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'मुस्लिम बहुल' देवबंद में भाजपा की जीत का सच!

सोशल मीडिया पर हो रहे शोर पर यकीन ना करो, इसे देख लो.

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Uttar Pradesh Assembly Elections 2017: How BJP managed to win the muslim dominated Deoband assembly seat
नया शगूफा बाजार में है. उत्तर प्रदेश चुनावों में देवबंद की सीट पर भाजपा की जीत पर बवाल कट रहा है. कुछ लोग कह रहे हैं कि 80 परसेंट मुस्लिम आबादी वाली सीट से भाजपा जीती तो जीती कैसे! लिहाज़ा गड़बड़ी हुई है. जांच करवाई जाए. वहीं भाजपा समर्थक कह रहे हैं कि यहां से जीतना मुस्लिम तबके में भाजपा की स्वीकार्यता का सबूत है. जब भाजपा पर हिंदू वोटों के सहारे तर जाने का आरोप लगता है, वहीं भाजपा समर्थक देवबंद विजय का काउंटर अटैक शुरू कर देते हैं. fb
दोनों ही तरफ के लोग तथ्यों के फ्रंट पर गलत हैं. सबसे पहले तो बेसिक फैक्ट ही दुरुस्त करवाए देते हैं कि देवबंद विधानसभा में 80 परसेंट मुस्लिम वोटर्स है ही नहीं. ताजा जनगणना के मुताबिक, लगभग 34 परसेंट मुस्लिम वोटर्स हैं यहां. यानी कि जो दावा किया जा रहा है उसके आधे से भी कम. यानी ये दोनों ही बातें हवा-हवाई लगती हैं कि मुसलमानों ने भाजपा को जिताया या ईवीएम में फ्रॉड हुआ.
देवबंद में कुल मतदाता हैं 3,26,940. इनमें से लगभग 1,10,000 मुस्लिम वोटर्स है. 70,000 के करीब दलित वोटर्स हैं और बाकी ठाकुर, ब्राह्मण, त्यागी, गुर्जर वगैरह. इन 1,10,000 वोटर्स पर ही बवाल है. देवबंद में करीब 71 फीसदी मतदान हुआ था. इसी औसत से अज्यूम किया जाए तो 1,10,000 में से मोटा-मोटी 80,000 मुसलमानों ने वोट किया होगा. कहा जा रहा है कि इन्होंने वोट दिया भाजपा को तभी उसकी जीत मुमकिन हुई. जबकि आंकड़े कुछ और ही कहते हैं.
बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने यहां से मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे. क्रमशः माजिद अली और माविया अली. इन दोनों को मिले वोट्स पर अगर एक नज़र भी दौड़ा लें तो माजरा समझ में आ जाता है. माजिद अली को 72,844 वोट मिले हैं और माविया अली को 55,385. दोनों का जोड़ बैठता है 1,28,229. जीतने वाले भाजपा कैंडिडेट को मिले हैं 1,02,244 वोट्स. ये थ्योरी इस वोट काउंट से ही ढेर हो जाती है. अगर एक ही मुस्लिम कैंडिडेट होता तो यूं वोट बंटता नहीं और शायद उसी की जीत भी हो जाती. 'शायद' के साथ ये बात लिखी, क्योंकि ऐसा हो ही ये ज़रूरी नहीं. deoband
अगर पिछले चौबीस साल में हुए पांच विधानसभा चुनावों पर नज़र डालें तो ये साफ़ हो जाता है कि यहां भाजपा हमेशा अच्छा प्रदर्शन करती रही है. मुस्लिम गढ़ कहे जाने वाले देवबंद ने बरसों से मुस्लिम विधायक का चेहरा नहीं देखा है. ज़रा नीचे की सूची पर नज़र भर मार लीजिए, मामला स्पष्ट हो जाएगा.
साल               विजेता                                        उपविजेता 2012        राजेंद्र सिंह राणा (सपा)             मनोज चौधरी (बसपा)  2007       मनोज चौधरी (बसपा)                शशि बाला पुंडीर (भाजपा) 2002       राजेंद्र सिंह राणा (बसपा)          रामपाल सिंह पुंडीर (भाजपा) 1996        सुखबीर सिंह पुंडीर (भाजपा)       राजेंद्र सिंह राणा (बसपा) 1993        शशि बाला पुंडीर (भाजपा)           मुर्तज़ा (बसपा) eci
इसे देखकर दो बातें साफ़ हो जाती हैं. एक तो ये कि इस पूरी सूची में कोई मुस्लिम नाम नहीं है. सिर्फ पिछले साल जब उपचुनाव हुए थे तब कांग्रेस से माविया अली जीत गई थी जिनका कार्यकाल सिर्फ साल भर रहा. दूसरा ये कि भाजपा की ज़मीन यहां हमेशा से रही है. 2012 को छोड़ दिया जाए तो हर बार भाजपा कम्पटीशन में रही है. पांच में से दो बार जीती है और दो बार उपविजेता रही है. सिर्फ 2012 में यहां सपा का कैंडिडेट जीता है. उस साल सपा की लहर थी और मुस्लिम कैंडिडेट उनका भी नहीं था. कहने की बात ये कि भाजपा की देवबंद जीत में अप्रत्याशित जैसा कुछ नहीं है. इस सीट पर जो हुआ वो कमोबेश वही है जो सारे उत्तर प्रदेश में हुआ. अब आप उसे मोदी लहर का करिश्मा मान लीजिए या हिंदूवादी वोटों का ध्रुवीकरण. आपके विवेक पर है.
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