का ठेका मिला था. विजय ने मना कर दिया. तो उसे मार दिया गया. लोगों के मुताबिक विजय यादव शारदा प्रसाद को मारने की बात खुल्लमखुल्ला कहता था. 3. 1996 ओमप्रकाश पासवान की हत्या 2 जून 1995 को लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड हुआ था. मायावती गेस्ट हाउस के एक कमरे में बंद थीं. बाहर लोगों का हुजूम था. गालियां दे रहा था, रेप करने की धमकी दी जा रही थी. जान से मारने के वादे किए जा रहे थे. भीड़ को उकसाने का आरोप सपा एमएलए ओमप्रकाश पासवान पर भी था. ओमप्रकाश गोरखपुर के बाहुबली विधायक माने जाते थे. गोरखधाम मठ से भी उनका जुड़ाव था. उस वक्त गोरखपुर में वीरेंद्र प्रताप शाही और हरिशंकर तिवारी के बीच जंग चलती थी. ओमप्रकाश शाही के नजदीकी माने जाते थे. 1996 में फिर चुनाव होने वाले थे. ओमप्रकाश एक जनसभा कर रहे थे. उसी में देसी बम मारकर उनकी हत्या कर दी गई. इस हत्या के आरोपी बने राकेश यादव. कभी उनको मायावती ने गोरखपुर की मानीराम विधानसभा से टिकट दिया था. दैनिक भास्कर में छपे इंटरव्यू में राकेश बताते हैं कि वो पहलवान हुआ करते थे. लेकिन मायावती का चीरहरण करने का प्रयास करने वाले बाहुबली विधायक ओमप्रकाश पासवान ने ऐसी स्थितियां उत्पन्न कर दीं कि मुझे भी बाहुबली बनना पड़ गया. राकेश बताते हैं कि एक बार ओमप्रकाश पासवान के लोग इनके एक परिचित की दुकान से मुफ्त कपड़ा लेकर जा रहे थे. तो राकेश ने हस्तक्षेप कर दिया. बाद में बात बढ़ गई. और ओमप्रकाश पासवान जीप पर बैठकर राकेश के घर आए औऱ सबको गालियां दीं. फिर बाद में राकेश का एक दोस्त इनकी बाइक लेकर जा रहा था तो ओमप्रकाश पासवान ने बाइक छीन ली. अपने घर में रख लिया. और यहीं से दोनों में जंग की शुरुआत हो गई. अब राकेश यादव सपा में हैं. ये भी पढ़ें:

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